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एस.आर. संकरन: मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा का चाहते थे जड़ से ख़ात्मा

22 अक्टूबर जन्मदिन पर विशेष: आज ब्यूरोक्रेसी विशेष कर सरकारी अधिकारी जन पक्ष पर खरे नहीं उतरते। ऐसे समय में एस.आर. संकरन को याद करना जरूरी हो जाता है जो सरकारी अधिकारी होते हुए भी हमेशा जनपक्ष के पैरोकार रहे।
Sankaran

लोकतंत्र के चार स्तम्भ या खम्भे माने जाते हैं, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया।  दुखद है कि आज ये चारों स्तम्भ जनता और खासतौर से दलितों-वंचितों के खिलाफ दिखते हैं। ये अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं। इस से हमारे देश के लोकतंत्र में कई चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं। ब्यूरोक्रेसी विशेष कर सरकारी अधिकारी जन पक्ष पर खरे नहीं उतरते। ऐसे समय में एस.आर. संकरन को याद करना जरूरी हो जाता है जो सरकारी अधिकारी होते हुए भी हमेशा जनपक्ष के पैरोकार रहे। उन जैसे आईएएस अधिकारी का आज के समय में मिलना दुर्लभ हो गया है। उनकी मिसाल बेमिसाल है।  

एस.आर. संकरन  जाति से ब्राह्मण थे। उन्होंने जिन्दगी भर अनेक आंदोलनों और जनपक्षी संगठनो को प्रेरणा दी। उन्होंने अपने जीवन का सबसे अधिक समय सफाई कर्मचारी आन्दोलन और मैला प्रथा के खात्मे के लिए बिताया। अपने सारे सरकारी संबंधों और लोगों को सफाई  कर्मचारी आंदोलन के साथ जोड़ा। वे चाहते थे कि मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा के खात्मे में जो भी उनका योगदान हो सके वे करें और उन्होने किया भी।

समाज के लिए उनका योगदान बहुआयामी है। उन्होंने गरीबों-दलितों-वंचितों के बच्चों की पढाई में अपना योगदान दिया। बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए काम किया। वे जाति प्रथा, पितृसत्ता और लैंगिक असमानता को समाज की प्रमुख बुराइयों के रूप में देखते थे और इनका खात्मा चाहते थे। वे चाहते थे कि गरीब,दलित, आदिवासी और तमाम हाशिये के लोग अपनी मानवीय गरिमा के साथ जीवन  जीयें। वे मानव अधिकारों के प्रबल समर्थक  थे  और आजीवन संवैधानिक मूल्यों के लिए संघर्षरत रहे।

एस.आर. संकरन, सादा जीवन, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, विनम्र लेकिन दृढ़, मिलनसार तथा  एक आदर्श सिविल सेवक  थे। उन्होंने साबित किया कि एक आईएएस अधिकारी समाज के हाशिए के वर्गों के लिए क्या कर सकता है।

कहने को तो वे भारत सरकार के प्रशासनिक अधिकारी थे। पर उनका जीवन एक कर्मठ व्यक्ति का था जो असंभव से समझे जाने वाले कार्यों को भी संभव कर दिखाते थे। जहां वे अपने सरकारी पद के लिए प्रतिबद्ध थे वहीं जनसाधारण के लिए भी समर्पित व्यक्तित्व थे। आम इन्सान, किसान, कामगर, दलित, हाशिए के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकार कैसे मिलें - इसके लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते थे। वे मानव अधिकारों से प्रबल समर्थक थे।

उनका प्रयास रहता था कि जो लोग हाशिए पर हैं, वंचित हैं, दलित हैं, पिछड़े हैं, उनके लिए किस प्रकार उनके अधिकारों को दिलाने में मदद की जाए ताकि वे अपने मानवाधिकारों का आनंद ले सकें। वे भले ही सरकारी अधिकारी थे पर वास्तव में आम इंसानों के हमदर्द थे।

विनम्रता की प्रतिमूर्ति

वे ज्ञान के भंडार थे और विनम्रता की प्रतिमूर्ति। वे सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे। सिद्धांतवादी थे। जितने सादा और सरल थे सिद्धांतों में उतने ही दृढ़। वे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता एवं जनहित के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। उनमें शक्ति और विनम्रता का अद्भुत संगम था। वे जातिवाद एवं लैंगिक असमानता के खिलाफ थे। उन्हें चुपचाप या शांत रहकर काम करना पसंद था। वे प्रचार या पबिलसिटी में विश्वास नहीं रखते थे।

