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जोशीमठ : घरों से सड़कों तक चौड़ी हो रही दरारें, निर्माण कार्य ठप, सुरक्षित जगहों पर भेजे जा रहे लोग

जोशीमठ के लोग चमोली आपदा के बाद से ही घरों में दरारें पड़ने की शिकायत कर रहे थे। जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक उन्होंने इन दरारों की वैज्ञानिक जांच और विस्थापित किए जाने की मांग की। लेकिन गुरुवार को स्थिति बिगड़ने पर प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले पर संजीदा हुए और प्रभावितों को विस्थापित करने का कार्य शुरू किया गया।   
Joshimath

जोशीमठ में दरारों के साथ निचले इलाकों में कई जगह पानी का तेज रिसाव हो रहा है। तस्वीर साभार- सूचना विभाग

फरवरी 2021 में आई चमोली आपदा के बाद से लगातार भू-धंसाव झेल रहे जोशीमठ में अब हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। पिछले एक साल से घरों में पड़ी दरारों के चलते प्रभावित लोग अनहोनी की आशंका के साथ जी रहे थे। अब ये दरारें तेज़ी से चौड़ी हो रही हैं। घर, सड़क, बद्रीनाथ नेशनल हाईवे, वन विभाग की चेकपोस्ट, जेपी कंपनी के परिसर में बने मकान, रोपवे से सटी ज़मीन, हर तरफ दरारें फैल रही हैं। निचले इलाको में इनसे मटमैला पानी निकल रहा है। प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने का कार्य शुरू हो गया है।

लगातार बिगड़ती स्थिति के बीच स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की उपेक्षा से नाराज़ लोग बुधवार रात मशालें लेकर सड़कों पर उतरे। हालांकि ये विरोध प्रदर्शन पिछले एक साल से लगातार चल रहा था। गुरुवार का पूरा दिन चक्का जाम में गुजरा। इससे पहले 2 जनवरी को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के लोग देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलने पहुंचे थे। लेकिन उन्हें ये अफसोस रहा कि मुख्यमंत्री ने उनकी बातों को सुनने का समय नहीं दिया।

राज्य के उच्चतम संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम बनाकर एक बार फिर सर्वेक्षण की तैयारी कर रही थी। लेकिन ज़मीनी रिपोर्टें सर्वेक्षण की नहीं बल्कि लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने की तत्काल मांग कर रही थीं। जोशीमठ के मारवाड़ी और सुनील गांव के घरों और खेतों में एक साल से पड़ी दरारें पिछले 3-4 दिनों में तेजी से बढ़ रही हैं। 

जोशीमठ में घरों के साथ अब सड़कों पर भी दरारें गहरी हो रही हैं।

संकट में जोशीमठ!

चमोली के ज़िलाधिकारी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सचिव को 4 जनवरी को पत्र लिखा और जोशीमठ की मौजूदा स्थिति की जानकारी दी। उन्होंने पत्र में लिखा कि जोशीमठ के विभिन्न वार्ड में पड़ रही दरारें शहर के ज्यादातर सड़कों, बद्रीनाथ नेशनल हाईवे, मरवाड़ी गांव में जेपी कंपनी के गेट और वन विभाग के चेक पोस्ट पर तेजी से बढ़ रही हैं। जोशीमठ औली रोपवे के टावर के खड्ड के बगल में 6-9 इंच मोटी दरार आई, जो करीब 500 मीटर क्षेत्र में फैली है। यहां से सीधे नीचे अलकनंदा नदी के तट तक बने हुए सभी घरो में दरारें आ गईं। मारवाड़ी गांव में जेपी हाइड्रो पावर परिसर के भवनों में भी दरारें फैल गईं और बड़ी मात्रा में मटमैला पानी निकल रहा है। 

जोशीमठ नगरपालिका के चेयरमैन शैलेंद्र पवार ने कहा कि हर घंटे इन दरारों के बढ़ने की रफ्तार तेज़ हो रही है।

तकरीबन 20 हजार आबादी वाला नगर ( 2011 की जनगणना के मुताबिक 16,709 आबादी) भू-धंसाव के खतरे की जद में है। जोशीमठ नगरपालिका ने 561 घरों के 3000 से अधिक लोगों को चिन्हित किया था जो भूधंसाव से प्रभावित हैं। 

जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर पिछले एक साल से मुखर जोशीमठ संघर्ष समिति के अतुल सती लगातार आरोप लगा रहे हैं कि उत्तराखंड सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। पूरे नगर के दरकने की खबरें तेजी से फैल रही थी। 5 जनवरी की रात मुख्यमंत्री धामी ने इस मामले में उच्च स्तरीय बैठक का फ़ैसला लिया। 6 जनवरी को इस बैठक में ज़िले और राज्य के बड़े अधिकारी शामिल हो रहे हैं।

उधर, गुरुवार को गढवाल कमिश्नर सुशील कुमार, आपदा प्रबंधन सचिव रन्जीत कुमार सिन्हा, आपदा प्रबंधन के अधिशासी अधिकारी पीयूष रौतेला, एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडेंट रोहितास मिश्रा, भूस्खलन न्यूनीकरण केन्द्र के वैज्ञानिक शांतनु सरकार, आईआईटी रूडकी के प्रोफेसर डा.बीके माहेश्वरी सहित तकनीकी विशेषज्ञों की पूरी टीम जोशीमठ पहुंची। 

जोशीमठ में बुधवार रात लोगों ने मशाल जुलूस निकाल, गुरुवार को चक्का जाम किया।

निर्माण कार्य रोके गए

बढ़ते भू-धंसाव को देखते हुए जिला प्रशासन ने बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन द्वारा बनाए जा रहे हेलंग बाईपास का निर्माण कार्य, एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के लिए चल रहा निर्माण कार्य और नगरपालिका क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्यो पर अग्रिम आदेशों तक तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। जोशीमठ-औली रोपवे का संचालन भी अगले आदेशों तक रोका गया है। 

जोशीमठ में अति प्रभावित घरों से लोगों को शिफ्ट किए जाने का कार्य शुरू हो गया है।

जोशीमठ से शिफ्ट किए जा रहे लोग

प्रभावित परिवारों को शिफ्ट करने करने के लिए चमोली जिला प्रशासन ने एनटीपीसी और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी को एहतियातन 2-2 हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन तैयार कराने के भी आदेश जारी किए है। 

प्रभावित परिवारों को नगरपालिका, ब्लॉक, बद्रीकेदार मंदिर समिति के गेस्ट हाउस, गुरुद्वारा, इंटर कालेज, आईटीआई तपोवन सहित अन्य सुरक्षित स्थानों पर रहने की व्यवस्था की गई है। जोशीमठ नगर क्षेत्र से 43 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर अस्थायी रूप से शिफ्ट कर लिया गया है। जिसमें से 38 परिवार को प्रशासन ने जबकि पांच परिवार स्वयं सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट हो गए है।

एक साल से पुनर्वास की मांग कर रहे लोगों को अब सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए जगहें चुनी जा रही हैं। टूरिस्ट हॉस्टल, प्राथमिक विद्यालय, सरकार गेस्ट हाउस, संस्कृति महाविद्यालय, धर्मशाला समेत अन्य सुरक्षित भवनों के कमरे लिए जा रहे हैं।

चमोली आपदा के बाद से जोशीमठ में दरारें पड़नी शुरू हुईं। स्थानीय लोग आपदा के बाद क्षतिग्रस्त बांध परियोजना की टनल से पानी के रिसाव को दरारों की वजह मान रहे हैं।

आपदाएं और बांध

जोशीमठ की मौजूदा स्थिति टिहरी बांध की झील में डूबते टिहरी शहर, केदारनाथ आपदा, चमोली आपदा की तर्ज पर दिखाई देती है। इन सारी आपदाओं की तीव्रता जलविद्युत परियोजनाओं ने बढ़ाई।

