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किसानों की आत्महत्या के मामले में यूपी के मुख्यमंत्री योगी का दावा ग़लत: किसान संगठन

किसान संगठनों का दावा है कि राज्य में किसानों की आत्महत्या के मामले में वृद्धि हुई है और राज्य सरकार को उचित डेटा न रखने के लिए दोषी ठहराया है।
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सांकेतिक तस्वीर। साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को दावा किया था कि पिछले छह वर्षों में राज्य में कोई भी किसान आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं हुआ है। उन्होंने यह भी दावा किया कि 2017 में उनके सत्ता में आने से पहले सिंचाई के लिए पानी की कमी, बिजली न मिलने और समय पर बकाए का भुगतान न होने के कारण किसान गन्ने की फसलों को जलाने के लिए "मजबूर" हो जाते थे।

मुख्यमंत्री ने लखनऊ के एक कार्यक्रम में कहा कि, "हमने गन्ने के किसानों को दलालों के चंगुल से मुक्त करा दिया है। आज, किसानों को पर्ची की तलाश में घूमने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनकी पर्ची उनके स्मार्टफोन पर आ जाती है...। हमने गन्ने की कीमत का भुगतान किया है और समय पर धान और गेहूं खरीदा है।" उक्त कार्यक्रम में उन्होंने सहकारी गन्ने और चीनी मिल सोसायटीज में स्थापित फार्म मशीनरी बैंकों की तरफ से 77 ट्रैक्टरों को हरी झंडी दिखाई।

सीएम ने यह भी दावा किया कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही किसान सरकार के एजेंडे का हिस्सा बन गए थे। उन्होंने कहा, "हम सभी जानते हैं कि गन्ने के किसानों की हालत पहले क्या थी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में पदभार संभाला जिसके कारण किसान को पहली बार किसी भी सरकार के एजेंडे में शामिल किया गया और किसान सरकार के कार्यक्रमों से लाभान्वित होने लगे। पहले शाहूकारों/मनीलेंडर्स पर निर्भर किसानों को अब मृदा स्वास्थ्य कार्ड, किसान बीमा योजना, कृषि सिंचाई योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से लाभ मिलने लगा है।"

गंभीर स्थिति

हालांकि, राज्य में जमीनी हक़ीक़त एक अलग ही कहानी बयां करती है। सरकार की दोषपूर्ण नीतियों, बैंकों से दबाव और कृषि खेती के दबाव के कारण बुंदेलखंड इलाके में हाल के वर्षों में लगभग दर्जनों किसानों ने आत्महत्या कर ली। न्यूज़क्लिक ने जमीनी हक़ीक़त को एकत्र किया है कि कैसे किसान इस शुष्क इलाके में आत्महत्या कर रहे हैं, जो उनके लिए कभी भी खत्म न होने वाली गाथा बन गई है।

बुंदेलखंड इलाका, जो राज्य में सबसे वंचित और आर्थिक रूप से पिछड़ा इलाका है, इसे ऋण और आर्थिक संकट के कारण किसान द्वारा किए जाने वाले आत्महत्या की घटनाओं के लिए भी जाना जाता है। चक्रवृद्धि ब्याज दरों के साथ किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ऋण लेना, यह कर्ज़ तब बढ़ जाता है जब किसानों की फसल खराब हो जाती है या उन्हें नुकसान पहुंचता है।

बुंदेलखंड में एक कृषि विशेषज्ञ प्रेम सिंह ने राज्य सरकार पर "झूठ बोलने" का आरोप लगाया और कहा कि “कोई संदेह नहीं कि इस सरकार में खेती की सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन यह कहना गलत है कि कोई समस्या नहीं है जिनका कि किसान राज्य में सामना कर रहे हैं। तीन किसानों ने अकेले बांदा में ही आत्महत्या की है जिसके बारे में स्थानीय मीडिया में दो सप्ताह में आत्महत्या के अलग-अलग कारणों के बारे में बताया गया है। बढ़ती समस्याओं के कारण किसानों की दुर्दशा और मौतें कभी भी सरकार की प्राथमिकता नहीं रही हैं, न ही देश की मीडिया के लिए, क्योंकि दोनों ही अन्य "महत्वपूर्ण" मुद्दों में व्यस्त हैं"

आदित्यनाथ के बयान का विरोध करते हुए कि सरकार ने गन्ने की कीमत का भुगतान किया और समय पर धान और गेहूं खरीदा, सिंह ने कहा कि: "प्याज और आलू की कीमतों के गिरने से एक बार फिर भारतीय किसानों की दुर्दशा सामने आई है जो अपनी फसलों को नष्ट करने पर मजबूर हो गए। इस साल आलू की कीमतों में 60 से 76 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। पिछले साल 10 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक मूल्य के मुकाबले, उत्तर प्रदेश में किसान इस साल 4 रुपये प्रति किलोग्राम पर आलू बेचने का संघर्ष कर रहे हैं।"

उन्होंने आगे कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और सरकार की विफलता है कि किसानों के लिए लागू की गई नीतियों के बारे में ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गई जो जायज़ा ले सके कि क्या ये नीतियां किसान को लाभान्वित करती हैं या नहीं?

अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य महासचिव मुकुट सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मौतों के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेने के बजाय, भाजपा सरकार बेशर्मी से मौतों से इनकार कर रही है। तथ्य यह है कि किसानों की मृत्यु पहले से अधिक बढ़ रही है और सरकार ने आंकड़े देना बंद कर दिया है। मुख्यमंत्री की तरह, राज्य के पशुपालन मंत्री धरमपाल सिंह ने हाल ही में कहा कि राज्य में आवारा मवेशियों के कारण किसी की मृत्यु नहीं हुई, लेकिन हर कोई वास्तविकता जानता है।"

इस बीच, आवारा मवेशी के खतरे भी कथित तौर पर किसानों को राज्य भर में आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहे हैं। आगरा जिले के ताजगंज क्षेत्र के कर्बाना गांव के एक 35 वर्षीय किसान, जो चार परिवारों के लिए एकमात्र कमाने वाले थे, उन्होंने पिछले साल आत्महत्या कर ली थी। वह यह देखकर हैरान थे कि उनकी पूरी फसल को 20 से अधिक आवारा मवेशियों ने नष्ट कर दिया था।

एक अन्य 52 वर्षीय किसान ने पिछले साल तब आत्महत्या कर ली थी जब बेमौसम बारिश से धान और छोले की फसलें बर्बाद हो गई थी।

ये राज्य में किसान आत्महत्याओं के केवल तीन अलग-थलग मामले नहीं हैं। न्यूज़क्लिक ने कई कारणों से किसान द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के एक दर्जन से अधिक मामलों को एकत्र किया है।

पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान किसानों के लिए आवारा मवेशियों के खतरे का जवाब देते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश में मतदाताओं से वादा किया था कि 10 मार्च (चुनाव परिणाम) के बाद, आवारा मवेशी के इस भूत से निपटने के लिए एक नई नीति को शुरू किया जाएगा।

पीएम मोदी ने बहराइच में कहा था कि, "हम किसानों के सामने आने वाली समस्याओं को बहुत गंभीरता से लेंगे और आवारा मवेशी के खतरे से निपटेंगे। मुझे पहले से ही एक समाधान मिल गया है। हम 10 मार्च को चुनाव परिणामों की घोषणा और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद, आवारा मवेशियों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक नीति तैयार करेंगे।“

हालांकि, अब तक कोई नीति जमीन पर नहीं उतारी गई है। इस बीच कई किसान की कथित तौर कड़ाके की ठंड में फसलों की रक्षा करते हुए मृत्यु हो गई।

यूपी सीएम की टिप्पणी पर बोलते हुए, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने न्यूजक्लिक को बताया कि, "सरकार झूठ बोल रही है। वे पहले दिन से ही जनता की आंखों में धूल झोंक रही है। इसी भाजपा सरकार ने कहा था कि कोई भी कोविड से नहीं मरा, लेकिन हम सब सरकार की विफलता को जानते हैं और लोगों की भारी संख्या में मृत्यु हुई थी। केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने भी दावा किया था कि दिल्ली में कृषि कानूनों के विरोध के दौरान किसी भी किसान की मृत्यु नहीं हुई। इसी तरह, वे दावा करते हैं, किसी भी किसान ने राज्य में आत्महत्या नहीं की।"

यही बात बीकेयू (गैर-राजनीतिक नेता) के धर्मेंद्र मलिक ने कहा, "पिछली सरकार की तुलना में गन्ने के किसानों की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी बजाज की 14 ऐसी चीनी मिलें हैं, जो मोदी मिल्स और एक सिमभोली मिल के स्वामित्व में हैं और किसान अभी भी परेशान हैं। ये मिलें गन्ना किसानों को समय पर भुगतान नहीं कर रही हैं। इसके अलावा, किसान अभी भी राज्य में आत्महत्या कर रहे हैं, जिसमें बुंदेलखंड क्षेत्र सबसे आगे है, लेकिन इसे पहले की तरह मीडिया द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जा रहा है।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

UP: CM Yogi Claims no Farmer Died by Suicide in UP in 6 Years, Farmers Say it’s a Lie

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