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यूपी: आज़मगढ़ में पुलिस पर दलितों के घर तोड़ने, महिलाओं को प्रताड़ित करने का आरोप; परिवार घर छोड़ कर भागे

पुलिस का तो यहां तक दावा है कि स्थानीय विवाद के बाद गांव वालों ने उन पर हमला कर दिया। इस घटना के बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया। कांग्रेस, बसपा और भीम आर्मी ने पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के साथ-साथ परिवारों को मुआवज़े देने की मांग की है।
Dalit women

लखनऊ : आज़मगढ़ ज़िले के पलिया गांव के ग्राम प्रधान सहित दलित समुदाय के कम से कम आधा दर्जन घरों को कथित तौर पर तोड़ दिया गया है। इसके साथ पुलिस पर फ़र्नीचर और अन्य घरेलू सामान को नुक़सान पहुंचाने के साथ-साथ उठा ले जाने का आरोप है। जब स्थानीय पुलिस ने 29 जून को घरों पर छापा मारा, तो महिलाओं और बच्चों के साथ उनसे भी उस बर्बरता की गई।

पुलिस के मुताबिक़, 29 जून को रौनापुर थाना क्षेत्र के पलिया गांव के एक डॉक्टर और कुछ लोगों के बीच पैदा हुए विवाद के बाद से यह फ़साद शुरू हुई। इसके बाद उस इलाक़े में दो पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया। हालांकि, गांव वालों का कहना है कि उसी रात पुलिस ने दलित बस्ती को घेर लिया और घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया और उन्हें लूट लिया। इसके बाद ग्रामीण घर छोड़कर भाग गये।

मगर, पुलिस का आरोप है कि गांव के प्रधान और उसके सहयोगी ने पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया, जिससे वे घायल हो गये और जिनमें से एक की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।

रौनापुर के स्टेशन हाउस ऑफ़िसर (SHO) तारकेश्वर राय ने न्यूज़क्लिक को बताया, "ग्राम प्रधान मुन्ना पासवान के बेटे और उनके सहयोगी गांव के बाज़ार में लड़कियों पर अभद्र टिप्पणी कर रहे थे। स्थानीय निवासी लिटन विश्वास ने इसका वीडियो बनाना शुरू कर दिया। मुन्ना अपने समर्थकों के साथ मौक़े पर पहुंचे और लिटन को बेरहमी से पीट दिया। मामले में बीच-बचाव के लिए वहां दो कॉन्स्टेबल पहुंचे, लेकिन उन पर भी ग्राम प्रधान ने हमला कर दिया।"

यह पूछे जाने पर कि मुन्ना के घर और दो अन्य घरों को कैसे तोड़ा गया, एसएचओ ने जवाब देते हुए बताया, " मुन्ना और उसके साथियों ने पुलिस प्रशासन पर अपने ख़िलाफ़ दर्ज कार्रवाई नहीं करने का दबाव बनाने के लिए ख़ुद अपने ही घरों को ध्वस्त कर दिया और ख़ुद ही फ़र्नीचर भी तोड़ डाले। उन्होंने तोड़फोड़ इसलिए की ताकि वे मुकदमें से बच सकें। हालांकि, आरोपियों की गिरफ़्तारी की कोशिश की जा रही है।"

पुलिस ने पुलिसकर्मियों पर “हमले” करने के आरोप में 28 नामजद और 143 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस ने दो अलग-अलग मामलों में लोगों को आरोपी बनाया है। पहली कार्रवाई हेड कांस्टेबल मुखराम यादव की शिकायत पर और दूसरी कार्रवाई डॉक्टर आनंद विश्वास के बेटे लिटन की शिकायत पर की गयी है। 

एसएचओ के इस बयान के ठीक उलट बयान दलित समुदाय से आने वाले उस शख़्स का है, जिनका घर इस विवाद में क्षतिग्रस्त हुआ था, उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया, "दोनों पुलिसकर्मी उस जगह पर पहुंचे थे, जहां मारपीट हुई थी। विवाद बढ़ने पर पुलिस ने मुन्ना का कॉलर खींच लिया और उन्हें थप्पड़ जड़ दिया, उन्हें थाने ले जाने की भी कोशिश की गयी। इससे स्थानीय लोग भड़क गये और उन्होंने पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया।"

उन्होंने बताया कि उन्हें सपने में भी अहसास नहीं था कि वे (पुलिसकर्मी) घरों को गिराने के लिए जेसीबी मशीनों के साथ आयेंगे और घर के सामान तोड़फोड़ डालेंगे। 

