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खंडित लैंडस्केप, बर्बाद हुए हाथी कॉरिडोर की कहानी  

सरकार वनों के मामले में जो भी कर रही है वह पशुओं के हेबिटेट के नुकसान का मुख्य कारण है, लेकिन यही सरकार हाथियों के बारे में 'जश्न' मनाने से भी नहीं चूकती है।
elephants
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

पिछले तीन वर्षों से, हाथियों का एक झुंड उत्तराखंड में शिवालिक पहाड़ियों के तिमली क्षेत्र,  हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे पोंटा साहिब के पास फंसा हुआ है। तिमली के आस-पास बड़ी संख्या में सड़कें बन रही हैं या इन्हे चौड़ा किया जा रहा है, जिनमें असरोधी से झझरा बाहरी रिंग रोड और विकासनगर-बेहट सड़क शामिल हैं, इसके अलावा मानव बस्तियों को बसाने के लिए वन भूमि के बड़े हिस्से पर अवैध कब्ज़ा करने से इस झुंड के लिए हिलना डुलना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया है। 

खानाबदोश हाथियों के घर, शिवालिक और उसके आसपास कई तथाकथित हाथी गलियारों की कुछ ऐसी ही दशा है। यह देश भर में उन सरकारों और वन विभागों पर एक और रियलिटी चेक है, जो शुक्रवार को धूमधाम से गज उत्सव या हाथी महोत्सव मना रहे हैं।

हाथी और उनका बड़े पैमाने घूमना-फिरना वर्षा में मौसमी बदलाव के साथ निकटता से जुड़ा  हुआ है। वे हमेशा भोजन और पानी की तलाश में चलते रहते हैं, लेकिन उनके रास्ते में पड़ने वाली बाधाओं के कारण उनमें तनाव और गुस्सा पैदा हो जाता है। पर्यावरण वैज्ञानिक हमेशा जानवरों के साथ मनुष्यों के बढ़ते संघर्ष और उनके विलुप्त होने के जोखिमों के बारे में चेतावनी देते रहते हैं क्योंकि इससे उनके एक जगह से दूसरी जगह जाने का खतरा पैदा होता है।

यह पूछे जाने पर कि वे इस मुद्दे को कैसे हल करने की उम्मीद कैसे करते हैं, मसूरी जिला वन अधिकारी, आशुतोष सिंह, जिनके अधिकार क्षेत्र में तिमली आता है, ने कहा, “उन्हें [हाथियों] वहां से स्थानांतरित करना होगा और कोई वैकल्पिक योजना बनानी होगी।”

पोंटा साहिब से ऋषिकेश और हरिद्वार से नेपाल तक फैली गंगा-यमुना नदी घाटियों के बीच पारंपरिक हाथियों की आवाजाही खेती, बस्तियों और विकास के नाम पर बनाए गई बेकार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कारण और मानव अतिक्रमण के कारण बंद हो गई है।

कुछ दशक पहले शिवालिक रेंज में हाथियों की आबादी 4,000 हुआ करती थी जो अब घटकर 2,000 रह गई है। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि यदि उनके आवागमन के गलियारों को को बाघ के कानूनी संरक्षण की तर्ज़ पर सुरक्षित करने के लिए इंसानी बस्तियों को फलने-फूलने से नहीं रोका जाता है, तो यह संख्या और गिर जाएगी। एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह के सदस्य, हाथी विशेषज्ञ डॉ ए॰ क्रिस्टी विलियम्स ने राजाजी राष्ट्रीय उद्यान और शिवालिक क्षेत्र में हाथियों का अध्ययन करने में कई साल बिताए हैं। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में हाथियों की संख्या पहले से ही 1,000 से अधिक नहीं है।

हालांकि, कानूनी संरक्षण जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। उत्तराखंड में वन गलियारों में  लगातार कमी के मुख्य अपराधी इसके राजनेता हैं, जो पर्यावरण के प्रति बहुत कम या कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाते हैं।

देहरादून के बाहरी इलाके, रायपुर और भोपालपानी के बीच हाथी गलियारे की हाल की यात्रा से पता चला है कि इसमें निचले स्तर की दलदली भूमि का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, जो मानसून के मौसम में दल-दली बन जाता है। पास में सोंग नदी बहती है। सड़क के उस पार वन विभाग ने बड़े हिस्से में सोलर के पेनल लगाए गए हैं, जिससे हाथियों को पार करने में बाधा आती है। 

राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस जमीन को नए विधानसभा सचिवालय भवन के निर्माण के लिए स्थानांतरित करने के लिए वन विभाग को 7 करोड़ रुपये मिले थे। हाथी कॉरिडोर के लिए वन विभाग को 15.37 करोड़ रुपये और दिए जाएंगे। जबकि विधानसभा के निर्माण पर 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

पर्यावरण कार्यकर्ता रीनू पॉल कहती हैं, “यदि एक बार यह महत्वपूर्ण हाथी गलियारा नष्ट हो गया, तो इन जानवरों के लिए यह आवंटित पैसा किस काम का? मानव इस्तेमाल के लिए प्राकृतिक इलाकों में बदलाव पारिस्थितिकी तंत्र और इसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा होता है।"

पर्यावरणविद् नए विधानसभा भवन निर्माण बारे में राज्य सरकार द्वारा दी गई हरी झंडी पर भी सवाल उठा रहे हैं, उनके मुताबिक, देहरादून में एक विधानसभा और सरकारी भवनों के निर्माण में सैकड़ों करोड़ डूब गए हैं। राज्य सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का निर्णय लिया है, जिस पर नई विधानसभा बनाने के लिए कई सौ करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। फिर तीसरे भवन की जरूरत कहाँ से पैदा हुई?

राज्य सरकार का कहना है कि ऐसा शहर में भीड़ कम करने के लिए किया गया है।

डीएफओ आशुतोष सिंह कहते हैं कि, 'यह उच्च स्तर पर लिया गया फैसला था।' उत्तराखण्ड के वन विभाग की कार्यपालिका के आदेशों का विरोध करने में असमर्थता मुख्य कारण है कि इस तीव्र गति से मुख्य वन भूमि का सत्यानाश हो रहा है।

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में देहरादून का दौरा किया, तो एक आईएएस अधिकारी ने जंगल को काटकर रातों-रात एक सड़क बनवा दी थी। सड़क वन विभाग से मंजूरी लिए बिना बनाई गई थी और आज ट्रकों, टैक्सियों और अन्य वाहनों के आवागमन के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

पीएम के दौरे के लिए 2021 में बनी सड़क। (ये पिक्चर रश्मि सहगल ने 28 मार्च, 2023 को ली थीं|

किसी वनीय इलाके के भीतर सड़क निर्माण, अवैध बस्तियों के लिए दरवाज़े खोल देता है, और पिछले दो वर्षों में, देहरादून शहर से 15 किलोमीटर दूर थानो जंगल में और इसके आसपास कई ढांचे बन गए हैं, जो हाथियों के झुंड के आवागमन को रोकते हैं।

हाथी की पीठ में छुरा घोपने की यह घोषणा थी कि राज्य सरकार ने थानो वन रेंज में 250 एकड़ प्रमुख वन भूमि को स्थानांतरित करके जॉली ग्रांट हवाई अड्डे का फिर से विस्तार करने पर विचार कर रही है, हालांकि वे जानते हैं कि इससे हाथियों की आवाजाही पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। .

यह क्षेत्र राजाजी नेशनल पार्क इको-सेंसिटिव जोन के 10 किलोमीटर के दायरे में आता है।

तीन साल पहले जब राज्य सरकार ने पहली बार हवाईअड्डे के विस्तार का प्रस्ताव दिया था तो पॉल ने इसके खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि इसके लिए 10,000 से अधिक पेड़ों की कटाई की जरूरत होगी। उच्च न्यायालय ने निर्माण पर रोक लगा दी, और राज्य सरकार ने याचिका वापस ले ली और अक्टूबर 2022 में शिवालिक हाथी गलियारे को बहाल कर दिया गया था। यह घनी आबादी वाले भनियावाला कॉलोनी की ओर हवाई अड्डे का विस्तार करने पर भी सहमती हुई थी। 

5,000 वर्ग किमी में फैले इस शिवालिक हाथी रिजर्व को 2002 में प्रोजेक्ट एलिफेंट के तहत अधिसूचित किया गया था, जिसे 1992 में भारत सरकार ने शुरू किया था। हवाई अड्डे के विस्तार का जनता ने बड़े पैमाने पर विरोध किया था।

राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने फिर से कहा है कि वे जल्द ही हवाईअड्डे का विस्तार थानो जंगल की ओर कर सकते हैं। हालांकि, कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उत्तराखंड राज्य सरकार को केंद्र से अपने वार्षिक बजट के हिस्से के रूप में 1.5 लाख करोड़ रुपये मिले हैं। इस धन का अधिकांश भाग सड़कों के चौड़ीकरण और निर्माण पर खर्च किया जा रहा है, अक्सर वन क्षेत्रों में सड़कों का दोहराव और तीन गुना किया जा रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा बनने वाले क्षेत्र इन विस्तारित निर्माण योजनाओं का हिस्सा हैं। देहरादून स्थित राजनीतिक विश्लेषक एसएमए काजमी का मानना है कि, "भनियावाला के मतदाता उनके निर्वाचन क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और वह इस महत्वपूर्ण वोट बैंक को खोना नहीं चाहते हैं।"

एक और खोया हुआ महत्वपूर्ण गलियारा मोहंड से फैला हुआ है, जिस पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में छुटमलपुर से सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है, जो राजाजी बाघ अभयारण्य पर समाप्त होता है। केंद्रीय सड़क और परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के निर्माण को आगे बढ़ाया है, जिसके लिए राजाजी रिजर्व के करीब 12 किलोमीटर के एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण की जरूरत थी। एक्सप्रेसवे मौजूदा राष्ट्रीय राजमार्ग-58 का डुप्लिकेट है जो उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से उत्तराखंड में बद्रीनाथ तक जाता है।

दून घाटी और उसके हाथी गलियारे। चित्र केवल प्रतिनिधित्वात्मक उद्देश्यों के लिए है।

अत्यधिक निर्माण न केवल शिवालिक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रहा है बल्कि इस इलाके से निकलने वाली बड़ी संख्या में नदियों और झरनों को भी नष्ट कर रहा है।

राजाजी में पूर्व मानद वन्यजीव वार्डन राजीव मेहता कहते हैं, "हाथी गलियारोंके प्रति यह बाधा इंसानी-पशु संघर्ष को बढ़ा रहा है क्योंकि पानी की उनकी खोज उन्हें मानव आवास के करीब लाती है।"

गाँव वालों के मुताबिक, वन अधिकारियों द्वारा सोलर पेनल और बिजली की बाड़ के अवैध इस्तेमाल से हाथियों को बिजली के करंट लगाने खतरे बढ़ गए हैं।   

जब हाथियों के गलियारे अवरुद्ध हो जाते हैं, तो वे लोगों पर हमला करते हैं और खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जैसा कि देहरादून शहर की सीमा के बाहर स्थित बालावाला और रायवाला में देखा गया है।

फ़ॉरेस्ट रेंजर एनएल डोभाल, जो थानो फ़ॉरेस्ट रेंज के प्रमुख हैं, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कैसे भारतीय वन सेवा कैडर का जोर अपने राजनीतिक आकाओं और स्थानीय आबादी को जानवरों की कीमत पर भी संतुष्ट करने पर था।

मेहता ऐसे कई उदाहरण देते हैं जब हाथियों ने अपने आवागमन के रास्ते में दीवारों को गिराने में संकोच नहीं किया था।

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे हाथी साफ पेयजल की तलाश में काफी दूर तक जा सकते हैं। हाथी प्रदूषित पानी नहीं पीते हैं। “राजाजी पार्क के हरिद्वार डिवीजन में श्यामपुर रेंज में वर्तमान में 800 गुर्जर परिवार बसे हुए हैं। उन्हें केवल चराई का अधिकार दिया गया था। इससे पहले, सरकार के पास प्रति परिवार 5 लाख रुपये और पांच बीघा जमीन देकर उनके पुनर्वास की एक सफल पुनर्वास नीति हुआ करती थी। यह 2004 में शुरू हुई थी, लेकिन वर्तमान भाजपा शासन ने इसे बंद कर दिया है”। नतीजतन, हजारों जल-भैंस रिजर्व में बहने वाली नदियों में स्नान और पेशाब करती हैं। "हमने पाया है कि हाथी प्यासा रहना पसंद करते हैं लेकिन प्रदूषित पानी नहीं पीते हैं। उनके मुताबिक, दुख की बात यह है कि देहरादून से होकर बहने वाली नदियां अब सीवेज से भर गई हैं, और इसलिए हाथियों को साफ पानी खोजने के लिए अधिक दूरी तय करनी पड़ती है।”

जंगली हाथियों की घटती आबादी राजनीतिक महत्व का मुद्दा नहीं है, लेकिन इंसानी-हाथी संघर्ष के मामलों में वृद्धि से लगता है कि हाथी यह ज़ंग हार रहे हैं। 

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Fragmented Landscapes, Destroyed Elephant Corridors

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