अपने निजी जीवन में वे बहुत ही शान्त स्वभाव के थे। उन्होंने  ताउम्र किसी के साथ भेदभाव नहीं किया और हमेशा गरीबों और वंचितों के लिए काम किया। वे स्वयं अपने हाथों से आगन्तुकों को चाय या काफी बनाकर देते थे। जब उन्हें सरकार की ओर से उनके अच्छे कार्यों के लिए वर्ष 2005 में पदम भूषण अवार्ड देना चाहा तो उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया था।

संकरन जी आशावाद के प्रतीक थे। गरीबों और हाशिये के लोगों को उनसे प्रेरणा मिलती है कि मानवीय गरिमा के साथ भी जीना संभव है। उनसे सीखने को मिलता है शक्ति और पावर होने पर भी शालीनता से रहा जा सकता है। वरना अधिकांश तो यही देखने में आता है कि मनुष्य के पास पावर आ जाए तो वह रूतबे में जीने लगता है। उसके व्यवहार में दम्भ आ जाता है, लेकिन संकरन सर जिन्हें प्यार से लोग  संकरनघारू भी कहते हैं, ने हमें बता दिया कि पावर होने पर  भी झूठे दम्भ में नहीं बल्कि शालीनता और विनम्रतापूर्वक जीना चाहिए जैसे फलदार वृक्ष नीचे की ओर झुक जाते हैं।

दूसरों के लिए मिसाल थे एस.आर. संकरन

वे मनुष्यता को ही सर्वोपरि मानते थे। उन पर ये पंक्तियां सही बैठती हैं कि अपने लिए जिए तो क्या जिए ये दिल  तू जी औरों के लिए। कहते हैं कि कदम ऐसे चलो कि निशान बन जाए। काम ऐसा करो कि पहचान बन जाए। यहां जिन्दगी तो सभी जी लेते हैं मगर जिन्दगी जिओ तो ऐसी कि सबके लिए एक मिसाल बन जाए। और ऐसे ही मिसाल थे - एस.आर.संकरन। कहने को वे भले ही आई.ए.एस. अधिकारी रहे हों पर उनमें सरकारी सेवा के उच्च अधिकारी होने जैसा रूतबा और दम्भ बिल्कुल नहीं था। वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। सादा जीवन उच्च विचार वाली बात उन पर पूरी तरह लागू होती थी।

सफाई कर्मचारी आन्दोलन के चेयर पर्सन रहे एस.आर. संकरन। साथ में आन्दोलन के वर्तमान राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन। (फ़ाइल फ़ोटो)

सफाई कर्मचारी आंदोलन के मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत

एस.आर. संकरन सफाई कर्मचारी आन्दोलन के चेयरपरसन रहे। उनके मार्गदर्शन में सफाई कर्मचारी आंदोलन ने सामाजिक परिवर्तन यात्रा की योजना बनाई थी। उन्होंने सफाई कर्मचारी आंदोलन के विस्तार में अहम भूमिका निभाई। सरकार से समुदाय के पक्ष में कैसे नीतियां बनवाई जा सकती हैं, इसमें उन्होंने प्रशासनिक कुशलता का इस्तेमाल किया।

विभिन्न पदों पर रहते हुए ताउम्र आमजन हित के लिए काम किया

एस.आर.संकरन का जन्म 22 अक्टूबर 1934 को तमिलनाडु में हुआ था। वर्ष 1957 में वे आंध्र प्रदेश के नेलूर जिले के कलेक्टर बने। वर्ष 1992 में वे सरकारी सेवा करते हुए सेवानिवृत हुए। अपनी सरकारी सेवा के दौरान उन्होंने अनेक कार्य किए। वे आंध्र प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग के सचिव रहे। वे भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के संयुक्त सचिव बने। इसके अलावा उन्होंने  ग्रामीण विकास मंत्रालय में सचिव के पद पर कार्य किया। वे त्रिपुरा के मुख्य सचिव भी रहे। बाद में वे वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट के खाद्य सुरक्षा पैनल में आयुक्त नियुक्त किए गए। वहां उन्होंने भोजन के अधिकार एवं काम के अधिकार के लिए अच्छा काम किया। आन्ध्र प्रदेश में नक्सलियों एवं सरकार के बीच हस्तक्षेप में भी अपना कर्तव्य निभाया।

