Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

MCD चुनावों से क्यों नदारद है शिक्षा का ज़रूरी मुद्दा?

आख़िर क्या वजह है, जो एमसीडी चुनावों के शोर से शिक्षा व्यवस्था बिल्कुल ही गायब सी हो गई है। क्या दिल्ली में अब एमसीडी स्कूलों में शिक्षा बदल गई है या फिर इसकी व्यवस्था? इन सवालों के जवाब हमने बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों से जानने की कोशिश की।
MCD

बीते दिल्ली विधानसभा चुनावों में सरकारी स्कूलों में शिक्षा का मुद्दा जिस तरह से हावी था, निगम चुनावों में ये मुख्य तौर पर नदारद है। दिल्ली में नगर निगम चुनावों के मद्देनज़र राजनीति अपने चरम पर है। अपने-अपने मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आम आदमी पार्टी (आप) दोनों ने अपने तरकश से तीर निकाल लिए हैं। आप इस बार चुनावी मुद्दा कूड़े के पहाड़ों के साथ ही एमसीडी की खस्ता स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था को बना रही है। तो वहीं दूसरी ओर, बीजेपी इन दावों की पोल खोलने में लगी है। हालांकि बीते दिल्ली विधानसभा चुनावों में सरकारी स्कूलों में शिक्षा का मुद्दा जिस तरह से हावी था, निगम चुनावों में ये मुख्य तौर पर नदारद है। ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर क्या वजह है, जो एमसीडी चुनावों के शोर से शिक्षा व्यवस्था बिल्कुल ही गायब सी हो गई है। क्या दिल्ली में अब एमसीडी स्कूलों में शिक्षा बदल गई है या फिर इसकी व्यवस्था? इन सवालों के जवाब हमने बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों से जानने की कोशिश की।

यहां बता दें कि प्रशासन ने हमें एमसीडी स्कूलों के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर हमें बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों ने कई बातें बताईं, जो इन स्कूलों में शिक्षा के स्तर को जानने और समझने के लिहाज से बेहद जरूरी हैं।

पॉश इलाके में दो तरह के स्कूल

मालवीय नगर के निगम स्कूल एमएमटीसी में हमें बाहर से अच्छी-खासी सुविधाएं देखने को मिलीं। जैसे बच्चों के खेलने के लिए साफ-सुथरा मैदान, झूले इत्यादि। बिल्डिंग और क्लासरूम की स्थिति भी सही समझ में आ रही थी। हालांकि यहां पढ़ाने वाली एक टीचर ने हमें नाम न छापने की शर्त पर बताया, "करीब महीने-दो महीने से चुनावों के चलते इन स्कूलों पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। इससे पहले इतनी पूछ और हलचल कभी नहीं हुई। लेकिन अब साफ-सफाई और शिक्षकों पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। कुछ नए शिक्षक भी आए हैं, कुछ महीनों से तनख्वाह भी समय से मिल रही है।"

मालवीय नगर के ही एक अन्य निगम स्कूल जो हौजरानी में स्थित है, वहां हमें एमएमटीसी स्कूल से उलट तस्वीर दिखाई दी। यहां बहुत ही छोटी सी जगह में स्कूल बना हुआ है, कक्षाएं गेट से हमें दिखाई नहीं दीं, लेकिन स्कूल में साफ-सफाई भी नाम मात्र की थी। गेट के बाहर एक अभिवावक ने हमें बताया कि अभी कुछ दिन पहले ही स्कूल में पुताई का काम हुआ है और दीवारों पर चित्रकारी भी। इससे पहले ये एकदम जर्जर हालत में था, पीने के पानी से लेकर शौचालय तक कुछ भी सही नहीं था। बच्चों को कई बार यहां मिड डे मील और पढ़ने के लिए किताबें भी नहीं मिलती हैं।

अभिभावक ने भी अपनी पहचान उजागर न करने की अपील करते हुए कहा कि उन्हें किसी की सरकार बने फर्क नहीं पड़ता, बस उनका बच्चा पढ़ना चाहिए। अभिभावक का कहना था कि बीते चुनावों में मीडिया से उनकी बातचीत को लेकर स्कूल में उनके बच्चे को काफी परेशान किया गया था, उन्हें भी चेतावनी दी गई थी कि वो एक खास नेता का प्रोपेगेंडा फैलाने का काम न करें।

बता दें कि दिल्ली में नगर निगम के लगभग 1,535 स्कूल हैं, तो वहीं दिल्ली सरकार के 1,100 स्कूल हैं। प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारीनिगम स्कूलों पर ही है। कोरोना के बाद इन सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है, तो वहीं स्कूलों की संख्या घटी है। हाल ही में जारी हुई प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में पहली कक्षा में बच्चों का नामांकन करीब 21 फीसदी बढ़ा है, तो वहीं कुल निगम स्कूलों की संख्या आठ प्रतिशत कम हुई है। निगम के स्कूलों में अध्यापकों की कमी, छात्रों को दी जा रही सुविधाओं और स्कूलों के आधारभूत ढांचे की खामियां अक्सर अखबारों की सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन इस वक्त स्कूली बच्चों के बारे में कोई नहींसोच रहा, क्योंकि वो चुनाव में वोटर नहीं हैं।

