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#जस्टिस फॉर आरजी कर: महिलाओं को समानता कब मिलेगी?

दस दिन बीत चुके हैं और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। लेकिन इस जघन्य अपराध के अन्य अपराधियों की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है।
Protest
फ़ोटो साभार : पीटीआई

कोलकाता में आरजी कर स्टेट हॉस्पिटल में 31 वर्षीय महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और हत्या की वीभत्स घटना हुई। उत्तर 24 परगना के पानीहाटी में रहने वाले उसके माता-पिता ने बताया कि घटना के बाद अस्पताल से किसी ने उन्हें बताया कि उसकी मौत आत्महत्या की वजह से हुई है। लड़की अस्पताल में पोस्ट-ग्रेजुएट ट्रेनी थी, जो चेस्ट डिपार्टमेंट में लगातार 36 घंटे की ड्यूटी पर थी। उसका शव उसी मंजिल पर सेमिनार रूम में मिला, जिस शव पर क्रूर यातना और बलात्कार के निशान पाए गए थे।

उक्त घटना 9 अगस्त 2024 को हुई थी। बताया जाता है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामूहिक बलात्कार के साथ शरीर के कई हिस्सों में गंभीर चोटों के निशान भी पाए गए हैं। कोलकाता पुलिस, पोस्टमार्टम के तुरंत बाद शव का अंतिम संस्कार करना चाहती थी, लेकिन माता-पिता इससे नाराज थे और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ समय तक अपनी बेटी का शव देखने भी नहीं दिया गया। शरीर पर क्रूरता के निशानों के बावजूद जब उसके परिवार को बताया गया कि उसकी मौत आत्महत्या से हुई है, तो उसके सहकर्मियों और डॉक्टरों ने इसका डटकर विरोध किया।

इस घटना ने मेडिकल कॉलेज के छात्रों, डॉक्टरों, मेडिकल बिरादरी और सिस्टरहुड समूहों और वामपंथी छात्रों, युवाओं और महिला संगठनों के बीच भारी विरोध प्रदर्शन को प्रेरित किया। दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन अपराधियों की पहचान नहीं हो पाई है (अभी तक केवल एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है)।

पिछले कुछ दिनों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें शहर और बंगाल के विभिन्न जिलों की महिलाओं ने 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ‘रिक्लेम द नाइट’ का आह्वान किया था। इस आह्वान पर पूरे देश के विभिन्न हिस्सों, सभी महानगरों और यहां तक कि देश के बाहर भी प्रदर्शन किए गए। निर्धारित ड्यूटी के दौरान कार्यस्थल पर सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना ने नागरिकों को झकझोर कर रख दिया है।

देश में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ बने क़ानून के साथ-साथ, बलात्कार विरोधी कानून भी हैं। लेकिन विशाखा में तय दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस राज्य के अस्पताल में आंतरिक शिकायत समिति यानी आईसीसी नहीं बनी हुई थी। जोकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार भी जरूरी है।

सूत्रों ने बताया कि पीड़िता ने अधिकारियों को शिकायत भेजी थीं, लेकिन अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि शिकायत में क्या लिखा था। लड़की के माता-पिता ने भी मीडिया को बताया कि उसने कार्यस्थल की स्थिति को लेकर असंतोष व्यक्त किया था। यह बात अब सार्वजनिक हो गई है, क्योंकि उसके साथी सहकर्मी घटना के दिन से ही न्याय की मांग कर रहे हैं।

आर जी कर अस्पताल के प्रिंसिपल, डॉ. संदीप घोष के खिलाफ असंतोष और विरोध का लंबा इतिहास रहा है, जिन पर अस्पताल परिसर में भ्रष्ट आचरण और आपराधिक गठजोड़ को बढ़ावा देने का आरोप है। उनका दो बार तबादला किया गया, लेकिन बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया। शुरू में जब पुलिस ने घोष से पूछताछ नहीं की, तो विरोध कर रहे लोग और अधिक उग्र हो गए।

न्यायपालिका ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी, जिसके बाद ही डॉ. घोष से पूछताछ की गई। घटना के बाद उन्हें नेशनल मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन आंदोलनकारी डॉक्टरों ने उन्हें ड्यूटी जॉइन करने से रोक दिया है।

जब यह मामला कोलकाता पुलिस के अधिकार क्षेत्र में था, तब इस मामले में एक सिविल वालिंटियर को गिरफ्तार किया गया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अस्पताल के अधिकारियों के साथ मिलकर कहा कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा, यहां तक की फांसी भी दिलाना चाहती हैं। हालांकि, पूरे शहर और राज्य में विरोध प्रदर्शन यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह सामूहिक बलात्कार है, तो पुलिस केवल एक व्यक्ति को गिरफ्तार करके कैसे संतुष्ट हो सकती है।

इस घटना से पश्चिम बंगाल के लोगों में भारी असंतोष पैदा हो गया है और मामले को दबाने के प्रयासों के कारण वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हो गए हैं।

हमारे देश में हाल के अनुभव बताते हैं कि अपराध को छिपाने के लिए बार-बार प्रयास किए जाते हैं, जैसे कि पुणे पोर्श हिट-एंड-रन मामले में देखा गया। कोलकाता गैंगरेप मामले में, कुछ पुलिस अधिकारियों ने इस तरह के प्रयास शुरू किए, जिन्होंने पीड़ित के परिवार को आर्थिक मुआवज़ा देने की कोशिश की। यहां तक कि मुख्यमंत्री ने उसके माता-पिता को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की पेशकश की।

