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अब एक देश, एक परिवार

मोदी जी का सोल्यूशन फाइनल है - न रहेगा बांस, न बजेेगी बांसुरी। जब कोई और राजनीतिक पार्टी रहेगी ही नहीं, तो कौन भ्रष्टाचारी होगा और कौन परिवारवादी!
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लीजिए, विरोधियों के प्रचार के चक्कर में मोदी जी फिर मिस-अंडरस्टेंड हो गए। महाराष्ट्र में एनसीपी को जरा सा तोड़कर अपने पाले में मिलाया नहीं कि लोगों ने फाउल-फाउल का हल्ला मचाना शुरू कर दिया। पहले तो मोदी जी भी कुछ कन्फ्यूज से हो गए। एक और पार्टी तोड़ने पर इतना हो-हल्ला! क्या पहली बार उन्होंने कोई पार्टी तुड़वाई है? चार साल में ज्यादा नहीं तो कम से कम दर्जन भर राज्यों में तो विरोधी पार्टियों को तुड़वाया ही होगा। पार्टियों को तो इतनी प्रैक्टिस हो गयी है कि चुनाव बाद में होता है, तोडऩे लायक पार्टियों के विधायकों के लिए सुरक्षित राज्यों में रिसोर्टों की बुकिंग पहले शुरू हो जाती है। दो-चार विधायक एक जगह जमा हुए नहीं कि हल्ला मच जाता है - हौवा उड़ा ले जाएगा। दो-चार महीने किसी भी राज्य से विरोधियों की सरकार गिरने या विधायकों के टूटने की खबर नहीं आती है, तो लोग पूछने लगते हैं कि चाणक्य जी छुट्टी-उट्टी पर चले गए क्या? जब दूसरी पार्टियों को ही आठ नौ साल में टूट-फूट की इतनी आदत पड़ गयी है, तो पब्लिक को भी इस नये नॉर्मल की आदत बना ही लेनी चाहिए। वैसे भी प्रकृति का नियम है - जो आया है, उसे जाना है; पार्टी बनी है, तो कभी न कभी टूटेगी ही। फिर मोदी जी के धक्के से ही क्यों नहीं?

पर बाद में शोर कुछ कम हुआ तब पता चला कि हल्ला एनसीपी को तुड़वाने पर नहीं था। सभी जानते हैं कि मोदी जी से जो भी टकराएगा, अपनी पार्टी के टुकड़े बटोरता रह जाएगा। जो नियति है, उसकी शिकायत कर के भी क्या हासिल? नियति का तो ये है कि बकरे की मां कब तक खैर मनाए। जो भी चुन गया, उसके लिए ऐसी ऊंची बोली कि मना करना मुश्किल। जो बोली से बच गए, तो सीबीआइ-ईडी की गोली से उसे कौन बचाए! और जो फिर भी नहीं माने तो जेल में चक्की पीसिंग एंड पीसिंग और उतना नहीं तब भी अदालतों के चक्कर लगाइंग एंड लगाइंग। और उससे भी बच गए तो राहुल गांधी से लेकर आजम खान तक की तरह, किसी चोर को चोर कहकर, चोर की मानहानि करने के लिए, मुफ्त में सदस्यता ही गंवाइंग। तो मौत जब एक दिन मुअय्यन हो, फिर रातभर नींद क्यों नहीं आए!

पर मालूम पड़ा कि पार्टी टूटने पर तो नींद ही थी, हल्ला तो इस पर था कि पीएम जी ने भोपाल में टू-इन वन हमला किया था, परिवारवादी पार्टियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ। एक-एक पार्टी का नाम लेकर उन्होंने बताया, किस के हिस्से में कितना घोटाला बनता है। फिर जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस के हिस्से में 70,000 करोड़ रु0 का घोटाला बनता था, उसे तोडक़र मोदी जी ने महाराष्ट्र  में अपनी सरकार में कैसे शामिल कर लिया? शिव सेना के भ्रष्ट को अपनी सरकार में मुख्यमंत्री बनाने के बाद, एनसीपी के भ्रष्ट को उप-मुख्यमंत्री और दूसरे कुछ कम जरा से कम भ्रष्टों को मंत्री कैसे बना दिया? क्या हुआ, किसी को भी नहीं छोडऩे का मोदी तेरा वादा! कहीं हम ही गलत तो नहीं समझे थे, जबकि मोदी जी का वादा किसी भी भ्रष्ट को अपनी पार्टी से बाहर नहीं छोडऩे का था; एक-एक भ्रष्ट को अपने पाले में पहुंचाने का था!

