Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तिरछी नज़र: 26 जनवरी बिल्कुल ही सरकार जी की प्लानिंग के मुताबिक रही

सरकार की तैयारी मुक्कमल रही, राजपथ की परेड की भी और किसानों की ट्रैक्टर परेड की भी। कृषि मंत्री तोमर जी ने तो किसान नेताओं को चार दिन पहले ही बता भी दिया था कि अब हम अपनी तैयारी करेंगे। किसान नेता समझे ही नहीं...। पढ़िए डॉ. द्रोण का व्यंग्य
cartoon click

छब्बीस जनवरी बिल्कुल ही सरकार जी की प्लानिंग के मुताबिक रही। कृषि मंत्री तोमर जी ने बाईस जनवरी की मीटिंग के बाद ही किसान नेताओं से कह दिया था कि जाइये, हम छब्बीस जनवरी की अपनी तैयारी करते हैं, आप अपनी कीजिए। सरकार की तैयारी मुक्कमल रही, राजपथ की परेड की भी और किसानों की ट्रैक्टर परेड की भी। पहले तो राजपथ पर सरकारी परेड हुई और फिर बाद में किसानों की ट्रैक्टर परेड। सरकारी परेड तो हमेशा की तरह भव्य ही हुई पर बाद में किसानों की जो ट्रैक्टर परेड हुई उसमें भी असलियत में सरकार जी की ही प्लानिंग दिखाई दी। सब कुछ योजना के अनुसार ही हुआ। न एक इंच इधर, न एक इंच उधर।

वैसे भी सरकारें बड़ी ही सयानी होती हैं। और यह सरकार तो औरों से भी अधिक सयानी है। वैसे तो सभी सरकारों को पता होता है कि इन जन आंदोलनों से कैसे निपटना है। पर इस सरकार को यह और भी अधिक अच्छी तरह से पता है। अगर आंदोलन हिंसक न हो तो सरकारों को उससे निपटने में मुश्किल आती ही है। इसीलिए सरकारें चाहती हैं कि आंदोलन हिंसक ही हो। हिंसक न हो तो हिंसक बन जाए। अपने आप न बने तो जबरदस्ती बनाया जाए। हिंसक आंदोलन को कुचलना किसी भी सरकार के लिए बहुत ही आसान होता है। यह पुराने जमाने का अंग्रेज़ी राजा भी जानता था और इस बात को आज का देशी राजा भी जानता है। 

पर पुराने जमाने के अंग्रेज़ी शासकों में शायद कम अक्ल थी। उन्हें पता ही नहीं था कि अहिंसक आंदोलनों में हिंसा कैसे घुसेड़ी जाये। अगर उनमें इसकी जरा सी भी अक्ल होती तो गांधी जी के आंदोलनों में भी वे हिंसा घुसेड़ देते और उनसे पार पा लेते। पर आजकल के शासकों को, जो कहते हैं कि उन्होंने चाणक्य को पढा़ है, इसके बारे में खासी जानकारी है। आज की सरकारें किसी अहिंसक आंदोलन को भी कुचलने के लिए कहीं तक भी जा सकती हैं। कोमल से लेकर कपिल मिश्रा तक, कपिल मिश्रा से दीप सिद्धू तक। कहीं भी। कभी भी। कैसे भी। 

लेकिन सरकार ने यह सब बिना वार्निंग दिये नहीं किया। सरकार ईमानदार है। कृषि मंत्री तोमर जी ने तो किसान नेताओं को चार दिन पहले ही बता भी दिया था कि अब हम अपनी तैयारी करेंगे। किसान नेता समझे ही नहीं तो वे अनाड़ी हैं। सरकार के पास पिछली बार कपिल मिश्रा था तो इस बार दीप सिद्धू है। और दीप सिद्धू ने भी बहुत ही जिम्मेवारी से अपने को दी गई जिम्मेदारी को निभाया। 

