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दवा निर्माता कंपनियों पर गुणवत्ता मानको को सुनिश्चित करने के लिए सख़्ती ज़रूरी 

मानव जीवन का विचार सर्वोपरि होना चाहिए। वह भी, बच्चों के लिए बनाई जाने वाली औषधियां देश और विश्‍व के लिए बहुत गंभीर नैतिक मुद्दा है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने 11 जुलाई 2023 को फार्मा एमएसएमईज़ (MSMEs) के चुनिंदा अधिकारियों के साथ बैठक की। एजेंडा भारत में निर्मित दवाओं की अहानिकारकता और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने और नियामक मानदंडों का अनुपालन करने पर चर्चा करना था।

यह बैठक ठीक एक साल बाद हुई, जब गांबिया की एक संसदीय समिति ने 69 बच्चों की मौत के लिए भारतीय दवा कंपनी मेडेन फार्मा के कफ सिरप को दोषी ठहराया और हरियाणा की भारतीय कंपनी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश की।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस त्रासदी का संज्ञान लिया था और मामले की जांच की थी और अक्टूबर 2022 में पुष्टि की कि भारत से आने वाले कफ सिरप वास्तव में दूषित थे और मौतों का कारण बने। WHO ने अपने सदस्य देशों में दवा नियामकों को 4 भारतीय कफ सिरप- प्रोमेथाज़िन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकऑफ बेबी कफ सिरप और मैग्रिप एन कोल्ड सिरप पर प्रतिबंध लगाने के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया था।

WHO ने यह भी कहा कि भारत के कफ सिरप के कारण अगस्त 2002 से 3 देशों में 300 मौतें हुईं और मामले की जांच की जा रही है।

भारतीय अधिकारियों की तत्काल प्रतिक्रिया क्या थी?

पहले तो भारत सरकार इनकार की मुद्रा में थी।

13 दिसंबर 2022 को, भारत के औषधि महानियंत्रक डॉ. वीजी सोमानी ने WHO को एक पत्र लिखा कि WHO द्वारा प्रतिबंधित सभी चार कफ सिरप के नमूने, जिनका सरकारी प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया, दूषित नहीं पाए गए।

जब BBC ने गैंबिया के बच्चों की मौत और डब्ल्यूएचओ (WHO) के निष्कर्षों की रिपोर्ट दी, तो भारतीय दवाओं की गुणवत्ता को लेकर दुनिया भर में भय की लहर दौड़ गई।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने दिसंबर 2022 के दूसरे सप्ताह में BBC को बताया कि "WHO ने बच्चों की मौत के लिए भारतीय कफ सिरप को दोषी ठहराने का दुस्साहस किया है।" ठोस शब्दों में, उन्होंने कहा, "भारत सरकार के अधिसूचित निकायों और तकनीकी टीम द्वारा बाद के निरीक्षणों, परीक्षणों और अध्ययनों से पता चला है कि WHO का अभिमानपूर्ण बयान असत्य और गलत था। WHO ने वैध वैज्ञानिक कारणों के बिना हंगामा खड़ा कर दिया।"

हालांकि, WHO ने कहा कि वह अपनी कार्रवाई पर कायम है और जोर देकर कहा कि नकली दवाओं के बारे में रेड अलर्ट जारी करना उसके अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है।

लेकिन फिर उज्बेकिस्तान ने दिसंबर 2022 में फर्म मैरियन बायोटेक (Marion Biotech) द्वारा निर्मित भारतीय कफ सिरप के सेवन के कारण 18 बच्चों की मौत की फिर से सूचना दी।

तब सरकार ने मामले की जांच के लिए दिसंबर में ही फार्माकोलॉजिस्ट वाईके गुप्ता के नेतृत्व में एक समिति बनाई और समिति ने फरवरी 2023 में भारत में दवा नियामक और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति ने अपने निष्कर्षों में कहा कि उसे ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे साबित हो कि भारतीय कफ सिरप और गैंबियन मौतों के बीच कोई संबंध है।

इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) ने भी परीक्षण किया और भारतीय बच्चों की मौत के लिए भारतीय कफ सिरप को दोषी ठहराते हुए एक रिपोर्ट पेश की। यूएस CDC की रिपोर्ट के बाद और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि द्वारा एक रिपोर्ट में भारतीय बाजार में बेची जाने वाली 20% दवाओं के नकली होने की बात कहने के बाद भारत से बड़ी मात्रा में आयात की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता को लेकर अमेरिका में सवाल उठाए गए थे। यह दवा व्यापार के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि अमेरिका को 40% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति भारत द्वारा की जाती है।

भारत सरकार का इनकार अब किसी हाल में टिक न सकता था।

अनिच्छुक पर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा

अजीब बात है, भले ही सरकार इनकार की मुद्रा में थी और यह दावा कर रही थी कि उसके स्वयं के परीक्षणों ने साबित कर दिया है कि विवादास्पद कफ सिरप दूषित नहीं थे और सुरक्षित थे, उसने पहले मेडेन फार्मास्यूटिकल्स और मैरियन बायोटेक में दवा निरीक्षकों को भेजा और कंपनियों को इन खांसी के सिरप का उत्पादन बंद करने का आदेश दिया। फिर सरकार ने इन दोनों कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए, लेकिन मालिकों पर विदेश में मौतों की जिम्मेदारी का मामला दर्ज नहीं किया गया और उन्हें तुरंत गिरफ्तार भी नहीं किया गया। जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश बढ़ा, 3 मार्च 2023 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई और नोएडा स्थित मैरियन बायोटेक के 3 अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। वियतनाम को नकली दवाओं के निर्यात के एक दशक पुराने मामले में मेडेन फार्मा के मालिक और एक अधिकारी को 27 फरवरी 2023 को एक अदालत ने जेल भेज दिया था।

कुछ महीने बीत गए लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा हस्तक्षेप

मई 2023 के मध्य में ही मामले आगे बढ़ने शुरू हुए और वह भी पीएमओ के सीधे हस्तक्षेप के बाद। 'द हिंदू' की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 मई 2023 को पीएमओ द्वारा सभी संबंधित अधिकारियों को एक दस्तावेज प्रसारित किया गया था कि निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए। यहां तक कि कथित तौर पर हैदराबाद में संबंधित एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ एक विचार-मंथन सत्र भी आयोजित किया गया था। News18 की एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में दवा नियामक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation, CDSCO) ने निर्यात से पहले सरकारी प्रयोगशालाओं में कफ सिरप के परीक्षण का प्रस्ताव दिया था।

इसके अतिरिक्त, CDSCO ने सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा था कि निर्यात की जाने वाली सभी दवाएं भारतीय फार्माकोपिया में सूचीबद्ध हों। इसके पीछे की मंशा यह थी कि एक बार जब कोई दवा भारतीय फार्माकोपिया में सूचीबद्ध हो जाती है तो उसका विनिर्माण सुरक्षित होगा!

आख़िरकार स्वास्थ्य मंत्री बैठक बुलाते हैं

आख़िरकार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया ने एक बैठक बुलाई - यह प्रवर्तन एजेंसियों के प्रतिनिधियों की बैठक नहीं बल्कि फार्मा MSMEs के अधिकारियों की बैठक थी, और यह उद्योग मंडलों और संघों के प्रतिनिधियों की बैठक न होकर मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा चुने गए प्रबंधकों की बैठक थी।

बैठक में सबसे अहम घोषणा रही कि 2015 शेड्यूल एम (Schedule M) का पालन अनिवार्य होगा। WHO ने दवा निर्माताओं द्वारा पालन किए जाने वाले गुणवत्ता मानदंडों की एक सूची तैयार की थी, जिसे ‘गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज’ (GMP) कहा जाता है, इन GMP मानदंडों को 2001 में अनुसूची एम में संहिताबद्ध किया गया था। इसे 2005 में संशोधित किया गया। लेकिन मीटिंग में विडंबना थी कि मंत्री ने घोषणा की कि 2005 में ही शेड्यूल एम को अनिवार्य कर दिया गया था! लेकिन इन सभी वर्षों में यह केवल कागजों पर ही "अनिवार्य" रहा। न तो मंत्रालय और न ही किसी अन्य सरकारी एजेंसी ने इसे लागू करने की जहमत उठाई। अब, मंत्री की बैठक में अंततः यह निर्णय लिया गया कि अनुसूची एम को आहिस्ता-आहिस्ता अनिवार्य कर दिया जाएगा!

