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अभी और बढ़ेगी बेरोज़गारी, मंदी के डर से कंपनियां कर रही छंटनी

विश्व की बड़ी टेक कंपनियां 2022 में व्यापक छंटनी कर रही हैं। टेक दिग्गज एपल ने न सिर्फ़ कर्मचारियों को बर्ख़ास्त करना शुरू कर दिया है बल्कि कंपनी को श्रम बल आपूर्ति करने वाले 100 से अधिक श्रमिक ठेकेदारों के साथ अनुबंध अगस्त 2022 में रद्द कर दिया है।
Unemployment

दुनिया भर की बड़ी टेक कंपनियां 2022 में व्यापक छंटनी कर रही हैं। टेक दिग्गज एपल ने न सिर्फ़ कर्मचारियों को बर्ख़ास्त करना शुरू कर दिया है बल्कि कंपनी को श्रम बल आपूर्ति करने वाले 100 से अधिक श्रमिक ठेकेदारों के साथ अनुबंध अगस्त 2022 में रद्द कर दिया है।

चीनी वैश्विक टेक दिग्गज टेन्सेन्ट (Tencent) ने अप्रैल-जून 2022 में 5500 कर्मचारियों को निकाल दिया। वहीं नेटफ्लिक्स (Netflix) इस साल प्रति माह 150 से 300 कर्मचारियों को बर्ख़ास्त कर रहा है। माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) ने जुलाई 2022 में 1800 कर्मचारियों की छंटनी की है।

एलन मस्क द्वारा संभावित अधिग्रहण पर विवाद की पृष्ठभूमि में ट्वीटर (Twitter) ने घोषणा की कि वे अपने एक तिहाई कर्मचारियों की छंटनी करेगा।

छंटनी के मामले में मेटा (Meta) (पूर्व में फेसबुक) भी पीछे नहीं रही। उसने भी इस जून में कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी है। दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी टेस्ला (Tesla) ने जुलाई से छंटनी की घोषणा की है।

दुनिया की नंबर 2 टेक दिग्गज गूगल (Google) ने हाल ही में अपने कर्मचारियों को चेतावनी दी थी कि "सड़कों पर खून बहेगा" जिसका मतलब है कि अगर वे अधिक काम नहीं करते हैं तो उनकी बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। लगभग सभी मामलों में लाभ के मार्जिन में गिरावट को कारण बताया गया है।

अपने कर्मचारियों को जल्दी विदाई देने के मामले में टेक कंपनी ही नहीं हैं। अगले महीने ऑटो दिग्गज फोर्ड अमेरिका और कनाडा में लगभग 2000 नियमित श्रमिकों और 1000 अनुबंध श्रमिकों की छंटनी करेगा। हाल ही में भारत में दो संयंत्रों को पूरी तरह से बंद कर दिया है जिनमें से एक तमिलनाडु में और दूसरा गुजरात में था। इस वर्ष कुल नौकरियों का नुक़सान लगभग 8000 के आस पास होगा।

यहां तक कि वॉलमार्ट (Walmart) और शॉपिफाई (Shopify) जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी भी अपने कर्मचारियों की संख्या को कम करने की दौड़ में शामिल हो गए हैं। इसकी वजह बिक्री में गिरावट को माना जा रहा है।

रेटिंग एजेंसी प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PricewaterhouseCoopers or PwC) ने हाल ही में अमेरिकी कंपनियों के 700 शीर्ष अधिकारियों के बीच एक सर्वेक्षण किया था और सर्वेक्षण में पाया गया कि उनमें से आधे व्यापार में मंदी के कारण इस साल अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने की योजना बना रहे थे।

पीडब्ल्यूसी के सर्वेक्षण में एक विसंगतिपूर्ण प्रवृत्ति भी पाई गई। टेलीकॉम, मीडिया और कई टेक कंपनियां टैलेंट की भारी कमी का भी सामना कर रही हैं। वे कौशल की कमी से निपटने के लिए स्वचालन (automation) में अधिक निवेश कर रहे हैं। सर्वेक्षण के अनुसार हेल्थकेयर उद्योग प्रतिभा की कमी का बड़े पैमाने पर सामना कर रहा है और वह ऐसे लोगों को फिर से लुभा रहा है जिन्होंने हाल ही में अधिक आकर्षक वेतन पैकेज के लिए काम छोड़ा है।

