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मोदी जी! विकलांग को दिव्यांग नाम नहीं, शिक्षा का अधिकार चाहिए

उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा नेत्रहीनों का स्कूल आर्थिक तंगी के चलते बंद होने की कगार पर है। बीते साल जून में संसाधन की कमी का हवाला देते हुए प्रशासन ने कक्षा 9 से 12 तक की कक्षाएं बंद करने का ऐलान किया और अब नए सत्र में नया दाखिला नहीं लिया जा रहा, जिसके चलते छात्र बीते कई दिनों से आंदोलनरत हैं।
मोदी जी! विकलांग को दिव्यांग नाम नहीं, शिक्षा का अधिकार चाहिए

बृहस्पतिवार, 15 जुलाई को एक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर कई परियोजनाओं का उद्घाटन कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर उसी वाराणसी में  पोद्दार अंध विद्यालय के छात्र, पूर्व छात्र और उनके परिजन सड़क पर अपने विद्यालय को बंद होने से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, पीएम मोदी से अपना विद्यालय बचाने की गुहार लगा रहे थे। इस संबंध में इससे पहले भी छात्र लगातार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, शिक्षा सचिव और सामाजिक न्याय मंत्रालय तक को पत्र लिख चुके हैं बावजूद इसके उनकी कहीं  कोई सुनवाई नहीं हो रही।

आपको बता दें कि वाराणसी में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से कुछ आगे बढ़ने पर दुर्गाकुंड मंदिर के पास हनुमान प्रसाद पोद्दार उच्चतर अंध विद्यालय है। यह पूर्वांचल का एक मात्र विद्यालय है, जहां दृष्टिबाधित छात्र पढ़ते हैं। पिछले कई दशकों से ये विद्यालय उत्तर प्रदेश और बिहार के बच्चों के जीवन में रौशनी की नई किरण बना हुआ था। लेकिन बीते साल 20 जून को आर्थिक संसाधन की कमी का हवाला देते हुए विद्यालय प्रशासन ने कक्षा 9 से 12 तक की कक्षाएं बंद करने का फरमान सुना दिया और अब नए सत्र में कक्षा नौ से 12 तक में नया दाखिला नहीं लिया जा रहा।

ट्रस्टियों का कहना है  कि उन्हें किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिल रही और इसलिए अब विद्यालय का स्वरूप छोटा कर दिया है। आगामी सत्र में कक्षा संचालन नर्सरी से कक्षा आठ तक ही किया जाएगा। इस फैसले के खिलाफ कई छात्र बीते कई दिनों से आंदोलनरत हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं और अपने विद्यालय को बचाने की तमाम कोशिशें कर रहे हैं।

छात्रों का कहना है कि सरकार विकलांग छात्रों को दिव्यांग कहकर दीया तो दिखाती है, लेकिन उनको हक नहीं दिलाती है। प्रदर्शन कर रहे छात्रों के मुताबिक अंध विद्यालय बंद होने से एक नहीं पांच राज्य यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ के छात्र प्रभावित होंगे।

विकलांग अधिकार संघर्ष समिति से जुड़े अंध विद्यालय के पूर्व छात्र शशिभूषण ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि प्रदेश में 20 लाख के करीब दृष्टिहीन छात्रों पर मात्र 4 विद्यालय हैं। बनारस का ये अंध विद्यालय 250 सीटों के साथ राज्य का सबसे बड़ा अंध विद्यालय है। ऐसे में इस विद्यालय का बंद होना विकलांगों के अधिकारों को छीनने जैसा है।

शशि भूषण कहते हैं, “हमने इस समस्या को कई बार सड़क और जनता दरबार में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सामने भी रखा है। सीएम से लेकर पीएम सभी को अप्रोच किया है लेकिन सब जगह निराशा ही हाथ लगी है। विकलांग को दिव्यांग का नाम देकर सरकार ने एक दैवीय पहचान देने की कोशिश की लेकिन हमें सहानुभूति और नाम नहीं काम चाहिए। विकलांगों के हितों के लिए काम। वो काम जिससे सिर्फ पार्टियों की राजनीति नहीं चमके, हमारी जिंदगी भी आसान बन सके। हमें सेवा नहीं, अधिकार चाहिए। शिक्षा का अधिकार, सम्मान से जीने का अधिकार, जो संविधान ने सबको दिया है। हमें दया भाव की दरकार नहीं है वैज्ञानिक नजरिए की तलाश है, जो लोगों के बीच हमारे मुद्दों को संवेदनशीलता से ला सके।“

 क्या है पूरा मामला?

हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की स्थापना 1972 में हुई थी और इसे स्मृति सेवा ट्रस्ट संचालित करता है।  विद्ययालय के कुल 18 ट्रस्टी हैं और सभी व्यापारी हैं। इसके अलावा भारत सरकार का सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इसे फंड देता है। बीते सालों में विद्यालय को लाखों की ग्रांट भी मिली है। बावजूद इसके प्रशासन आर्थिक तंगी की बात कर रहा है।

छात्रों का आरोप है कि ट्रस्ट जानबूझकर अपने फायदे के लिए विद्यालय को बंद कराने का प्रयास कर रहा है। बीते साल जब कोरोना काल में उन्हें घर भेजा गया तो पीछे से कक्षाएं बंद होने की चिट्ठी भी भेज दी गई। तब से वे और उनके परिजन लगातार पीएम मोदी से विद्यालय बचाने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन अब तक कहीं कोई जवाब नहीं मिला है।

ट्रस्ट चरणबद्ध तरीके से स्कूल को बंद करके मॉल बनवाना चाहता है!

