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पीएम का यू-टर्न स्वागत योग्य, लेकिन भारत का वैक्सीन संकट अब भी बरकरार है

टीकाकरण की राह की एक बड़ी बाधा टीके की आपूर्ति की गंभीर कमी अब भी जस की तस है। लिहाज़ा, निजी अस्पतालों के लिए 25% खुराक का आरक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और सभी के लिए मुफ़्त टीकाकरण होना चाहिए।
Vaccine

सरकार की विनाशकारी "उदार और सुगम टीकाकरण रणनीति" की आंशिक वापसी स्वागत योग्य कदम है, लेकिन भारत का वैक्सीन संकट ख़त्म होने से अब भी कोसों दूर है। देश के टीकाकरण कार्यक्रम की अब तक की ख़ासियत उसका असमान, अक्षम और अस्पष्ट होना रही है। अगर देश के टीकाकरण कार्यक्रम को प्रभावी बनाना है, तो इसे बदलना होगा।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में अपनी वैक्सीन रणनीति को "उदार और सुगम वैक्सीन रणनीति" बताया था। मई के महीने से इस पर अमल किया जाना था और राज्य सरकारों, विपक्षी दलों, नागरिक समाज और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से भी इसकी बेइंसाफ़ी और अक्षमता को लेकर इस "उदार और सुगम वैक्सीन रणनीति" की कड़ी आलोचना हुई थी।

इस रणनीति को आंशिक रूप से वापस लेकर केंद्र सरकार ने कम से कम कुछ हद तक तो सुधार किया है। हालांकि, सरकार ने अब भी देश में उत्पादित कुल खुराक का 25% निजी क्षेत्र, यानी कि शहरी अमीरों के लिए आरक्षित कर दिया है। सरकार को इसे भी वापस लेना चाहिए और सार्वभौमिक यानी सबके लिए मुफ़्त टीकाकरण की रणनीति पर वापस लौट आना चाहिए।

31 मई, 2021 तक भारत की महज़ 12% आबादी को आंशिक रूप से टीका (कम से कम एक खुराक) लगाया जा सका था, और सिर्फ़ 3% आबादी को ही पूरी तरह से टीका (दोनों खुराक) लग पाया था। प्रधान मंत्री ने अपने भाषण में आयु वर्ग को प्राथमिकता देने की रणनीति पर सवाल उठाने के लिए सरकार के कुछ आलोचकों की आलोचना की है। हालांकि, उन्होंने इस बात को नज़रअंदाज़ करना पसंद किया कि ज़्यादातर समझदार आलोचकों ने उम्र-वार प्राथमिकता का विरोध नहीं किया था, बल्कि उन्होंने तो स्वास्थ्य सेवा में लगे कर्मियों और फ़्रंटलाइन वर्कर की अव्यवस्थित रूप से परिभाषित श्रेणी से परे प्राथमिकता को एकमात्र मानदंड बनाये जाने को मुद्दा बनाया था। कई लोगों ने इस बात की भी मांग की थी कि ज़रूरी काम में लगे कर्मियों की अन्य श्रेणियां, और जो लोग ऐसी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं, जहां फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग संभव ही नहीं है, उन्हें भी सरकार की इस प्राथमिकता श्रेणियों में शामिल किया जाना चाहिए।

हालांकि, भले ही संक्रमण के प्रति संवेदनशील होने की जिस आयु को सरकार ने निर्धारित किया था, अगर हम उसी आयु मानदंड पर विचार करें, तो हम पाते हैं कि 60 साल से ज़्यादा आयु के आधे से भी कम (43%) लोगों ने आंशिक रूप से टीका लगवाया है। इस श्रेणी के लोगों में टीके के दोनों खुराक लगवाने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम हैं। इस तरह, सरकार ने तक़रीबन चार महीने के टीकाकरण कार्यक्रम के अपने ख़ुद के जिन लक्ष्यों को निर्धारित किया था, उन्हें पूरा करने के लिहाज़ से बहुत पीछे है।

45 से 60 साल की आयु वाले लोगों में से महज़ 25% को ही कम से कम एक खुराक मिल पायी है। उस आयु वर्ग के लोग, जिन्हें मई में ही टीके लगवाने की पात्रता दी गयी थी और उन्हें टीके के शॉट्स के लिए भुगतान करने के लिए कहा गया था, उनमें से अब तक सिर्फ़ 4% लोगों का ही कम से कम आंशिक रूप से टीकाकरण हो पाया है, यानी इनकी संख्या भी बेहद छोटी है।

