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बाज़ार की पहेली : किसानों के लिए क़ीमतें गिर रही हैं और उपभोक्ताओं के लिए बढ़ रही हैं!

मंडी में किसानों के प्याज़ और आलू की क़ीमतें गिर गई हैं और गेहूं भी लागत से नीचे बिक रहा है, लेकिन फिर भी खुदरा क़ीमतें बढ़ी हुई हैं।
vegetable market

जहां तक आम उपभोक्ताओं का संबंध है, कई जरूरी वस्तुओं की कीमतों में भारी उछाल आया हुआ है। हाल ही में सरकार द्वारा जारी नवीनतम मूल्य सूचना के अनुसार, पिछले एक वर्ष में अनाज़ और उत्पादों की कीमतों में लगभग 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, दूध और इसके उत्पादों की कीमतों में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और मसालों में 20 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखी गई है। (नीचे चार्ट देखें)

ऐसा दर्शाय गया है कि, कुछ वस्तुओं के समूहों की कीमतें एक साल पहले की तुलना में ज्यादा नहीं बढ़ी हैं, जैसे सब्जियां या मांस और अंडे, या तेल और वसा या दालें। लेकिन यह थोड़ा भ्रामक है: इस समूह के भीतर कुछ वस्तुओं की कीमतें अन्य की तुलना में बहुत अधिक बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, अरहर दाल की कीमतों में 9 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, लेकिन मसूर और चने की कीमतों में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जबकि उड़द और मूंग की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई है।

अन्य वस्तुओं के दामों में स्थिरता के बावजूद, कुछ वस्तुओं की कीमतों में असमान दिखने वाली तर्कहीन वृद्धि का परिवार के बजट पर समान प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ प्रमुख वस्तुओं की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। इसमें सबसे प्रमुख मामला गेहूं और आटा (आटा) है, जो भारतीयों की एक बड़ी संख्या के लिए एक प्रमुख अनाज़ है। वास्तव में, समान रूप से अन्य महत्वपूर्ण स्टेपल, यानि चावल की भी कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है, हालांकि यह गेहूं जितनी नहीं है।

गेहूं की क़ीमतों में बेतहाशा वृद्धि

खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में गेहूं की कीमतों में लगभग 12 प्रतिशत और आटे की कीमतों में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इस दौरान खुदरा बाजार में चावल की कीमतों में करीब 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी काफी तीव्र है क्योंकि यह पिछले साल बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के साथ शुरू हुई थी, जब सरकार ने पहले गेहूं निर्यात करने का फैसला किया था, फिर गर्मी की शुरुआत होते ही फसल का नुकसान होने के कारण सरकार को पीछे हटना पड़ा था। नतीजतन, सरकारी खरीद गिर गई और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अराजकता फैल गई, और सरकार ने इसकी भरपाई के लिए लोगों को राशन में गेहूं की जगह चावल या बाजरा खरीदने पर मजबूर किया था। 

एक और अच्छी गेहूं की फसल की उम्मीद के बावजूद (बशर्ते तापमान अधिक न रहे), किसी ने सोचा होगा कि गेहूं की कीमतें पहले की तरह कम हो जाएंगी। लेकिन सरकार का अदृश्य हाथ बाज़ार की ताकतों को मदद कर रहा है और नतीजतन कीमतें ऊपर जा रही हैं। 

महामारी की शुरुआत में शुरू की गई पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत सभी व्यक्तियों को मुफ्त में दिए जा रहे 5 किलो खाद्यान्न को रद्द करने का सरकार का निर्णय भी इसका एक कारण है। चार लोगों के परिवार को 20 किलो गेहूं। परिवार को हर महीने इतना ही अनाज़ खरीदने के लिए खुले बाजार जाना पड़ता है। यह उन व्यापारियों के लिए एक वरदान साबित हुआ, जिन्होंने गेहूं को स्टॉक कर लिया था और तेजी से पैसा बनाने के लिए जोर लगा रहे थे। हालाँकि सरकार ने अंतत: खुले बाजार में कुछ 2.8 मिलियन टन गेहूँ भेजा, लेकिन कुछ अन्य खरीदार भी शामिल हैं जो खुले बाज़ार से खरीदते हैं- जैसे बिस्कुट और अन्य गेहूँ उत्पाद बनाने वाली बड़ी कंपनियाँ - जो गेहूँ या आटा खरीदने की फिराक़ में हैं। इस बढ़ती मांग ने कीमतों को बढ़ा दिया है, और इससे जमाखोरों और मुनाफ़ाखोरों को मदद मिली है। अब लगता है सबको लूट की छूट है, और कोई आश्चर्य नहीं है कि आम भारतीय इन बढ़ी हुई कीमतों पर गेहूं खरीदने के लिए संघर्ष कर रहा है।

लेकिन किसान प्याज, आलू, दूध की औंधे मुंह गिरे दामों का विरोध कर रहे हैं...

