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ओपेक देशों ने दिया बाइडेन प्रशासन को झटका

बाइडेन की नाराज़गी है कि सउदी ने रूस का "साथ" दिया है, ऐसे में उसपर कोई भी प्रतिक्रिया उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव छोड़ेगी।
OPEC
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (दाहिने) और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन वार्ता से पहले मिलते हुए। ये फोटो 15 जुलाई, 2022 की है।

जो बाइडेन प्रशासन तेज़ी से एक नैरेटिव स्थापित कर रहा है कि हाल ही में ओपेक का तेल उत्पादन में दो मिलियन टन की कटौती करने का निर्णय का मतलब है कि सऊदी अरब और रूस भू-राजनीतिक "सहयोग" को बढ़ावा दे रहा है। यह बेल्टवे में रूसोफोबिया में फिट बैठता है और सऊदी अरब के साथ राष्ट्रपति बाइडेन की व्यक्तिगत कूटनीति की अपमानजनक हार से ध्यान हटाता है। लेकिन यह बिना आधार के भी नहीं है।

विदेश नीति को बाइडेन की विशेषता के रूप में माना जाता है लेकिन यह उनकी सजा बन रही है। जिमी कार्टर की तरह, पश्चिम एशिया उनकी इस विशेषता के इर्द गिर्द ध्यानपूर्वक बनाई गई छवि का क़ब्रिस्तान बन सकता है।

जो बात सामने आ रही है उसकी भयावहता चौंकाने वाली है। बाइडेन को देर से पता चला है कि यूक्रेन में क्षेत्रीय जीत वास्तविक कहानी नहीं है बल्कि इसमें निहित आर्थिक युद्ध है और इसके भीतर ऊर्जा युद्ध है जो रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद पिछले आठ महीने से चल रहा है।

विरोधाभास यह है कि भले ही ज़ेलेंस्की युद्ध जीत जाते हैं, फिर भी बाइडेन की इस युद्ध में हार तब तक मानी जाएगी जब तक कि वह ऊर्जा और आर्थिक युद्ध नहीं जीत लेते हैं।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2016 में इस तरह के परिणाम की कल्पना की थी जब जी-20 की हांग्जो शिखर सम्मेलन के दौरान, ओपेक प्लस का दिलचस्पी दिखाने वाले विचार की कल्पना उनके और तत्कालीन सऊदी डिप्युटी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई थी।

मैंने उस समय लिखा था कि "रूस और ओपेक के बीच के समझौता में मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक सहयोग को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है... यह बदलाव पेट्रोडॉलर रीसाइक्लिंग को प्रभावित नहीं कर सकता है, जो ऐतिहासिक रूप से पश्चिमी वित्तीय प्रणाली का एक मज़बूत स्तंभ रहा है। सामरिक दृष्टि से भी, रूस को 'अलग-थलग' करने का वाशिंगटन का प्रयास निष्प्रभावी हो गया है।" यह 6 साल पहले लिखा गया था। (Pay heed to the butterfly effect of Putin-Salman oil deal in Hangzhou, Asia Times, Sept. 7, 2016) 

बाइडेन के चारों ओर आज जो मलबे का ढेर है वह एक बड़ा गंदा सा ढेर है। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि यूक्रेन में रूसी हमले जिस तरह से धीमे पड़ गए थे ऐसे में पुतिन आर्थिक युद्ध और ऊर्जा युद्ध पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, जिसके परिणाम अमेरिका के वैश्विक आधिपत्य के भविष्य को निर्धारित करेंगे, जो कि आरक्षित मुद्रा के रूप में डॉलर को केंद्रित करता रहा है।

ठीक 1970 के दशक की शुरुआत में, सऊदी अरब ने सहमति जताई थी कि तेल की क़ीमत डॉलर में निर्धारित की जानी चाहिए और व्यापक रूप से दुनिया की सबसे ज़्यादा कारोबार करने वाली वस्तु तेल का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर में कारोबार किया जाना चाहिए। इसे वस्तुतः अनिवार्य किया गया कि इस पृथ्वी पर हर देश को तेल ख़रीदने के लिए डॉलर का भंडार करना चाहिए। बेशक, अमेरिका ने अपनी ओर से पारस्परिक रूप से समझौता किया था कि सभी देशों को डॉलर तक मुफ्त पहुंच की गारंटी दी गई।

हालांकि, डॉलर का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर रणनीतिक प्रभाव हासिल करने और अन्य देशों के डॉलर भंडार को हथियाने के लिए अमेरिका के बेतुके क़दमों के मद्देनजर यह एक झूठा आश्वासन निकला। अप्रत्याशित रूप से पुतिन डॉलर के लिए एक आरक्षित मुद्रा विकल्प स्थापित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते रहे हैं और इसे विश्व के कुछ देशों ने अपनी राय में भी ज़ाहिर किया है।

ये सारे संकेत इस बात के हैं कि व्हाइट हाउस आत्मनिरीक्षण के बजाय सऊदी अरब और रूस को दंडित करने के नए रूपों पर विचार कर रहा है। हालांकि रूस को "दंडित" करना मुश्किल है क्योंकि अमेरिका ने सभी विकल्पों को समाप्त कर दिया है, बाइडेन शायद सोचते हैं कि अमेरिका हथियारों के आपूर्तिकर्ता और बड़े पैमाने पर सऊदी भंडार और निवेश के संरक्षक होने और सऊदी अभिजात वर्ग के सलाहकार होने के नाते सऊदी अरब के गर्दन की अहम नसों पकड़े हुए है।

नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के निदेशक ब्रायन डीज़े ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा, "मैं इस (ओपेक उत्पादन में कटौती) पर स्पष्ट होना चाहता हूं, राष्ट्रपति ने निर्देश दिया है कि हमारे पास सभी विकल्प हैं और इस मामले में उचित क़दम उठाना जारी रहेगा।" इससे पहले गुरुवार को बाइडेन ने खुद संवाददाताओं से कहा था कि व्हाइट हाउस "विकल्प तलाश रहा है।"

रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार से हाथ खींचने की अपनी क्षमता को दोहराने के अलावा न तो बाइडेन और न ही डीज़े ने स्पष्ट रूप से उन "विकल्पों" का नाम बताया जो उपभोक्ता क़ीमतों को कम करने के लिए ऊर्जा कंपनियों पर झुकाव और विधायी विकल्पों पर विचार करने के लिए कांग्रेस के साथ काम करने के अलावा हो सकते हैं।

जुलाई में सऊदी अरब की अपनी यात्रा पर उपहास का सामना कर रहे बाइडेन के लिए चोटिल आंखों से देखी जाने वाली विदेश नीति की समझ है। ऐसा डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ने कहा था। अमेरिकी राजनीतिक अभिजात वर्ग को लगता है कि ओपेक का निर्णय नवंबर के चुनावों से पहले बाइडेन और डेमोक्रेट को कमज़ोर करने के लिए सऊदी के एक लक्षित क़दम की तरह दिखता है।

संभावित रूप से इसका यूएस-सऊदी संबंधों से इतर कोई प्रभाव हो सकता है और 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से पश्चिम एशिया में सुरक्षात्मक दृश्य को किसी भी चीज़ से अधिक बदल सकता है। पहले से ही, शंघाई सहयोग संगठन ईरान के साथ पश्चिम एशिया की ओर झुक रहा है और सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर, बहरीन, कुवैत और मिस्र को संवाद भागीदारों के रूप में दर्जा दिया जा रहा है और वहीं तुर्की का पूर्ण सदस्यता लेने का इरादा है। डॉलर का अधिपत्य समाप्त करन के व्यापक संदर्भ में समरकंद में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन ने इस क्षेत्र के देशों में राष्ट्रीय मुद्राओं की हिस्सेदारी में क्रमिक वृद्धि के लिए एक रोडमैप तैयार किया जो इसके इरादे की गंभीरता को दर्शाता है।

अब, अमेरिकी रक्षा उद्योग सऊदी अरब में अपने व्यवसाय को बंद करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करेगा और इसके बाइडेन प्रशासन के बेहद क़रीबी संबंध हैं। लेकिन वाशिंगटन रियाद में किसी तरह के सत्ता परिवर्तन के लिए काम कर सकता है। प्रिंस सलमान ने कहा है कि अगर बाइडेन उन्हें गलत समझते हैं तो उन्हें "कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता"। उनके बीच स्नेह कम है। ख़ास बात यह है कि यह महज़ एक छलावा नहीं है।

