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यूपीः मिर्ज़ापुर में दलित के घर दावत की राजनीति पर बड़ा बखेड़ा

दलित के घर बीजेपी के मंत्री की दावत पर कटाक्ष करते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट किया है, "भाजपाई मंत्री वोट की खोज में, दलित के घर दिखावटी भोज में।"
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से सटे मिर्ज़ापुर में बीजेपी के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी का एक दलित परिवार में खाना खाने पर विवाद बढ़ता जा रहा है। विवाद की बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जिस दलित महिला गंगाजली के यहां मंत्री के दावत का इंतजाम किया गया था उसके यहां सिर्फ रोटियां ही बनी थी। दाल, चावल, पनीर की सब्जी, आलू दम, साग, सलाद, रायता और गुलाब जामुन दूसरों के घर से बनकर आया था।

गंगाजली कहती हैं, "मैंने मंत्री को अपने घर में भोजन करने के लिए न्योता नहीं दिया था। हमें तो सिर्फ भोजन कराने के लिए आदेश दिया गया था। वह हमारे घर आए तो लगा कि हमारी मुश्किलें हमेशा के लिए दूर हो जाएंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।"

इस घटना के बाद विपक्ष ने मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी और बीजेपी के सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। दलित के घर बीजेपी के मंत्री के भोज पर कटाक्ष करते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट किया है, "भाजपाई मंत्री वोट की खोज में, दलित के घर दिखावटी भोज में...।" 

विपक्ष का आरोप है कि मंत्री ने दलित महिला के थाली, कटोरी और ग्लास को छुआ तक नहीं। फाइबर का बर्तन मंगाकर उन्हें भोजन कराया गया। मिरनल वाटर का इंतजाम प्रधानपति सुजीत सिंह ने किया था। मंत्री और उनके साथ आए नेताओं व अफसरों को दलित की झोपड़ी में सिर्फ भोजन परोसा गया और मीडिया को बुलाकर फोटो सेशन कराया गया।

दलित के घर सिर्फ़ रोटी बनी!

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 20 नवंबर 2023 को मिर्ज़ापुर आए थे। शहर से करीब पांच किमी दूर शाहपुर चौसा गांव गए। यह गांव बीजेपी के जिलाध्यक्ष बृजभूषण सिंह का है। यहीं उन्होंने चौपाल लगाई। बाद में वह दलित परिवार के यहां भोजन करने पहुंचे। दावत का इंतजाम बीजेपी के जिलाध्यक्ष ने कराया था। यहां मंत्री ने फाइबर की थाली में खाना खाया, कागज की ग्लास में बंद बोतल का पानी पिया। कहा जा रहा है कि मंत्री के आने से पहले ही दूसरे घर से मंगवाकर गैस चूल्हा और सिलेंडर रखवाया गया, ताकि मीडिया को दिखाया जा सके कि बीजेपी का विकास दलितों की झोपड़ी में भी पहुंच गया है।

काबीना मंत्री नंद गोपाल नंदी के साथ मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह पटेल, बीजेपी के जिलाध्यक्ष बृजभूषण सिंह दलबल के साथ दलित गंगाजली के खपरैल के कच्चे मकान में पहुंचे। दावत में कलेक्टर प्रियंका निरंजन और पुलिस कप्तान अभिनंदन भी मौजूद थे। मंत्री के आने से पहले ही खपरैल के एक कमरे वाले मकान को गोबर-मिट्टी से लीपकर साफ-सुथरा कर दिया गया था। जिस जगह दावत का इंतजाम किया गया था वहीं गंगाजली ने मिट्टी के चूल्हे पर बाजरे की रोटी बनाई। उनके पति उमाशंकर रोटी पर घी लगाकर मंत्री और उनके साथ आए लोगों को खिला रहे थे। गंगाजली की भतीजी अंजू और ज्योति भी मेहमानों को खाना परोस रही थीं।

