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किसान महापंचायत : ‘’बग़ैर आंदोलन देश नहीं बचेगा’’... आंदोलन 2.0 के लिए तैयार रहे सरकार

एमएसपी समेत तमाम मांगों को लेकर एसकेएम के आह्वान पर देश भर के किसानों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हुंकार भरी। इस महापंचायत में किसानों ने सरकार को और बड़े आंदोलन की चेतावनी दी।
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बिन मौसम बरसात और बिना गारंटी वादे... हमारे देश के अन्नदाताओं के लिए ज़हर से कम नहीं है, और इसी का घूंट पी-पीकर वो हमारा पेट भरने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं।

अब ये विडंबना ही है कि जिनके सहारे देश के लोगों का पेट भर रहा है, उन्हें ख़ुद भूखा रहकर दिन-रात सड़कों पर बितानी पड़ती है, ताकि सरकार थोड़ी बहुत उनकी भी सुन ले।

लेकिन इस बार जब किसानों ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान पर महापंचायत बुलाई, तब उनके चेहरे पर आर या पार का जोश दिखाई पड़ा। क्योंकि रामलीला मैदान पर झंडा लिए एक-एक किसान और नेता यही कह रहे थे, कि अब वादे पूरे नहीं हुए तो हम संसद के अंदर तक जाएंगे।

किसानों के समर्थन के लिए हरियाणा से क़रीब 70 वर्षीय एक आए बुज़ुर्ग से बात की तब उनके चेहरे पर और लफ़्जों में अलग ही गुस्सा दिखाई पड़ रहा था।

वो कह रहे थे कि एक हम हैं, हमारे बच्चे हैं, जो दिन रात मेहनत करते हैं ताकि लोग भूखे न सोएं। और दूसरी ओर सरकार है और सरकारी खर्चे पर पल रहे नेता और मंत्री लोग हैं, जिन्हें न हमारी चीखें सुनाई देती हैं न हमारी मांगे। उन्होंने कहा कि अब हमारे अंदर इतना ज़्यादा गुस्सा भर चुका है, कि हमें छूट मिल जाए तो संसद के अंदर से नेताओं को हाथ पकड़कर बाहर खड़ा कर दें।

उधर किसान नेता राकेश टिकैत ने भी अपने सख्त तेवर दिखाए, और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर हुए 12 महीने के आंदोलन को याद दिलाया। राकेश टिकैत ने कहा कि जब हम पिछली बार सड़कों पर उतरे थे, तब सरकार को तीनों काले कानून वापस लेने पड़े थे। लेकिन कई अहम मांगों पर सरकार ने वादाख़िलाफी कर दी। उसी के खिलाफ हम किसानों ने महापंचायत बुलाई है। और अगर अब सरकार ने हमारी मांगें नहीं मानी तो पिछले आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन होगा।

इसके अलावा बाकी किसान नेताओं की तरह ही राकेश टिकैत ने भी सरकार को चेताया कि अगर मांगें पूरी नहीं होती है, तो आंदोलन पार्ट-2 के लिए सरकार को तैयार रहना चाहिए। इसके लिए 30 अप्रैल को दिल्ली में बैठक बुलाई गई है, और यहीं पर सारी रणनीति तय होगी।

राकेश टिकैत ने किसान संगठनों से भी आग्रह किया कि हमें भीड़ में तब्दील होना पड़ेगा। क्योंकि सरकार को भीड़ से ही हराया जा सकता है। और अगर आंदोलन नहीं होगा तो देश नहीं बचेगा।

राकेश टिकैत से पहले किसान नेता दर्शन पाल ने किसानों के बीच अपनी बातें रखीं। उन्होंने कहा कि कई अनसुलझे मुद्दे हैं और इनके समाधान के लिए और 'आंदोलन' की जरूरत है। हम 30 अप्रैल को दिल्ली में एक और बैठक बुलाएंगे। मैं सभी किसान संघों से अपने-अपने राज्यों में रैलियां निकालने और बैठक के लिए पंचायत आयोजित करने का अनुरोध करता हूं। उन्होंने कहा,  हम रोजाना आंदोलन नहीं करना चाहते, लेकिन हम ऐसा करने के लिए मजबूर हैं। अगर सरकार ने हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो हम एक और आंदोलन शुरू करेंगे, जो कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन से बड़ा होगा।

किसानों और किसान नेताओं में गुस्से और रोष के बीच जहां एक ओर रामलीला मैदान पर किसान महापंचायत चल रही थी, तो दूसरी ओर 15 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से कृषि भवन में मुलाकात कर रहा था। इस दौरान किसानों ने कृषि मंत्री को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी और कर्ज माफी जैसी मांगों को लेकर ज्ञापन भी सौंपा।

मुलाकात के बाद किसान नेताओं ने महापंचायत में ऐलान किया कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुई तो देश में बहुत बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

एक नज़र देखते हैं कि किसानों की मांगे क्या हैं?