वर्ण क्रांति अवास्तविक है लेकिन एमबीएस को उत्तराधिकार से रोकने के लिए सत्ता के तख्तापलट की संभावना है। लेकिन यह जोखिम भरा है क्योंकि तख्तापलट की कोशिश शायद विफल हो जाएगी। यदि यह सफल भी हो जाता है, तो क्या उत्तराधिकारी सत्ता की क्षेत्रीय रूप से वैधता होगी और वह नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम होगा? सद्दाम हुसैन के बाद इराक जैसी अराजक स्थिति पैदा हो सकती है। इसके परिणाम तेल बाज़ार की स्थिरता के लिए विनाशकारी और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं। यह इस्लामी समूहों के उत्थान का कारण बन सकता है।

बाइडेन को जो चिंता है वह यह है कि "प्राइस कैप" के माध्यम से निराशाजनक आपूर्ति के बिना रूस के उच्च तेल राजस्व को कम करने के लिए उनका आख़िरी दांव वास्तव में एक पहेली है जो अब बहुत अधिक कठिन हो गया है। इसलिए, बाइडेन की नाराज़गी यह है कि सउदी ने रूस का "पक्ष" लिया है, जो अब न केवल प्राइस कैप से आगे उच्च तेल की क़ीमतों से लाभान्वित होगा, बल्कि अगर रूस को वास्तव में कभी भी डिस्काउंट पर तेल बेचने के लिए कहा जाता है तो कम से कम उच्च मूल्य के स्तर पर कटौती शुरू होगी!

जैसा कि एफटी ने लिखा, "खाड़ी में साम्राज्य और उसके सहयोगियों के रूस से मुंह मोड़ने की संभावना नहीं है। खाड़ी देशों ने यूक्रेन के आक्रमण के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई है और रूस को ओपेक के क़रीब लाना एक दीर्घकालिक उद्देश्य रहा है।

इस मामले की जड़ यह है कि बाइडेन ने उस देश के भंडार को हड़प कर रूस के साथ जो कुछ किया है, वह सउदी और अन्य खाड़ी सरकारों को परेशान करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है। वे रूस के ख़िलाफ़ हालिया "प्राइस कैप" परियोजना को एक ख़तरनाक मिसाल के रूप में देखते हैं कि एक दिन तेल की क़ीमतों को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी प्रयास और यहां तक कि तेल उद्योग पर सीधा हमला भी हो सकता है।

ये कहना पर्याप्त है कि रूस को अगले 3-4 साल की अवधि में कम से कम तब तक नहीं घेरा जा सकता है जब आगे इस तरह के कड़े निर्णय लिए जाते हों। ओपेक प्लस के फ़ैसले से रूस को कई तरह से फ़ायदा होगा। यह सर्दियों में रूस के तेल राजस्व में वृद्धि करेगा, जब यूरोप से रूसी ऊर्जा की मांग आम तौर पर बढ़ जाती है। संक्षेप में, रूस को बाज़ार हिस्सेदारी बनाए रखने में मदद करता है, भले ही इसका उत्पादन पूरी तरह से गिर जाता है।

विडंबना यह है कि मॉस्को को एक बैरल उत्पादन भी कम नहीं करना होगा क्योंकि यह पहले से ही ओपेक के सहमत लक्ष्य से काफ़ी कम उत्पादन कर रहा है। हालांकि तेल की उच्च क़ीमत से लाभ होता है, जो मुख्य रूप से ओपेक खाड़ी उत्पादकों द्वारा कटौती के माध्यम से हासिल किया जाएगा। इन देशों में सऊदी अरब (-520,000 बीपीडी), इराक (-220,000 बीपीडी), यूएई (-150,000 बीपीडी) और कुवैत (-135,000 बीपीडी) शामिल हैं।

क्या यह चौंकाने वाली बात नहीं है कि रूसी तेल कंपनियों को उच्च क़ीमतों से लाभ होगा जबकि साथ ही उत्पादन स्थिर रहेगा? और यह तब है जब मास्को में सेंट्रल बैंक के पास पहले से ही यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में पश्चिमी केंद्रीय बैंकों द्वारा रोके गए 300 बिलियन डॉलर के भंडार से अधिक की वसूली होने की संभावना है।

वास्तव में, ओपेक प्लस से जुड़े सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों ने क्रेमलिन का प्रभावी रूप से पक्ष लिया है, जो रूस को अपने खजाने को फिर से भरने और पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को सीमित करने में सक्षम बनाता है। यूक्रेन युद्ध से लेकर अमेरिका और सऊदी अरब के बीच भविष्य के संबंधों और उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था तक इसके निहितार्थ दूरगामी हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

OPEC’s Body Blow to Biden Presidency

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