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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने "बिना कारण बताए" उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले बंद किए: NHRC डेटा

राज्य/केंद्र सरकारों द्वारा NHRC की शिफारिश मानने से मना करने के कारण 25 मामले बंद, पिछले 3 साल में 187 मामले बेनतीजा लंबित
NHRC
फ़ोटो साभार: factly

14 मार्च, 2023 को, संसद के चल रहे बजट सत्र के दौरान, लोकसभा सदस्य श्री पी रवींद्रनाथ (AIADMK) ने मानवाधिकारों के उल्लंघन की कुल संख्या पर सवाल पूछा था। उन्होंने स्वत: संज्ञान ली गई घटनाओं की संख्या और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा प्राप्त और निपटाई गई शिकायतों की संख्या की जानकारी मांगी थी। लोकसभा सदस्य ने एनएचआरसी द्वारा की गई सिफारिशों पर भुगतान किए गए मुआवजे की राशि का राज्यवार विवरण और उन मामलों की कुल संख्या के बारे में भी पूछा, जिनमें केंद्र और राज्य सरकारों ने एनएचआरसी की सिफारिशों को स्वीकार किया है। इन सवालों पर जो जवाब मिला वह पिछले तीन वर्षों का NHRC द्वारा राज्य-वार डेटा है जो उन मामलों में NHRC द्वारा की गई कार्रवाइयों के बारे में कोई जानकारी नहीं प्रदान करता है जहाँ सरकार ने NHRC की सिफारिशों या की गई कार्रवाइयों का पालन करने से इनकार कर दिया। साथ ही पीड़ितों को इसके तहत मुआवजे के वितरण की रिपोर्ट भी नहीं है।
 
गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय ने लोकसभा को पिछले तीन वर्षों का विवरण देकर उक्त प्रश्न का उत्तर दिया। प्रदान किए गए राज्य-वार डेटा में, जिसे नीचे सरलीकृत और विश्लेषण किया गया है, यह देखा गया कि एनएचआरसी ने बिना कोई कारण दर्ज किए और भुगतान का कोई प्रमाण दिये बिना मामलों को बंद कर दिया था, जिनकी संख्या उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल में लगातार उच्चतम थी। भले ही इन वर्षों में उक्त संख्या में वृद्धि हुई हो, वर्ष 2021-22 में 44 और वर्ष 2020-21 में 118 की तुलना में 2022-23 में ऐसे 27 मामले थे जो बिना कारण बंद कर दिए गए। एनएचआरसी द्वारा किस तरह के मामले दर्ज किए गए हैं या उन पर स्वत: संज्ञान लिया गया है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
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उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2022-2023 (28 फरवरी, 2023 तक) की अवधि में NHRC द्वारा स्वत: संज्ञान लेने वाले मामलों की संख्या 77 है, जो कि 2021-2022 के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है, जब केवल 16 मामलों का स्वत: संज्ञान लिया गया। 2020-2021 की अवधि के दौरान, 41 मामले दायर किए गए, जबकि 2019-2020 के दौरान, उन मामलों की संख्या जिनपर स्वत: संज्ञान लिया, 64 थी।
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एनएचआरसी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2022 से 28 फरवरी, 2023 के बीच की अवधि में, एनएचआरसी के पास 97,788 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 91,196 मामलों का निपटारा किया गया और 6592 लंबित हैं। 2021-2022 की अवधि के दौरान, कुल दर्ज 1,11,082 मामलों में से 1,07,823 मामलों का निपटारा किया गया और 3,259 लंबित रहे। 2020- 2021 में, NHRC द्वारा कुल 74,968 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 73,210 का निस्तारण किया गया और 1,558 लंबित रहे। वर्ष 2019-20 के लिए 76,628 मामले दर्ज किए गए और 75,999 का निस्तारण किया गया। इन मामलों में यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इन मामलों का निपटारा कैसे किया गया, क्या दोषमुक्ति या दोषसिद्धि हुई या कोई अन्य निर्णय हुआ, इसका कोई विवरण प्रदान नहीं किया गया है।
 
इसके अलावा, NHRC ने निपटाए गए मामलों पर राज्य/संघ राज्य-वार डेटा भी प्रदान किया। उनके द्वारा प्रदान की गई जानकारी में नंबर के आधार पर डेटा शामिल है। ऐसे मामलों की संख्या जिनमें केंद्र और राज्य सरकारों ने NHRC की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, NHRC द्वारा की गई सिफारिशों पर भुगतान की गई मुआवजे की राशि, ऐसे मामलों की संख्या जिनमें NHRC द्वारा की गई सिफारिशें लंबित हैं/सरकार द्वारा अस्वीकार कर दी गई हैं, 2019 से 2023 तक सिफारिशें जिन्हें NHRC द्वारा वापस ले लिया गया / न्यायालयों आदि में सरकार द्वारा चुनौती दी गई।

1. वर्ष 2022-23 
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यह तालिका 1 अप्रैल, 2022 से 28 फरवरी, 2023 के दौरान के आंकड़े प्रदान करती है। जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से पता चलता है, उत्तर प्रदेश राज्य में सबसे अधिक मामले बंद किए गए हैं, जिनकी संख्या 44 है, इसके बाद ओडिशा, दिल्ली और बिहार हैं, इन सभी राज्यों में 17 केस बंद किए गए। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य भी है जहां सबसे ज्यादा मामले बिना कारण दर्ज किए और बिना किसी भुगतान प्रमाण के बंद किए जा रहे हैं। उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश राज्य में 27 मामले बिना किसी कारण के बंद कर दिए गए, इसके बाद झारखंड (11) और ओडिशा (10) का स्थान है। कुल मिलाकर, 113 मामले बिना किसी कारण के बंद कर दिए गए और भुगतान का प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ, जबकि बंद किए गए केवल 184 मामलों में भुगतान का प्रमाण प्राप्त हुआ।
 