उन्होंने कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण में महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके अलावा बंधुआ मजदर प्रथा के उन्मूलन में उन्होंने अपनी अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए बनी विशेष घटक योजना (SPECIALCOMPONENT PLAN) बनवाने में भी अपना योगदान दिया। वे अपनी पेंशन की धनराशि से हमेशा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्रों की मदद करते थे।

मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा के ख़िलाफ़ जीवन भर किया संघर्ष

सफाई कर्मचारी आन्दोलन के चेयर परसन के रूप में वे मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा का पूरी तरह से उन्मूलन चाहते थे। यही कारण है कि वे सफाई कर्मचारी आन्दोलन की ओर से जिला कलेक्टरों को ज्ञापन लिख कर उनसे मैला प्रथा का अन्त एवं सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास की मांग करते थे और वहीं अपने वरिष्ठ आई.ए.एस. होने की शक्ति का प्रयोग करते थे। संकरन स्वयं आई.ए.एस. होते हुए भी जिला कलेक्टरों को पत्र लिखते थे। जब भी सफाई कर्मचारी आन्दोलन अपनी आगे की गतिविधियों के लिए एक्शन प्लान बनाता था, उसमें वे शामिल होते थे। और अपना दिशानिर्देश देते थे। उनका सपना था कि इस देश में कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, भाषा, लिंग का हो वह किसी दूसरे का मल न उठाए। वे मैला मुक्त भारत का सपना देखते थे। और अपने इस सपने को साकार रूप देने के लिए वे तन-मन-धन से समर्पित रहते थे। सफाई कर्मचारी आन्दोलन के लिए यह गौरव की बात है कि उन जैसे व्यक्ति का उसे मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।

07 अक्टूबर 2010 को हैदराबाद में उनका देहांत हो गया और वे हमसे हमेशा-हमेशा के लिए बिछड़ गए।

वे लोगों को उम्मीद प्रदान करने वाले व्यक्तित्व थे। उन्हें देखकर मानवता में विश्वास बढ़ता था। आजीवन गरीबी उन्मूलन और न्याय के लिए संघर्ष करते रहे। जाति प्रथा, पितृसत्ता एवं लैंगिक असमानता के खिलाफ थे। मानवीय मूल्यों को सदैव प्रोत्साहित करते रहे। वे आम लोगों के आदर्श थे। बहुत ही प्रेरणा प्रदान करने वाले व्यक्ति। उनमें बुद्धिमत्ता एवं सादगी का अद्भुत समन्वय था। ऐसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं। हमारे लिए यह सुखद संयोग है कि वे हमारे आंदोलन के मार्गदर्शक रहे।

यथास्थिति में  बदलाव की तड़प

वे अपनी आमदनी का अधिकांश भाग दलितों,आदिवासियों एवं गरीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च  करते थे। किन्तु इसके बदले में वे कोई प्रसिद्धि या नाम नहीं चाहते थे। वे हमेशा गरीबी और अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे। और इसी ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। उन्होंने  सरकार को बाध्य किया कि वह गरीबों के लिए कार्य करे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि गरीबों के लिए बने सरकार के कार्यक्रम और योजनाएं वास्तविक लोगों यानी गरीबों दलितों, आदिवासियों तक पहुंचें। वे अपने अंतिम समय तक लगातार काम करते रहे। उन्हें यथास्थिति पसंद नहीं थी। वे इसमें बदलाव चाहते थे।