लड़की के पिता ने विनम्रता से जवाब दिया कि दोनों माता-पिता ने अपनी बेटी को सिलाई-कढ़ाई करके डॉक्टर बनाने की कोशिश की है। वे ऐसा करना जारी रखेंगे और “अपनी बेटी की मौत नहीं बेचेंगे”। यह पीड़ित परिवार की “आवाज़ों को दबाने” का पहला कथित प्रयास था, जो विरोध की आवाज़ों को दबाने का एक आम तरीका रहा है।

दूसरा प्रयास, अस्पताल के अधिकारियों द्वारा किया गया, जिन्होंने अचानक आदेश जारी कर अस्पताल के अंदर मरम्मत का काम शुरू कर दिया, कथित तौर पर उसी मंजिल पर जहां सेमिनार कक्ष यानी जो अपराध का दृश्य था। विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों और वामपंथी छात्र और युवा संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया। सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप लगे।

आज़ादी के दिन की पूर्व संध्या पर, यानी 14 अगस्त की मध्यरात्रि को, शहर में महिलाओं ने "रिक्लेम द नाइट" का आह्वान किया और विरोध प्रदर्शनों ने गति पकड़ ली। महिला शरीर की स्वतंत्रता को उजागर करने और लड़की के लिए न्याय की मांग करने के लिए केंडल मार्च और मोबाइल टॉर्च का इस्तेमाल किया गया। जस्टिस फॉर आरजीकर (#justiceforRGKar) वाले सोशल मीडिया पोस्ट पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन करने के लिए ट्रेंड करने लगे। पुरुष भी बड़ी तादाद में इसमें शामिल हुए। हजारों-हजार महिलाओं, किशोरों से लेकर बुजुर्गों तक ने एक हाथ में राष्ट्रीय ध्वज और दूसरे हाथ में मोमबत्ती थामकर राज्य में लगभग 330 स्थानों पर शहर में मार्च किया। वामपंथी संगठनों- एसएफआई, डीवाईएफआई और एआईडीडब्ल्यूए – ने आरजी कर अस्पताल के सामने तीन दिनों तक लगातार धरना दिया।

हालांकि, 14 अगस्त की रात को जब सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, तब शहर में कथित तौर पर मामले को दबाने की आखिरी साजिश देखने को मिली। जब विरोध प्रदर्शन चल रहा था, तब कथित तौर पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने अस्पताल पर हमला किया, 'सबूतों से छेड़छाड़' करने के इरादे से वार्डों में तोड़फोड़ की गई, जबकि पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पुलिस ने भीड़ को अस्पताल परिसर के अंदर जूनियर डॉक्टरों के धरना-स्थल में तोड़फोड़ करने दिया, लेकिन महिलाओं सहित आम लोगों पर विरोध करने पर लाठीचार्ज किया गया और आंसू गैस के गोले छोड़े गए।

अपराध को छुपाने के इन प्रयासों ने सत्ता, धन और अपराध के बीच एक बहुत बड़ा गठजोड़ का पर्दाफ़ाश किया है, जो लोगों की देखभाल करने वाले सरकारी संस्थानों, जैसे कि अस्पतालों में व्याप्त है। सत्ता का हमेशा एक बदसूरत चेहरा होता है, खासकर जब लिंग आधारित अपराध की बात आती है। छोटी बच्ची के साथ अत्याचार और सामूहिक बलात्कार बस इसी का परिणाम है।

शहर और पश्चिम बंगाल का पूरा राज्य अपनी चिंता, आघात और गुस्से को विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए व्यक्त कर रहा है जो न्याय न मिलने तक जारी रहेगा। छात्र, कई स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षकों के साथ मिलकर न्याय की मांग के लिए साथ-साथ लड़ रहे हैं। वाम मोर्चा और कांग्रेस ने 17 अगस्त को एक जुलूस में भाग लिया, जिसमें “सबूत नष्ट करने” के लिए अस्पताल में की गई बर्बरता की निंदा की गई और न्याय की बहाली की मांग की गई।

चल रहे विरोध प्रदर्शनों में सभी वर्गों के लोगों की ऐतिहासिक भागीदारी रही है, जो अभूतपूर्व है। यह सत्तारूढ़ पार्टी के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है, जहां राजनीतिक सत्ता समीकरण के भीतर विरोधाभास दिखाई दे रहा है।

इन सबके बीच एकमात्र सकारात्मक बात यह है कि लैंगिक समानता के पक्ष में लोगों की आवाज मजबूत हुई है।

भारत में, हाल के दिनों में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और क्रूर हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी गई है। महिलाओं और बच्चों की तस्करी के साथ-साथ सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। यह समाज में सत्ता और अपराधियों के बीच बढ़ते गठजोड़ का संकेत है। इस आपराधिक गठजोड़ को बढ़ावा देने के लिए सत्ता के केंद्र, महिलाओं की समानता के खिलाफ एक प्रतिगामी विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह घटना देश में जनांदोलन के एक नए अध्याय को मजबूत करने की शुरुआत है।

लेखक, कलकत्ता विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

#Justice for RGKar: When Will Women Achieve Equality?

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