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NMSR: "नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे" कर्मचारियों ने चलाया रेलवे बचाने का अभियान

रेल यूनियन के नेताओं का कहना है कि कोरोना काल में रेलवे को जितना मुनाफा हुआ, उतना इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है लेकिन फिर भी सरकार रेलवे को बेच रही है। मुनाफे में चल रहे रेलवे को मोदी सरकार आखिर क्यों बेच रही है? इंडियन रेलवे एंप्लाइज फेडरेशन की अगुवाई में "नेशनल मुवमेंट टू सेव रेलवे" बना है।
NMSR

रेलवे के निजीकरण के खिलाफ रेल कर्मचारियों ने राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा अभियान चलाने को लेकर हुंकार भरी है। "नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे" नाम से अभियान चलाने वाले कर्मचारियों का कहना है कि न रेल बिकने देंगे और न देश बिकने देंगे। 

रेल यूनियन के नेताओं का कहना है कि कोरोना काल में रेलवे को जितना मुनाफा हुआ, उतना इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है लेकिन फिर भी सरकार रेलवे को बेच रही है। मुनाफे में चल रहे रेलवे को मोदी सरकार आखिर क्यों बेच रही है? इंडियन रेलवे एंप्लाइज फेडरेशन की अगुवाई में "नेशनल मुवमेंट टू सेव रेलवे" बना है।

जनज्वार न्यूज पोर्टल की एक खबर के अनुसार, यूनियन नेताओं ने कहा कि रेलवे को बचाने के लिए रेल कर्मचारियों द्वारा आंदोलन चलाया जा रहा है, जिसका नाम है "नेशनल मूवमेंट टू सेव रेल (NMSR)"। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जनता की सवारी रेलवे को बचाने के लिए NMSR अभियान को जनता के आंदोलन में बदलने की तैयारी हो रही है। 

PM मोदी की सरकार आने पर देश को हुआ है नुकसान 

NMSR प्रेसिडेंट मनोज पांडे ने कहा कि जब भी देश में बीजेपी की सरकार आई है, तब देश में उसने कर्मचारियों का नुकसान किया है और देश का नुकसान किया है। यह देश का दुर्भाग्य है कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, जो देश की सभी संपत्तियों को बेच रहे है। चाहे वह रेल हो, जेल हो या उद्योग जगत से जुड़े हो। मनोज पांडे ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झूठ बोलते हैं। वह कहते हैं कि मैं रेल में जन्मा हूं और रेल पर चाय बेचकर बड़ा हुआ हूं। साथ ही कहते हैं कि मैं रेल और रेल की संपत्तियों को कभी बिकने नहीं दूंगा लेकिन रोजाना धीरे-धीरे अलग-अलग तरीकों से रेलवे को बेच रहे हैं। 

रेल को बचाने के लिए नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे अभियान

मनोज पांडे ने कहा कि नौबत यहां तक आ गई है कि जनता की सवारी रेलवे को बचाने के लिए नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे जैसे आंदोलन को चलाना पड़ रहा है। हम इस अभियान में छात्रों को युवाओं को, किसान को, मजदूर को और आम जनता को साथ जोड़कर इस मूवमेंट के तहत रेल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि अगर हम सरकारी रेलवे कर्मचारी नहीं जागेंगे तो सरकारी कर्मचारी के तौर पर हमारे ऊपर तरह-तरह के अंकुश लगाए जाएंगे। पांडे ने कहा कि दुर्भाग्य यह है कि मौजूदा समय में जो मान्यता प्राप्त संगठन है, वह किसी भी स्तर पर सरकार से लड़ते हुए दिखाई नहीं पड़ रहे है। वह सरकार की हां में हां मिला रहे हैं। इसलिए इंडियन रेलवे एंप्लाइज फेडरेशन ने एक अगुवाई की, जिसके अगुवाई के नेतृत्व में नैशनल मुवमेंट टू सेव रेलवे बना है। 

इस मूवमेंट में बुजुर्ग, युवा, किसान, मजदूर और आम जनता को साथ जोड़कर हम देश भर में आंदोलन कर रहे हैं और निश्चित तौर पर हम अपनी ताकतों से अपनी आवाज बुलंद करेंगे और देश भर में बड़ा आंदोलन चलाएंगे। जिस प्रकार देश बचाने के लिए शहीदों ने शहादत दी है, उस प्रकार हम रेलवे को भी बचाएंगे। रेलवे के साथ-साथ आज देश भी बिक रहा है। रेल देश की रीड की हड्डी है। रेल को बचाने के लिए चाहे हमें अपनी जान गंवानी पड़े या नौकरी से हाथ धोना पड़े लेकिन हम रेलवे और देश दोनों को बचाएंगे। 

रेल के साथ-साथ देश भी बेच रही है सरकार

मनोज पांडे ने कहा कि प्रधानमंत्री की सरकार को 8 साल हो चुके हैं और अब रेलवे को प्रत्यक्ष रूप से बेच रहे हैं। इससे पहले तो रेलवे अप्रत्यक्ष रूप से बिक रहा था, जैसे ट्रैक बिछाने का काम, सफाई का काम प्राइवेट सेक्टरों को दिया जा रहा था लेकिन अब तो स्टेशन बेचे जा रहे हैं। रेलवे की जमीन बेच दी जा रही है। रेलवे की ट्रेन बेच दी जा रही है। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है और जिन्होंने अपनी जमीन देकर के रेल बिछाया, आज उस रेल को बेच रहे हैं। 

मनोज पांडे ने आगे कहा कि लाइन हमारी रेल की है। ट्रेन हमारी रेल की है लेकिन उसको चलाएगा प्राइवेट सेक्टर। उनके लोग चलाएंगे। यह कोई विकास नहीं है। भारत में बुलेट ट्रेन लाने की बात हो रही थी लेकिन यहां रेल बेची जा रही है। 

आम जनता को अभियान से जोड़ने का प्रयास

NMSR के कमल उसारी ने बताया कि 18 जून 2019 को चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने पत्र जारी किया था, जिसमें उत्पादन इकाई का निजीकरण करने का प्रस्ताव था। 24 जून को हमने एक आंदोलन शुरू किया और उस आंदोलन को हम लोग चितरंजन, रायबरेली और देश के कई जगहों पर ले गए। उस आंदोलन का नाम था 'संघर्ष आपके द्वार।' इस आंदोलन के तहत हम युवाओं, छात्रों से मिले और उन्हें बताया कि रेलवे बिक रही है तो उनका कहना था कि इससे हमारा क्या लेना देना, जिसके बाद युवाओं छात्राओं को समझाया गया कि रेलवे देश की धरोहर है और रेलवे से आपको भी बहुत फायदा मिलेगा। आज रेल सरकारी संपत्ति है इस वजह से आपको उस में नौकरियां मिलती है। विशेष कोटा के लोगों को टिकट में छूट मिलती है लेकिन यह रेलवे प्राइवेट सेक्टर के पास जाने से यह तमाम सुविधाएं खत्म हो जाएंगी। जिसके बाद युवाओं और बुजुर्गों छात्रों को बात समझ आने के बाद वह इस आंदोलन में जुड़े। 8 दिसंबर 2019 को उस मूवमेंट को हम लोग दिल्ली ले गए। जहां उत्पादन इकाइयों का निजीकरण प्लान फेल हुआ, उससे हमें लगा कि उत्पादन इकाइयों का निजीकरण का मूवमेंट तो हम लोगों ने बचा लिया लेकिन देश का जो इतना बड़ा सेक्टर है, वह बिक रहा है। हम लोगों ने सोचा कि इन लोगों को एक बार फिर एकत्रित करके अपने हाथ जोड़कर एक बड़ा आंदोलन चलाया जाए। जिसके बाद हमने नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे का गठन किया। 

रेलवे में मिलने वाली सभी सुविधाओं को किया गया खत्म 

कमल उसारी ने बताया कि बुजुर्गों को टिकट में जो छूट मिलती थी और जो विकलांग को सुविधाएं मिलती थी उसे धीरे-धीरे खत्म कर दिया गया। कोविड के नाम पर रेल की तमाम सुविधाओं को बंद कर दिया गया। जब लॉकडाउन खुला तो 3 दिसंबर को पार्लिमेंट में सुविधाओं पर सवाल पूछा गया तो 8 दिसंबर को रेल मंत्री ने कहा कि इस पर विचार करेंगे लेकिन 20 जुलाई को स्पष्ट कह दिया कि हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। हम जो सुविधाएं देते हैं, उससे रेलवे को घाटा होता है। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उसारी का कहना है कि सरकार बिल्कुल झूठ बोल रही है। रेल कभी घाटे में रही ही नहीं है। रेलवे के इतिहास में इतना ज्यादा कभी मुनाफा हुआ ही नहीं जितना कि कोविड के दौर में रेलवे को मुनाफा हुआ है। जब सब कुछ बंद था तो एक जगह से दूसरी जगह दवाइयां, ऑक्सीजन और खाद्य केवल रेलवे के द्वारा ही पहुंचाई गई। कोविड काल में रेलवे को सबसे अधिक मुनाफा कोविड के दौर में जब सब कुछ घाटे में जा रहा था तो उस वक्त केवल रेलवे को मुनाफा हुआ था। अगर सीनियर सिटीजन को सुविधाएं दी जाती तो 1500 करोड़ रुपए खर्च होते लेकिन लाखों रुपए रेल ने कमाए है और आज जब सब कुछ चल रहा है तो रेल कैसे घाटे में जा सकती है। भारत की जनता की ढुलाई रेलवे करती है और लाखों रुपए कमाती है और रेलवे मुनाफे के लिए नहीं है। दुनिया में कहीं भी रेलवे का निजीकरण सफल नहीं हुआ है बल्कि कुछ जगहों पर तो रेलवे फ्री करने की बात हो रही है।

रेलवे के निजीकरण से जनता को होगा भारी नुकसान

मनोज पांडे ने बताया कि रेलवे के निजीकरण होने से जनता को भारी नुकसान होगा। आज जनता जो किराया दे रही है, रेलवे के निजीकरण के बाद उन्हें वह किराया 5 गुना ज्यादा देना होगा। ट्रेन से ज्यादातर गरीब जनता सफर कर रही है और गरीब जनता पर यह बोझ पड़ रहा है। रेलवे के निजीकरण से जनता को कुछ भी लाभ नहीं होगा बल्कि भारी नुकसान होगा। रेलवे कर्मचारी, पुलिस कर्मचारी या किसी अन्य विभाग के कर्मचारी हो। उन सरकारी कर्मचारियों ने कोरोना महामारी के दौरान सबसे ज्यादा मदद की है। जान की बाजी लगाकर लोगों की सेवा की है लेकिन प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग अपने घरों में बंद रहे हैं। 

PM मोदी की सरकार आने पर रेलवे कर्मचारियों की सुविधाएं घटी

एनसीआरडब्ल्यूयू के असिस्टेंट सेक्रेटरी सैयद इरफात अली ने बताया कि 8 साल से जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकार सत्ता में आई है तब से रेलवे कर्मचारियों की सुविधाओं को घटाया गया है। बहुत सी सुविधाएं जो रेलवे कर्मचारियों को मिलती थी, चाहे वह 50 पैसे से 5 रुपए तक हो, वह चुपचाप काट दिया गया। कर्मचारियों की सुविधाओं में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि उनकी सुविधाओं को दिन प्रतिदिन घटाया जा रहा है। 

न रेल बिकने देंगे, न देश बिकने देंगे 

नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे के आंदोलनकारियों का कहना है कि ना वो रेल बिकने देंगे और न ही देश बिकने देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यही नारा देकर देश में बैठे हुए हैं लेकिन रेल का निजीकरण हो रहा है। रेल की संपत्तियां बेची जा रही है, जिसकी वजह से रेलवे पूरी तरह बिकने के कगार पर है। आंदोलनकारियों का कहना है कि वह जन जन का आंदोलन बनाएंगे और रेल सुविधाओं से जनता को जो रिश्ता है और रेल कर्मचारियों का जो रिश्ता है, वही देश बचाने का भी रिश्ता है। हालांकि निराशा यह है कि दिन-प्रतिदिन सरकारी कर्मचारी हो या सरकारी एजेंसियां हो या सरकारी संस्थान हो, वह लगातार एक के बाद एक निजीकृत होती जा रही है। या फिर सरकार द्वारा उन्हें निजीकृत किया जा रहा है। अगर रेलवे में निजीकरण हो जाता है तो जनता पर महंगाई की मार भी पड़ेगी और उनसे उनका अधिकार भी छीन लिया जाएगा।

साभार : सबरंग 

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