इस बीच, जहां तक भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण सब्जियों: प्याज और आलू की कीमतों का संबंध है, एक विचित्र किन्तु सच्ची स्थिति बनी हुई है। इन दोनों उत्पादों के बिक्री मूल्य गिरने से किसान गुस्से में हैं। इन दोनों उत्पादों के किसान, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सड़कों पर उतर आए हैं। यहां तक कि यूपी में 650 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर आलू खरीदने या पश्चिम बंगाल में उपज का एक निश्चित हिस्सा खरीदने के वादे ने भी किसानों को आश्वस्त नहीं किया है, जो आरोप लगा रहे हैं कि सरकारें उनकी लागत से बहुत कम कीमतों की पेशकश कर रही हैं।

महाराष्ट्र में, प्याज के किसान विरोध में हैं और कीमतों में गिरावट से बचाने की मांग को लेकर सरकारी हस्तक्षेप की मांग करते हुए नासिक से मुंबई तक एक विशाल मार्च निकाला। जुलूस में आलू, कपास और दूध उत्पादकों के किसान भी शामिल थे। तमिलनाडु के दुग्ध उत्पादक विरोध कर रहे हैं। 

कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित कृषि विपणन सूचना के एक ऑनलाइन पोर्टल एगमार्कनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देश भर के बाजारों में किसानों को पेश किए जाने वाले आलू और प्याज के औसत थोक मूल्यों में 2022 और 2023 के बीच 28 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। (नीचे चार्ट देखें) 

मार्च 2022 में किसानों ने आलू की फसल को औसतन 1,289 रुपये प्रति क्विंटल बेचा था, लेकिन इस साल औसत कीमत घटकर 923 रुपये प्रति क्विंटल रह गई है। इसी तरह, प्याज की कीमत पिछले साल औसतन 1,998 रुपये प्रति क्विंटल थी, लेकिन इस साल यह गिरकर 1,438 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है।

अजीब लेकिन शायद इतना अजीब नहीं - उपभोक्ता कीमतों में उतनी गिरावट नहीं आई है, जो नीचे दिए गए ग्राफिक से स्पष्ट होता है। किसानों के विक्रय मूल्य, एगमार्कनेट से लिए जाते हैं, जबकि थोक और उपभोक्ता मूल्य, खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के डेटाबेस से लिए जाते हैं।

जहां प्याज किसान को औसतन 14.38 रुपये प्रति किलो मिलता है, वहीं शहरी बाजारों में औसत थोक मूल्य 18.05 रुपये प्रति किलो दर्ज किया गया है, और उस समय उपभोक्ता या खुदरा मूल्य औसतन 23.67 रुपये प्रति किलो था। इसी तरह आलू की कीमत रही है: किसानों ने अपनी फसल महज 9.23 रुपये प्रति किलो बेची, थोक विक्रेताओं ने 14.46 रुपये प्रति किलो बेचा, और खुदरा विक्रेताओं यानि आम आदमी को अंततः 19.45 रुपये प्रति किलो मिला। 

संक्षेप में कहा जाए तो, किसान कीमतें गिरने से तबाह हो रहे हैं, लेकिन बीच में पड़े बिचौलियों का मुनाफ़ा इतना अधिक बढ़ा कि अंततः उपभोक्ता ने किसानों को जो मिला उससे लगभग 65 प्रतिशत अधिक कीमत पर प्याज खरीदा, और आलू को तो 111 प्रतिशत अधिक कीमत पर खरीदना पड़ा। बिचौलिए किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की कीमत पर बेहद विशाल मुनाफ़ा बना रहे थे और बना रहे हैं। 

ऐसा तब होता है जब सरकार निजी व्यापारियों को हेरफेर करने और जनता को लूटने के लिए कीमतों को बढ़ाने के लिए बेलगाम और अनियमित लाइसेंस देती है। बाज़ार कोई निष्पक्ष ताकत नहीं है, यह शक्तिशाली और अमीरों के हाथों का ही एक उपकरण है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Riddles of Mr. Market: Prices Crashing for Farmers, Rising for Consumers!

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