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मध्य प्रदेश : आशा- ऊषा कार्यकर्ताओं की हड़ताल को 2 महीने पूरे, 15 मई को करेंगी भोपाल कूच

हज़ारों की संख्या में राजधानी भोपाल पहुंच कर ये कार्यकर्ताएँ आंदोलन के साथ ही आगे की रणनीति पर भी चर्चा करेंगी।
asha workers

मध्य प्रदेश में आशा- ऊषा कार्यकर्ता मानदेय वृद्धि और नियमितीकरण समेत अन्य मांगों को लेकर बीते दो महीने से अनिश्चितकालीन धरने और हड़ताल पर बैठी हुई हैं। आलम ये है कि इन कार्यकत्रियों के लगातार प्रदर्शन से प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, लेकिन अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक अपना ज्ञापन पहुंचाने के बाद भी इनकी मांगों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। ऐसे में 15 मई को इनकी हड़ताल के 62 वें दिन सभी आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं के राजधानी भोपाल पहुंचने और वहां एक दिवसीय महाआंदोलन करने की योजना है।

ध्यान रहे कि बीते महीने ग्वालियर के आंबेडकर महाकुंभ में दौरान इन कार्यकत्रियों ने सीएम शिवराज सिंह चौहान का काफिला रोक उन्हें ज्ञापन सौंपा था। जिसके बाद इनका आरोप है कि प्रशासन के आदेश पर 25 आशा कार्यकर्ताओं को सेवामुक्त कर दिया गया, जिसका विरोध भी लगातार देखने को मिल रहा है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा इन्हें कई आश्वासन मिलेे हैं लेकिन इस बार ये कार्यकत्रियां कोई सिर्फ आश्वासन नहीं बल्कि ठोस आधार चाहती हैं।

बता दें कि साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जाती है। लेकिन प्रदेश में

इन कार्यकर्ताओं का ये संघर्ष बीते लंबे समय से जारी है और इन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि साल 2021 में जारी आश्वासन के बावजूद अब तक सरकार ने इस ओर कोई पहल नहीं की है, नाहीं अब तक सरकार का कोई प्रतिनिधि या नेता इन आंदोलनरत कार्यकत्रियों से मिलने आया है। दो महीनों में केलव एक बार स्वास्थ्य विभाग नेशनल हेल्थ मिशन के अधिकारी के साथ इनकी मिटिंग हो पाई है। इनका आरोप है कि चुनावी साल में सरकार महिलाओं के नाम पर तमाम वोट तो हासिल करना चाहती है, लेकिन मेहनतकश महिलाओं को उनकी कमाई नहीं देना चाहती।

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ये लड़ाई सिर्फ वेतन वृद्धी की नहीं, आशाओं के स्वाभिमान की है!

मध्य प्रदेश आशा- ऊषा सहयोगिनी श्रमिक संघ की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन 15 मई को 62 दिन यानी दो महीने पूरे कर लेगा। ऐसे में सभी आशाओं ने ये फैसला किया है कि राजधानी भोपाल में एकत्र होकर आंदोलन के साथ ही आगे की रणनीति पर भी चर्चा की जाएगी। इसमें उन 25 आशाओं की भी कार्य पर वापसी की लिए योजना तैयार की जाएगी, जिन्हें प्रशासन ने आपराधिक मुकदमे के चलते सेवा मुक्त कर दिया है।

लक्ष्मी के मुताबिक मौजूदा सीएम शिवराज सिंह चौहान और उनकी पार्टी बीजेपी के कथनी और करनी में बहुत फर्क देखा गया है। एक ओर तो मामा शिवराज अपनी बहनों को हर संभव मदद का आश्वासन देते फिर रहे हैं और दूसरी ओर दो महीने से धरने पर बैठी आशा बहनों की कभी खोज खबर भी लेने नहीं आए। ऐसे में अब जब सीएम चुनावी साल में लाडली बहना योजना ला रहे हैं, तो हम पूछना चाहते हैं कि ये बहनें कौन सी हैं? क्या मेहनत करने वाली आशा कार्यकर्ता इनकी बहनें नहीं हैं, फिर उनके साथ इतना अन्याय क्यों हो रहा है। ये साफ तौर पर सरकार की कथनी और करनी में अंतर को दर्शाता है।

लक्ष्मी के अनुसार अब ये लड़ाई सिर्फ वेतन वृद्धी की नहीं है, अब ये लड़ाई आशा-ऊषाओं के स्वाभिमान की लड़ाई बन गई है। सीएम साहब कहते हैं, भाई पर भरोसा रखिए, सब हो जाएगा, लेकिन बीते कई सालों से सिर्फ आश्वासन ही मिला है, हुआ कुछ नहीं है। ऐसे में अब सवाल सिर्फ आशाओं की मांगों का नहीं, बल्कि सरकार की विश्वसनीयता का भी है। आशाएं अब आर-पार की लड़ाई को तैयार हैं।

शिवराज सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप

प्रदर्शन में शामिल अन्य आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं ने बताया कि कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें बेहद कम वेतन 2,000 रूपए पर गुजारा करना पड़ रहा है। साल 2021 में जब आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं ने राजधानी भोपाल में बड़ा प्रदर्शन किया था, तब उन्हें ये आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही प्रदेश की हर आशा को 10 हजार रुपए और पर्यवेक्षकों को 15 हजार रुपए का वेतन निर्धारित कर दिया जाएगा। लेकिन अब दो साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की है।

गौरतलब है कि साल 2021 में मध्यप्रदेश में हज़ारों आशा कार्यकर्ताओं का बड़ा और अहम आंदोलन देखने को मिला था। उनकी मांगों में स्थायी कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिये जाने और मानदेय के बदले 18,000 रुपये प्रति माह नियमित वेतन दिये जाने की मांगें शामिल थीं। यह राशि सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिये जाने वाला शुरुआती वेतन मानदंड है। फिलहाल आशा कार्यकर्ता अपनी नियमित गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2000 रुपये प्रति माह के मासिक मानदेय की हक़दार हैं।

ध्यान रहे कि साल 2018 से पहले ये सभी कार्यकर्ता केवल 1,000 रूपए मासिक पारिश्रमिक लेती थीं। इस मासिक मानदेय के अलावा इन्हें जननी सुरक्षा योजना, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), आदि जैसे अतिरिक्त कार्यों के आधार पर प्रोत्साहन राशि मिलती है। सरकारी खबरों के मुताबिक आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान किये गये उनके सभी कार्यों के लिए उनके इस मासिक मानदेय 2,000 रुपये के अलावा उन्हें 1,000 रुपये की मामूली राशि का भी भुगतान किया गया है।

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