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SKA की मांग: संसद के नए भवन में हो सीवर-सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतों की चर्चा

“यह बेहद शर्म की बात है कि इतनी प्रौद्योगिकीय तरक़्क़ी करने के बाद भी हम इन मौतों को रोकने का कोई तरीका नहीं खोज पाए हैं।”
Safai Karmachari Andolan

संसद का विशेष सत्र आज यानी 18 सितंबर से शुरू हो गया है जो 22 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान SKA यानी सफाई कर्मचारी आंदोलन की ओर से ये मांग की गई है कि "नए संसद भवन के अंदर होने जा रहे संसद के विशेष सत्र में देशभर में सीवर व सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतों को तुरंत रोकने के लिए एक मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाई जाए।"

आपको बता दें, सफाई कर्मचारी आंदोलन इन सीवर व सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतों के ख़िलाफ़ पिछले साल 11 मई 2022 से लगातार देश में अलग-अलग जगहों पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। अपनी मांग के संबंध में सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) ने एक बयान में कहा कि हमें एक नए, न्यायपूर्ण व बराबरी वाले समाज की तरफ बढ़ने की सख़्त ज़रूरत है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने अपने एक बयान में कहा, "हमारे देश का पुराना संसद भवन कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है और उसमें पिछले 75 सालों के भीतर कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए हैं। उनमें से कई विधेयक नई ज़मीन बनाने वाले कानूनों में तब्दील हुए हैं, जैसे कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा का निषेध करने वाले दो कानून जो क्रमशः 1993 व 2013 में पारित किए गए। लेकिन इन दोनों कानूनों समेत कई कानून जो यहां पारित हुए, वे कभी भी अपनी मूल भावनाओं व मकसद को हासिल नहीं कर सके। यही कारण है कि हमारे समाज में आज भी जाति आधारित व्यवसाय और जातिगत हिंसा व ज़्यादतियां खत्म नहीं हुई हैं और आज भी हमारे देश में रोज़ाना सफाई कर्मचारी सीवर व सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मारे जा रहे हैं।"

उपयुक्त बजटीय आवंटन की मांग

समाज के कमज़ोर तबकों के लिए उपयुक्त बजटीय आवंटन की मांग करते हुए SKA ने कहा, "अब जबकि हम देश के नए संसद भवन की तरफ बढ़ रहे हैं, यह वक़्त और भी कुछ नई शुरुआत करने का है। संसद को हमारे समाज के सबसे कमज़ोर तबकों को सशक्त बनाने का संकल्प लेना चाहिए जो सदी-दर-सदी जातिगत उत्पीड़न का दंश झेलते आ रहे हैं, और उनके लिए उपयुक्त बजटीय आवंटन करना चाहिए।"

"संसद में हो चर्चा"

सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है, "हमारी मांग है कि संसद के नए भवन के भीतर होने जा रहे संसद के विशेष सत्र में देश में दलितों की स्थिति और खास तौर पर सीवर व सेप्टिक टैंकों में निरंतर हो रही मौतों के बारे में विशेष बहस की जाए। यह केवल राष्ट्रीय महत्व का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय शर्म का भी मुद्दा है कि इतनी प्रौद्योगिकीय तरक़्क़ी करने के बाद भी हम इन मौतों को रोकने का कोई तरीका नहीं खोज पाए हैं जबकि संविधान का अनुच्छेद-21 हर नागरिक को गरिमा से जीवन जीने का अधिकार देता है।"

प्रेस रिलीज़ में बताया गया कि सफाई कर्मचारी आंदोलन इन सीवर व सेप्टिक टैंकों की मौतों के ख़िलाफ़ पिछले साल 11 मई 2022 से निरंतर देश में अलग-अलग जगहों पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। "पिछले 496 दिनों से यह प्रदर्शन निरंतर चले आ रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है, इसके उलट वह संसद के भीतर व बाहर सीवर में हो रही मौतों के आंकड़ों की ही हेराफेरी में ध्यान लगा रही है। हमें उम्मीद है कि नए संसद भवन में हमारे नीति-निर्माताओं के सोचने-विचारने का जातिगत रवैया भी बदलेगा और वे नई प्रतिबद्धता दिखलाएंगे।"

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