अतुल सती कहते हैं “जोशीमठ अनियंत्रित अदूरदर्शी विकास की भेंट चढ़ रहा है। एक तरफ जलविद्युत परियोजना के लिए एनटीपीसी की सुरंग ने जमीन को भीतर से खोखला कर दिया है। वहीं बाईपास सड़क जोशीमठ की जड़ पर खुदाई करके पूरे शहर को नीचे से हिला रही है”।

चमोली 2021 की आपदा में तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना और तपोवन-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना प्रभावित हुई थी। जोशीमठ के लोगों का मानना है कि इस आपदा के बाद ही घरों में दरारें पड़नी शुरू हुईं। परियोजना के लिए एनटीपीसी टनल का निर्माण कर रहा है।

वर्ष 2022 में जोशीमठ का सर्वे करने वाली स्वतंत्र वैज्ञानिकों की कमेटी में शामिल पौड़ी के एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भू-विज्ञानी डॉ एसपी सती कहते हैं “पिछले साल सर्वेक्षण के दौरान हमने जलविद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही टनल से रिसाव की बात को ज्यादा तरजीह नहीं दी थी। स्थानीय लोग उस समय भी बार-बार टनल से पानी लीक होने की बात कह रहे थे। लेकिन अभी जिस तरह से इतने अधिक पानी का रिसाव हो रहा है,  ऐसा लगता है कि यह टनल से ही रिस रहा पानी है”।

“ऐसा हो सकता है कि 2021 आपदा के बाद ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़ से टनल में जो वॉटर लॉक हुआ है, वही पानी रिसकर जोशीमठ की पहाड़ी में पहुंचा है। पानी पहाड़ी की लूज़ मिट्टी को ट्रिगर कर रहा है जिससे भूधंसाव हो रहा है। सौ फीसदी ऐसा ही हो रहा हो, ये नहीं कह सकता, लेकिन अपने अनुभव से मुझे लग रहा है कि इसका बड़ा रोल है”। 

एसपी सती कहते है “जोशीमठ टाइम बम था ही, आज नहीं तो कल उसे नीचे आना ही था। लेकिन ट्रिगरिंग घटना 7 फरवरी 2021 को हुई। जोशीमठ के साथ ही कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, मुनस्यारी, धारचुला, नैनीताल, भटवाड़ी, घनसाली जैसे बहुत से पहाड़ी शहर और सैंकड़ों गांव इस तरह के खतरे की जद में हैं। पिछले 20-22 सालों में जिस तरह से पहाड़ों को काटा जा रहा है और बेतरतीब सड़क निर्माण किए जा रहे हैं, इससे सारे स्लोप भूस्खलन के लिहाज से रि-एक्टिवेट हो गए हैं। ये irreversible यानी कभी न बदला जा सकने वाला नुकसान हो गया है”।

विशेषज्ञों की राय अलग-अलग

चारधाम सड़क परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष रह चुके डॉ रवि चोपड़ा वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा बांधों को लेकर बनाई गई कमेटी में भी शामिल रहे। उस कमेटी ने समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बांध न बनाने का सुझाव दिया था। 

डॉ चोपड़ा कहते हैं जोशीमठ हम सबके लिए एक वॉर्निंग है कि पहाड़ों की एक कैरिंग कैपेसिटी (वहनीय क्षमता) है। जब तक हम उस कैरिंग कैपेसिटी का अच्छा अंदाज़ा नहीं लेंगे तबतक अंधाधुंध निर्माण कार्य, चाहे वो लोगों के घर हों, होटल हों, सड़के हों या बांध हों,  इस सबसे खतरा खड़ा हो सकता है। हमें पहाड़ियों की ढलानों की कैरिंग कैपेसिटी को समझने की बहुत जरूरत है। इनसे हम कितनी छेड़छाड़ कर सकते हैं।

तपोवन विष्णुगाड परियोजना की टनल से पानी के रिसाव की बात पर डॉ चोपड़ा सहमत नज़र नहीं आते।

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भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील है जोशीमठ