बैठक में मंत्री ने यह भी चेतावनी दी कि नकली दवा बनाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। मनसुख मंडाविया ने कहा कि उन्होंने भारत के औषधि महानियंत्रक को नकली दवा बनाने वाली सभी दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। उन्होंने आंकड़ों को पेश किया और कहा कि नियामक अधिकारियों ने पहले ही संयंत्रों का जोखिम-आधारित निरीक्षण (risk-based inspection) और ऑडिट शुरू कर दिया है।

मंडाविया के मुताबिक, 137 फर्मों का निरीक्षण किया गया और 105 फर्मों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। विवरण में जाते हुए, उन्होंने कहा कि 31 फर्मों में उत्पादन बंद कर दिया गया है और 50 फर्मों के खिलाफ उत्पाद/अनुभाग लाइसेंस रद्द करने के आदेश जारी किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, 73 फर्मों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और 21 फर्मों को चेतावनी पत्र जारी किए गए हैं।

संयोग से, बिजनेस जर्नल ‘बिजनेस वर्ल्ड’ ने 12 जुलाई 2023 को खुलासा किया कि RSS से संबद्ध लघु उद्योग भारती ने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इन तथाकथित "जोखिम-आधारित निरीक्षणों" के बारे में आपत्ति व्यक्त की थी और बाद में उस पत्र को यह कहते हुए वापस ले लिया कि पत्र अनजाने में जारी हुआ था! अंतरराष्ट्रीय बाजार के बढ़ते दबाव और अपने पारंपरिक वर्ग आधार के बीच संघ परिवार के लिए यह कठिन रास्ता है।

निरीक्षण की गई 137 फर्मों में से 105 के खिलाफ कार्रवाई से पता चलता है कि गलती करने वाली फर्मों का प्रतिशत 77% से अधिक है। यह देखते हुए कि भारत में 8500 फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं, जिनमें से केवल 1000 WHO-GMP के अनुरूप हैं, कोई भी उल्लंघन के पैमाने की कल्पना कर सकता है।

मानव जीवन की चिंता सर्वोपरि होनी चाहिए

माना जाता है कि 50 अरब डॉलर का भारतीय फार्मा उद्योग भारत में सफलता की कहानी है। यह मात्रा के मामले में फार्मा उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और उत्पादन के मूल्य के मामले में दुनिया में 13वां है। जेनेरिक निर्यात के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। 2022-23 में, भारत से कुल फार्मा निर्यात 25.3 बिलियन डॉलर (या 2.08,231 करोड़ रुपये) था। अगर भारतीय दवाओं की गुणवत्ता खराब हुई तो निर्यात पर गंभीर असर पड़ेगा। अर्थव्यवस्था को और फार्मा श्रमिकों को भारी नुकसान होगा।

आर्थिक विचारों से अधिक मानव जीवन का विचार सर्वोपरि होना चाहिए। वह भी, बच्चों की जान से खिलवाड़ पूरे देश और विश्‍व के लिए एक बहुत गंभीर नैतिक मुद्दा है। गैंबिया की मौतों से अधिकारियों को, विशेषकर राजनीतिक स्तर पर चिंतित होना चाहिए था, और उनकी सुस्ती खत्म होनी चाहिए थी। दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं हुआ। हम केवल इंतजार कर सकते हैं यह देखने के लिए कि 11 जुलाई 2023 की बैठक कोई गुणात्मक परिवर्तन लाती है या नहीं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं। विचार व्‍यक्तिगत हैं।)

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