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस उनके घरों को ध्वस्त करने के लिए भारी तैयारी के साथ आयी थी। "पुलिसकर्मियों ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर मेरे घर को जेसीबी मशीन से तोड़ दिया। उन्होंने हमें गालियां दीं, जातिवादी टिप्पणी की और हमें जान से मारने की धमकी तक दी। घटना के वक़्त महिलाओं और बच्चों समेत मेरे परिवार के सदस्य मौजूद थे।" 

जेसीबी मशीन से मुन्ना पासवान, स्वतंत्र पासवान, राजपति और बृजभान पासवान समेत आधा दर्जन लोगों के घरों में तोड़फोड़ की गयी। पुलिस ने घरों की खिड़कियों, दरवाज़ों और दीवारों को तोड़ डाला। ग्रामीणों का आरोप है कि घर में रखे हर सामान को हथौड़े से तोड़ दिया गया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधान के घर के सामने खड़े ट्रैक्टर को भी जेसीबी मशीन ने क्षतिग्रस्त कर दिया। 

स्थानीय उच्च जाति के लोगों और पुलिस की तरफ़ से कथित उत्पीड़न के बाद पुलिस की ओर से और ज़्यादती होने के डर से कई दलित परिवार, ख़ास तौर पर नौजवान इन गांवों से भाग गये हैं। हालांकि, एसएचओ ने "लूट" के आरोप को पूरी तरह "बेबुनियाद" बताते हुए ख़ारिज कर दिया है। 

इस बीच, बड़ी संख्या में जिन महिलाओं के घरों को कथित तौर पर ध्वस्त कर दिया गया है, उन्होंने पुलिस के खिलाफ एससी / एसटी अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करते हुए पुलिस प्रशासन और उनकी "बर्बरता" के ख़िलाफ़ धरना देना शुरू कर दिया है। 

ग्राम प्रधान मुन्ना पासवान की भावज सुनीता का आरोप है, “हमारे घरों को ध्वस्त करने वाली पुलिस ने कहा कि 'छोटी जाति की औरतें सिर्फ़ मज़ा लेने के लिए होती हैं। एक पुलिस अधिकारी ने छापेमारी के दौरान मुझसे शारीरिक सहयोग की भी मांग की और एक सीओ ने तो मुझे छुआ। उन्होंने मेरा सोने का लॉकेट भी छीन लिया। पुलिस की नज़र में दलितों की कोई इज़्ज़त नहीं है। अगर हम मेहनत-मजूरी से अपना जीवन गुज़ार रहे हैं, तो इसमें क्या अपराध है?"

उन्होंने धमकी देते हुए कहा, "गांव में महिलायें सुरक्षित नहीं हैं। हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमारे गांव आयें और ख़ुद देखें कि ये पुलिसकर्मी कैसे सरकार के 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान' का मज़ाक उड़ा रहे हैं। अगर वह हमारी दुर्दशा का हल नहीं निकालते, हम अपने बच्चों के साथ ख़ुद को मार डालेंगे।"

पिछले साल अगस्त में ठाकुर समुदाय के चार लोगों ने उस दलित ग्राम प्रधान की कथित तौर पर हत्या कर दी थी, जिनकी पहचान सत्यमेव जयते उर्फ पप्पू राम के रूप में हुई थी। उनके परिवार के सदस्यों के मुताबिक़, एक आरोपी उन्हें गांव के पास के एक ट्यूबवेल पर ले गया, जहां कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक़, दलितों के ख़िलाफ़ बलात्कार से लेकर हत्या, हिंसा और ज़मीन से जुड़े अपराधों तक की सूची में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है, इसके बाद भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य गुजरात का स्थान है।

इसी बीच दलित प्रधान और उनके रिश्तेदारों पर कथित हमले ने इस राज्य में राजनीतिक कोहराम मचा दिया है, जहां अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद सहित कई राजनीतिक नेताओं ने अपने-अपने ग़स्से को ट्विटर पर ज़ाहिर किया है और मुआवज़े की मांग की है।

प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा है, "यूपी पुलिस द्वारा आज़मगढ़ के पलिया गांव में दलित परिवारों पर हमले की ख़बर। कई घरों को नुकसान पहुंचा है और सैकड़ों लोगों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किये गये हैं। यह सरकार की दलित विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। आरोपियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए और पीड़ितों को मुआवज़ा मिलना चाहिए।"

भीम आर्मी प्रमुख ने एक ट्वीट में कहा है, "हम अपनी मां और बहनों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम मांग करते हैं कि रौनापुर एसएचओ समेत थाने के सभी दोषी पुलिसकर्मियों को बर्ख़ास्त किया जाये और उनके ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की जाये और मुन्ना पासवान को उनके मकान तोड़ दिये जाने के एवज़ में 5 करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया जाये।"

 अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/UP-dalit-families-azamgarh-flee-UP-police-allegedly-vandalise-homes-harass-women

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