जनसरोकारों और सामाजिक कार्यों के लिए आजीवन समर्पित

उन्होंने निर्भय होकर आंध्र प्रदेश के दलितों के लिए, बंधुआ मजदूरों के लिए लड़ाई लड़ीं। वर्ष 1976 में उन्होंने अन्य समान सोच वाले आईएएस अधिकारियों के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश में एक सभा का आयोजन किया जिसके तहत अजा/अजजा के लिए दी गयी सिफारिशों को सरकारी आदेशों में परिवर्तित करने की बात रखी। भूमि सुधार अधिनियम के तहत उन्होंने भूमिहीनो को भूमि दिलावाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जब संकरन सर समाज कल्याण विभाग के सचिव बने तो उन्होंने कई ऐसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करवाया जिनसे गरीबो, दलितों, आदिवासियों एवं हाशिए पर रहने वाले लोगों का कल्याण हुआ। किसानों का कर्ज माफ करवाया, बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाया। इसके साथ ही महिलाओं एवं आवास पर भी उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया  तथा इंदिरा गांधी के 20 सूत्रीय कार्यक्रमो का क्रियान्वयन करवाया। हालांकि इस दौरान उन्हें जमीदारों एवं अन्य ऐसे नौकरशाहों का विरोध भी सहना पड़ा जिन्होंने गरीबों एवं दलितों आदिवासियों को अपना बंधुआ मजदूर बना रखा था।

बंधुआ मजदूरों को जागरूक करने के लिए वे दलितों और आदिवासियों तथा अन्य वंचित वर्ग की बस्तियों में जाते थे और बंधुआ मजदूरों को उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करते थे और सरकार तौर पर उन्हें सहयोग करने का वादा करते थे। वे बंधुआ मजदूरों के साथ जमीन पर बैठ जाते थे और उनके साथ घुलमिल जाते थे। इससे तत्कालीन जमींदारों को समस्या होती थी और उन्होंने मुख्यमंत्री से उनकी शिकायत भी की थी। इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री की डांट भी पड़ी थी कि वे बंधुआ मजदूरों को भड़का रहे हैं। पर उन्होंने विनम्रता से सिर्फ यही कहा कि वे सिर्फ अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं और सरकार को भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।

इतना ही नहीं उन्होंने वर्ष 2004 में नक्सल हिंसा को रोकने के लिए भी प्रयास किये हांलांकि वे पूरी तरह इसमें सफल नहीं हो पाये। इसके अलावा उन्होंने भारत में व्याप्त मैला प्रथा के उन्मूलन के लिए काम किया। उन्होंने देखा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी दलित वर्ग के लोग मानव मल ढोने में लगे थे। महिलाएं शुष्क शौचालयों से मानव मल साफ कर रही थीं तो पुरूष सीवर और सेप्टिक टेंक की सफाई में लगे थे और सफाई के दौरान दम घुटने से अपनी जान गवां रहे थे । ये उनके लिए बहुत दुखद था।

संकरन जी के बारे में सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि संकरन सर की उनके साथ कई यादें जुड़ी हैं। उन्होंने 18 साल उनके साथ बिताए। वह जाति व्यवस्था और लैंगिक असमानता के खिलाफ थे। वे चुपचाप काम करने में विश्वास रखते थे। प्रचार में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनके जीवन मूल्य अनमोल हैं। उनका जीवन अच्छाई की मिसाल है। उनके जीवन से बहुत सारे अच्छे गुण सीखे जा सकते हैं।

अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता उषा रामानादन का कहना है कि संकरन जी बहुत ही सरल एवं विनम्र  व्यक्ति थे। हालांकि वे  सरकारी सेवक थे पर असल में लोगों के सेवक थे। वे अपने काम के प्रति बहुत ही समर्पित एवं प्रतिबद्ध थे।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक भाषा सिंह उनके बारे में कहती हैं - संकरन जी सिद्धांतवादी व्यक्ति थे। वे बहुत ही विनम, ईमानदार और हमदर्द थे। पावर विद पोलाईटनेस उनकी विशेषता थी। वे हमेशा दलितों, आदिवासियों एवं वंचितों के हक की लड़ाई लडते रहे।

संकरन जी ने सफाई कर्मचारी आंदोलन को हमेशा सही दिशानिर्देश दिए और उसके कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह भरा। उनके कार्य व विचार न केवल आईएएस अधिकारियों को बल्कि सामाजिक कार्यकताओं व वंचित वर्ग के लोगों को हमेशा प्रेरित करेंगे।और उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे। सफाई कर्मचारी आंदोलन उनके इस अविस्मरणीय योगदान के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा। आन्दोलन के कार्यकर्ता उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते रहेंगे और` उनके सपने को पूरा करने के लिए निरन्तर संघर्षरत रहेंगे।

संकरन जैसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं। जो सबके लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेती रहे।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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