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कर्नाटक : चुनाव में ''हिन्दू मुसलमान नहीं बल्कि इंसान बनकर वोट डालने'' की अपील वाला अनोखा कैंपेन 

दिल्ली IIT से रिटायर हुए विपिन कुमार त्रिपाठी जिन्हें 'पैम्फलेट मैन' के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने कर्नाटक चुनाव के मद्देनज़र 9 दिन (27 मार्च से 4 अप्रैल तक) का एक कैंपेन चलाया और लोगों से अपील की कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को ध्यान में रखकर मतदान करें।
 Vipin Kumar Tripathi

कर्नाटक में चुनाव की तारीख़ का ऐलान हो चुका है, 10 मई को वोट डाले जाएंगे जबकि 13 मई को वोटों की गिनती होगी।  224 विधानसभा सीटों वाले दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी की वापसी होगी या फिर सत्ता परिवर्तन? चुनाव से पहले बीजेपी जनता के बीच क्या अपने काम का लेखा जोखा लेकर पहुंच रही है ? 

कर्नाटक में किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा? 

बढ़ती नफ़रत,भ्रष्टाचार,  किसानों की मौत, मज़दूरों का पलायन, सूखा, सिंचाई की व्यवस्था, किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कहां तक पूरा किया गया इन मुददों पर चुनाव लड़ा जाएगा? 

या फिर इन मुद्दों को उछाला जाएगा? 

 या फिर साम्प्रदायिकता की आंधी में हिन्दू-मुसलमान होगा? हिजाब विवाद, हिन्दुत्व की राजनीति का पत्ता फेंक कर ध्रुवीकरण कर कुर्सी तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी? 

किस 'लहर' में बह जाते हैं मतदाता? 

आख़िर क्यों हर पांच साल बाद जनता जन सरोकार के मुद्दों पर वोट नहीं कर पाती? चुनाव आते ही क्यों जनता के मुद्दे चुनावी माहौल के दौरान बनी ( या बनाई गई ) लहर में बह जाते हैं? कर्नाटक दक्षिण का वो राज्य है जो पिछले दो-तीन साल से कभी हिजाब विवाद तो कभी किसी दूसरे साम्प्रदायिक मुद्दों को लेकर चर्चा में बना हुआ है। जैसे-जैसे वोट का दिन क़रीब आएगा सूबे में मज़बूत पार्टियां बड़ी बड़ी रैलियों का आयोजन करेंगी, तरह तरह के वादे ( चुनावी ) किए जाएंगे, ग़रीबों को एक बार फिर से बहुत से सपने दिखाए जाएंगे, हो सकता है ध्रुविकरण की राजनीति भी की जाए, नेता गली, मोहल्लों, घरों तक पहुंच कर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करेंगे और ऐसे माहौल में मतदाता जब वोट डालने जाएगा तो उनसे दिमाग़ में कौन से मुद्दे होंगे या फिर कौन से मुद्दे होने चाहिए ये एक बड़ा सवाल है। 

पार्टी के स्वभाव के मुताबिक चुनावी माहौल में कैंपेन  किया जा रहा है लेकिन इस दौरान कर्नाटक में एक पूर्व प्रोफेसर अपने ही ढंग का एक कैंपेन करने पहुंचे थे। ये दिल्ली IIT के रिटायर प्रोसेफस वी.के त्रिपाठी हैं।

नफ़रत के ख़िलाफ़ कैंपेन 

कुछ छात्रों के बीच एक गीत की इन लाइनों को प्रोफेसर त्रिपाठी गुनगुनाते दिखाई दिए। 

चलो संसार को ऐसे भी हिलाया जाए 
जुनून के दौर में सच बात को कहा जाए 

नफ़रत और तशद्दुद  का माजरा क्या है  
दिलों में प्यार का तूफान उठाया जाए 

गरज नहीं कि तारों को तोड़ कर लाएं 
जो अपने पास है मिल बांटकर खाया जाए 

डरा रहे हैं जला देंगे आशियां  मेरा 
ये घर उन्हीं का है ये उनको बताया जाए 

दर्दमंदी से बड़ा धर्म नहीं दुनिया में 
दिलों में दर्द का एहसास जगाया जाए। 

इस गीत की  लाइनों को गाते और साथ ही उसका इंग्लिश में तर्जुमाँ कर रहे ये दिल्ली IIT के रिटायर प्रोफेसर वी.के त्रिपाठी हैं, जो बहुत सी उम्मीद के साथ कर्नाटक पहुंचे थे। उनका ये कैंपेन 9 दिन( 27 मार्च से 4 अप्रैल  तक ) का था। इस दौरान वे जगह-जगह घूमे उन्होंने लोगों से बातचीत की, लेक्चर दिए और लोगों से बस एक ही गुज़ारिश की कि आने वाले ( 10 मई ) चुनाव के दौरान ''हिन्दू-मुसलमान बनकर नहीं बल्कि इंसान बनकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करें''। 