वैज्ञानिकों के मुताबिक जोशीमठ अतीत में बड़ी भूगर्भीय हलचल और भूस्खलन के बाद जमा मलबे के ऊपर बसा था। 1960 के दशक में जोशीमठ की पहाड़ियों के धंसाव के सुबूत मिलने लगे। जिससे यहां मौजूद आबादी पर खतरा महसूस किया जाने लगा। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि 1976 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि धंसने की वजह पता करने के लिए कमेटी गठित की।

इसी मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर सुझाव दिए। जिसमें कहा गया कि क्षेत्र से खुदाई या विस्फोट के ज़रिये कोई भी शिलाखंड (बोल्डर) नहीं हटाया जाना चाहिए। इस लैंडस्लाइड ज़ोन से एक भी पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए। जोशीमठ क्षेत्र के 5 किलोमीटर के दायरे में निर्माण सामाग्री इकट्ठा करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। किसी भी तरह के निर्माण कार्य के लिए उस जगह की स्थिरता की जांच जरूरी है। ढलानों पर किसी भी तरह की खुदाई नहीं की जानी चाहिए। 

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में रह चुके वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सुशील कुमार जोशीमठ की दरारों को भूगर्भीय हलचल से जोड़ते हैं। वह कहते हैं जोशीमठ के नजदीक से मेन सेंट्रल थ्रस्ट (दरार) गुजरती है। हालांकि पूरे हिमालयी क्षेत्र में ये थ्रस्ट पास होती है, लेकिन जोशीमठ में भू-आकृतिक विशेषता (geomorphic feature) की वजह से ये हिस्सा सक्रिय है। इस सेंट्रल थ्रस्ट के 10 किलोमीटर के दायरे में कोई भी निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। इसीलिए जोशीमठ को भूकंप के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील सेस्मिक ज़ोन 5 में रखा गया है। वह कहते हैं कि जोशीमठ के पीछे बर्फ से ढके पहाड़ हैं। इसलिए नमी ज्यादा है। दरार पड़ने पर पानी बाहर आएगा।

डॉ सुशील भी टनल से पानी रिसाव को सही नहीं मानते।

सुनील गांव की अनीता पंवार अपने घर मे आई दरारों से सहमी हुई हैं और विस्थापित किए जाने का इंतज़ार कर रही हैं। 

खौफ़नाक मंज़र के बीच सहमे लोग

जोशीमठ में इस समय अफरातफरी की स्थिति है। लेकिन सैंकड़ों लोग अभी दरारों से पटे घरों और खेतों के बीच ही रह रहे हैं। सुनील गांव की अंजू सकलानी न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहती हैं “हम कहां जाएंगे। हमें यहां से शिफ्ट कराने के लिए अब तक कोई नहीं आया। केवल मीडिया वाले आ रहे हैं। एसडीएम हमारा घर देखने नहीं आईं। हम घर पूरा फट रखा है। हमें ये भी नहीं पता कि नगर पालिका ने हमारे घर को चिन्हित किया है कि नहीं”।

अंजू बताती हैं कि उनके घर में एक साल पहले जो दरारें पड़ी थीं वे अब गहरी हो गई हैं। लेंटर नीचे की ओर झुक रहा है। खेत धंस गए हैं। जिसके चलते वे खेती भी नहीं कर रहे हैं।

जोशीमठ में महिला मंगल दल की सदस्य और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति में शामिल, सुनील गांव की अनिता पंवार कहती हैं “मैं और मेरे पति यहां रहते हैं। हमें अब बहुत ज्यादा डर लग रहा है। हमारे घर के पीछे खेत पूरी तरह नीचे की तरफ झुक गया है। वह कभी भी गिर सकता है। खेतों में बहुत मोटी दरारें आ गई हैं। वह किसी सुरंग की तरह खुल गई है। उसमें पत्थर फेंको तो पता नहीं चलता कि पत्थर कहां जा रहा है। कितने लोग ऐसे घरों में रह रहे हैं, जिनके छोटे बच्चे हैं, कोई गर्भवती महिला है, बुजुर्ग हैं, विकलांग लोग हैं, पशु हैं। खौफ़नाक हो गया है यहां। लोग यहां से जाने की कोशिश कर रहे हैं”।

वर्षा सिंह देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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