खुल गया तरक़्क़ी का सच

शाहपुर चौसा गांव की दलित गंगाजली की दो बेटियां और एक बेटा है जिनमें एक बेटी व बेटा शादीशुदा हैं। घर पूरी तरह से कच्चा है जो बारिश के दिनों में टपकने लगता है। एक कमरे के घर के कोने में छोटा सा किचन है। बरामदा बाहर बना है। नहाने के लिए किसी सरकारी नल अथवा कुएं पर जाना पड़ता है। शौच के लिए खेतों को पगडंडियां पकड़नी पड़ती हैं। बिजली ने नाम पर सिर्फ एक बल्ब जलता है। खाना लकड़ी से मिट्टी के चूल्हे पर बनता है।

गंगाजली का परिवार बेहद गरीब है। सब्जी नहीं खरीदनी पड़े, इसलिए उन्होंने अपने घर के खपरैल के ऊपर नेनुला और सेम की बेल (लता) चढ़ा रखी है। घर के बार एक सरकारी हैंडपंप तो है, लेकिन गाहे-बगाहे ही एक-दो बाल्टी पानी निकलता है। इस महिला के पास न तो राशन कार्ड है और न ही सरकारी आवास व शौचालय। उज्ज्वला योजना का चूल्हा भी नसीब नहीं हो सका है। सरकारी नल की टोटी से पानी आता है, लेकिन चार-पांच दिन में सिर्फ एक मर्तबा। बाप-बेटे मजदूरी करते हैं, जिससे उनके परिवार का खर्च चलता है। काम भी रोज नहीं मिल पाता है, इस वजह से मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब हो पाती है।

गंगाजली कहती हैं, "प्रधानपति सुजीत सिंह ने हमें दावत की तैयारी करने के लिए कहा था। भोजन के बाद दलित हमारे सेवा-भाव से खुश होकर मंत्री ने मुझे एक लिफाफा दिया, जिसमें 21 हजार रुपये थे। खाना खिलाने में सहयोग देने वाली भतीजी अंजू और ज्योति को भी उन्होंने 5100-5100 रुपये दिए। मंत्रीजी ने रुपये तो दिए, लेकिन वो कितने दिन चलेंगे? हमें तो आज तक सरकारी सुविधाएं मयस्सर नहीं हुई। पैसे की जगह निशानी के रूप में सरकारी आवास और राशन कार्ड देकर जाते तो हमारी मुश्किलें थोड़ी कम हो जातीं।"

मंत्री के लिए ख़रीदा था देसी घी!

मंत्री जी की दावत पर दैनिक भास्कर का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक महिला कह रही है,''मंत्रीजी घर आए तो लगा अब सारी समस्याएं दूर होंगी…हमारी भी सुनवाई होगी,मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। हम लोगों ने तो खुद कभी देसी घी नहीं खाया। मगर मंत्रीजी के लिए सौ रुपये में खरीद कर ले आए। वही घी रोटी में लगाकर उन्हें खिलाया गया। उन्होंने हम लोगों को जो पैसा दिया है उससे तो बस बेटे की दवा आ पाएगी। मगर हमारे सरकारी आवास और राशन कार्ड का वादा कौन पूरा करेगा?''

दैनिक भास्कर ने गंगाजली के हवाले से यह भी कहा है, "दिवाली के चलते हमने अपना घर काफी साफ-सुथरा कर लिया था। बाहर पेड़-पौधे भी लगा दिए थे। हमारा घर बाहर से सुंदर दिख रहा था। अंदर कमरा भी साफ-सुथरा था। यह सब देखकर मंत्री के दावत के लिए हमारा घर चुन लिया। मंत्रीजी के आने से पहले हमें सब कुछ समझा दिया गया था। यह भी बता दिया गया था कि हमें बहुत कम बोलना है। पूछने पर ही जबाव देना है। मंत्रीजी के सामने खाना कैसे बनाना है? कैसे रखना है? ये सब भी बताया गया था। कपड़े भी सही से पहनने के लिए कहा गया था। मंत्रीजी के लिए जो भी खाना बना था, उसको पहले उनके साथ आए लोगों ने खाया था।"