इस दौरे के दौरान प्रोफेसर त्रिपाठी कभी किसी पार्क ( Cubbon Park, Bangalore)  में बैठे भीमराव आंबेडकर की किताब, संविधान की प्रस्तावना रख लोगों से बात करते, उन्हें समझाते दिखाई दिए। तो कभी किसी यूनिवर्सिटी, कॉलेज, लॉ फर्म और सड़कों, बाज़ारों में उस पर्चे को बांटते रहे जिस पर ऊपर लिखे गीत के साथ ही लोगों से चुनाव में किन मुद्दों को दिमाग में रखकर वोट करने की कोशिश करनी चाहिए वो सब लिखा था। 

कैंपेन के दौरान कहां-कहां गए प्रो. त्रिपाठी?

प्रोफेसर त्रिपाठी बताते हैं कि वे मंगलौर ( मंगलुरु) , उडुपि, बेंगलुरु गए और लोगों से बातचीत कर उन्हें जागरुक करने की कोशिश की। वे अपने साथ 4500 पैम्फलेट छपवा कर लाए थे ये पैम्फलेट इंग्लिश और कन्नड भाषा में थे जिनमें वोट किन मुद्दों पर दिया जाना चाहिए ये समझाने की कोशिश की गई है। 

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प्रो त्रिपाठी ने क्या समझाया लोगों को? 

प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि अपने इस दौरे के दौरान वे चार दिन मैंगलोर ( मंगलुरु) एक दिन उडुपि और चार दिन बेंगलुरु( बैंगलोर) में रहे और इस दौरान उन्होंने लोगों को समझने की कोशिश की कि आने वाले चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति में न फंसें। वे हिंदू-मुसलमान न बनकर बल्कि इंसान बनकर वोट करें। उन्होंने लोगों को जागरुक किया कि अगर जनता हिन्दू-मुसलमान से ऊपर उठकर वोट करती है तो आने वाली सरकार कॉर्पोरेट केंद्रित नहीं बल्कि जनमुखी बनेगी। 

प्रो. त्रिपाठी ने तीन स्तर पर काम किया 

पहला- उन्होंने छात्रों के बीच चेतना पैदा करने की कोशिश की और इस दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी, कॉलेज में लेक्चर दिए, इनमें सांइस से जुड़े लेक्चर  के साथ ही आज़ादी, अहिंसा से जुड़े लेक्चर भी थे। साथ ही उन्होंने सड़कों पर भी विद्यार्थियों के बीच पर्चे बांटे और कोशिश की कि युवा किसी भी तरह के पूर्वाग्रह ( Prejudice) को अपने दिमाग़ से निकाल दें, वे इस तरह की बातों को  सोचना छोड़ दें कि ये मुल्क हिन्दू का है या मुसलमान का है, बल्कि वो ये सोचों कि ये मुल्क इसमें रहने वाले सभी लोगों का है। 

दूसरा -  उन्होंने आम हिन्दुस्तानियों में ख़ासकर रेहड़ी लगाने वालों, ठेले वालों, ऑटो वालों, बस चलाने वालों और ग़रीब लोगों में आत्मविश्वास पैदा करने की कोशिश की। वे कहते हैं कि ''मुझे इन सब लोगों के बीच पर्चे बांटकर बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली मैं मंडी में गया, सुपारी मार्केट ( मंगलुरु) में गया जहां हिन्दू-मुसलमान दोनों की दुकानें हैं उनसे जो प्रतिक्रिया मिली उसने मुझे बहुत सुकून पहुंचाया वहां हिंदू-मुसलमान दोनों ही व्यापारियों की दुकान है और दोनों के ही बीच बहुत मेल-मिलाप दिखा''

वे आगे बताते हैं कि 

''मैंने बस्तियों में पर्चे बांटे, ढाई हज़ार कन्नड में और दो हज़ार अंग्रेजी में लोगों ने मुझे बहुत मोहब्बत दी, कुछ लोगों ने आकर कहा कि आप इतनी गर्मी में ये काम कर रहे हैं ये देश का काम है, जबकि कुछ लोगों ने मुझे फोन कर कहा कि आप सही नहीं कर रहे आपको पुलिस स्टेशन आना पड़ सकता है उस वक़्त मुझे लगा कि इस समाज में लोगों की ज़ुबान बंद करने की मुहिम चल रही है मुझे लगा कि ऐसे माहौल में तो मुझे और शिद्दत से अपने पर्चों को बांटना चाहिए, मैं एक मस्जिद के आगे से पर्चे बांटकर चला गया तो पीछे से एक बुर्जुग आए बोले 10 पर्चे और दे दीजिए उनके आंखों की मोहब्बत देखकर मैं हिल गया हर जगह मोहब्बत मिली, कुछ पत्रकारिता की छात्राओं ने कहा कि ''आपने इन पर्चों में बहुत सही लिखा है इस वक़्त इसी की ज़रूरत है नफ़रत मिटाने की और देश को आगे ले जाने की'', मैंने कहा कि मेरे तो पर्चे का उन्वान ( टाइटल ) ही यही है कि आप इंसान बनकर वोट करें हिन्दू-मुसलमान बनकर नहीं, अगर सोच समझ कर वोट किया गया तो जो हुकूमत कॉर्पोरेट की तरफ़ देखती है वो जनता की तरफ़ देखने लगेगी, उसे भी धुर्वीकरण छोड़कर सब जनता को साथ में लेकर चलने वाली बनना पड़ेगा। 

तीसरा- प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने ये पता लगाने की कोशिश की कि कर्नाटक में सामाजिक कार्यकर्ताओं में किसी तरह की घबराहट या डर तो नहीं है क्योंकि अक्सर सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रचार करना कुछ मुश्किल होता है, वे बताते है कि ''मुझे वहां बहुत से कार्यकर्ता मिले जिनके साथ हमने बात की इन लोगों में कुछ कांग्रेस पार्टी के थे, कुछ लेफ्ट और दलित कार्यकर्ता और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता भी थे उन्होंने अंदेशा जताया कि हिजाब जैसे मुद्दों पर ध्रुवीकरण को लेकर Narration चल रहा है लेकिन हमने उसने बात की उन्हें हिम्मत से काम करने की हिदायत दी और हमारी बातचीत के बाद लगा कि उन एक दो बैठकों का फायदा हुआ''।

जब हमने प्रो.त्रिपाठी से कर्नाटक में चुनावी माहौल के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि '' वहां दो मुद्दों पर लोग बहुत ज़्यादा चर्चा कर रहे हैं एक तो विधायक के बेटे के रिश्वत लेने के आरोप में पकड़े जाने पर। और दूसरा अडाणी वाली मसला''

प्रो. त्रिपाठी कर्नाटक में जितने भी दिन रहे उन्होंने कोशिश की कि जनता जन सरोकार के मुद्दों पर वोट करेगी तो सरकार भी वही बनेगी जो जनता के बारे में सोचे। 

कौन हैं प्रो. वी. के त्रिपाठी? 

दिल्ली IIT में फिजिक्स के प्रोफेसर रहे प्रो त्रिपाठी अब रिटायर हैं, उनसे वाकिफ़ लोग उन्हें 'पैम्फलेट मैन' के नाम से बुलाते हैं, दिल्ली में CAA-NRC के खिलाफ़ हुए ऐतिहासकि आंदोलन के दौरान भी वे लोगों को जागरूक करते दिखाई दिए थे। देश के अलग-अलग हिस्सों में वे नफ़रत के खिलाफ़ लोगों को समझाने की कोशिश के लिए घूमते रहते हैं,  70 प्लस की उम्र में भी वे अकेले ही लोगों के दिलों से नफरत को ख़त्म कर मोहब्बत का पैग़ाम देने की कोशिश करते रहते हैं। 
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के भागलपुर दंगों ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया था और उसी के बाद से आम जनता को नफ़रत छोड़कर मोहब्बत से साथ रहने का संदेश देने की कोशिश में लगे रहते हैं। 

फिजिक्स की दुनिया का शख्स इंसानों को नफ़रत छोड़कर मोहब्बत से साथ मिलजुल कर रहने का फॉर्मूला सिखा रहा है, पर कितने लोग इस फॉर्मूले पर नज़र डालते हैं ये भी एक सवाल है।

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