सरकार की प्लानिंग पक्की थी। सरकार जी ने प्लानिंग का, क्रोनालॉजी का काम श्री एएस जी को दिया था। अरे वही एएस जी, जिनका जिक्र अर्नब गोस्वामी की चैट में भी बार बार आता है। बताया जाता है कि ये श्री एएस जी क्रोनोलॉजी बनाने में बहुत ही माहिर हैं। और उन्होंने क्रोनोलॉजी बनाई भी। अरे भाई! राजपथ की परेड की क्रोनोलॉजी नहीं, ट्रैक्टर परेड की क्रोनोलॉजी। राजपथ की परेड की क्रोनोलॉजी तो वर्षों से फिक्स है। पहले सेना और उसके आयुद्ध की परेड। उसके बाद अर्ध सैनिक बल, स्कूली बच्चे और लोकनर्तक, और सड़क पर अंत में राज्यों की झांकियाँ। फिर आसमान में हैलीकॉप्टर और हवाई जहाज। इस बार रफ़ाल जहाज होना था और था भी। अंत में आसमान में उड़ते हजारों रंग बिरंगे गुब्बारे। इस बार भी परेड की यही क्रोनोलॉजी थी। इसमें श्री एएस जी की कहीं जरूरत ही नहीं थी।

असलियत में एएस जी को तो किसानों की ट्रैक्टर परेड की क्रोनोलॉजी ही बनानी थी। दीप सिद्धू का रोल इस परेड के लिए पहले से ही तैयार कर लिया गया था। उससे जब दिसम्बर में सन्नी देओल ने अपने रिश्ते समाप्त किए थे तभी अंदाजा हो जाना चाहिए था कि उसे कुछ बड़ा काम दिया जाने वाला है।  अब छब्बीस जनवरी को उसकी जरूरत आन पड़ी थी। वह पट्ठा तो तैयार था ही। बताते हैं कि पच्चीस की रात को ही उसने किसान आंदोलन का स्टेज कब्जा लिया था। एएस जी का भी अपनी इंटेलीजेंस को पूरा निर्देश था कि बस देखना है कि सब काम क्रोनोलॉजी के अनुसार हो रहा है या नहीं। बाकी करना कुछ भी नहीं है। 

फिर छब्बीस जनवरी को सब कुछ क्रोनोलॉजी से ही हुआ और पुलिस ने, इंटेलिजेंस ने कुछ नहीं किया। मुबरका चौक के मामूली से अवरोध के बाद दीप सिद्धू द्वारा तैयार किए गए उपद्रवी लोगों को कहीं भी कोई मुश्किल नहीं आई। वे इतनी आसानी से 15-20 किलोमीटर दूर लाल किला पहुँच गए जैसे जगह जगह निर्देश लगे हों कि लाल किला इधर है। वहाँ भी, बताया जाता है कि प्रहरियों ने उपद्रवियों को लाल किले का द्वार खोल ऊपर प्राचीर पर जाने दिया। जब सब कुछ क्रोनोलॉजी के हिसाब से ही हो रहा था तो एएस जी की पुलिस बस देखती रही, देखती ही रही। काम तो तब करती न जब कुछ क्रोनोलॉजी से अलग होता। सिद्धू ने सब कुछ क्रोनोलॉजी से ही किया था। इसीलिए पुलिस ने सिद्धू को आराम से भागने दिया। आखिर दोनों, सिद्धू भी और दिल्ली पुलिस भी एएस के निर्देशों का पालन ही कर रहे थे। हाँ, आईटीओ क्रोनोलॉजी में शामिल नहीं था। वहाँ पुलिस ने जरूर रोका। एक किसान की मृत्यु भी हुई। 

अब मौका भी मौजूद था और दस्तूर भी। कि किसानों के इस आंदोलन पर हिंसा का आरोप लगा कुचल दिया जाये। अब तो सरकार को और उसकी पूरी की पूरी पुलिस को हिंसक होने की पूरी आजादी थी। लेकिन क्या करें, किसी के आंसू सरकार की ताकत से ताकतवर निकले। आंसुओं ने आंदोलन में फिर से जान फूंक दी। 

पुरानी कहावत है:

 

जाट मरा तब जानियो, 

जब तेरही-तीजा होय। 

 

और अब अर्ज है:

 

धरना खतम तब मानियो, 

कानून निरस्त जब होय।। 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest