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ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

"18 अक्तूबर, 2014 को मोदी सरकार ने डीज़ल पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर इसका बोझ आम जनता पर डाल दिया। तब से लेकर आज तक सरकारी लूट चालू है। बड़ा सवाल यह है कि क्या तेल की कीमतों में लगातार इजाफा होने के वावजूद लोग आसमान छू रही महंगाई से तनिक भी चिंतित नहीं हैं? "
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बनारस में महंगाई के विरोध में जुलूस निकालती महिलाएं

मिर्च और टमाटर की खेती से मालामाल मेढ़ियां गांव के किसान अब बेहाल हैं। पहले गंगा में आई बाढ़ ने तबाही मचाई और अब डीजल की बेतहाश बढ़ती कीमतों ने उन्हें बड़ी मुसीबत में डाल दिया है। मेढ़ियां गांव उत्तर प्रदेश के बनारस और मिर्जापुर सीमा पर है। इस गांव के करीब 200 किसान करीब 1500 बीघे में सब्जियों की खेती करते हैं। मुख्य रूप से टमाटर, मिर्च और मटर की खेती के लिए मशहूर इस गांव के किसानों की मुश्किल यह है कि जुताई, सिंचाई और सब्जियों की ढुलाई का काम डीजल के भरोसे है और उसका दाम आसमान छू रहा है। 

"न्यूजक्लिक" ने ग्राउंड जीरो पर जाकर मेढ़ियां समेत कई गावों के खेत में काम कर रहे किसानों से मुलाकात की। मेढ़िया गांव में हमें मिले पप्पू सिंह। मिर्च और टमाटर की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान पप्पू कोई मामूली किसान नहीं हैं। सब्जियों की शानदार खेती और मिर्च-टमाटर के बंपर उत्पादन के लिए इन्हें समूचे पूर्वांचल में सराहा जाता है। इनके जुनून को देखते हुए मल्टीनेशनल कंपनी बायर साइंस क्राप इन्हें सब्जियों की व्यावसायिक खेती की ट्रेनिंग देने जर्मनी ले गई थी। पप्पू सिंह के पास करीब दस बीघे जमीन है। उन्होंने दूसरों ती कुछ जमीन लीज पर ले रखी है, जिसमें वो मिर्च, टमाटर और मटर उगाते हैं। सब्जियों के दम पर इन्होंने अपनी आय दोगुनी कर ली थी, लेकिन डीजल का दाम बढ़ने के बाद इनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। 

"न्यूजक्लिक" से बातचीत करते हुए पप्पू सिंह कहते हैं, "लगातार बढ़ रहे डीजल के दाम ने हमें तबाही की कगार पर पहुंचा दिया है। हम अपने खेतों की सिंचाई डीजल पंपसेट से करते हैं। हर चौथे दिन खेत को पानी चाहिए। हमारा पंपसेट हर घंटे करीब डेढ़ सौ का डीजल पी जाता है। पहले हर पखवाड़े 6400 का डीजल लगता था और अब आठ हजार रुपये खर्च हो रहा है। खेत की जुताई, उर्वरकों का दाम और मजदूरों का कास्ट जोड़ दें तो हमें कुछ बचता ही नहीं। आखिर करें भी तो क्या करें? हम दिन-रात खेतों में लगे रहते हैं तब किसी तरह चल पाता है घर का खर्च। अपनी और अपने परिवार की मजूरी जोड़ने लग जाएं तो हमें खेती छोड़कर भागना पड़ेगा।"

मेढ़ियां गांव के सभी किसान इतने जागरूक हैं कि वो पड़ोसी गांव तम्मन पट्टी, सोनबरसा, चौधरीपुर, बसारतपुर में लीज पर खेत लेकर सब्जियां उगाते हैं। इस गांव का मिर्च और टमाटर गल्फ कंट्री में जाता है। पप्पू सिंह कहते हैं, "डीजल का दाम बढ़ने से मुनाफा आधा हो गया है। खेत की तैयारी के लिए जुताई और सिंचाई से लेकर उपज मंडी तक पहुंचाने के लिए डीजल ही सहारा है। हर चीज का भाड़ा बढ़ गया है। पहले हमें बाढ़ ने तबाह किया और अब डीजल की महंगाई गर्त में ढकेल रही है। बारिश के दिनों में हम सिर्फ डेढ़ बीघा मिर्च ही बचा सके। गर्मियों में सब्जियों का दाम अच्छा मिलता है। इस बार ज्यादा कमाई की उम्मीद थी, लेकिन सरकार ने डीजल का दाम इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि खेती घाटे का सौदा हो गई। सिर्फ डीजल ही नहीं, उर्वरकों का दाम भी आसमान छू रहा है। खेती की लागत तो बढ़ गई, लेकिन बाजार अभी मंदा है। हमारी दुश्वारियां न सरकार को दिख रही है और न ही उन नेताओं को जिन्होंने वोट लेने से पहले किसानों से बड़े-बड़े दावे किए थे।"

