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इस रोशनी में थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है...

दीपावली का त्योहार है...घर-बाज़ार रोशन किए जा रहे हैं। ऐसे में मणि मोहन की कविता रोशनी याद आती है। आइए आज इतवार की कविता में पढ़ते उनकी यही कविता।
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फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

रोशनी

 

इस रोशनी में

थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है

जिसने चाक पर गीली मिट्टी रखकर

आकार दिया है इस दीपक को

 

इस रोशनी में

थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है

जिसने उगाया है कपास

तुम्हारी बाती के लिए

 

थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी

जिसके पसीने से बना है तेल

 

इस रोशनी में

थोड़ा-सा हिस्सा

उस अँधेरे का भी है

जो दिए के नीचे

पसरा है चुपचाप।

 

-    मणि मोहन

(साभार – हिन्दवी)

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