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#StopKillingUs : 14 राज्य 75 दिन, एक ही मांग- सीवर-सेप्टिक टैंको में हमें मारना बंद करो

भारत आज़ादी के 75वें वर्ष को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। ऐसे समय में सफाई कर्मचारी आंदोलन ने भी सीवर-सेप्टिक टैंको में होने वाली मौतों को रोकने के लिए 75 दिनों का Stop Killing Us कैंपेन देश भर में चलाया। 
Stop Killing

देश में जब सरकारें पूरे धूमधाम से आज़ादी के 75वें साल को अमृत महोत्सव के रूप में मना रही हैं, उसी समय देश भर में सीवर-सेप्टिक टैंकों में मौतों को रोकने और सरकार को उसके लिए जवाबदेह बनाने के लिए एक जमीनी अभियान चल रहा है— #STOPKILLINGUS सीवर-सेप्टिक टैंक में हमे मारना बंद करो। यह देशव्यापी अभियान सफाई कर्मचारी आंदोलन ने शुरू किया। इस अभियान ने 14 राज्यों के अनेक शहरों से गुजरते हुए इस अभियान ने एक स्वर में सरकारों से मांग की कि वे अपनी आपराधिक चुप्पी को तोड़े और दलितों की जान की परवाह करे।  आम भारतीय नागरिकों सहित सरकारों को इस मुद्दे पर दबाव बनाया जाए और इन हत्याओं पर तुरंत रोक लगाई जाए।  

यह कैंपेन देश के विभिन्न राज्यों से गुजरा। अभियान दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश , राजस्थान, हरियाणा, चंडीगढ़, तेलांगना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, केरल से होता हुआ झारखण्ड, फिर जम्मू कश्मीर , मध्य प्रदेश में बस्तियों में सफाई कर्मचारी समाज के साथ-साथ बाकी नागरिकों तक पहुंचा। 

सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन के निर्देशन में इस अभियान का एक उद्देश्य तो सीवर और सेप्टिक टैंक में सफाई करते समय हो रही सफाई कर्मचारियों की हत्याओं (मौतों) को रोकना है। दूसरा यह कि यह सत्ता में बैठे और प्रशासन के उन लोगों तक अपनी आव़ाज पहुँचाना है जो इन हत्याओं पर कोई संज्ञान नहीं लेते। उन्हें यह भी बताना है कि ऐसे खतरनाक कामों से सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा कितनी जरूरी है ताकि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। उनका गरिमामय पेशों में पुनर्वास कराएं। और मैला ढोने के नियोजन का प्रतिषेध तथा उनका पुर्नवास अधिनियम 2013 (M.S.Act 2013) को लागू करने और  सुप्रीम कोर्ट के 27-3-2014 के फैसले का पालन करें।

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देश के कोने-कोने तक पहुंचे इस अभियान  ने जिस तरह से सफाई कामगार समाज की महिलाओं-बच्चों के साथ पुरुषों ने पूरे जोश-खरोश के साथ शिरकत की, उससे उभरकर सामने आया कि समाज में इन हत्याओं के खिलाफ किस कदर गुस्सा है और वे इस पर तुरंत रोक चाहते हैं। 

गौरतलब है कि विगत 11 मई 2022 को सफाई कर्मचारी आंदोलन ने राजेंद्र प्लेस मेट्रो स्टेशन के पास सिद्धार्थ सर्किल दिल्ली  से ACTION 2022  लांच किया। आंदोलन के कार्यकर्ता व अन्य सहयोगी बैनर और तख्तियां लेकर जुलूस के रूप  में सिद्धार्थ सर्किल पहुंचे। तख्तियों पर STOP KILLING US लिखा हुआ था। वहां जागरूकता हेतु पर्चे भी बांटे गए। सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेज़वाडा  विल्सन ने कहा कि तकनीक के इस आधुनिक युग में भी जातिवादी मानसिकता के कारण देश में मैला प्रथा जारी है। सीवर और सेप्टिक टैंक में लोग सफाई के नाम पर जान गवां रहे हैं। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने इस अमानवीय प्रथा  पर और सीवर-सेप्टिक टैंकों में  होने वाली मौतों  पर चुप्पी साध रखी है।

विल्सन का कहना है कि सरकार संसद  में झूठे आंकडें देती है कि मैनुअल स्केवेंजिंग से पांच सालों में (2016 -2020  तक) 340  सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। जबकि उनके आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों (मई 2017 से मई 2022) में  ही 479 सफाई कर्मचारी  सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई के  दौरान मारे जा चुके हैं।  जब तक सरकार मैला प्रथा का खात्मा नहीं करती और सीवर-सेप्टिक टैंकों में हो रही इन हत्याओं को नहीं रोकती तब तक हमारा ये अभियान जारी रहेगा।

वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भाषा सिंह ने कहा कि क्या आप जानते हैं कि जिस समय देश में आज़ादी की 75वीं जयंती धूमधाम से मनायी जा रही है, उस समय भी देश के कई हिस्सों में महिलाएं शुष्क शौचालय साफ करने को मजबूर हैं। देश के कई राज्यों में आज भी ऐसे शौचालय हैं, जहां औरतों व पुरुषों को हाथ से मैला (टट्टी) उठानी पड़ती है। वे सुबह-सुबह टोकरी, टीना आदि लेकर घरों से मानव मल को इकट्ठा करती हैं और दूर जाकर फैंकतीं हैं। यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है। ऐसा करवाना मानव गरिमा के खिलाफ और मानवता पर कलंक तो है ही, गैर-कानूनी भी है। इसी प्रकार सीवर-सेप्टिक टैंकों में सफाई कर्मचारियों की हत्याएं हो रही हैं। इन्हें रोकना बेहद जरूरी है।

शांति, सेवा, न्याय वाली पुलिस का ही हमारे साथ असहयोग!

अभियान के दौरान आंदोलन के सभी साथियों का एक ही अनुभव रहा कि जब हम अपनी आवाज लेकर देश की राजधानी की सड़कों पर आते हैं  या देश के दूसरे राज्यों में जाते हैं तो पुलिस हमें रोकती है। हैरानी की बात है कि नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कभी इतनी सक्रिय नहीं होती पुलिस।  पुलिस से अनुमति  लेने के बावजूद सड़कों पर पुलिस हमारे साथ ऐसे पेश आती है जैसे हम उपद्रवी हों! हम से बैनर बंद करने को कहा जाता है। हमारे कट आउट्स हटाने को कहा जाता है। और पुलिस का ऐसा व्यवहार तब है जब हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं। सरकार के खिलाफ नारे नहीं लगाते हैं। सड़क के ट्रैफिक को डिस्टर्ब नहीं करते हैं। संविधान ने भले ही हमें शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन का अधिकार दिया हो पर पुलिस हमें हमारे अधिकार से भी वंचित कर देना चाहती है। फिर भी हम हिम्मत नहीं हारते हैं। अपना जागरूकता अभियान चलाते हैं। बाबा साहेब द्वारा दिए गए गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार अपने हक़ के लिए संघर्ष करते रहते हैं।

11 से 17  मई 2022 तक का सफाई कर्मचारी आंदोलन का  “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs  अभियान दिल्ली में चला। इसके बाद उत्तराखंड। 18 मई  से उत्तराखंड  में रहा, फिर राजस्थान की बस्तियों में इसके नारे गूंजे। हरियाणा, चंडीगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, केरल, झारखंड, कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश। (देखें मैप)

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सीवर में मौतों की वास्तविकता से भले केंद्र और राज्य सरकारें आँखें चुराती रहें पर वास्तव में सीवर सफाई  कर्मचारियों की जिंदगी दयनीय स्थिति में है।

सीवर/सेप्टिक टैंक/खुले नालों की सफाई में काम करने वाले कर्मचारी भारतीय कानून द्वारा परिभाषित सफाई कर्मियों की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। इन सफाई कर्मचारियों का उनके जीवन के हर पहलू में शोषण किया जाता है। वे निजी एजेंसियों के अधीन काम करते हैं जो उन्हें सरकारी दायित्वों (अनुबंधों) के तहत काम करवाते हैं। कानून, नियम और दिशा-निर्देशों में भी इनकी सुरक्षा के उपाय बताए गए हैं। इन व्यवस्थाओं के बावजूद सीवर कर्मचारियों  की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है।

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चंडीगढ़ की सफाई कर्मचारी आंदोलन की कन्वेनर रविता खेरवाल बताती हैं कि जब हम चंडीगढ़ में किसान भवन के सामने अपना कैम्पेन करते हैं तो वहां पुलिस आ जाती है और हमें कैंपेन करने से रोकती है कि आप लॉ एंड आर्डर (कानून व्यवस्था) में रुकावट डाल रहे हैं। रविता कहती हैं कि हम कोई कानून व्यवस्था में रुकावट नहीं डाल रहे हैं बल्कि हम अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए शांति पूर्ण ढंग से अपना अभियान चला रहे हैं। और जो काम पुलिस प्रशासन को करना चाहिए वह नहीं  कर रहा है उसे उसका कर्तव्य याद दिला रहे हैं ताकि हमारे किसी भाई की जान सीवर या सेप्टिक टैंक साफ़ करते हुए नहीं जाए। सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई मशीनों से कराई जाए यह  हमारी पहली  मांग है। इसके अलावा ये जो विधवाएं आई हैं इनके पतियों की मौत सीवर सेप्टिक टैंक साफ़ करते हुए हुई है इनको सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दस लाख का मुआवजा मिले और इन्हें पेंशन दी जाए,यह दूसरी मांग है। इसके लिए एस.एच.ओ. ने डी.सी. से मीटिंग करवा कर समस्या का हल निकलने का आश्वासन दिया। यहां कैंपेन में युवाओं और महिलाओं की संख्या अधिक थी।

इसी प्रकार हरियाणा में कुरुक्षेत्र में stop killing us अभियान को मीडिया ने कवर किया। इस कैंपेन में अठारह साल के युवाओं से लेकर सत्तर-अस्सी साल के बुजुर्गों ने ही हिस्सेदारी की। राह चलते लोगों ने कैंपेन की बारे में सवाल पूछे। अपनी रूचि दिखाई। पर प्रशासन का रवैया उदासीन ही रहा।

ठेकेदारी प्रथा का हो ख़ात्मा

ठेकेदारी व्यवस्था के चलते सीवर कर्मचारियों के सिर पर उनकी रोजी-रोटी को लेकर हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है। यह अनिश्चितता बढ़ती ही जा रही है। आजीविका की अनिश्चितता के डर से उनका अमानवीय तरीके से शोषण किया जाता है।

दिल्ली में हजारों की संख्या में सीवर कर्मचारी ठेकेदारों के अधीन काम कर रहे हैं। जब हम एनसीआर क्षेत्र को भी शामिल करेंगे तो यह संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। सीवर कर्मचारी का काम खतरनाक और घातक गैसों के तहत है। गैसों के लगातार संपर्क में आने के कारण अधिकांश कर्मचारी बीमार पड़ जाते हैं और घायल हो जाते हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का मुआवजा, स्वास्थ्य सुविधा या अन्य रूप में सहायता नहीं मिलती है।

मैला प्रथा कानून द्वारा प्रतिबंधित फिर भी जारी

हमारे देश में हर तीसरे-चौथे दिन एक भारतीय नागरिक सीवर-सेप्टिक टैंक में अपनी जान गंवाता है। हम सब जानते हैं कि देश में साफ-सफाई का काम जाति आधारित है। एक जाति के लोग ही इस काम में उतारे जाते हैं। सब के सब दलित समाज से ही होते हैं। हालांकि,  देश का कानून और सुप्रीम कोर्ट, साफ कहता है कि किसी भी इंसान को सीवर-सेप्टिक टैंक में उतारना अपराध है। यह सब जानते हैं कि सीवर-सेप्टिक टैंक में जानलेवा मीथेन गैस होती है, जो सैकडों लोगों की जान ले लेती है। इतनी मौतें होने के बाद भी, अभी तक इन्हें रोकने के लिए सरकारों ने कोई पहलकदमी नहीं की है—क्यों? 

इन मौतों को केवल सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई को मशीनों से करवा करके ही रोका जा सकता है। इंसान का मल-मूत्र सफाई से कोई शारीरिक संपर्क न हो। लेकिन इस दिशा में सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं। मशीनीकरण के नाम पर सरकारें बड़ी-बड़ी कंपनियों को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे समाज को नुकसान है। सफाई कर्मचारी आंदोलन का स्पष्ट मानना है कि सीवर-सेप्टिक टैंक में आधुनिक मशीनों से सफाई का काम सफाई के काम में लगे लोगों को ही देना चाहिए, ताकि किसी को भी काम से हाथ न धोना पड़े।

राष्ट्रीय गर्व या राष्ट्रीय शर्म

आज हम भले ही आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए गर्व महसूस कर रहे हों पर देश में आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी सीवर सेप्टिक टैंकों में सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की जान जाना निश्चित ही शर्मनाक है। दुखद है  कि हम आज़ादी  के 75वें वर्ष में भी खुद को तकनीकी रूप से इतना विकसित नहीं कर पाए कि सीवर सेप्टिक टैंको की सफाई मशीनों से कराने में सक्षम हो सकें। देश की संसद को प्रधानमंत्री को कभी इस पर शर्म महसूस नहीं होती। क्या शर्म महसूस नहीं होनी चाहिए? संसद में सीवर-सेप्टिक टैंक में मौतों को लेकर कम संख्या बताना भी हमारे साथ सरासर नाइंसाफी है।

लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।

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