जैसा कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने शुरुआत में ही इस बात को लेकर चेता दिया था और अब तो तेज़ी से स्पष्ट भी होता जा रहा है कि सिर्फ़ CoWin पोर्टल पर अपना पंजीकरण करने के आधार पर प्रभावी कवरेज सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने भले ही इस पोर्टल की तारीफ़ की हो, मगर प्रधान मंत्री को यह स्वीकार करना चाहिए था कि पंजीकरण की यह रणनीति एक ऐसे देश में बेहद ग़ैर-मुनासिब है, जहां एक बड़ी आबादी के पास इंटरनेट तक पहुंच नहीं है और वह आबादी CoWin पोर्टल पर इस्तेमाल को लेकर उपलब्ध भाषा, यानी अंग्रेज़ी में पढ़, बोल या लिख नहीं सकती है।

वैक्सीन वितरण को लेकर यह ग़ैर-बराबरी राज्यों और राज्यों के भीतर भी दिखायी दे रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और तमिलनाडु ने अब तक अपनी इस पात्रता वाली आबादी के 10% से भी कम लोगों का टीकाकरण करवाया पाया है। हालांकि, प्रधान मंत्री ने कहा है कि राज्यों को किया जाने वाला आवंटन एक सप्ताह पहले घोषित किया जायेगा, लेकिन अब तक इस्तेमाल किये जा रहे मानदंड और भविष्य में वैक्सीन आवंटन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले मानदंड अब भी स्पष्ट नहीं हैं।

स्वास्थ्य परिवार कल्याण मन्त्रालय (MoHFW) ने अप्रैल में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि टीके का आवंटन मामलों की संख्या और वैक्सीन प्रबंधन को लेकर प्रदर्शन पर निर्भर करेगा, जबकि एक अन्य बयान में कहा गया था कि यह जनसंख्या पर आधारित होगा। सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और राज्य सरकारों के परामर्श से पारदर्शी तरीक़े से राज्यों को वैक्सीन आवंटन के लिए उचित और वस्तुनिष्ठ मानदंड घोषित करना चाहिए।

अपनी ओर से राज्य सरकारों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने राज्यों में वैक्सीन के वितरण में किसी तरह की ग़ैर-बराबरी को जगह नहीं दें। इस समय ज़्यादातर टीकाकरण अभियान शहरी क्षेत्रों में ही केंद्रित हैं। यहां छह राज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तर प्रदेश का विश्लेषण दिखाया गया है ।

महाराष्ट्र के पुणे, नागपुर, कोल्हापुर और मुंबई में कवरेज अन्य ज़िलों के मुक़ाबले काफ़ी बेहतर है (चित्र देखें: https://datawrapper.dwcdn.net/XdxUz/2/)1। कर्नाटक में सिर्फ़ बेंगलुरु और मैसूर में 20% से ज़्यादा कवरेज के साथ यह वितरण समान है, (चित्र देखें: https://datawrapper.dwcdn.net/ilzRJ/2/)2

केरल के सभी ज़िलों में वैक्सीन कवरेज ज़्यादा न्यायसंगत है, तक़रीबन सभी ज़िलों में 20% से ज़्यादा कवरेज हो चुका है (चित्र देखें:https://datawrapper.dwcdn.net/bWQ3u/2/ )1.

बेहद ग़ैर-बराबरी वाले वैक्सीन कवरेज के साथ तमिलनाडु एकदम उटले छोर पर है। तमिलनाडु के ज़्यादतर ज़िलों में 10% से कम कवरेज है। सिर्फ़ चेन्नई में 20% से ज़्यादा कवरेज है। (चित्र देखें.):https://datawrapper.dwcdn.net/iyERU/2/ )1.

गुजरात (चित्र देखें: https://datawrapper.dwcdn.net/Ai07n/2/)1 और उत्तर प्रदेश राज्यों के भीतर भी शहरी और ग्रामीण ज़िलों के बीच टीकों के वितरण ग़ैर-बराबर दिखते हैं। गुजरात में गांधीनगर के कॉर्पोरेशन क्षेत्र ने अपनी तक़रीबन 55% आबादी को कम से कम एक खुराक दिलवा दिया है। लेकिन, बाक़ी ज़िलों में सिर्फ़ 16% लोगों को टीकाकरण का एक डोज़ दिया जा सका है। इसी तरह, जामनगर कॉर्पोरेशन क्षेत्र में तक़रीबन 33 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण होता दिखायी देता है। लेकिन, इसी ज़िले के बाक़ी हिस्सों में यह कवरेज महज़ 10% है। उत्तर प्रदेश में नोएडा (गौतम बुद्ध नगर) के अलावा, किसी भी अन्य ज़िले में 20% से ज़्यादा आबादी को कवर नहीं किया जा सका है। (चित्र देखें: https://datawrapper.dwcdn.net/7gpPU/1/ )1

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केंद्र सरकार के प्रवक्ताओं ने बार-बार लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि भारत इस साल के आख़िर तक पात्रता वाली अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण करने में सक्षम होगा। हालांकि, ऐसा करने के लिए मासिक टीकाकरण दर को चार गुना बढ़ाना होगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ को अपनी मासिक टीकाकरण दर को सात गुना, बिहार और झारखंड को छह गुना, तमिलनाडु, तेलंगाना और पंजाब को पांच गुना बढ़ाना होगा।

यहां तक कि पूरी आबादी को आंशिक रूप से कवर करने के लिए (यानी पूरी पात्र वयस्क आबादी को कम से कम एक खुराक देने के लिए) बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और झारखंड को अपनी मौजूदा दरों के मुक़ाबले टीकाकरण दरों में पांच गुणा वृद्धि करनी होगी।

टीकाकरण दरों में इस तरह की कई गुनी वृद्धि में एक बड़ी बाधा आपूर्ति की भारी कमी का होना है। सरकार ने कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को अंततः कोवैक्सिन के उत्पादन की अनुमति दे दी है। हालांकि, इस विकल्प को अपनाने में होने वाली देरी का मतलब है कि निकट भविष्य में इन इकाइयों से वैक्सीन की आपूर्ति उपलब्ध नहीं हो पायेगी, यानी कम से कम 6-8 महीने और लगेंगे।

दूसरी ओर, वैक्सीन उत्पादन की मौजूदा क्षमता और प्रति माह खुराक की वास्तविक आपूर्ति पर अब भी कोई स्पष्टता नहीं है। स्वास्थ्य परिवार कल्याण मन्त्रालय(MoHFW) की तरफ़ से मई में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इस साल के बाक़ी बचे समय में विभिन्न स्रोतों से वैक्सीन उत्पादन को लेकर अनुमान दिखाया गया है (तालिका देखें)। उत्पादन में यह अनुमानित वृद्धि बहुत ही ज़्यादा है। सरकार इन अनुमानों के आधार को लेकर बेहद अपारदर्शी बनी हुई है और अनुमान और डेटा की हालत भी वैसी ही है।

सभी तार्किक संकेतों से तो यही पता चलता है कि टीके की कमी कम से कम कुछ और महीनों तक बनी रहेगी। ऐसी स्थिति में 25% खुराक निजी अस्पतालों और केंद्रों के लिए आरक्षित रखने की रणनीति वैक्सीन दिये जाने की उस ग़ैर-बराबरी को और बढ़ा देगी, जिसे हम पहले से ही देश भर में देख रहे हैं।

मीडिया रिपोर्टों से पता चलता कि मई में निजी क्षेत्र के लिए उपलब्ध लगभग 50 % टीके सिर्फ़ नौ बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों की तरफ़ से ख़रीदे गये थे, और बाक़ी बचे 50 % टीके उन 300 अजीब-ओ-ग़रीब अस्पतालों की ओर से ख़रीदे गये थे, जिनमें से ज़्यादातर अस्पतालों ने टियर-2 शहर को छोड़कर बाक़ी आबादी को अपनी सेवा नहीं दी थी। शहरी अमीर वास्तव में ज़्यादा आसानी से फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकते हैं। उनके पास अक्सर घर से काम करने का विकल्प होता है, और स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे तक उनकी पहुंच भी आसान होती है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि देश के इस अमूल्य दुर्लभ टीकों के एक बड़े हिस्से पर इस तबके की दावेदारी क्यों है ?

आगे बढ़ते हुए इस सरकार को टीके के उत्पादन को बढ़ाने की तमाम कोशिशें करनी चाहिए और उसे 100% टीकों की ख़रीद करनी चाहिए और जनता को पारदर्शी रूप से सूचित करना चाहिए, न्यायसंगत और निष्पक्ष मानदंडों के आधार पर राज्यों को मुफ़्त में टीके वितरित करने चाहिए।

राज्यों को भी तमाम क्षेत्रों और आर्थिक तबकों में टीके के समान कवरेज को सुनिश्चित करने के लिए अपनी वैक्सीन प्रबंधन रणनीतियों की योजना बनानी चाहिए।

इस स्थिति को देखते हुए टीके की कमी और प्रभावशीलता को अधिकतम करने की रणनीतियों के सिलसिले में जो धुंधली सच्चाई है, उसे क़ुबूल करना चाहिए और भविष्य के प्रकोप के जोखिम को कम करने का एकमात्र यही तरीक़ा भी है। हम पहले ही विनाशकारी दूसरी लहर में अपनाये गये अहंकार के उस नतीजे को देख चुके हैं, जिसका देश सामना कर चुका है। इसलिए, हमें टीकाकरण की वही ग़लती दोहराने से बचने की ज़रूरत है।

टेबल: वर्ष 2021 में वैक्सीन उपलब्धता को लेकर मई 2021 में स्वास्थ्य परिवार कल्याण मन्त्रालय की प्रेस विज्ञप्ति से प्राप्त आंकड़े

 

स्रोत: स्वास्थ्य परिवार कल्याण मन्त्रालय की प्रेस विज्ञप्ति, मई 2021

लेखिका बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Welcome-U-Turn-Mr-PM-India-Vaccine-Woes-Far-from-Over

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