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लेबनान के मनोनीत पीएम नजीब मिकाती ने सरकार बनाने के लिए संसदीय बहुमत हासिल किया

सरकार बनाने में सफल रहे नजीब मिकाती को 2019 से देश में कहर बरपा रहे आर्थिक संकट से तत्काल निपटना होगा।
लेबनान के मनोनीत पीएम नजीब मिकाती ने सरकार बनाने के लिए संसदीय बहुमत हासिल किया

लेबनान के मनोनीत प्रधानमंत्री नजीब मिकाती ने लेबनानी संसद में बहुमत हासिल कर लिया है और अब उन्हें देश की अगली सरकार बनाने का प्रयास करना है। कई मीडिया संस्थानों ने सोमवार 26 जुलाई को ये रिपोर्ट प्रकाशित किया। पहले दो बार प्रधानमंत्री के रूप में सेवा दे चुके और लेबनान के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक माने जाने वाले इस टेलकम अरबपति के सामने देश के विभिन्न राजनीतिक गुटों की सर्वसम्मति और समर्थन के साथ एक राष्ट्रीय कैबिनेट बनाने की कोशिश करने का एक कठिन कार्य है।

दो पूर्व मनोनित प्रधानमंत्री साद हरीरी और पूर्व-राजनयिक मुस्तफा अदीब पिछले 12 महीनों में अपनी प्रस्तावित कैबिनेट संसद में बहुमत हासिल करने को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त समर्थन हासिल करने में विफल रहे हैं। बेरूत बंदरगाह में हुए घातक रासायनिक विस्फोट के बाद तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानमंत्री हसन दिआब और उनके पूरे मंत्रिमंडल के सामूहिक इस्तीफे के मद्देनजर पद पर नामित होने के एक महीने बाद अदीब ने पिछले साल सितंबर में इस्तीफा दे दिया था। साद हरीरी ने 11 दिन पहले 10 महीने के लंबे गतिरोध के बाद इस्तीफा दे दिया था जिसमें वह समर्थन की कमी और लेबनान के राष्ट्रपति मिशेल औन के साथ कैबिनेट पदों पर चल रहे विवाद के कारण सरकार बनाने में विफल रहे थे।

रिपोर्टों के अनुसार मिकाती को कुल 118 सदस्यों में से 73 सदस्यों के वोट मिले, जिससे उन्हें एकमात्र अन्य उम्मीदवार पूर्व राजदूत नवाफ सलाम पर एक आसान जीत मिली, जिन्हें एक वोट मिला। 42 सदस्यों ने ब्लैंक वोट किया और तीन सदस्यों ने वोट दर्ज नहीं किया।

प्रधानमंत्री के पद पर मिकाती की नियुक्ति का भी विरोध हुआ। दर्जनों प्रदर्शनकारी उनकी नियुक्ति से पहले लेबनान की राजधानी बेरूत में उनके घर के बाहर एकत्र हुए। वे उन्हें लेबनानी राजनेताओं और व्यापारियों के कुलीन वर्ग में से एक राजनेता के रूप में बताया जो अक्षम और भ्रष्ट हैं और समाधान के बजाय अधिक समस्या पैदा करने वाले हैं। इस देश में 2019 में भ्रष्ट शासक अभिजात वर्ग के खिलाफ बड़े पैमाने पर सत्ता-विरोधी प्रदर्शन हुआ था जिन्हें व्यापक रूप से देश के आर्थिक पतन और उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और झगड़ों के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रशासनिक गिरावट के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

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