माथे पर चिंता की लकीरें

सब्जियों की खेती के लिए चंदौली का मानिकपुर सानी गांव हमेशा सुर्खियों में रहता है। प्रगतिशील किसान अनिल मौर्य के साथ एक खबरिया चैनल के पत्रकार सुनील विश्राम करीब तीन एकड़ जमीन लीज पर लेकर स्ट्राबेरी, शिमला मिर्च, ताइवानी तरबूज, खरबूज, अमेरिकन प्याज, करैला और खीरे की खेती करते हैं। इसके अलावा वो मशरूम भी उगाते हैं। व्यावसायिक खेती के मामले में दोनों किसानों ने मील बड़ा पत्थर गाड़ रखा है। इनके माडल को देखने-समझने के लिए समूचे पूर्वांचल के किसान मानिकपुर पहुंचते हैं। चुनाव के बाद डीजल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी ने इनके माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। 

अनिल मौर्य कहते हैं, "1 जुलाई 2020 को चंदौली में डीजल का रेट करीब 64 रुपये था जो 10 अप्रैल 2022 को बढ़कर 97.63 रुपये हो गया है। यानी एक साल में 33.63 रुपये महंगा हो गया है। हमारे पास विद्युत चालित मशीन है। फिर भी यदा-कदा डीजल वाले पंपसेट से सिंचाई करनी पड़ जाती है। खेत की जुताई से लेकर सब्जियों की ढुलाई गाड़ियों से होती है, जिसके भाड़े में बीस रोज में भारी बढ़ोतरी हुई है। महंगा हो रहा डीजल कहां तक जाएगा, यह हमें पता नहीं, लेकिन किसानों के लिए यह बढ़ोतरी किसी मुसीबत से कम नहीं है।"

स्ट्राबेरी की ग्रेडिंग करता किसान

महंगे बीज, कीटनाशक, बिजली के अलावा जुताई, और श्रमिकों की लागत का हवाला देते हुए अनिल कहते हैं, "अब बाजार और मंडियों में माल पहुंचाना बड़ी चुनौती है। जितना पैसा हमें फल और सब्जियों के उत्पादन पर खर्च करने में नहीं अखरता है, उससे ज्यादा उसे बाजार में पहुंचाने में। हम बाइक से बाजार जाते हैं और सब्जियां छोटे ट्रक अथवा टैंपू पर। माल भाड़ा बढ़ने से लागत बढ़ गई है और मुनाफा घट गया है। डीजल-पेट्रोल का दाम कहां जाकर रूकेगा, कह पाना कठिन है?"

मानिकपुर सानी गांव के ही प्रगतिशील किसान रामविलास सिंह मौर्य के पास सिर्फ दो एकड़ खेत है। इनके सभी बच्चे अच्छी नौकरियों में है, इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं है, लेकिन खेती की बात करें तो उससे इन्हें कोई खास फायदा नहीं है। वो कहते हैं, "जिस खेती के दम पर हमने अपने बच्चों को इंजीनियर बनाया, वही खेती अब घाटे का सौदा बन गई है। मुंह चिढ़ाती महंगाई अपना लागत भी नहीं छोड़ पा रही है। हम परंपरागत तरीके से खेती करते आ रहे हैं। हमारे जैसे तमाम किसानों पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। गुजरात और महाराष्ट्र की तरह पूर्वांचल में खेती का कोई माडल नहीं है, जिससे किसान अपने श्रम और उत्पादन का उचित मूल्य हासिल कर सकें।"

प्रगतिशील किसान राम विलास अपने गांव के पूर्वी छोर से बहने वाली कर्मनाशा नदी को दिखाते हुए कहते हैं, "चंदौली जिले में नहरों का जाल बिछा है। गंगा, कर्मनाशा, चंद्रप्रभा और गरई नदी ने मिलकर चंदौली जिले को धान का कटोरा बनाया है। अगर सरकार महाराष्ट्र और गुजरात का माडल उतारे तो यहां के किसानों को करोड़पति बनने से कोई नहीं रोक सकता है। दुर्योग यह है कि आसमान छू रहे डीजल की कीमतों के चलते किसानों का हौसला डिगने लगा है। जीएसटी, नोटबंदी, महंगाई के बाद भीषण लाकडाउन के चलते किसानों की उम्मीद और सपने टूटते जा रहे हैं। राहत के नाम पर सरकार ने हमें छला है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार ने कर्ज माफ करने और विद्युत बिल हाफ करने की बात कही थी, लेकिन सत्ता में आते ही वह चालांकी से मुकर गई। भोले-भाले किसान ठगे रह गए। इस, बीच योगी सरकार ने बिजली का बिल बढ़ाकर हमारी दुश्वारियों में इजाफा कर दिया है। अब तो किसानों को अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के अलावा बेटियों की शादी की समस्या चुनौती बन गई है।"

मानिकपुर गांव के एक और किसान हैं ऋषि नारायण सिंह। इन्होंने अपने खेतों को रेहन पर रखकर इस उम्मीद के साथ अपनी बेटी की शादी कर की कि अच्छी फसल होने पर वह अपने खेत छुड़ा लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऋषि की बेटी के हाथ पीले हुए तीन बरस गुजर गए, लेकिन अभी तक खेत रेहन मुक्त नहीं हो सका है। वह कहते हैं, "अपने खेत का रेहन छुड़ने के लिए हमने बहुत मेहनत की। खेती के साथ-साथ ट्रक की ड्राइवरी भी की, लेकिन स्थिति नहीं सुधर पाई। नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाला हमारा मेधावी बेटा शिवम इंजीनियरिंग करना चाहता था। उसकी पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम नहीं हो सका। वह अब प्राइवेट नौकरी की तलाश में भटक रहा है।"

मानिकपुर सानी से कुछ किमी के फासले पर एक गांव है कांटा जलालपुर। यहां के किसान राज नारायण कुशवाहा ने पीएम नरेंद्र मोदी की बातों और सरकारी नुमाइंदों द्वारा की गई ब्रांडिंग से प्रभावित होकर ब्लैक राइस की खेती की। जुताई, बुआई, मड़ाई और डीजल पंपसेट से सिंचाई पर काफी पैसे खर्च दिए। बंपर उत्पादन के बावजूद ब्लैक राइस औने-पौने दाम पर भी खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं है। ब्लैक राइस के घाटे की भरपाई करने के लिए जायद में सब्जियों की खेती शुरू की, लेकिन डीजल के बढ़ते दाम के चलते जुताई, मड़ाई, माल भाड़ा सब बढ़ गया। हमारी माली हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई है। महंगे डीजल के चलते सिचाई और ट्रैक्टर से जुताई ने हमारे बजट को बिगाड़ दिया है। आखिर चंदौली के किसान खून के आंसू कब तक रोते रहेंगे? हमारी मजबूरी समझिए। हम चाहकर भी खेती बंद नहीं कर सकते। भले ही डीजल का दाम चार गुना हो जाए। शायद इस सच को मोदी सरकार भी जानती है। इसीलिए वह राहत देने के बजाए हर कृषि कंपोनेंट पर टैक्स बढ़ाती जा रही है। किसानों को राहत देने का वादा करके सत्ता में आई भाजपा सरकार अब किसानों को आखें तरेरने लगी है।"

संकट में किसान  

पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली को धान का कटोरा कहा जाता है, क्योंकि यहां धान की बेहतरीन किस्में पैदा होती हैं। डीजल-पेट्रोल का दाम आसमान छूने की वजह से खेती की लागत बढ़ गई है। देश भर में बढ़ रही पेट्रोल और डीजल की कीमतों से एक तरफ आम आदमी परेशान है, तो दूसरी तरफ किसानों की मुसीबत बढ़ गई है। बढ़ती महंगाई सिर्फ आम जनता का ही बजट नहीं बिगाड़ रही, बल्कि इसका असर खेती और उन सभी व्यवसायों पर भी पड़ रहा है जो पेट्रोल और डीजल पर निर्भर हैं। तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर कोई कदम न उठाए जाने से किसान काफी निराश और परेशान हैं। 

