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ख़बरों के आगे-पीछे: तमिलनाडु समेत 10 राज्यों में सीबीआई की ‘नो-एंट्री’, जांच के लिए लेनी होगी मंज़ूरी!

इन 10 राज्यों की सरकारों ने सीबीआई को मिले 'जनरल कंसेट' को वापस ले लिया है। मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल में 124 नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए हैं जिनमें से 118 यानी 95 फ़ीसदी नेता विपक्षी दलों के हैं।
General Consent To CBI Withdrawn

तमिलनाडु के बिजली एवं आबकारी मंत्री वी. सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने केंद्रीय एजेंसियों को रोकने का बड़ा फ़ैसला किया है। सरकार ने सीबीआई को मिली सामान्य सहमति यानी जनरल कंसेट वापस ले ली है। इसका मतलब है कि अब सीबीआई को तमिलनाडु में किसी भी मामले की जांच के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी। पिछले आठ साल में तमिलनाडु ऐसा दसवां राज्य है जिसने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ली है। सीबीआई का राज्यों में प्रवेश प्रतिबंधित करने का सिलसिला 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद शुरू हुआ था। मिजोरम पहला राज्य था जिसने यह कदम उठाया था। उसके बाद पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब ने भी अपने यहां सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगाई। इन सभी राज्य सरकारों का आरोप है कि केंद्र सरकार सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही हैं। इसी आधार पर बिहार सरकार भी बहुत जल्दी ही अपने राज्य में सीबीआई का प्रवेश प्रतिबंधित कर सकती है। गौरतलब है कि कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिव सेना, आम आदमी पार्टी आदि पार्टियां लंबे समय से केंद्र सरकार और भाजपा पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती आ रही हैं। यूपीए के दस साल के शासनकाल में कुल 72 राजनेता सीबीआई की जांच के दायरे में आए थे, जिनमें से 43 नेता विपक्ष के थे यानी करीब 60 फ़ीसदी। जबकि साल 2014 से अभी तक मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल में 124 नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए हैं जिनमें से 118 यानी 95 फ़ीसदी नेता विपक्षी दलों के हैं। 

आरोप है कि "लोगों को मिल रही भाजपा को हराने की सज़ा"

आरोप है कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में भाजपा को हराने का खामियाज़ा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में कुछ ऐसे नियम लागू किए गए हैं, जिनसे दोनों राज्यों की सरकारों के सामने संकट खड़ा हो गया है और आगे लोगों को और भी मुश्किल झेलनी पड़ सकती है। कर्नाटक में कांग्रेस ने लोगों को 10 किलो अनाज हर महीने देने का वादा किया है। इसके लिए उसकी सरकार ने भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई से 2.28 लाख मीट्रिक टन अनाज खरीदने का प्रस्ताव रखा। एफसीआई ने राज्य सरकार को 2.22 लाख मीट्रिक टन अनाज देने की मंजूरी 12 जून को दे दी। लेकिन अगले ही दिन यानी 13 जून के केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्रालय ने ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत राज्यों को अनाज बेचने पर रोक लगा दी। केंद्र की ओर से जारी नई चिट्ठी के मुताबिक निजी कंपनियां तो एफसीआई से नियंत्रित कीमत पर चावल खरीद सकती हैं, लेकिन राज्य चावल व गेहूं नहीं खरीद सकते। इसी तरह हिमाचल प्रदेश सरकार के सामने संकट खड़ा हुआ है। केंद्र सरकार ने राज्य की हर साल क़र्ज़ लेने की सीमा 14 हज़ार करोड़ रुपए से घटा कर साढ़े आठ हज़ार करोड़ रुपए कर दी है। इसके साथ ही बाहरी एजेंसियों से सहायता प्राप्त परियोजनाओं में भी अधिकतम सीमा तय कर दी है। संकट यह है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का वादा किया है और कई मुफ्त सेवाओं की घोषणा की है। इन सबके लिए राज्य सरकार को पैसे का इंतज़ाम करना मुश्किल हो रहा है।

महाराष्ट्र में समय से पहले चुनाव की संभावना

इस साल से लेकर अगले साल के अंत तक 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें से महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां समय से पहले चुनाव हो सकते हैं। इसका कारण महाराष्ट्र का राजनीतिक समीकरण और विपक्ष की तीन पार्टियों एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट की तैयारी है। महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोग से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं। उनके नेतृत्व वाले गुट को चुनाव आयोग ने असली शिव सेना के रूप में मान्यता दी है। लेकिन सबको पता है कि वोट उनके साथ नहीं है। शिव सैनिक मोटे तौर पर उद्धव ठाकरे वाली शिव सेना के साथ हैं। ऊपर से शिंदे गुट राज्य में मंत्रिपरिषद के विस्तार और केंद्र में भी अपने सांसदों को मंत्री बनाने के लिए दबाव बना रहा है है। इस बीच महाराष्ट्र के अखबारों में एक सर्वेक्षण छपा, जिसमें शिंदे को फड़नवीस से ज़्यादा लोकप्रिय बताते हुए कहा गया कि ज़्यादातर लोग शिंदे को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। इससे भाजपा के कान खड़े हुए हैं। उधर महाविकास अघाड़ी की पार्टियां लगातार रैलियां और तैयारी कर रही हैं लेकिन एनसीपी में अंदरूनी विवाद बढ़ा हुआ है, जिसका फायदा भाजपा उठाने की कोशिश कर सकती है। इस बीच एक घटनाक्रम यह है कि औरंगाबाद से लेकर कोल्हापुर तक पिछले तीन महीने में एक दर्जन दंगे हुए हैं। दंगों की वजह से कई इलाकों में ध्रुवीकरण हो रहा है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। इसीलिए समय से पहले चुनाव की संभावना जताई जा रही है।

शिंदे में यह हिम्मत कहां से आई?

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री का पद भाजपा की मेहरबानी से मिला है। भाजपा के आशीर्वाद से ही वे शिव सेना को तोड़ पाए हैं। शिव सेना के विधायक और सांसद भी भाजपा की कृपा से ही उनके साथ बने रहे और चुनाव आयोग से उनके गुट को असली शिव सेना का दर्जा भी भाजपा की मेहरबानी से ही मिला था। फिर भी उन्होंने ऐसा दुस्साहस दिखाया कि अखबारों में एक सर्वे प्रकाशित करा दिया जिसमें बताया गया कि राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिए 26.1 फ़ीसदी लोग शिंदे को और 23.2 फ़ीसदी लोग देवेंद्र फडणवीस को पसंद करते हैं। सर्वे के मुताबिक पार्टी के तौर पर 30.2 फ़ीसदी लोग भाजपा को और 16.2 फ़ीसदी लोग शिव सेना को पसंद करते हैं। बाद में शिंदे की पार्टी ने इस सर्वे से पल्ला झाड़ लिया और कहा कि किसी समर्थक ने इसे छपवा दिया होगा, यह पार्टी का काम नहीं है। हालांकि एक कार्यक्रम में शिंदे ने परोक्ष रूप से इस सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि लोग उन्हें और फडणवीस को पसंद कर रहे हैं। ज़ाहिर है कि उन्होंने इस काम में बड़ी सावधानी बरती। भाजपा को अपनी पार्टी से दोगुना लोकप्रिय बताया लेकिन ख़ुद को फडणवीस से ज़्यादा लोकप्रिय बता दिया। मतलब साफ है कि वे भाजपा से कोई पंगा लेना नहीं चाहते हैं। लेकिन सवाल है कि फडणवीस को अपने से कम लोकप्रिय दिखाने की हिम्मत उनमें कहां से आई? जानकारों का मानना है कि यह भाजपा में चल रही भीतरी खींचतान का नतीजा है। पार्टी के ही कुछ नेताओं ने फडणवीस को नीचा दिखाने के लिए शिंदे को यह सर्वे छपवाने की प्रेरणा दी है।