* स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार, सभी फसलों पर सी2+50 प्रतिशत के फार्मूला के आधार पर एमएसपी पर खरीद की गारंटी के लिए कानून लाया और लागू किया जाए।

* केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी पर गठित समिति और इसका घोषित ऐजेंडा किसानों की मांगों के विपरीत है, इसलिए इस समिति को रद्द कर, एसकेएम के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ, सभी फसलों की कानूनी गारंटी के लिए एमएसपी पर एक नई समिति को गठित किया जाए, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा वादा किया गया था।

* कृषि में बढ़ती लागत और फसल के लिए लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण 80% से अधिक किसान कर्ज में डूब चुके हैं और आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं। ऐसी स्थिति में सभी किसानों के लिए कर्ज मुक्ति और उर्वरकों सहित लागत कीमतों में कमी की मांग।

* संयुक्त संसदीय समिति को विचारार्थ भेजे गए बिजली संशोधन विधेयक, 2022 को वापस लिया जाए। दरअसल, केंद्र सरकार ने एसकेएम को लिखित आश्वासन दिया था कि मोर्चा के साथ विमर्श के बाद ही विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इसे बिना किसी चर्चा के संसद में पेश कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चा कृषि के लिए मुफ्त बिजली और ग्रामीण परिवारों के लिए 300 यूनिट बिजली की मांग को फिर दोहराता है।

* लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को कैबिनेट से बाहर किया जाए और गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए।

* किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी में शहीद और घायल हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करने का वादा जो सरकार ने किया है उसे पूरा किया जाए।

* प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को रद्द कर, बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, असामयिक या अत्यधिक बारिश, फसल संबंधित बीमारियां, जंगली जानवर, आवारा पशु के कारण किसानों द्वारा लगातार सामना किए जा रहे नुकसान की भरपाई के लिए सरकार सभी फसलों के लिए सार्वभौमिक, व्यापक और प्रभावी फसल बीमा और मुआवजा पैकेज को लागू करें। नुकसान का आकलन व्यक्तिगत भूखंडों के आधार पर किया जाना चाहिए।

* सभी किसानों और खेत-मजदूरों के लिए हर महीने पांच हज़ार की किसान पेंशन योजना को तुरंत लागू किया जाए।

* किसान आंदोलन के दौरान भाजपा शासित राज्यों और अन्य राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए फर्जी मामले तुरंत वापस लिया जाए।

* सिंघु मोर्चा पर शहीद किसानों के लिए एक स्मारक के निर्माण के लिए भूमि आवंटन किया जाए।

आपको बता दें कि अपनी मांगों को लेकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश से करीब 32 किसान सगंठनों का जत्था दिल्ली के रामलीला मैदान पर महापंचायत में शामिल हुआ और सभी ने एक सुर में यही कहा कि मांगें नहीं मानी तो आंदोलन और बड़ा होगा।

किसानों की महापंचायत के लिए रामलीला मैदान के चारों ओर भारी सुरक्षा बल तैनात किया गया था। जिसमें दिल्ली पुलिस व अर्द्धसैनिक बल की करीब 25 कंपनियां तैनात रहीं।

आपको याद होगा केंद्र सरकार ने सितंबर 2020 में संसद में तीन कृषि कानून पास किए थे। इन कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत देश के तमाम राज्यों के किसानों ने दिल्ली में कूच किया था, करीब डेढ़ साल तक किसान दिल्ली के बार्डरों पर डटे रहे थे। इसके बाद किसानों से कई स्तर की बातचीत के बाद सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लिया था। साथ ही किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित किसानों की लंबित मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया था।

उन्ही आश्वासनों के धराशाई हो जाने के बाद अब किसान दिल्ली में इकट्ठा हुए और सरकार को चेतावनी दी। ऐसे में देखना होगा कि इस बार किसानों की महापंचायत का असर सरकार पर क्या पड़ा है। क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों ने तीन कृषि कानून वापस लिए जाने को उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले वाला पॉलिटिकल स्टंट बताया था जिसमें भाजपा बखूबी कामयाब भी रही थी।

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