बच्चों के लिए कई स्कूल असुरक्षित

मालवीय नगर से तक़रीबन 15 किलोमीटर दूर पहाड़गंज के कदम शरीफ इलाके में लड़कियों के प्राइमरी स्कूल के आगे कई गुमटियां लगी हैं, पान-मसाले गुटखे के लिए लोगों का आना-जाना है, जो सुरक्षा के लिहाज़ से इन लड़कियों के लिए असुरक्षित भी है। यहां पढ़ने वाली पांचवी क्लास की एक लड़की ने हमें गार्ड से छुपते-छुपाते बताया कि स्कूल में किसी भी मीडिया वाले से बात करने को मना किया जाता है और ऐसा कहा जाता है कि आज-कल में सब ठीक हो जाएगा। अब तो हमें यहां खाने को भी अच्छी-अच्छी चीजें मिलती हैं। रोज़ टीचर भी आते हैं और डांस-गाने भी सिखाते हैं। जब हमने पूछा कि क्या हमेशा से यहां सब ऐसा ही था, तो वो बच्ची ना में सिर हिलाते हुए अंदर चली गई।

दिल्ली के अलग-अलग नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के कुछ अभिभावकों से हमें पता लगा कि कई स्कूलों में पहले गेट और गार्ड तक की सही व्यवस्था नहीं थी, शौचालय की भी बुरी हालत है, साफ-सफाई को भूल ही जाइए क्योंकि यहां ज्यादातर गरीब और कमज़ोर घरों के बच्चे पढ़ने आते हैं इसलिए प्रशासन इन पर कोई ध्यान नहीं देता। यहां तक कि कई बार इन बच्चों को पढ़ने-लिखने के लिए किताब और सूखे राशन की व्यवस्था का महीनों-महीने लाभ नहीं मिलता। यहां कई स्कूलों में मां-बाप अपने बच्चों को भी भेजने से डरते हैं, क्योंकि इन स्कूलों में कई बार लड़कियों के उत्पीड़न की खबरें आ चुकी हैं।

यहां ध्यान रहे कि दिल्ली महिला आयोग ने हाल ही में एमसीडी के स्कूलों में सुरक्षा को लेकर जांच शुरू की थी, जिसमें उनकी टीम नेपाया था कि स्कूलों की स्थिति दयनीय, असुरक्षित और चिंताजनक है। सभी स्कूलों के गेट खुले हुए थे और स्कूलों में गार्ड भी नहीं थे।यहां बच्चों के बैठने तक की सही व्यवस्थी नहीं थी और ना ही उनके खेलने-कूदने की।

हाईकोर्ट ने एमसीडी को जारी किया था नोटिस

गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एमसीडी स्कूलों से संबंधित एक याचिका को लेकर एमसीडी को नोटिस भेजा था। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि स्कूलों में स्थायी भवन, कक्षाएं, पीने के पानी और शौचालय की सुविधा और कंप्यूटर लैब जैसी उचित बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। दलील में यह दावा किया गया था कि फैकल्टी की कमी के कारण, एमसीडी स्कूलों मेंछात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसी तरह, सुरक्षा गार्डों के रिक्त पदों के कारण, एमसीडी स्कूलों के बच्चे असुरक्षितहैं। विशेष रूप से नाबालिग लड़कियां, क्योंकि स्कूलों में लड़कियों के साथ अभद्रता करने के कई मामले सामने आ चुके हैं।

जाहिर है चुनावी मौसम में स्कूलों को चमकाने की व्यवस्था कोई नहीं है, हालांकि ये हैरानी की बात जरूर है कि पॉश इलाके के सरकारीस्कूलों में चौचक व्यवस्था और पिछड़े इलाकों में जर्जर व्यवस्था हाशिए पर खड़े लोगों को और हाशिए पर ढकेल रही है।

पहाड़गंज से दूर उत्तरपूर्वी दिल्ली में भी निगम के स्कूलों की हालत बदतर ही नज़र आई। न्यूज़क्लिक ने जब जाफ़राबाद के नगर निगम विकास प्रतिभा स्कूल का दौरा  किया जहां सामने से तो बिल्डिंग चमकती दिखी लेकिन अंदर जाते ही  स्कूल और शिक्षा के हाल कीपोल खलती दिखी। इस स्कूल मे 1000 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं लेकिन यहाँ केवल 11 शिक्षक हैं जो अपने आप में  शिक्षा की बदहाली का गवाह है। दूसरा यहाँ एक क्लास मे  उसकी क्षमता से अधिक बच्चे हैं। एक टीचर को एक से अधिक क्लास के बच्चों को पढ़ाना पड़ता है।

जब हमने बच्चों से बात की तो पता चला कि यहाँ बच्चों को दो साल से वर्दी के पैसे नहीं मिले हैं। इसके साथ ही किताबें भी नहीं मिली हैं पिछले सप्ताह कुछ किताबें आईं नहीं तो उससे पहले ये बच्चे बिना किताब के ही पढ़ रहे थे।