'आप' ने ख़ुद ही खोल दी अपनी पोल

माना जाता है कि राजनीतिक दांवपेंच में आम आदमी पार्टी किसी भी दूसरी पार्टी से पीछे नहीं, बल्कि दो कदम आगे है। लेकिन उसकी ज़्यादा चालाकी कभी-कभी उसे बेचारा बना देती है। पिछले दिनों कांग्रेस को छकाने के चक्कर में उसके साथ ऐसा ही हुआ। दिल्ली सरकार के मंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कांफ्रेन्स करके कहा कि कांग्रेस अगर दिल्ली और पंजाब में चुनाव न लड़ने की घोषणा करे तो आम आदमी पार्टी भी राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेगी। सवाल है कि यह कहने का क्या मतलब है? क्या कांग्रेस की ओर से किसी ने आम आदमी पार्टी से कहा था कि वह राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव न लड़े? मीडिया में ज़रूर कहा जा रहा था कि आम आदमी पार्टी राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ेगी, जिसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है लेकिन इस आधार पर पर भी कांग्रेस की ओर से किसी ने उससे अनुरोध नहीं किया था कि वह चुनाव नहीं लड़े। अगर कहा होता तो प्रेस कांफ्रेन्स में भारद्वाज इस बारे में जानकारी देते। ज़ाहिर है आम आदमी पार्टी ने अपनी तरफ से यह प्रस्ताव दिया है कि अगर कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में नहीं लड़े तो वह राजस्थान व मध्य प्रदेश में नहीं लड़ेगी। इस तरह से पार्टी ने चारों राज्यों में अपनी कमज़ोरी ज़ाहिर कर दी है। इससे साफ हो गया है कि पार्टी की राजस्थान और मध्य प्रदेश में कोई तैयारी नहीं है और पार्टी को पता है कि कुछ हासिल नहीं होना है।

राहुल को सबसे ख़ास बधाई शर्मिला से मिली

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनके जन्मदिन पर कांग्रेस और अन्य तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने बधाई दी। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें बधाई देते थे लेकिन अब उन्होंने राहुल को बधाई देना बंद कर दिया है। उनका अनुसरण करते हुए भाजपा के दूसरे नेता भी अब राहुल को बधाई नहीं देते हैं। हालांकि राहुल हर साल मोदी को उनके जन्मदिन पर बधाई देते हैं। बहरहाल राहुल गांधी को इस बार जन्मदिन पर मिली तमाम बधाइयों में सबसे ख़ास बधाई वाईएसआर कांग्रेस के नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला की ओर से मिली। शर्मिला आंध्र प्रदेश में नहीं बल्कि तेलंगाना में राजनीति करती हैं। उन्होंने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी बनाई है और इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वे बेहद सक्रिय हैं। इसीलिए उनकी बधाई का ख़ास मतलब है। माना जा रहा है कि तेलंगाना में शर्मिला की पार्टी और कांग्रेस के बीच तालमेल हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो तेलंगाना की राजनीति में यह एक बड़ी घटना होगी और इससे आंध्र प्रदेश में जगनमोहन के भी कांग्रेस के साथ आने का रास्ता खुल सकता है। गौरतलब है कि वाईएसआर रेड्डी के निधन के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों से सिर्फ जगनमोहन ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार परेशान हुआ था। इसके बावजूद शर्मिला ने राहुल को बधाई दी है तो यह बड़ी बात है। शर्मिला ने अपने बधाई संदेश में राहुल को जनता के लिए प्रतिबद्ध और अनथक परिश्रम करने वाला नेता बताया है और साथ ही धैर्य के साथ लोगों की सेवा करते हुए सफल होने की शुभकामना भी दी हैं।