यह एकमात्र विरोधाभास नहीं है जो वैश्विक श्रम बाजारों में देखा जा रहा है। अपने से नौकरी छोड़ने वाले श्रमिकों की संख्या नियोक्ताओं द्वारा ले-ऑफ किए गए श्रमिकों की संख्या से कहीं अधिक है।

नौकरी छोड़ने की दर सबसे अधिक रही

यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (US Bureau of Labour Statistics) के अनुसार, अप्रैल 2021 में कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर की तेज़ी के दौरान 3.9 मिलियन श्रमिकों ने अमेरिका में अपनी नौकरी छोड़ दी। यह पिछले 30 वर्षों में दर्ज की गई छोड़ने की उच्चतम दर थी। इस आंकड़े में 28 लाख गैर-कृषि श्रमिक शामिल थे। बाद में यह स्पष्ट हो गया कि यह पूरी तरह से महामारी और लॉकडाउन के कारण नहीं था। अमेरिकी गैर-कृषि श्रमिकों के बीच छोड़ने की दर बाद के महीनों में और बढ़ गई बावजूद इसके कि इस दौरान अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा था।

कंपनियों का प्रदर्शन महामारी के प्रभाव से अब प्रभावशाली सुधार दर्ज कर रहा है। लेकिन कर्मचारी तेजी से ‘बर्नआउट सिंड्रोम’ (burnout syndrome) का अनुभव कर रहे हैं। यह नया संकट एक महामारी का रूप ले रहा है। यह अमेरिका तक ही सीमित नहीं है। यह प्रवृत्ति वैश्विक है।

रेटिंग एजेंसी डेलॉइट (Deloitte) ने कॉर्पोरेट घरानों के लिए काम करने वालों के बीच जेनरेशन जेड (Generation Z) (1995 या बाद में पैदा हुए) और मिलेनियल्स (1981 और 1995 के बीच पैदा हुए) के बीच एक वार्षिक सर्वेक्षण किया। मई 2022 में जारी 11वें वार्षिक सर्वेक्षण के निष्कर्ष काफी चौकाने वाले हैं। वर्ष 2021 में 46% जेन ज़ेड और 45% मिलेनियल्स काम के कम होने को लेकर परेशानी महसूस कर रहे थे। इस सर्वेक्षण के अनुसार, जेन ज़ेड के 40% और मिलेनियल्स के 24% कर्मचारी दो साल के भीतर अपनी नौकरी छोड़ना चाहेंगे। इसका मतलब है कि युवा वर्ग का वैश्विक कॉरपोरेट जगत में अपने काम से अधिक मोहभंग हो रहा है।

भारत में भी 8 जुलाई 2022 को मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया कि भारत के सबसे बड़े निजी नियोक्ता टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के 6 लाख कर्मचारियों में से 1.2 लाख ने पिछले 365 दिनों में अपनी नौकरी छोड़ दी थी। इंफोसिस और विप्रो जैसी अन्य आईटी कंपनियों में लगभग 20% की एट्रिशन दर आम है। उनमें से सभी बेहतर वेतन पैकेज के पीछे नहीं भाग रहे थे। अपनी नौकरी बदलने वाले कुछ कर्मचारियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने अपनी पिछली नौकरी इसलिए छोड़ दी कि उन्हें काम का माहौल बहुत कठिन लग रहा था। काम का बोझ और कार्यस्थल की परेशानी ने उन्हें काम जारी रखने में असमर्थ बना दिया। अफसोस की बात है कि उनमें से कई मानते हैं कि अपनी नई नौकरियों में भी उन्हें इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हर कंपनी महामारी के नुकसान की भरपाई के लिए पागलपन की दौड़ में शरीक है और कर्मचारियों को और अधिक काम करने के लिए दबाव डालती है।

गहरे संकट के आसार

चाहे उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा हो या उन्हें खुद ही नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा हो, ये सिर्फ वैश्विक तकनीकी दुनिया को धीरे-धीरे अपनी चपेट में लेने वाले मंदी के गहरे संकट के लक्षण हैं। यहां तक कि जब टेक उद्योग बाकी उद्योगों की अपेक्षा महामारी से उबरने में आगे था तो अब उसने मंदी की संकेत दिखाना शुरू कर दिया है। वित्त वर्ष 2022 की अंतिम तिमाही तक कई टेक कंपनियों के लिए रिकवरी प्रभावशाली थी लेकिन वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही के परिणाम उसके प्रदर्शन में गिरावट दिखाते हैं। जबकि कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि मंदी अस्थायी होगी और विकास फिर से शुरू होगा। उद्योग के लोगों कहना है कि वसूली कम थी और वे एक बड़े संकट की ओर बढ़ रहे हैं। अब कई रेटिंग एजेंसियां भविष्यवाणी कर रही हैं कि उद्यमी अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। यूरोप और चीन भी ठहराव के संकेत दे रहे हैं। यूक्रेन में युद्ध ने विश्व स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दिया है जिसके जल्द ही विकास पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाले हैं और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक गहरी मंदी में धकेलने की संभावना है। स्वाभाविक रूप से इस आसन्न संकट के शुरुआती रुझान तकनीकी क्षेत्र में भी श्रम स्थितियों पर अपना असर दिखा रहे हैं।

संकट की अन्य अभिव्यक्तियां

केवल छंटनी ही इस संकट की अभिव्यक्ति नहीं है। कई टेक कंपनियां नई भर्तियों के लिए बोनस में कटौती कर रही हैं। मौजूदा कर्मचारियों के वेतन में कटौती की गई है। उच्च वेतन पैकेज लेने वाले वरिष्ठ कर्मचारियों को हटाया जा रहा है और बराबर कौशल वाले नए कर्मचारियों की कम वेतन पर भर्ती की जा रही रहा है। कनिष्ठ कर्मचारियों को कंपनी में ही अधिक बेहतर कौशल से प्रशिक्षित किया जा रहा है। कई उद्योगों को बंद किया जा रहा है जैसे कि बंद करने में आसानी (ease of closure) व्यापार करने में आसानी (ease of doing business) का प्रमुख पहलू बन गया हो। चेन्नई के श्रीपेरम्पुदुर में अपना संयंत्र बंद करने के कुछ ही वर्षों के भीतर नोकिया (Nokia) भारत में अपनी नई 5G स्मार्टफोन उत्पादन केंद्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है। यहां तक कि जब फोर्ड ने भारत में अपने जीवाश्म ईंधन आधारित ऑटोमोबाइल संयंत्रों को बंद कर दिया तो वह भारत में ई-वाहनों के उत्पादन के लिए एक संयंत्र शुरू करने का विचार बना रहा था। भारत में नए श्रम संहिता के लागू होने से पहले से ही हायर-ऐण्ड-फायर का व्यवहार एक आदर्श बन गया है।

संक्षेप में, वैश्विक तकनीकी उद्योग उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। 

एनएएसडीएक्यू इंडेक्स पर टेक कंपनियों के शेयरों में तेज़ उतार-चढ़ाव और भारत में सेंसेक्स और निफ्टी में टेक कंपनियों के शेयरों के समान उतार-चढ़ाव इस हलचल को दर्शाते हैं। जुलाई के मध्य तक टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो और टेक महिंद्रा के शेयर 30% से 50% की छूट पर उपलब्ध थे और निफ्टी सूचना प्रौद्योगिकी सूचकांक 52-सप्ताह के उच्च स्तर के बाद से 32% गिर गया। यह हलचल एक तकनीकी बुलबुले और तकनीकी व्यापार चक्र में मंदी के एक चरण का संकेत देती है। भारत और अन्य जगहों पर तकनीकी व्यापार चक्र कुछ समय के लिए समग्र व्यापार चक्र से स्वायत्त हो सकता है। लेकिन, अंततः यह समग्र चक्र के साथ समन्वित होगा और उसी के द्वारा शासित होगा। इस अर्थ में, ये सभी ले-ऑफ और उद्योग की स्थिति शायद यह दर्शाते हैं कि तकनीकी उद्योग भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूरी तरीके से मंदी का अगुआ होगा।

नौकरियां जाने के अलावा, कुछ अन्य कारक भी हैं जो इस उथल-पुथल को बढ़ा रहे हैं।

कार्य की प्रकृति को ही बदल देना

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी नई तकनीकों की बदौलत अगले कुछ वर्षों में ऑटोमेशन के उच्च स्तर की संभावनाओं के कारण आईटी उद्योग को एक बड़े श्रम फेरबदल और विस्थापन के लिए तैयार होना होगा। सिर्फ आईटी उद्योग ही नहीं, यहां तक कि पारंपरिक विनिर्माण भी लंबे समय तक डिजिटल होने से नहीं बच सकते। आपूर्ति श्रृंखला और घटक इकाईयों को अंतिम असेंबली इकाई (final assembly unit) और निर्यात आवश्यकता के अनुसार बदलने की जरूरत है।

