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राजस्‍थान : रकबर हत्‍या मामले में चार दोषियों को 7साल की सज़ा, वीएचपी नेता बरी

पुलिस ने 2019 में परमजीत सिंह, नरेश शर्मा, विजय कुमार और धर्मेंद्र यादव समेत चार आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था।
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फ़ोटो साभार: ट्विटर

धर्म का ग़लत तरीके से इस्तेमाल कर इस देश में रंज़िश निकालने वालों की कमी नहीं है। कभी ये कहकर मार दिया जाता है, कि तुम नीची जाति के होकर मंदिर में कैसे घुस गए, तो कभी ये कहकर मार दिया जाता है, कि तुम मुसलमान होकर गरबा खेल रहे लोगों के बीच कैसे पहुंच गए।

ऐसी विचित्र मानसिकता के कुछ लोग सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, वो इसलिए भी कत़्ल कर देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर कोई मुसलमान गाय पालता है, तो वह उसकी तस्करी ही कर रहा होगा। कई बार तो ये हत्याएं सिर्फ शक की बिना पर ही कर दी जाती हैं।

जैसे साल 2018 में राजस्थान के रकबर खान को पीट-पीटकर मार डाला गया था। सिर्फ शक के आधार पर कि वो गौ तस्कर है। फिलहाल लंबे वक्त के बाद राज्य की अलवर कोर्ट ने दोषियों को सज़ा सुनाते हुए 7-7 साल की सज़ा दे दी है। हालांकि एक आरोपी को बरी कर दिया गया है, जिसका नाम नवल किशोर शर्मा है और वो विश्व हिंदू परिषद से संबंध रखता है।

उधर मामले में सज़ा सुनाए जाने के बाद राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नाराज़गी जताई है और कहा है कि सरकार इस आदेश का रिव्यू कराएगी। जयपुर में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कोर्ट ने किन परिस्थितियों में आरोपियों को महज़ 7 साल की सज़ा सुनाई है। इसका रिव्यू किया जाएगा।

कोर्ट का क्या कहना है?

अतिरिक्त जिला जज सुनील कुमार गोयल ने आरोपी नरेश, विजय, परमजीत और धर्मेंद्र को आईपीसी की धारा 341 यानी गलत तरीके से रोकने के लिए सजा और 304 आईपीसी यानी गैर इरादतन हत्या की सजा के तहत दोषी ठहराया है। वहीं, कोर्ट ने एक अन्य आरोपी नवल को संदेह के लाभ में बरी कर दिया है।

क्या था मामला?

20 जुलाई साल 2018 को राजस्थान के अलवर ज़िले में रकबर खान नाम के एक व्यक्ति को गाय तस्करी के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया। पुलिस के मुताबिक ये घटना 20 जुलाई देर रात अलवर ज़िले के रामगढ़ पुलिस थाने के इलाके में हुई। पुलिस का कहना था कि रकबर और उनके साथी असलम देर रात 12 से 1 बजे के बीच में रात को पैदल 2 गाय ले जा रहे थे, तभी गांव वालों ने उन्हें रोककर पूछताछ करनी शुरू कर दी। इसी दौरान मामला गंभीर हुआ और दोनों वहां से भागने लगे, गांव वाले उन्हें पकड़ने में कामयाब हुए और फिर उन्होंने रकबर को पीट-पीट कर मार डाला। पुलिस ने बताया था कि उनके साथी असलम वहां से भागने में कामयाब रहे। ऐसा माना जा रहा था कि गांव वालों ने इन दोनों लोगों को गाय तस्कर समझा था।

इस मामले में पुलिस पर भी आरोप लगे कि रकबर से मारपीट के बाद पुलिस उसे थाने ले गई और वहीं उसकी मौत हुई। आरोप के मुताबिक मॉब लिंचिंग की घटना सामने आने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। पुलिस ने रकबर को हिरासत में लिया और उसे लेकर थाने चली गई। एक घंटे बाद उसे अस्पताल ले जाया गया जहां रकबर को मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तब पता चला कि रकबर की मौत पुलिस हिरासत में नहीं बल्कि पहले ही हो चुकी थी। रिपोर्ट में सामने आया है कि रकबर की सभी चोट पोस्‍टमॉर्टम करने से 12 घंटे पहले की हैं और तब रकबर को पुलिस ने हिरासत में नहीं लिया था। पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया कि रकबर को लगी सभी चोट 12 घंटे पुरानी हैं, मतलब रात के 12 बजे के करीब की, लेकिन पुलिस के पास गोतस्‍कर पकड़े जाने का पहला फोन 12 बजकर पर आया था। यानी रकबर की मौत भीड़ की पिटाई से हुई थी।

जन्जवार नाम के एक मीडिया संस्थान ने साल 2019 में ह्यूमेन राइट्स वाच नाम की संस्था की एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें बताया गया था- मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच कम से कम 44 व्यक्ति गौ-मांस के शक में या फिर गाय के व्यापार के शक में मारे गए। इन 44 व्यक्तियों में से 36 मुस्लिम थे। गाय के आरंभ से ही पवित्र माना जाता रहा है, पर गाय का नाम लेकर भीड़ का ऐसा तांडव नया चलन है। केरल, गोवा और तमिलनाडु के बहुत से हिंदू गौ-मांस खाते हैं, अल्पसंख्यक समुदाय के लिए यह प्रोटीन का सबसे सस्ता स्त्रोत है। 

ख़ैर... मामले में दोषियों की महज़ 7 साल की सज़ा के साथ एक आरोपी के बरी होने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। देखना ये होगा कि राजस्थान सरकार द्वारा मामले में रिव्यू कराए जाने पर सजा में क्या बदलाव हो सकता है।

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