चंदौली के बरहनी प्रखंड के डेढ़गांवा के किसान विजय कुमार सिंह कहते हैं, "किसान पंपसेट से लेकर ट्रैक्टर तक का इस्तेमाल करता है। लघु सीमांत किसानों के पास उतनी आमदनी नहीं कि डीजल के भरोसे खेती कर सकें। मजदूरों की कमी बड़ा संकट है। गेहूं की कटाई हार्वेस्टर से किया जा रहा है। मार्केट से किसान दूर होते जा रहे हैं। उपज मंडी तक पहुंचाने में खर्च ज्यादा आ रहा है। सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के नाम पर खर्च चार गुना कर दिया है। खाद-बीज और कृषि यंत्र पहले से ही महंगे थे। महंगे डीजल से खेती पर मुश्किल होती जा रही है। खेतों में काम करने से ज्यादा मुनाफा तो शहरों में रिक्शा चलाने से हो सकता है।"

डीजल का दाम बढ़ने से घट गई आमदनी 

विजय यह भी कहते हैं, "डीजल के बढ़े दामों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। यूपी में डीजल का दाम 97 के करीब पहुंच गया है। इस वजह से खेती करने वाले किसानों को आर्थिक मार झेलनी पड़ रही है। चंदौली में आमतौर पर नहरों से सिंचाई होती है। लेकिन गर्मी के दिनों में यहां के ग्रामीण पंपिंग सेट से सिंचाई करते हैं। वह डीजल पंप चलाते हैं। धान की नर्सरी और सब्जियों के खेत की सिंचाई पंपिंग सेट से ही करते हैं। तेज धूप और गर्मी के दिनों में खेतों में ज्यादा लग रहा है। गेहूं की मंडाई से लेकर सब्जियों की सिंचाई तक हमें पंपसेट से करनी पड़ती है। हमारी मुश्किल सिर्फ सिंचाई ही नहीं, अगर किसी तरह खेत में पानी पहुंचा दें तो उसके बाद खेत की जुताई भी कठिन चुनौती होती है। डीजल का रेट इतना ज्यादा बढ़ गया है कि सिंचाई के अलावा ट्रैक्टर से खेत की जुताई किसानों की मुश्किलें बढ़ाने वाली है।"

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के गांव भभौरा (चंदौली) के अभिषेक यादव और चकिया के किसान सौरभ कुशवाहा डीजल के पंपिंग सेट से फसलों की सिंचाई करते हैं। तेज धूप और गर्मी की वजह से खेतों में पानी ज्यादा लग रहा है। वह कहते हैं, "हमारी खेती की लागत भी नहीं निकल पा रही है। चंद दिनों में डीजल का 13-14 रुपये बढ़ गया। ऐसे में सिंचाई कैसे करें? दो महीने बाद धान की नर्सरी की तैयारियों के लिए हमें डीजल पंप चलाना होगा। उसके लिए पैसे कहां से आएंगे? सरकार को चाहिए कि तेल का दाम कम करे।" बनारस के अराजीलाइन प्रखंड के कचहरियां के किसान राम बचन कौशल और कुरसातो के तिलकधारी सिंह बताते हैं कि जिले में करीब 6500 हेक्टेयर में सब्जी और 600 हेक्टेयर मे गेंदा, गुलाब, गुड़हल आदि फूलों की खेती की जाती है। डीजल का दाम बढ़ने से किसान, बागवान और फूल उत्पादक परेशान हैं। भाजपा सरकार ने किसानों को डीजल में सब्सिडी देने को कहा था, लेकिन दिया नहीं। अब डीजल का दाम 97.63 रुपये लीटर है। बढ़ोतरी का कोई ओर-छोर नहीं दिख रहा है, इससे हम सभी परेशान हैं।"