विद्यालय के पूर्व छात्र और प्रोग्रेसिव फेडरेशन ऑफ विजुअली चैलेंज (ईस्ट जोन) के सचिव शिवशंकर उपाध्याय का कहना है कि विद्यालय प्रबंधन आर्थिक परेशानी का हवाला देकर कक्षाएं बंद कर रहा है, ये सब साजिश है। दरअसल, ट्रस्ट चरणबद्ध तरीके से स्कूल को बंद करके यहां मॉल बनवाना चाहता है।

शिवशंकर उपाध्याय के मुताबिक विद्यालय प्रशासन को साल 2019 में 49 लाख रुपए की ग्रांट मिली थी। इससे पहले साल 2017 में भी कौशल विकास योजना के तहत 32 लाख रुपए दिए गए थे। इसके अलावा भी विद्यालय को लाखों का अनुदान मिलता है। लेकिन आर्थिक तंगी का हवाला देकर प्रशासन आपदा में अवसर तलाश रहा है।

अंध विद्यालय के वर्तमान और पूर्व छात्रों ने इस संबंध में एक मार्च निकाल कर पीएम के संसदीय कार्यालय पहुंचकर एक ज्ञापन भी दिया है। जिसमें सरकार से अंध विद्यालय में नौ से 12 तक की कक्षाएं पुन: आरंभ कराने और अंध विद्यालय का अधिग्रहण करने की मांग की गई है।

अंध विद्यालय के छात्र अमित सिंह न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहते हैं कि प्रशासन ने कक्षाएं बंद करने का फरमान तो सुना दिया, लेकिन हमारे भविष्य के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। अंधों के लिए पढ़ना पहले से ही आसान नहीं है, अब इसे और कठिन बना दिया गया है।

अमित सिंह के अनुसार, “मौजूदा समय में हम लोगों से कहा गया कि आप लोग किसी अन्य विद्यालय जैसे गोरखपुर, लखनऊ या फिर बांदा के अँध विद्यालयों में एडमिशन ले लो। हमने इन विद्यालयों में बात की तो पता चला कि वहां कोई सीट नहीं है। ऐसे समय में अब हम कहां जाएंगे, हमारे भविष्य का क्या होगा।“

ट्रस्ट का क्या कहना है?

विद्यालय द्वारा बीते साल 23 जून को जारी एक पत्र में कहा गया कि 17 जून को हुई कार्यकारिणी की बैठक में आर्थिक स्थितियों को देखते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है की विद्यालय की कुछ कक्षाओं का संचालन पूर्णत: बंद कर दिया जाए।

इस संबंध में स्मृति सेवा ट्रस्ट के संयुक्त सचिव अखिलेश खेमका ने मीडिया को बताया कि विद्यालय संचालन के लिए मिलने वाला सहयोग लगातार कम होता जा रहा है। सरकारी अनुदान के अलावा हर साल लाखों रुपये ट्रस्ट की ओर से विद्यालय के संचालन में लगाए जा रहे हैं। कोरोना काल में व्यवसाय ठप्प हो गया है। ऐसे में खुद से पैसे लगाना मुश्किल हो गया है।

विपक्ष क्या कर रहा है?

कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय ने बृहस्पतिवार को आंदोलनरत दिव्यांग छात्रों से मुलाकात की। उन्होंने छात्रों को समर्थन देते हुए पूरे मामले की जानकारी ली। इसके अतिरिक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू और राज्य सभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भी इस मामले में छात्रों के साथ एकजुटता दिखाई है।

पूर्व सांसद राजेश मिश्रा भी छात्रों के साथ दिखाई दिए। उन्होंने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि पीएम मोदी बनारस में 1500 करोड़ की योजनाओं का ढिंढोरा पीटने शहर आ रहे हैं लेकिन इन छात्रों के दर्द की अनदेखी कर रहे हैं।

ट्रस्ट के साथ स्टेट की मिलीभगत!

गौरतलब है कि विद्यालय की स्थापना सन् 1972 में गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार की स्मृति में की गई थी। शुरुआत में यह विद्यालय सिर्फ पांचवीं तक था, विद्यालय को जूनियर हाईस्कूल की मान्यता 1984 में, हाईस्कूल की मान्यता 1990 में और इंटरमीडिएट तक की मान्यता 1993 में मिली। शुरुआत में छात्र इस विद्यालय की गुणवत्ता को उच्च बताते थे लेकिन अब इस विद्यालय के पूर्व छात्र प्रशासन के व्यवहार को लेकर भी कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं। विद्यालय में मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न की बातें भी सामने आ रही है तो वहीं शासन-प्रशासन पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है, जिसे लेकर ट्रस्ट के साथ स्टेट की मिलीभगत का आरोप भी छात्र लगा रहे हैं।

विद्यालय के छात्रों का कहना है कि ‘जालान समूह’ इस ट्रस्ट का मालिक है और सारी पार्टियों के नेताओं को जालान से खास लगाव है। यही कारण है कि कोई सीधे तौर पर सामने आकर कुछ कहना नहीं चाहता। वास्तव में ये सब राजनीति चमकाने की कोशिश है। वैसे ही अगले साल प्रदेश में चुनाव है ऐसे में कोई क्यों उद्योगपति के खिलाफ जाकर हाशिए पर खड़े लोगों की बात करेगा।

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