स्कूल की एक टीचर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि स्थिति बहुत खराब है। हमें 2 महीने का वेतन नहीं मिला है। स्कूल में बच्चे अधिक होने की वजह से हम ढंग से पढ़ा नहीं पा रहे हैं। एक डेस्क जिसपर दो बच्चे बैठने चाहिए वहाँ तीन से अधिक बच्चे बैठते हैं और उसकी हालत भी खराब है। इसके आलवा स्कूल में कई जगह सीलन दिखती है। 

इसी तरह जब हमने सोनिया विहार के नगर निगम प्रतिभा विकास विद्यालय का दौरा किया तो वहाँ के हाल भी बदतर थे। ये स्कूल भी अपनी क्षमता से अधिक बच्चों के साथ चल रहा है। इस स्कूल में बच्चों के पानी पीने की भी उचित व्यवस्था नहीं है क्योंकि पूरे स्कूल में एक वाटर कूलर चल रहा है। जबकि कम से कम दो अन्य जो चलने चाहिए वो बंद या टूटे पड़े हैं। यहाँ एक क्लास मे इतने बच्चे हैं कि कई बार बेंच भी कम पड़ जाते हैं और बच्चों को जमीन पर बैठना पड़ता है।

यही नहीं यहाँ एक चौंकाने वाली बात पता चली कि बच्चों को परीक्षा मे प्रश्नपत्र भी नहीं दिया जा रहा है बल्कि बच्चों के माता पिता को व्हाट्सएप पर एक रात पहले प्रश्नपत्र भेजकर उन्हें प्रिन्ट करवा कर बच्चों को देना पड़ता है। इससे समझा जा सकता है कि स्कूली शिक्षा का क्या हाल है! हालाँकि ये व्यवस्था कोरोना काल के लिए थी लेकिन अब लग रहा ये स्थाई व्यवस्था हो गई है। यहाँ भी बच्चों को स्कूली वर्दी के लिए मिलने वाला वजीफा नहीं मिल रहा है और दूसरी तरफ शिक्षक भी अपने वेतन के लिए इंतजार कर रहे हैं।

दिल्ली नगर निगम शिक्षक संघ की नेता ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूजक्लिक को बताया कि आज दिल्ली के प्राथमिक शिक्षकों के लगभग 5000 पद खाली हैं जबकि 3000 नर्सरी शिक्षकों की कमी है। इसके साथ ही स्कूलों मे काउन्सलर नहीं हैं और विकलांग बच्चों के लिए स्पेशल शिक्षक की भी भारी कमी है। उन्होंने कहा, ”नगर निगम ने पूर्वी दिल्ली के शिक्षकों का दो और उत्तरी दिल्ली के शिक्षकों का एक महीने का वेतन रोक रखा है। एक तरफ जहां उम्मीद थी कि एकीकरण से ये समस्या हल होगी लेकिन ये अभी भी जस की तस बनी हुई है।”

शिक्षक संघ की नेता ने कहा, "चुनाव किसी भी दल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि शिक्षा और शिक्षक किस हाल में हैं। हमने सभी मुख्य पार्टियों के अध्यक्षों को अपना मांग पत्र दिया लेकिन किसी ने भी उसपर काम नहीं किया है।" 

शिक्षा के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए कहा, "एमसीडी में शिक्षा का बुरा हाल एक मानव निर्मित संकट है जिसकी जड़ों में कुछ व्यवस्थागत ख़ामियाँ भी हैं। शिक्षा के अधिकार क़ानून के सेक्शन7(बी) के तहत यह स्पष्ट है कि शिक्षा के लिए खर्चा एमसीडी और दिल्ली सरकार को मिलकर वहन करना होगा। इसके बावजूद हमारे बच्चों को न किताबें मिल पा रही है न ही वजीफ़ा। जब मैं हाल ही में पूसा रोड के स्कूलों में गया तो पाया कि बच्चों के पास बैठने के लिए डेस्क भी नहीं है। क्या प्रशासक ये नहीं देख पा रहे हैं कि बच्चों को क्या बुनियादी सुविधाएँ चाहिए। जहां तक व्यवस्थागत कारणों का सवाल है तो आज से बारह साल पहले NCERT की एक कमेटी जिसकी अध्यक्षता मैंने की थी, हमने पाया कि सारी अनियमितताएँ एक सरकार के अधीन न होने के कारण हैं। एमसीडी के अपने स्कूल हैं, कैंट बोर्ड के अपने स्कूल हैं, दिल्ली सरकार अपने स्कूल चलाती है। यदि ये सब एक सरकार के अन्तर्गत हों तो बहुत सारी समस्याओं का हल निकल आएगा। उदाहरण के तौर पर दिल्ली सरकार के पास ज़मीन की कमी है वहीं एमसीडी के पास ढेर सारी ज़मीन है। अगर ये दिल्ली सरकार के अधीन होता है तो बहुमंज़िला स्कूल बनाकर समस्या से निपटा जा सकता था।"

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest