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नगालैंड चुनाव: ईसाई फोरम की अपील, सोच-समझकर करें मतदान!

ईसाई नेताओं ने मतदाताओं को याद दिलाया कि किस तरह ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्रैहम स्टेंस और उनके दो बेटों फिलिप और टिमोथी की हत्या कर दी गई थी।
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आम चुनाव-2009 के पहले चरण के दौरान 16 अप्रैल, 2009 को दीमापुर, नगालैंड के वामन वुखरी ट्री में एक मतदान केंद्र पर महिला मतदाता वोट डालने के लिए अपनी बारी का कर रही हैं इंतज़ार। फोटो साभार : Flickr

कोलकाता : हाल ही में नगालैंड जॉइंट क्रिस्चियन फॉर्म और पूर्वोत्तर के ईसाई नेताओं द्वारा की गई अपील-“सोच-समझकर करें मतदान”-27 फरवरी के दिन होने वाले नगालैंड विधान सभा चुनाव अभियान का मुख्य आकर्षण है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने चुनाव प्रचार के अभियान में मतदाताओं के जीवन स्तर में सुधार लाने का आश्वासन दे रहा है।

यह अपील उत्तर-पूर्वी ईसाई नेताओं द्वारा गुवाहाटी में 17 फरवरी को एक सत्र के बाद की गई। उन्होंने 10 में से 9 ईसाई मतदाओं को याद दिलाया कि हाल के वर्षों में किस तरह नफरती भाषणों, अपमान और हिंसा द्वारा ईसाइयत को “क्रूरता पूर्वक टारगेट” किया गया है।

उन्होंने (ईसाई नेताओं ने) मतदाताओं को याद दिलाया कि किस तरह ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्रैहम स्टेंस और उनके दो बेटों फिलिप(10) और टिमोथी(6) की 22 जनवरी 1999 को हत्या कर दी गई थी। इस वारदात को ओडिशा के क्योंझर जिले के आदिवासी गांव मनोहरपुर में अंजाम दिया गया था।

मतदाताओं को यह भी याद दिलाया गया कि कैसे 23 अगस्त को जब वीएचपी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी उसके बाद ओडिशा के कंधमाल जिले में ईसाइयों को 25 से 28 अगस्त, 2008 तक "निहित स्वार्थों द्वारा बेरहमी से निशाना बनाया गया"। इसके बाद हुए दंगो में चर्च नष्ट कर दिए गए और शैक्षणिक संस्थानों को क्षति पहुंचाई गई।

ईसाई आदिवासियों को अनुसूचित जाति की सूची से हटाने के लिए 'आरएसएस समर्थित संगठन' 'जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच' की मांग के बारे में ईसाई नेताओं ने अपनी आशंका व्यक्त की। हालांकि शिलोंग स्थित खासी जैंतिया क्रिश्चियन लीडर्स फोरम के महासचिव ईएच खारकोंगोर के अनुसार, अधिकारियों ने ऐसे इरादों से इनकार किया। 17 फरवरी की मीटिंग में विचार-विमर्श के बाद यह रिकॉर्ड किया गया कि "चर्चों को अनुचित पूछताछ, अनावश्यक चीज़ों और चेतावनियों के ज़रिए परेशान किया जा रहा है।"

खारर्कोंगर ने कहा, ''ज़मीनी हकीकत को देखते हुए मतदाताओं को झूठे वादों और प्रलोभनों के आगे नहीं झुकना चाहिए। उन्हें सोच-समझकर अपने चुनावी विशेषाधिकार का उपयोग करना चाहिए और समुदाय और राष्ट्र की भलाई के लिए प्रतिबद्ध भरोसेमंद नेताओं का चुनाव करना चाहिए।"

नेताओं ने मेघालय के मतदाताओं से भी यह अपील की है। उसी दिन यानी 27 फरवरी को ही मेघालय में भी चुनाव है जहां ईसाई आबादी 75% है।

19 फरवरी को यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के नेतृत्व में कई ईसाई संगठनों ने समुदाय पर बढ़ते हमलों के खिलाफ जंतर मंतर, नई दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया और ऐसी घटनाओं की ओर सरकार, न्यायपालिका और नागरिक समाज का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन सौंपने का भी निर्णय लिया जिसमें एक सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय शिकायत निवारण आयोग की स्थापना का अनुरोध किया गया।