सौरभ कुशवाहा

आसमान छू रही महंगाई 

पूर्वांचल में मौजूदा समय में गेहूं की मड़ाई का कार्य जोरों से चल रहा है। भीषण गर्मी के चलते सब्जियों के खेतों की सिंचाई का खर्च और खेती की लागत काफी बढ़ गई है। गर्मी के दिनों में फसलों की सिंचाई अब बड़ी चुनौती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में सरकारी नहर से 22.3 फीसदी, निजी नहर से 0.2 फीसदी, टैंक से 2.6 फीसदी, नलकूप से 47.8 फीसदी, कुए से 16.3 फीसदी, अन्य स्रोतों से 10.8 फीसदी यानी 67.30 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिचाई होती है। डीजल की महंगाई की बात करने पर कोई यह भी कह सकता है कि बिजली से भी सिचंई होती है। इसका जवाब यह है कि साल 2017 में देश में 2,11,98,411 सिंचाई के पंपसेट सक्रिय थे। इससे पहले साल 2000-01 में सिर्फ 1,28,23,840 पंपसेट थे। इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की यह रिपोर्ट बहुत कुछ कह रही है। 

बनारस से किसान राम बजन कौशल 

पूर्वांचल किसान यूनियन के अध्यक्ष योगी राज कहते हैं, "गेहूं की मड़ाई के लिए एक कुंतल पर किसानों को पिछले साल आठ किग्रा देना पड़ता था और इस बार बढ़कर 12 किग्रा हो गया है। गेहूं की कटाई के लिए श्रमिकों की मजदूरी 125 रुपये थी, जो अब बढ़कर 200 हो गई है। एक बीघा खेत जोतने पर पहले 600 रुपये लगते थे (दो बार) और अब 800 हो गया है। डीजल पंपिंग सेट से पानी चलाने का रेट 2019 रुपये प्रतिघंटा से बढ़कर अप्रैल 22 में 220 से 250 रुपये तक पहुंच गया है। खाद और बीज महंगा हो गया सो अलग। बाजार का हाल यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी फसल नहीं बिक पा रही है। एक बीघे की खेती में सीधी लागत 10 से 13 हजार आती है। अगर मेहनत जोड़ दिया जाए तो 17000 खर्च पहुंच जाता है और कमाई होती है 18000 से 19000 रुपये। किसानों की माली स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। इनके सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। वो खेती छोड़ नहीं सकते। किसान कर्ज में डूबते जा रहे हैं। खासतौर पर वो किसान जो किसान क्रेडिट कार्ड से लोन लेकर खेती कर रहे हैं। किसानों को खेती के लिए डीजल पर अनुदान मिलना चाहिए। डीजल के लिए किसानों के लिए कार्ड जारी हो तो कुछ राहत मिल जाए। धान की कुटाई का रेट दोगुना हो गया है। ढुलाई में भी बढ़ोतरी हुई है।"

किसान नेता योगी राज यह भी कहते हैं, "कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक धान की सी-2 कास्ट बहुत ज्यादा है। पीएम किसान स्कीम के जितने लाभार्थी हैं उनकी जमीन का ब्योरा सरकार के पास मौजूद है। सरकार उसका अनुमान लगा ले कि प्रति एकड़ खेती पर कितना डीजल खर्च होता है। इसके हिसास बसे वो किसानों को अनुदान दे सकती है। सरकार पहले से ही सोलर पंप को प्रमोट करने का काम कर रही है। डीजल पर निर्भरता कम करके किसानों को सोलर पंप की तरफ लौटाने की जरूरत है।"   

मोदी सरकार को फिक्र नहीं 

डीजल के दाम बढऩे से सिर्फ खेती ही महंगी नहीं हुई है, बल्कि माल भाड़ा भी बढऩे लगा है। घरेलू सामान, सब्जी, राशन के दाम में अभी से ही 10 से 15 फीसदी तक इजाफा हो चुका है। इस बीच चावल के भाव में 50 रुपये प्रति बोरी की वृद्धि हो गई है। वहीं, नवरात्रि, छठ, रमजान का रोजा के कारण लगातार जरूरत और खपत बढ़ी हुई है और इसी बीच दाम में लगातार वृद्धि होती जा रही है। डीजल-पेट्रोल के दाम बढऩे का असर सब्जी और फलों पर भी पड़ा है। सब्जियां औसतन दस फीसदी जबकि फल आदि बीस फीसदी अधिक दाम पर बाजार में उपलब्ध हैं।

वर्तमान में आलू 30 रुपये प्रति किलो, प्याज 40 रुपये प्रति किलो, टमाटर 40 रुपये प्रति किलो, खीरा 50 रुपये प्रति किलो, बैंगन 52 रुपये प्रति किलो, फूलगोभी 25 रुपये प्रति किलो, पत्तागोभी 35 रुपये प्रति किलो, सिबल 75 रुपये प्रति किलो, शिमला मिर्च 85 रुपये प्रति किलो, नींबू 250 रुपये प्रति किलो, मटर 40 रुपये प्रति किलो बिक रही हैं।

मिर्च की तरपराहट पर भारी डीजल की मूल्यवृद्धि

वहीं फलों में केला 60 रुपये के एक दर्जन, अंगूर 80 रुपये किलो, सेव 140 से 200 रुपये किलो, अमरूद 60 रुपये किलो, अनार 120 रुपये किलो, चीकू 50 रुपये किलो बिक रहा है। हाल यह है कि महंगाई के चलते अब घर का खर्च चला पाना कठिन हो गया है। बनारस के पहड़िया स्थित अशोक विहार के अनिल सिंह कृषि विभाग में कर्मचारी हैं। इनका वेतन करीब 35 हजार है। इनके परिवार में दो बच्चों समेत चार सदस्य हैं। जनवरी में इनकी रसोई का खर्च 10 हजार रुपये था जो अब बढ़कर 14,000 हजार रुपये हो गया है। इसके चलते बहुत मुश्किल से महीने का खर्च चल पा रहा है।

बढ़ती महंगाई के खिलाफ अब पूर्वांचल में आवाज उठनी शुरू हो गई है। बनारस में लोक समिति के संयोजक नंदलाल मास्टर के नेतृत्व में ग्रामीणों ने महंगाई, डीजल-पेट्रोल व दवाओं की मूल्य वृद्धि के खिलाफ 7 अप्रैल 2022 को राजातालाब तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। इस मौके पर एक्टिविस्ट नंदलाल, वल्लभाचार्य, मुकेश कुमार, सर्वजीत भारद्वाज ने कहा, "कोरोना के संकटकाल से देश बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में दवाओं के साथ डीजल-पेट्रोल के दाम में वृद्धि से आम आदमी की जिंदगी कठिन हो गई है।  

कमजोर विपक्ष का विरोध बेअसर

देश में कुछ दिनों से डीजल-पेट्रोल की कीमतों में लगातार बढ़त देखी जा रही है। इस मुद्दे पर कांग्रेस समेत सभी विपक्ष दल हमलावर हैं। इनका खुल्लम-खुल्ला आरोप है कि भाजपा सरकार को न तो किसानों की चिंता है और न ही आम लोगों की दिक़्क़तों से कोई सरोकार है। समाजवादी जन परिषद के अफलातून देसाई कहते हैं, "18 अक्तूबर, 2014 को मोदी सरकार ने डीज़ल पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर इसका बोझ आम जनता पर डाल दिया, तब से लेकर आज तक सरकारी लूट चालू है। बड़ा सवाल यह है कि क्या तेल की कीमतों में लगातार इजाफा होने के वावजूद लोग आसमान छू रही महंगाई से तनिक भी चिंतित नहीं हैं? इस सवाल का जवाब अब खुद जनता को देना होगा।"

पूर्वांचल के किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "डीजल की कीमत यानी 35.78 रुपये (इसमें ढुलाई भाड़ा और डीलरों का कमीशन भी शामिल) के मुक़ाबले ग्राहकों की चुकाई जाने वाली 96.69 रुपये प्रति लीटर की कीमत को देखें तो ग्राहकों को 54 रुपये से ज्यादा टैक्स के तौर पर देने पड़ते हैं। सरकार को पता है कि देश में एक कमजोर विपक्ष है और उसे इसी का फायदा मिलता है। इन मुद्दों को विपक्ष को जोरदार तरीके से उठाना चाहिए, लेकिन विपक्ष बड़े तौर पर बिखरा हुआ है। ईधन की कीमतें हर राज्य में अलग-अलग हैं। ये राज्य की वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) दर, या स्थानीय करों पर निर्भर करती हैं। इसमें केंद्र सरकार के टैक्स भी शामिल होते हैं। दूसरी ओर क्रूड ऑयल की कीमतों और फॉरेक्स रेट्स का असर भी इन पर होता है। पिछले साल महामारी की वजह से सरकार का रेवेन्यू घट गया है, जीएसटी, कॉरपोरेट टैक्स, इनकम टैक्स जैसे रेवेन्यू के ज़रिए कमजोर हुए हैं।"

"दूसरी ओर, सरकार का ख़र्च इस दौरान काफी बढ़ा है। ऐसे में सरकार राजस्व और फिस्कल डेफिसिट को बढ़ने से रोकने के लिए ईंधन पर टैक्स कम नहीं कर रही है। सरकार के लिए शराब और पेट्रोल, डीज़ल कमाई का एक सबसे बढ़िया ज़रिया हैं। ये जीएसटी के दायरे में नहीं आते हैं, ऐसे में इन पर टैक्स बढ़ाने के लिए सरकार को जीएसटी काउंसिल में नहीं जाना पड़ता है। महामारी के दौरान क्रूड के दाम नीचे आए, तब भी सरकार ने डीजल-पेट्रोल का दाम नहीं गिरने दिया। डीजल-पेट्रोल का दाम नियंत्रण का अधिकार केंद्र सरकार के हाथ में है। आप टैक्स घटाकर ईंधन सस्ता कर सकते हैं और लोगों को राहत दे सकते हैं, लेकिन, सरकार ऐसा करना ही नहीं चाहती है। सरकारें अपने बेफिजूल के खर्चों को कम करके करके तेल की कीमतें घटा सकती हैं। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है और इससे डिमांड घटती है। ख़ासतौर पर ग़रीब और हाशिए पर मौजूद तबके के लिए ज्यादा मुश्किलें बढ़ती हैं।"

वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका,  नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान आदि में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम हैं। भयंकर आर्थिक मंदी के बावजूद पड़ोसी देशों में डीजल-पेट्रोल सस्ता है और भारत में इनकी कीमतें आसामान छू रही हैं। साल 2010 तक तेल के दाम बढ़ाना सरकारों के लिए एक मुश्किल फैसला होता था, लेकिन, सरकारी खजाने पर इसका बोझ बहुत ज्यादा था। सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी) को होने वाले घाटे के चलते सरकार को तेल पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करना पड़ा। खासतौर पर डीज़ल की कीमतें बढ़ने से आम लोगों के लिए ज़रूरत की चीजों के दाम भी बढ़ते हैं। डीजल के दाम में मनमानी बढ़ोतरी बंद नहीं हुई तो भारत का हाल श्रीलंका जैसा हो जाएगा।"

अर्थशास्त्र की स्टूडेंट प्रज्ञा सिंह कहती हैं, "ट्रांसपोर्ट बिजनेस में डीजल की हिस्सेदारी 65-70 फीसदी होती है। हर दिन कीमतों के बढ़ने से ट्रांसपोर्टर्स इस बढ़ोतरी को ग्राहकों पर नहीं डाल पाते हैं। ट्रांसपोर्टरों की प्रतिस्पर्धा रेलवे के साथ होती है। ऐसे में डीज़ल के दाम बढ़ने के चलते उनके लिए कारोबार में टिके रहना मुश्किल भरा हो रहा है। सरकार को डीज़ल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए कोई मैकेनिज्म बनाना चाहिए। अगर दाम बढ़ाने भी पड़ते हैं तो ये बढ़ोतरी रोजाना की बजाय तिमाही आधार पर की जाए।"

मजदूर किसान मंच के राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय कहते हैं, "देश के किसान अभी एमएसपी की गारंटी कानून बनाने के वादे को पूरा कराने के लिए मोदी सरकार के लड़ रहे थे। डीजल के दामों में मनमानी बढ़ोतरी ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। कारपोरेट हितों के खिलाफ किसानों ने युद्ध छेड़ दिया है। मोदी सरकार चाहती हैं किसान खेती छोड़ने पर विवश हो जाएं और वह उसे कारपोरेट घरानों को हवाले कर दे। गर्मियों में सब्जियों की खेती करने वाले किसान बेहाल हैं। इसका असर आम जन-जीवन पर पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि वो लघु और सीमांत किसानों को डीजल अनुदानित दर पर मुहैया कराए, ताकि वो आसानी से अपनी फसलों की सिंचाई कर सकें। किसानों को सस्ता डीजल नहीं मिला तो वो टूट जाएंगे, जिसका सीधा असर खेती और फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा।"

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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