खैर, यह सब भी विरोधियों के जान-बूझकर मोदी जी को गलत समझने का मामला है। वर्ना सभी जानते हैं कि भोपाल में मोदी जी का हमला टू इन वन था। यानी परिवारवादी पार्टियों के भ्रष्टाचार पर भी और भ्रष्टाचारियों के परिवारवाद पर भी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी पीएम ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार, दोनों पर एक साथ हमला बोला है। और यह आज से थोड़े ही है। जब देश में अमृतकाल लगा था, तभी मोदी जी ने लाल किले से ही एलान कर दिया था कि अब भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार, परिवारवाद की भी खैर नहीं! अब तो सुना है कि अमृतकाल खत्म भी हो गया है और कर्तव्य काल लग गया है। मोदी जी अब भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर हमला नहीं करते तो कब करते? मोदी जी को भी पहले वाले प्रधानमंत्रियों की तरह लटकाने, अटकाने, भटकाने वाला समझा है क्या? वैसे अमृत काल के खत्म होने और कर्तव्य काल के लगने को लेकर भी, एंटीनेशनल लोग जान-बूझकर भ्रम फैला रहे हैं। 

कह रहे हैं कि शुरू में तो अमृतकाल पच्चीस साल के लिए था, फिर ऐसा क्या हो गया कि मोदी जी ने उसको एक साल भी पूरा नहीं करने दिया। दस-ग्यारह महीने में ही समेट दिया। आखिर, अमृतकाल को समेटने की ऐसी भी क्या जल्दी थी! कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि अमृतकाल का टैम पूरा-वूरा कुछ नहीं हुआ है। बस मोदी जी के राज ने जैसे इतने शहरों के, जिलों के, सड़कों के, संस्थाओं के, योजनाओं के नाम बदले हैं, वैसे ही अमृतकाल का भी नाम बदल दिया है और अमृत पर सफेदी पोतकर, उसके ऊपर कर्तव्य लिखवा दिया है। रही अमृत की जगह कर्तव्य लिखवाने की बात, जबकि दोनों ही शुद्ध भारतीय संस्कृति से हैं, मुसलमानी ध्वनि वाला कोई भी नहीं, तो मोदी राज ने सारे नाम सिर्फ मुसलमानी ध्वनि के लिए ही थोड़े बदले हैं। सेकुलरिज्म डीएनए में है, दिल्ली में औरंगजेब रोड के बाद, अब औरंगजेब लेन को भी, एपीजे

अब्दुल कलाम आजाद के मुसलमानी ध्वनि वाले नाम से ही बदला गया है। और हां! ये रॉकेट वाले अब्दुल कलाम आजाद का नाम है, अंगरेजों से लड़ने - भिड़ने वाले और आजादी के बाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बने, ऑरीजनल अबुल कलाम आजाद का नहीं। उनका नाम तो पिछले ही दिनों एनसीईआरटी ने किताबों से हटाया है, मोदी जी से उनके नाम पर सडक़ करने की उम्मीद तो कोई नहीं करे।
खैर, परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी जी की टू-इन वन लड़ाई पर लौटें। महाराष्ट्र में जो हुआ है, क्या इसी लड़ाई में एक बड़ी प्रगति को नहीं दिखाता है। पहले शिव सेना, अब एनसीपी, दो-दो भ्रष्ट और परिवारवादी पार्टियां तो करीब ध्वस्त भी हो चुकी हैं। परिवार टूट चुका और मोदी खाने देगा नहीं। यही रफ्तार रही तो कर्तव्य काल के पूरे होने से पहले-पहले, बाकी सभी पार्टियां या तो भाजपा में आ जाएंगी या पूरी तरह खत्म हो जाएंगी। मोदी जी का सोल्यूशन फाइनल है - न रहेगा बांस, न बजेेगी बांसुरी। जब

कोई और राजनीतिक पार्टी रहेगी ही नहीं, तो कौन भ्रष्टाचारी  होगा और कौन परिवारवादी! बस एक परिवार रहेगा - संघ परिवार! आखिर, यह देश परिवार की पूजा करने वाला देश है। एक देश और एक नागरिक संहिता के बाद, अब जल्द ही एक देश, एक परिवार भी। इंडिया वालो, मोदी जी से और क्या-क्या एक कराओगे!

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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