असम, दिल्ली और झारखंड राज्यों में, एक-एक मामला दर्ज किया गया था जहां मामला बंद कर दिया गया था लेकिन भुगतान का अनुपालन/प्रमाण (पीओपी) लंबित था। 3 मामलों में, मणिपुर, पंजाब और तमिलनाडु राज्य में, मामला बंद कर दिया गया क्योंकि राज्य/केंद्र सरकार ने सिफारिशें मानने से इनकार कर दिया या प्राप्तकर्ता ने लेने से इनकार कर दिया।

2. वर्ष 2021-2022
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यह तालिका 1 अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2022 के दौरान के आंकड़े प्रदान करती है। जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से पता चलता है, बंद किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में ( 42) थी। ओडिशा में यह संख्या (34) थी। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य भी था जिसने बिना कारण दर्ज किए और भुगतान के किसी प्रमाण के बिना बंद किए जाने वाले मामलों की संख्या सबसे अधिक दर्ज की। उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 21 मामले बिना किसी कारण के बंद कर दिए गए, इसके बाद चंडीगढ़ (18) और ओडिशा (9) का स्थान है। कुल मिलाकर, 103 मामले बिना किसी कारण के बंद कर दिए गए और भुगतान का प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ, जबकि केवल 199 मामले ऐसे बंद किए गए जिनमें भुगतान का प्रमाण प्राप्त हुआ।
 
उन्नीस ऐसे मामले दर्ज किए गए जहां मामला बंद कर दिया गया था लेकिन अनुपालन/भुगतान का प्रमाण (पीओपी) लंबित था, सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से (11) रिपोर्ट किया गया। ओडिशा और हरियाणा में 2 मामले ऐसे थे जिनमें, मामला बंद कर दिया गया क्योंकि राज्य/केंद्र सरकार ने सिफारिश मानने से इनकार कर दिया या प्राप्तकर्ता द्वारा इनकार कर दिया गया।

3. वर्ष 2020-2021
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यह तालिका 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2021 के दौरान का डेटा प्रदान करती है। प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, कुल 299 मामले उक्त वर्ष में कारणों और भुगतान के प्रमाण के साथ बंद कर दिए गए। बंद किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में (118) थी, जिसके बाद ओडिशा (41) और मध्य प्रदेश (18) मामलों के साथ दूसरे और तीसरे नंबर पर थे। उत्तर प्रदेश फिर से ऐसा राज्य था जिसने बिना कारण दर्ज किए और मुआवजा भुगतान के किसी प्रमाण के बिना बंद किए जाने वाले मामलों की संख्या सबसे अधिक दर्ज की। कुल 270 मामलों में से जो बिना किसी सबूत या कारण के बंद कर दिए गए, उनमें से 107 उत्तर प्रदेश राज्य के थे। इसके बाद बिहार में 24 मामले अकारण बंद कर दिए गए।
 
उक्त वर्ष में ऐसे 104 मामले दर्ज किए गए थे जिन्हें बंद कर दिया गया, लेकिन अनुपालन/भुगतान का प्रमाण (पीओपी) लंबित था, जिनमें से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश से (37) मामले रिपोर्ट किए गए थे। डेटा आगे बताता है कि यूपी और दिल्ली में सबसे ज्यादा 17 मामले बंद कर दिए गए क्योंकि राज्य / केंद्र सरकार ने सिफारिशों का पालन करने से इनकार कर दिया या प्राप्तकर्ता द्वारा इनकार करने के कारण।

4. वर्ष 2019-2020
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यह तालिका 1 अप्रैल, 2019 से 31 मार्च, 2020 के दौरान का डेटा प्रदान करती है। प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, कुल 142 मामले उक्त वर्ष में कारणों और भुगतान के प्रमाण के साथ बंद किए गए थे। बंद किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश राज्य में (47) थी। इसके बाद ओडिशा (21) और छत्तीसगढ़ (9) मामलों के साथ दूसरे और तीसरे नंबर पर थे। फिर से, उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य रहा जिसने बिना कारण और भुगतान के किसी प्रमाण के बिना बंद किए जाने वाले मामलों की संख्या सबसे अधिक दर्ज की। बिना किसी सबूत या कारण के बंद किए गए कुल 493 मामलों में से 170 उत्तर प्रदेश के थे। इसके बाद ओडिशा राज्य में 39 और दिल्ली में 36 मामले अकारण बंद कर दिए गए।
 
उक्त वर्ष में ऐसे 61 मामले दर्ज किए गए थे जिनमें मामला बंद कर दिया गया था लेकिन अनुपालन/भुगतान का प्रमाण (पीओपी) लंबित था, जिनमें से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश से (13) रिपोर्ट किए गए थे। तमिलनाडु, पंजाब और दिल्ली राज्यों से रिपोर्ट किए गए 3 मामलों में, डेटा प्रदान करता है कि मामले बंद कर दिए गए क्योंकि राज्य/केंद्र सरकार ने सिफारिशों का पालन करने से इनकार कर दिया या प्राप्तकर्ता द्वारा इनकार करने के कारण।
 
पूरा जवाब यहां पढ़ा जा सकता है:

Violation of Human Rights.pdf from sabrangsabrang

साभार : सबरंग 

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