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राजस्थान: शहरी रोज़गार गारंटी क़ानून का चुनाव पर कितना असर?

“...ये एक अच्छी शुरुआत है और ज़मीनी स्तर पर लोगों को लाभ भी पहुंचा रही है। भविष्य में अगर इसकी ख़ामियों को दूर कर दिया जाए तो ये अपने आप में एक ऐतिहासिक योजना साबित हो सकती है।”
Ashok Gehlot

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने रोज़गार को 'अधिकार' से जोड़ कर सभी राजनीतिक दलों के सामने एक लंबी लकीर खींचने की कोशिश की है। फिलहाल राजस्थान शहरी रोज़गार का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य है। विरोधी दल इसे 'चुनावी एजेंडा' बता रहे हैं हालांकि प्रदेश की जनता इस योजना को कैसे देखती है और इसका चुनाव पर क्या असर होने जा रहा है, इसे समझने के लिए न्यूज़क्लिक ने कुछ लोगों से बातचीत की।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देने के लिए चल रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) की तर्ज पर शहरों में भी लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने के मकसद से राजस्थान में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना, (आईजीआरवाई) कम पढ़ी-लिखी या अशिक्षित महिलाओं के लिए रोज़गार के एक बेहतर विकल्प के साथ ही घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का भी एक ज़रिया बन रही है।

महिलाओं के लिए पैसा कमाने और घर चलाने का रास्ता

अजमेर की कई महिलाएं, जो इस योजना के अंतर्गत लाभार्थी हैं, वो न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि उन्हें घर के काम के अलावा थोड़ा बहुत खेती-बाड़ी और पशुपालन का काम आता था, लेकिन इससे उन्हें कभी पैसे नहीं मिले और न ही कोई सम्मान मिला। हालांकि इस योजना के आने के बाद ये सभी महिलाएं अजमेर नगर निगम के पंचशील स्थित कांजी हाउस में काम पर लग गईं, जहां शहर के आवारा पशुओं को रखकर उनकी देखभाल की जाती है। ये इनके लिए घर चलाने के साथ-साथ घर से बाहर निकलने का भी रास्ता था।

बता दें कि राज्य में ये शहरी रोज़गार गारंटी योजना 9 सितंबर, 2022 को शुरू की गई थी। इसके तहत पहले साल 100 दिन के काम की गारंटी दी गई थी, लेकिन वित्त वर्ष 2023-24 में इसे बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है। राज्य सरकार ने इससे आगे बढ़ते हुए 18 जुलाई 2023 को विधानसभा में राजस्थान न्यूनतम आय गारंटी अधिनियम 2023 विधेयक प्रस्तुत किया। इसमें राज्य के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले हर वयस्क व्यक्ति को साल भर में कम से कम 125 दिन के रोज़गार का अधिकार का प्रावधान किया गया है। जो लोग काम करने में असमर्थ हैं, उन्हें सरकार 1,000 रुपये प्रति माह की पेंशन देगी।

मेवाड़ के क्षेत्र उदयपुर में शहर की दीवारों को रंगना, तालाबों की मरम्मत और पौधारोपण जैसे शहर के सौंदर्यीकरण के काम भी इस योजना के तहत किए जा रहे हैं। यहां काम कर रहे कई लोगों ने बताया कि इस योजना में मज़दूरी दर कम है, किसी स्थायी नियुक्ति का प्रावधान नहीं है, मज़दूरी देर से मिलती है लेकिन घर के आस-पास ही काम ज़रूर मिल जाता है, जिससे घर चल सके। इसके अलावा घर के पास काम होने के चलते ये लोग अपनी घर की महिलाओं को भी लेकर आते हैं, जिससे इनकी आमदनी में इज़ाफ़ा हो जाता है।

ध्यान रहे कि राजस्थान सरकार ने अपने बजट में 800 करोड़ रूपये के प्रावधान के साथ आईजीआरवाई की शुरुआत की थी, जो किसी राज्य द्वारा शहरी रोज़गार गारंटी योजना के लिए अब तक का सबसे अधिक आवंटन है। सरकार की मानें, तो इस योजना के तहत अब तक कुल कई लाख जॉब कार्ड बन चुके हैं और 20 हज़ार से अधिक कार्य भी पूरे हो चुके हैं। हालांकि इस योजना में सब कुछ ठीक हो ऐसा भी नहीं है, इसमें कई खामियां भी हैं।

सीमित दायरा और व्यवहारिकता की आवश्यकता

राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु सिंह बताते हैं कि "मौजूदा समय में इस योजना को लेकर कई बातें देखने को मिलती हैं, जैसे इसमें अभी सिर्फ अकुशल काम को तवज्जो दी जा रही है और कुशल काम बहुत ही कम या यूं कहें की न के बराबर है। ऐसे में जो थोड़े पढ़े-लिखें कुशल लोग हैं, वो इस योजना से सीधे-तौर से बाहर हो जाते हैं। दूसरी बात मज़दूरी की दर को लेकर भी चिंता है। ये कुछ ऐसा है कि इसमें मज़दूरों से काम तो पूरा लिया जा रहा है, लेकिन मज़दूरी उन्हें आधी के करीब ही दी जारी है। आमतौर पर राज्य में एक दिन की मज़दूरी 500 रूपये है, लेकिन इसमें 230-250 के आस-पास दी जारी है। इसके अलावा इस योजना का अभी दायरा भी काफी सीमित है और इसमें काम करने वाले लोगों को सुविधाओं और प्रशिक्षण की कमी की दिक्कतें भी हैं।"

हिमांशु के मुताबिक इस योजना पर अभी बहुत काम की आवश्यकता है। ये फिलहाल अपरिपक्व और जल्दबाज़ी में लाई हुई नज़र आती है, लेकिन इन सब बातों से इतर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये एक अच्छी शुरुआत है और ज़मीनी स्तर पर लोगों को लाभ भी पहुंचा रही है। भविष्य में अगर इसकी खामियों को दूर कर दिया जाए, तो ये अपने आप में एक ऐतिहासिक योजना साबित हो सकती है, जो दूसरी सरकारों को भी कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित या बाध्य कर सकती है। हालांकि केरल में 2011 से अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (एयूईजीएस) चल रही है। इसके अलावा कोविड काल के दौरान झारखंड और ओडिशा ने भी रोज़गार गारंटी योजना शुरू की थी, ताकि अपने शहर-कस्बों में लौटे लोगों को काम दिया जा सके। हालांकि इन सब योजनाओं की उपलब्धियां और खामियां सभी के सामने हैं।

गौरतलब है कि साल 2019 में आई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019 स्ट्रेंथनिंग टाउन्स थ्रू सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट: ए जॉब गारंटी प्रोग्राम फॉर अर्बन इंडिया” में भी एक केंद्रीय योजना की मांग की गई थी, जो 500 रूपये प्रतिदिन पर 100 दिनों के काम की गारंटी और शिक्षित युवाओं को 13,000 रूपये प्रति माह के वजीफे पर 150 दिनों का प्रशिक्षण देने की बात करती है। फिलहाल देश में बेरोज़गारी का आलम चरम पर है और राजस्थान सरकार के इस कदम का लोगों पर थोड़ा ही सही लेकिन असर देखने को ज़रूर मिल रहा है। विधानसभा चुनाव में भी इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

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