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पीएसयू बीमा यूनियनों ने वेतन संशोधन प्रस्ताव ठुकराया, अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी
सार्वजनिक क्षेत्र के सामान्य बीमा कर्मचारियों के लिए  वेतन संशोधन अगस्त 2017 से देय है। यूनियनों ने बीमा क्षेत्र में वेतन समानता की मांग की है और कहा है कि यह किसी भी सूरत में एलआईसी में हुए वेतन संशोधन से कम नहीं होना चाहिए।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
27 Jun 2022
PSU
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: नेशनल हेराल्ड

लगभग 58000 कर्मचारियों और अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले ट्रेड यूनियनों और संघों के संयुक्त मंच ने सर्वसम्मति से जिप्सा प्रबंधन (General Insurers (Public Sector Associations of India) द्वारा दिए गए प्रस्तावों को खारिज कर दिया है।

जिप्सा और योग्य यूनियनों के बीच लंबे समय से लंबित वेतन संशोधन वार्ता 22 जून को शुरू हुई। सार्वजनिक क्षेत्र के सामान्य बीमा कर्मचारियों के लिए वेतन संशोधन अगस्त 2017 से देय है।

GIPSA प्रबंधन ने वर्तमान तिथि से 7% वृद्धि या वर्तमान तिथि से 5% वृद्धि और 2% बकाया राशि 1 अगस्त 2017 से पेशकश की। सभी यूनियनों और संघों ने जिप्सा प्रबंधन द्वारा दिए गए वेतन संशोधन के प्रस्ताव को अपमानजनक बताया और खारिज कर दिया। उन्होंने बीमा क्षेत्र में वेतन समानता की मांग की और कहा कि यह किसी भी सूरत में एलआईसी में हुए वेतन संशोधन से कम नहीं होना चाहिए।

ट्रेड यूनियनों और संघों के संयुक्त मंच (JFTU)के 18 घटकों ने अपनी बैठक की और जिप्सा द्वारा किए गए वेतन संशोधन प्रस्ताव पर चर्चा की। घटकों ने डीएफएस और जिप्सा कंपनियों द्वारा अपने कार्यबल के हालात और उनकी दुविधा न समझने के लिए उनकी निंदा की। JFTU के घटकों ने सीएमडी/जीपसा और डीएफएस को उचित रूप से 7 दिन का समय देते हुए मुद्दों को हल करने और एलआईसी के समान सम्मानजनक प्रस्ताव के को सामने रखने का निर्णय लिया।  JFTU के घटक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए 30 जून को एक बार फिर बैठक करेंगे और यदि आवश्यक हुआ तो अनिश्चितकालीन हड़ताल सहित बाकी कठोर कार्रवाई का भी निर्णय ले सकते हैं।

यूनियनों का कहना है कि 4 अप्रैल 2019 को तत्कालीन जिप्सा अध्यक्ष श्री गिरिजा कुमार और अन्य सीएमडी ने स्पष्ट रूप से आश्वासन दिया था कि जब भी वेतन संशोधन को अंतिम रूप दिया जाएगा तो वह 1 अगस्त.2017 से ही प्रभावी होगा और एलआईसीआई से हर सूरत में बेहतर होगा।

पीएसजीआई कंपनियां भारत सरकार को स्थापना के बाद से भारी लाभांश दे रही हैं और सामाजिक उत्थान की सभी सरकारी योजनाओं को पूरे जोश और समर्पण के साथ आगे बढ़ा रही हैं, यहां तक कि कोविड 19 महामारी के समय भी इसके कार्यबल ने अर्थव्यवस्था और समाज को कोरोना के रूप में सेवा दी है। इस दौरान 500 से अधिक कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों की मौत भी हो गई थी। यूनियनों ने कहा कि प्रबंधन और डीएफएस ने पिछले 59 महीने से लंबित वेतन संशोधन, 14% एनपीएस योगदान में वृद्धि, पारिवारिक पेंशन में सुधार और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के निपटान की सबसे वास्तविक मांग के प्रति जो असंवेदनशीलता दिखाई है, उसका जिक्र भी नहीं किया जा सकता है।

गौर करने वाली बात यह है कि कर्मचारी और अधिकारी प्रतिकूल परिस्थितियों में काम कर रहे हैं क्योंकि डीएफएस और नियामक अभी तक निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों की तुलना में पीएसजीआई कंपनियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि निजी क्षेत्र की अनैतिक प्रथाओं और उन्हें नियंत्रित करने में नियामक की विफलता व्यावसायिक हितों के लिए हानिकारक साबित हुई है।

पीएसजीआई कंपनियां हमेशा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत, पीएम फसल बीमा योजना, कोरोना कवच नीति, सीएसआर, ग्रामीण और फसल बीमा और ऐसी कई नीतियों की ध्वजवाहक रही हैं। PMSBY के तहत रु. 2 लाख खर्च के कवर के लिए रु.12/- का प्रीमिय योजना को संचालित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। पीएसजीआई कंपनियां आम आदमी, किसानों और नागरिकों को बहुत कम प्रीमियम पर बीमा सेवाएं दे रही हैं और लगभग 58000 कर्मचारियों और 5 लाख से अधिक एजेंट बल के साथ 50 करोड़ से अधिक नागरिकों को अपनी सेवा दे रही हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्मचारी एवं अधिकारी पिछले 3 वर्षों से निम्न मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं:-

1. 01.08.2017 से लंबित वेतन संशोधन का तत्काल समाधान

2. एनपीएस कर्मचारियों के लिए पीएफ के लिए कंपनी के अंशदान में 14% की वृद्धि

3. बिना किसी सीमा के 30% की दर से पारिवारिक पेंशन में सुधार

4. 1995 योजना के तहत सभी के लिए पेंशन और पेंशन का अद्यतनीकरण

5. निजीकरण का विरोध और तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय श्री अरुण जेटली जी द्वारा 2018 में किए गए बजट प्रस्तावों के अनुरूप 3 कंपनियों के विलय की मांग

यूनियनों की यह भी शिकायत है कि वर्तमान में बहुत लंबे समय से किसी भी PSGI कंपनी में कोई पूर्णकालिक निदेशक नहीं है और न ही किसी भी समय सीमा के भीतर ऐसी नियुक्तियां करने के लिए कोई कार्य योजना है।

आज इन कंपनियों द्वारा पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित किए गए। यूनियनों का कहना है कि आने वाले दिनों में इस विषय पर आक्रोश और अशांति और बढ़ेगी।

PSU
PSU insurance unions
Public Sector Undertakings
workers protest

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