बता दें कि ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ENPO) एक अलग राज्य की मांग कर रहा है, जिसे फ्रंटियर नगालैंड कहा जाता है, जिसमें पूर्व में छह अत्यंत पिछड़े जिले शामिल हैं-किफिरे, लोंगलेंग, मोन, नोकलाक, शामतोर और त्युएनसांग।

ENPO पूर्वी नगालैंड की सात जनजातियों का समूह है: चांग, खियमनिउंगन, कोन्याक, फोम, संतम, तिखिर और यिमख्युंग।

60 विधानसभा क्षेत्रों वाले नगालैंड में से 20 इन छह जिलों से हैं। ENPO ने शुरू में चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी थी, हालांकि क्षेत्र के विधायक मतदान के पक्ष में थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा चुनावों के बाद मामले को गंभीरता से देखने का आश्वासन देने के बाद ENPO नेतृत्व अंततः चुनाव में भाग लेने के लिए तैयार हो गया।

हालांकि सूत्रों के अनुसार, एक फ्रंटियर नगालैंड का निर्माण मुश्किल है क्योंकि छह में से चार जिलों- मोन, नोक्लाक, किफिरे और फेक-की सीमाएं म्यांमार से लगती हैं, जहां सैन्य जुंटा के शासन के कारण स्थिति सामान्य नहीं है। दरअसल, मोन का लोंगवा गांव म्यांमार की सीमा पर ही है। यद्यपि संविधान के तहत स्वीकार्य एक स्वायत्त व्यवस्था के विचार पर चर्चा की गई है।

भाजपा के शीर्ष नेताओं में भी स्पष्टता का अभाव है। हाल ही में एक अभियान के दौरान, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव के बाद क्षेत्र के समग्र विकास के लिए एक विशेष पैकेज्ड-लिंक्ड विकास बोर्ड पर विचार करने का उल्लेख किया। लेकिन अमित शाह ने संस्थागत ढांचे और समय सीमा दोनों के संदर्भ में विशिष्ट होने से परहेज किया है। बेशक, उन्होंने AFSPA पर फिर से विचार करने की पेशकश की।

गौरतलब है कि 2012 में, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने 2014 में केंद्र में सत्ता संभालने पर फ्रंटियर नगालैंड की मांग को पूरा करने का वादा किया था।

चरमपंथी समूहों के साथ शांति प्रक्रिया जिसे अक्सर "भारत-नागा राजनीतिक मुद्दा" कहा जाता है, 2003 से चुनावों में एक संवेदनशील मामला बना रहा। 2015 और 2017 के बीच कुछ सकारात्मक आंदोलन हुए। अगस्त 2015 में, सरकार ने नगालिम-इसाक मुइवा की राष्ट्रीय समाजवादी परिषद के साथ फ्रेमवर्क अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। नवंबर 2017 में, केंद्र ने नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (सात संगठनों का एक संघ जो उग्रवाद को समाप्त करने के लिए वार्ता में शामिल हुआ) के साथ एग्रीड पोज़ीशन (एक प्रकार की प्रस्तावना समझौते) पर हस्ताक्षर किए। लेकिन एक अलग नागा ध्वज और एक संविधान की मांग मुख्य बाधा बनी हुई है और केंद्र इसे पूरा नहीं करने पर अड़ा हुआ है। नागा ध्वज को केवल उनकी सांस्कृतिक गतिविधि के लिए अनुमति दी जा सकती है।

नगालैंड की 19.79 लाख की आबादी में से 13 लाख से अधिक मतदाता 27 फरवरी को मतदान करेंगे। कुल मिलाकर 184 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

बीजेपी और मुख्यमंत्री नेफिउ रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) का सत्तारूढ़ गठबंधन 2018 के सीट शेयरिंग फॉर्मूले(20:40) पर कायम है। नागा पीपुल्स फ्रंट अपने दम पर चुनाव लड़ेगा और उसने 22 उम्मीदवारों को खड़ा किया है जबकि कांग्रेस ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। एकमात्र प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के खेकाशे सुमी द्वारा अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के बाद भाजपा के अकुलुतो से उम्मीदवार काज़ेतो किनिमी को फिर से निर्विरोध चुन लिया गया।

(लेखक कोलकाता स्थित वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Nagaland Election: Christian Forum Appeals for Voting With Conscience

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