यूपी का एनकाउंटर मॉडल विदेशों में भी

पिछले कुछ सालों के दौरान उत्तर प्रदेश में अपराधियों को सज़ा देने का अनोखा तरीका विकसित हुआ है। अपराधी पुलिस की गोली से मारे जा रहे हैं या पुलिस अथवा न्यायिक हिरासत में कोई और उनको गोली मार जाता है। क्या इस तरह की मुठभेड़ें विदेशों में भी हो रही हैं या फिर यह सिर्फ संयोग है कि एक-एक करके भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी विदेशों में मारे जा रहे हैं? पिछले तीन महीने में तीन वांछित अपराधी अलग-अलग देशों में मारे गए हैं। दुनिया भर की खुफिया एजेंसियां अपने देश में वांछित अपराधियों की तलाश करती हैं, उन्हें पकड़ती हैं या खत्म कर देती हैं, लेकिन इस तरह के ऑपरेशन का खुलासा नहीं किया जाता है। बहरहाल जो भी हो, लेकिन यह हकीकत है कि कनाडा से लेकर ब्रिटेन और पाकिस्तान तक में भारत के वांछित अपराधी मारे गए हैं। सबसे ताज़ा नाम खालिस्तान टाइगर फोर्स के सरगना हरदीप सिंह निज्झर का है, जिसकी 19 जून को कनाडा में अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी। इससे पहले 6 मई को पाकिस्तान में खालिस्तान कमांडो फोर्स का सरगना परमजीत सिंह पंजवार उर्फ मलिक सरदार बिल्कुल इसी अंदाज़ में मारा गया था। पंजवार भारत की आतंकवादियों की सूची में शामिल था। अभी पिछले हफ्ते अवतार सिंह खांडा ब्रिटेन के बर्मिंघम में एक अस्पताल में मर गया। उसने पिछले दिनों भारतीय उच्चायोग पर हमले का नेतृत्व किया था और कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल सिंह की मदद की थी। ठीक एक साल पहले 15 जून 2022 को मोस्ट वांटेड रिपुदमन सिंह मलिक कनाडा में मारा गया था।

कर्नाटक में कुछ नहीं कर पा रही है भाजपा

कर्नाटक में हार से भाजपा में अंदरुनी कलह और तेज हो गई है, जिसका नतीजा यह है कि पार्टी राज्य सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरने की रणनीति नहीं बना पा रही है। कांग्रेस की सरकार लगातार ऐसे फ़ैसले कर रही है, जो वैचारिक रूप से भाजपा के ख़िलाफ़ है और भाजपा उनको लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकती है। लेकिन पार्टी कुछ भी करती नही दिख रही है। एक महीने बाद तक पार्टी न तो प्रदेश अध्यक्ष तय कर पाई है और न विधायक दल का नेता चुन पाई है। पार्टी के बड़े नेताओं के आपसी टकराव की वजह से फ़ैसला नहीं हो पा रहा है। संगठन महासचिव बीएल संतोष और एक अन्य महासचिव सीटी रवि भी कर्नाटक के है। इन दोनों के रिश्ते प्रदेश के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ बहुत अच्छे नहीं हैं। सीटी रवि विधानसभा चुनाव में चिकमंगलूर सीट पर अपनी हार का कारण येदियुरप्पा को मानते हैं। उन्हें भाजपा छोड़ कर गए एक ऐसे नेता ने हराया, जो पहले येदियुरप्पा के बहुत करीबी रहे हैं। दरअसल चुनाव से पहले दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया था। अब भी एक तरफ येदियुरप्पा चाहते हैं कि पार्टी वापस उनके हाथ में आए तो वे अपने हिसाब से अध्यक्ष और टीम बनवाएं तो दूसरी ओर पार्टी आलाकमान लोकसभा चुनाव के लिहाज़ से नए नेतृत्व को कमान सौंपना चाहता है, लेकिन ऐसा करते हुए उसे येदियुरप्पा को नाराज़ भी नहीं करना है। सो, इसी दुविधा में फ़ैसले अटके हुए हैं। 

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