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है,"दलित गंगाजली के घर दावत खाने पहुंचे मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी के लिए पनीर की जो स्पेशल सब्जी परोसी गई थी वह ग्राम प्रधान सविता सिंह के घर में तैयार हुई थी। दाल और पालक की सब्जी किसी और ने बनाई थी। गंगाजली के घर सिर्फ बाजरे की रोटी पकाई गई। खाना बनाने के लिए सिलेंडर किसी और के घर से लाया गया था। मंत्री के दावत से पहले सारा इंतजाम कर लिया गया था। खाना खाने के बाद मंत्री ने दलित परिवार को नोट वाले लिफाफे दिए और फोटो खिंचवाकर चले गए। बाद में परिवार के लोगों ने घर की सफाई की और सो गए।"

अखिलेश पर मंत्री का पलटवार

दलित समुदाय के घर दावत की राजनीति तब शुरू हुई थी जब 31 मई 2016 को अमित शाह ने बनारस के सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के जोगियापुर गांव में दलित गिरजा प्रसाद के घर खाना खाने पहुंचे। उस समय शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। कुछ इसी तरह की दावत अबकी मिर्ज़ापुर में रखी गई थी। यूपी के काबीना मंत्री नंद गोपाल नंदी के दावत के बाद विकास का नंगा सच उजागर होने से सियासत गरमा गई है। समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक एक्स पर लिखा है, 'भाजपाइयों की PDA के प्रति नफरत फिर उजागर! मिर्ज़ापुर में दलित परिवार के घर भोजन करने गए भाजपा सरकार के मंत्री नंदगोपाल नंदी ने सिलेंडर दूसरे घर से मंगवाया और खाना भी दूसरे से ही बनवाया। संविधान और संघर्ष के इतने वर्षों बाद भी दलित, पिछड़ों को सामाजिक न्याय नहीं मिल सका। ऐसे विचारों वाली आरएसएस और भाजपा को जल्द PDA मिलकर सत्ता से बाहर करेगा।''

समाजवादी पार्टी और अखिलेश के बयान के बाद बीजेपी के नंदी ने भी पलटवार किया है जिसमें कहा है,''जिस अखिलेश यादव ने अपनी सरकार में कभी गरीब और दलित की चिंता नहीं की वो आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। उनकी विश्वसनीयता और गंभीरता का थर्मामीटर दिनों-दिन पप्पू से भी नीचे गिरता जा रहा है। छोटी और ओछी हरकतों से बाज आइये। गरीब और दलित के आतिथ्य का मजाक उड़ाना अक्षम्य है।''

मंत्री नंदी ने आगे लिखा है,''कहा जाता है कि जैसी दृष्टि होती है वैसी ही सृष्टि दिखती है। जब दिमाग में खालीपन हो और दृष्टि विकृत हो तो चूल्हे पर सिंकती बाजरे की रोटी और बहुत प्यार से बनाया गया सरसों का साग नहीं दिखता। गंगाजली देवी ने जिस स्नेह और आत्मीयता से विधायक, जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को खाना खिलाया उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। एसी में बैठकर ऊल-जुलूल, अनर्गल, अगंभीर और तथ्यहीन ट्वीट करना ही आपकी विशेषता है। यह भला कौन भूल सकता है कि 2012 में आपने शपथ भी नहीं ली थी, केवल रुझान आये थे और सपाइयों ने दलितों की कई बस्तियां जला दी थीं। अपनी सरकार में जब आपने कभी गरीब और दलित की चिंता नहीं की तो अब घड़ियाली आंसू मत बहाइए। सबको पता है कि सपा के कार्यकर्ता केवल जमीनों पर कब्जा, गुडागर्दी और वसूली करना जानते हैं।''

बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजकुमार जायसवाल ‘न्यूज़क्लिक’ से कहते हैं,''इन छोटी बातों पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं है। हम इन बातों में नहीं पड़ना चाहते। जहां तक दलितों का सवाल है, हम उनके हालात सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दलित भी बड़ी संख्या में हमसे जुड़ना चाहते हैं। जो लोग दलित नेता होने का दावा करते हैं वो फ़ाइव स्टार संस्कृति में बस चुके हैं, लेकिन दलितों की हालत नहीं सुधरी है। बीजेपी दलितों की हालत सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है और उनकी आर्थिक स्थित सुधारने के लिए पार्टी सतत प्रयास कर रही है।''

नहीं चलेगा बीजेपी का ढोंग-पाखंड

विश्व हिंदू परिषद के पूर्व प्रांत संगठन मंत्री मनोज श्रीवास्तव ‘न्यूज़क्लिक’ से बात करते हुए बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाते हैं। बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद मनोज अब पार्टी के नेताओं पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। वह कहते हैं, "नंदी की दावत से बीजेपी का दोहरा चरित्र उजागर हुआ है। इस घटना से ये पता चलता है कि उनके दिमाग में मनुस्मृति कहीं अटक गई है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी इसी तरह से दिखावा करते रहे हैं। क्या दलित इंसान नहीं हैं? क्या दलित हिंदू समाज का हिस्सा नहीं हैं? क्या दलित भारतीय नहीं हैं? सच यह है कि मिर्ज़ापुर में नंदी का भोज पूरा पाखंड है। बीजेपी अपनी डूबती नाव बचाने की कोशिश कर रही है। इस पार्टी के नेता दलितों के घर खानाकर सस्ती लोकप्रियता अर्जित करना चाहते हैं। जहां तक मंत्री नंदी की बात है तो वह दूसरों के घर जाकर अपने नहाने का वीडियो तक बनवाते हैं। ऐसे में वह दलित के घर दावत के प्रचार के मामले में पीछे कैसे रहते?''

मनोज यह भी कहते हैं,''बीजेपी दलित को भ्रमित करना चाहती है लेकिन वो इनके झांसे में आने वाले नहीं हैं। मिर्ज़ापुर के लोग इनके चाल, चरित्र और चिंतन को समझ गए हैं। ढोंग और पाखंड अब नहीं चलेगा। ये जितने भी स्वांग रच लें वो मिर्ज़ापुर के मान-सम्मान के साथ खेलने और इस जिले को चरागाह समझने वालों को कोई भी व्यक्ति, कोई भी शक्ति अब बचा नहीं पाएगी। मिर्ज़ापुर में बीजेपी की कोई रणनीति काम नहीं करेगी।''

मिर्ज़ापुर के पत्रकार बिजेंद्र दुबे को लगता है कि सियासी दलों का दलित प्रेम और दावत सिर्फ चुनावी हथकंडा और दिखावा है। इनकी लच्छेदार बातें सिर्फ शब्दाडंबर भर हैं। वह कहते हैं,''यूपी में जब कभी चुनाव आने को होता है तो नेताओं और मंत्रियों की दलित बस्तियों में आवाजाही बढ़ जाती है। दलितों के घर मंत्री का खाना मुद्दा नहीं है। यह दलित समुदाय का ध्यान बीजेपी की तरफ़ खींचने की कोशिश है। बीएसपी और मायावती के वोट बैंक माने जाने वाले दलित वोटों में पिछले दो चुनावों में सेंधमारी कर चुकी बीजेपी अब उन्हें अपने पाले के बनाए रखना चाहती है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी रणनीतिकारों ने दलित वोट को साधने के लिए सहभोज और सम्मेलनों की योजना बनाई है। दलित गंगाजली के घर दावत इसी राजनीति का हिस्सा है। इस तरह के खेल तभी शुरू होते हैं जब कुछ महीने बाद चुनावी बिगुल बजने वाला होता है।''

मिर्ज़ापुर के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक राजीव कुमार ओझा कहते हैं, ''यूपी में दलित समुदाय बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट रहा है और वह तेजी से खिसकता जा रहा है। पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीजेपी ने दलित वोटों में सेंधमारी में सफलता पाई है जिसे वह बरकरार रखना चाहती है। बीजेपी भोज की राजनीति से दलितों को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि सरकारी योजनाओं का सबसे ज़्यादा लाभ इसी वर्ग को मिला है। यह सब बीजेपी की चुनावी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा है। दलितों के अलावा बीजेपी अल्पसंख्यकों का भी पुराना मिथ तोड़ने में जुटी हुई है। हालांकि इस बात में संदेह है कि दोनों तबकों में बीजेपी की दाल गल पाएगी। सत्तारूढ़ दल के पास भले ही पैसे की ताकत है लेकिन दलित वोटों में सेंध लगा पाना आसान नहीं है।''

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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