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झारखंड के माथे से नहीं छूट रहा है ‘भूख से मौत’ का कलंक, 5 साल की बच्ची की मौत ने फिर खड़े किए गंभीर सवाल

'पिछले करीब तीन-चार दिनों से घर में चूल्हा नहीं जला था। घर में सभी लोग भूखे रह और सो रहे थे। इससे पहले आस पास के लोग कुछ राशन-पानी देते थें तो घर चल जा रहा था। लेकिन कोई भी कितना दे। सभी के घर दिक्कत है।' यह बात हमसे निमनी की माँ कलावती देवी ने कही।
भूख से मौत

झारखंड के लातेहार जिला के मनिका प्रखंड के सुदूर हेसातु गांव में पांच वर्षीय दलित बच्ची निमनी कुमारी की कथित तौर पर 16 मई को भूख से मौत हो गई। जिला प्रशासन का दावा है कि मौत की वजह भूख नहीं बीमारी है। हालांकि इस घटना की पड़ताल में जो तथ्य सामने आए हैं वो इस बच्ची के परिवार की ग़रीबी और भुखमरी की ही कहानी कह रहे हैं।  

'पिछले करीब तीन-चार दिनों से घर में चूल्हा नहीं जला था। घर में सभी लोग भूखे रह और सो रहे थे। इससे पहले आस पास के लोग कुछ राशन-पानी देते थें तो घर चल जा रहा था। लेकिन कोई भी कितना दे। सभी के घर दिक्कत है।' यह बात हमसे निमनी की माँ कलावती देवी ने कही।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कलावती कहती हैं कि, 'जब से बंदी (लॉकडाउन) हुआ है। तब से ही हमारा परिवार दिक्कत में है। बच्चे लोग दूसरे के घर में जा कर खाया करते थे। कभी इसके यहां खा लिया तो कभी उसके यहां।'

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने भी इस मुद्दे को उठाया है। अपने एख वीडियो संदेश में उन्होंने कहा है कि, घर में दो दिन से चूल्हा नहीं जला था। बच्ची की माँ आसपास के लोगों से राशन मांगकर दो महीने से खाने का इंतजाम कर रही थी। बच्ची के पिता दो महीने से लॉकडाउन की वजह से ईंट-भट्टे पर थे। इस परिवार को राशन नहीं मिल रहा था।

निमनी के पिता जगलाल भुइंया लातेहार ज़िला के सुकुलहूट के एक ईंटा भट्ठी में मजदूरी करते हैं। घटना के वक्त जगलाल अपने दो बच्चों के साथ भट्ठे पर ही थे। बेटी की मौत की खबर मिलते ही वे वहां से घर के लिए निकले। हालांकि उनके घर पहुंचने से पहले ही गांव वालों ने निमनी के लाश को दफना दिया था।

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जगलाल ने बताया कि, 'जब निमनी की मौत हुई उससे पहले घर में अनाज नहीं था। लेकिन जिस दिन यह घटना हुई उस दिन किसी ने थोड़ा बहुत चावल दिया था। तब जाकर दोपहर में निमनी और बाकी बच्चों ने माड़-भात खाया।'

वह आगे बताते हैं कि, 'खाने के बाद निमनी बाकी बच्चों के साथ गांव के ही तालाब में नहाने चली गयी और उधर से लौटने के कुछ ही देर बाद निमनी की तबीयत बिगड़ी और मौत हो गयी। निम्मी की मौत के समय घर पर उसकी मां कलावती देवी और अन्य भाई-बहन थे।'

जगलाल और कलावती के 8 बच्चे क्रमशः रीता कुमारी (13 वर्ष), गीता कुमारी (12 वर्ष), अखिलेश भुईयाँ (10 वर्ष), मिथुन भुईयाँ (8 वर्ष), निमनी कुमारी (5 वर्ष, अब मृत), रूपन्ती कुमारी (3 वर्ष), मीना कुमारी (2 वर्ष) और चम्पा कुमारी (4 माह) हैं।

जगलाल कहते हैं, 'हमारे पास राशनकार्ड नहीं है। क‌ई दफा कोशिश भी की बनवाने की लेकिन बन नहीं पाया।' हमें यह भी बताया गया कि, इस देशव्यापी तालाबंदी के दौरान यह परिवार किसी भी तरह के सरकारी मदद से वंचित रहा है।

हमें बताया गया कि, राशन मांगने के लिए कलावती ने कई बार गांव के मुखिया का दरवाज़ा खटखटाया मगर हर बार उन्हें यह कह कर लौटा दिया गया कि राशन नहीं है।

इस सिलसिले हमने झारखण्ड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज से भी बात की। वह कहते हैं कि, 'राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में ऐसे भूमिहीन दलित परिवारों को स्वतः शामिल करने के प्रावधान के बावजूद इन्हें राशन कार्ड से वंचित रखा गया। पलामू प्रमण्डल में ऐसे हजारों दलित भूमिहीन परिवार हैं जिनके पास राशन कार्ड हैं ही नहीं। 

वह आगे बताते हैं कि, 'जगलाल भुईयाँ के रोजगार कार्ड (JH-06-004-006-004/59032) को भी 2 सितंबर 2013 को ही प्रशासन ने अन्य कारण बताते हुए निरस्त कर दिया।'

बता दें कि, 25 अप्रैल, 2020 तक राज्य के 7 लाख 29 हज़ार परिवार के पास राशनकार्ड नहीं था। इसमें लॉकडाउन के दौरान 32492 परिवारों ने अप्लाई किया है।

पीड़ित परिवार की बात सुनने के बाद हमने डोकी पंचायत मुखिया पार्वती देवी से बात की। उन्होंने बताया कि, 'कलावती के परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था,जिसके कारण पीडीएस केंद्र पर उन्हें राशन नहीं मिल पाया। लॉकडाउन के दौरान हमने मुखिया फण्ड से उन परिवारों को राशन बांटने का काम किया था जिनके पास राशनकार्ड नहीं है।' 

उन्होंने आगे बताया कि 'पंचायत में सौ से भी ज्यादा ऐसे परिवार हैं जिनके पास राशनकार्ड नहीं है। इनमें से कुछ परिवारों तक हमने राशन पहुंचा दी थी। फण्ड खत्म होने के कारण कुछ परिवारों तक हम मदद नहीं पहुंचा पाए। दूसरी क़िस्त की मांग के लिए मुखिया ने प्रखंड विकास पदाधिकारी को लिखित रूप में आवेदन दिया था। लेकिन पदाधिकारी के तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया।

निमनी की माँ कलावती ने बताया कि घटना के बाद शनिवार रात प्रखंड विकास पदाधिकारी नंदकुमार राम उनके घर आए थे। उन्होंने पांच हजार रुपये और 40 किलो अनाज दिया है। 

इसके बाद हमने प्रखंड विकास पदाधिकारी नंदकुमार राम से बात की। उन्होंने बताया कि, घटना की जानकारी मिलते ही मैं निमनी के घर लगभग 10 बजे पहुंचा। हमें बताया गया कि बच्ची ने दोपहर को भोजन किया था।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि 'यदि बच्ची ने दिन में खाना खाया था तब भूख से मौत कैसे हो सकती है।' प्रखंड पदाधिकारी का कहना था कि, बच्ची की तबीयत पहले से ही खराब थी। तालाब से नहा कर लौटने के बाद बच्ची की तबीयत और खराब हो गयी जिसके कुछ देर बाद ही बच्ची की मौत हो गई।

हमने उनसे यह भी पूछा कि निमनी के परिवार तक सरकारी राशन क्यों नहीं पहुंचा? इसके जवाब में प्रखंड विकास पदाधिकारी नंदकुमार ने कहा कि, 'डीलर या मुखिया तक इस तरह की कोई जानकारी नहीं पहुंची थी कि गांव में किसी परिवार को राशन की ज़रूरत है। हमारे ब्लॉक में हमेशा राशन के पैकेट तैयार रहते हैं। हमने सभी मुखिया को कहा है कि जब ज़रूरत हो आप राशन किट लेकर जा सकते हैं।'

गौरतलब है कि पंचायत के मुखिया द्वारा हमें यह बताया गया था कि, मुखिया फण्ड ख़त्म हो जाने के कारण पीड़ित परिवार तक सरकारी राशन नहीं पहुंचा था। इस सिलसिले में न‌ए आवंटन के लिए मुखिया द्वारा प्रखंड विकास पदाधिकारी को आवेदन दिया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

लातेहार ज़िला प्रशासन ने बच्ची की मौत भूख मौत की बात को ख़ारिज कर दिया है। लातेहार जिला आयुक्त ज़ीशान कमर ने बताया कि, 'प्रथम जांच से यही पता चला है कि बच्ची की मौत भूख नहीं बल्कि बीमारी से हुई है।' उन्होंने यह भी कहा कि 'घटना 16 मई की है और 13 मई को गांव के एक स्कूल टीचर द्वारा परिवार को छह किलो राशन और कुछ पैसे दिए गए थे। दो दिन में ही छह किलो राशन का ख़त्म होना और भूख से किसी की मौत होना मुमकिन नहीं।'

इसके बाद हमने उस टीचर से बात की जिसने निमनी के घर तक राशन पहुंचाया था।

जुगलप्रसाद गुप्ता गांव के ही विद्यालय में बतौर पारा शिक्षक पढ़ाते हैं। जब हमने उनसे निमनी के घर राशन पहुंचाने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि, 'हमने पहले फेज़ में पांच किलो चावल और दूसरे फेज़ में एक किलो चावल साथ ही 110 रुपये पहुंचाया था।' जब हमने उनसे पूछा कि राशन कब पहुंचाया गया था? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि, 'पहला फेज़ का राशन 17 मार्च को और दूसरे फेज़ का राशन 23 अप्रैल को पहुंचाया था।'

पारा शिक्षक ने साथ ही साथ यह भी कहा कि इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर था।

पारा शिक्षक जुगलप्रसाद की बात से यह पता चलता है कि, निमनी के मौत से दो दिन पहले राशन पहुंचाने का जो दावा लातेहार ज़िला आयुक्त द्वारा किया जा रहा था वह गलत है।

इस पूरे घटना पर स्थानीय पत्रकार विशद कुमार बताते हैं कि, इस भूमिहीन परिवार के पास न राशन कार्ड है न रोजगार कार्ड। जबकि प्रखण्ड प्रशासन को डोंकी पंचायत से ऐसे 36 परिवारों की सूची 15 दिन पहले ही सौंपी गई है, जो खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं। इसके बाद भी डीलर ने इनको किसी प्रकार का राशन नहीं दिया और न ही प्रखण्ड प्रशासन ने इस परिवार के बारे कोई सुधि ली।

उन्होंने आगे बताया कि, हेसातु गाँव में करीब 35 भुईयाँ परिवार हैं जो पूरी तरह भूमिहीन परिवार हैं। लगभग 110 परिवारों वाले इस गाँव में अन्य परिवारों में खेरवार, साव और कुछ घर कुम्हार परिवार हैं। उन्हीं दलित परिवारों में से जगलाल भुईयां का परिवार भी है।

परिवार ने बताया कि बच्ची की मौत भूख से हुई है वहीं जिला प्रशासन ने बताया कि मौत वजह बीमारी है। यदि ऐसा है तो मृत बच्ची की मेडिकल जांच क्यों नहीं हुई ?

जिला आयुक्त ज़ीशान क़मर ने बताया कि, भूख की असल वजह जानने के लिए परिवार के बाक़ी सदस्यों का ब्लड सैंपल लिया गया है। हमने पूछा की बच्ची का सैंपल क्यों नहीं लिया गया ? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि मेडिकल टीम के पहुंचने से पहले ही बच्ची को दफना दिया गया था जिसके वजह से सैंपल नहीं लिया जा सका।

गौरतलब है कि घटना की रात बीडीओ परिवार से मिलने जाते हैं लेकिन इसके बावजूद बच्ची की किसी तरह की मेडिकल जांच नहीं हुई।

हम समझना चाहते थे कि आखिर ऐसी कौन सी जांच है जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति भूखा था या नहीं। इस सिलसिले में हमने जिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. एसपी शर्मा से बात की और जांच की पूरी प्रक्रिया समझने की कोशिश की।

उन्होंने बताया कि, हम खून में हीमोग्लोबिन और बीएमआई की मात्रा चेक करते हैं। किसी व्यक्ति का बीएमआई 18 से 24 के बीच मिलता है तो इसका मतलब है कि वह पूरी तरह से स्वास्थ है। यदि कम है तब वह व्यक्ति कुपोषण का शिकार है।

हमने उनसे यह भी पूछा कि क्या इससे भूखे होने का पता लग सकता है तो उन्होंने बताया कि नहीं इस जांच से सिर्फ कुपोषण होने और न होने का पता चल सकता है।

वहीं हमने झारखंड के एक सरकारी अस्पताल के निदेशक से भी इस पूरी जांच प्रक्रिया को समझने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति चार या पांच दिन से भूखा है तब भी उसके हीमोग्लोबिन और बीएमआई लेवल पर कोई खासा असर नहीं पड़ेगा। 

उन्होंने यह भी बताया कि यदि किसी व्यक्ति को दो महीने या चार महीने से सही भोजन नहीं मिल रहा है तब जा कर बीएमआई और हीमोग्लोबिन पर कोई असर पड़ता है।

इससे पहले झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान कुल 22 भूख से मौत के मामले सामने आए थे। हेमंत सोरेन ने सरकार में आते ही सभी मामलों को नकार दिया। विधानसभा में दिए जवाब में सरकार ने कहा कि राज्य में एक भी मौत भूख से नहीं हुई है।

साल 2019 में भी लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के दुरुप पंचायत के लुरगुमी कला के रहने वाले रामचरण मुंडा (65) की कथित तौर पर भूख से मौत हो गयी थी। 

(आसिफ़ असरार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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