वैश्वीकृत उत्पादन

डिजिटलाइजेशन भी नया सिरदर्द लेकर आता है। अक्सर, कुछ एसएमईएस (SMEs) को अपने कुल तकनीकी ख़र्च का 50% से अधिक केवल साइबर सुरक्षा पर ख़र्च करना पड़ता है। कई बार, आपूर्ति श्रृंखला में उच्च-स्तर पर ख़रीद करने वाली कंपनियों की आवश्यकता के कारण यह एक मजबूरी की स्थिति बनती है। जब उत्पादन का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो जाता है तो यह बिल्कुल स्वाभाविक होता है कि प्रौद्योगिकी में समानता का दबाव बने। इससे उन कंपनियों से लागत और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं।

स्टार्ट-अप परिघटना

अर्थशास्त्री शुम्पीटर का ‘इनोवेशन का सिद्धांत’ व्यवहार में विनाश पर प्रीमियम लगाने भर के लिए काम में आता है! यह ऐसा है जैसे पूंजीवाद का पुनर्जनन और भरण-पोषण आंशिक आत्म-विनाश से ही संभव हो। इसी आधार पर टेक स्टार्ट-अप्स का स्वागत और प्रचार किया जा रहा है। स्टार्ट-अप्स का नाटकीय उदय, अपने आप में, पूंजीवाद के संकट का एक उत्पाद था और बदले में, यह अन्य तरीकों से संकट को और तेज़ करता है। इस प्रक्रिया में, वे स्वयं संकट में पड़ जाते हैं। जब प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्ट-अप इंडिया योजना शुरू की, तब 10,000 स्टार्ट-अप्स का लक्ष्य था। अब, हाल ही में उन्होंने बड़े गर्व से घोषणा की है कि देश में 74,000 कार्यशील स्टार्ट- अप्स हैं। लेकिन प्रधानमंत्री ने देश के साथ इस दुखद तथ्य को साझा नहीं किया कि आज ये 74,000 स्टार्ट-अप्स में से लगभग आधे समाप्त हो गए और उनके खंडहर पर वे खड़े हैं। महामारी के बाद से भारत में 20,000 स्टार्ट-अप बंद हो गए हैं और केवल इस साल उनमें से 12,000 बंद हुए हैं। इसके अलावा, वेंचर कैपिटल फंड, एंजेल निवेशक, और अन्य फाइनेंसर स्टार्ट-अप्स की कमाई का एक अच्छा हिस्सा निवेशकों/ऋणदाताओं के रूप में हड़प रहे हैं और प्रमोटर अपनी कमाई का केवल एक छोटा सा हिस्सा रख पाते हैं। एक ऑनलाइन ई-कॉमर्स स्टार्ट-अप 10 नौकरियां पैदा कर सकता है लेकिन इस प्रक्रिया में 100 पारंपरिक किराना दुकान बंद होते हैं। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि क्या स्टार्ट-अप्स ने अर्थव्यवस्था की कुल वृद्धि में या फिर कुल बेरोजगारी में योगदान दिया है।

मुद्रास्फीति और उपभोक्ता ख़र्च में गिरावट

अमेरिका में मुद्रास्फीति दहाई अंक में पहुंच गई है और कई अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वह तेज़ी से इसी आंकड़े के करीब पहुंच रही है। यूक्रेन में रूस के युद्ध ने इसमें काफी योगदान दिया है। सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने में व्यस्त हैं जो अनिवार्य रूप से निवेश कोष की लागत में वृद्धि करेगा और इसलिए विकास को नुकसान पहुंचाएगा। उपभोक्ता ख़र्च में कटौती से कुल मांग में भी कमी आएगी। इस प्रकार, मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिए दोहरी मार है। कई अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार चक्र उस चरण में पहुंच रहा है जब उपभोक्ता ख़र्च में वृद्धि पहले की तरह सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को आगे नहीं बढ़ा सकती। और राज्य द्वारा पूंजी निवेश में भारी वृद्धि भी पहले की तरह विकास लाभांश देने में विफल रही है। सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अधिक पैसा पंप करना - जिसे अर्थव्यवस्था को ‘पंप- प्राइमिंग’ करना कहा जाता है - अब समग्र विकास को बनाए नहीं रखता है। ऐसा परिदृश्य क्लासिक मंदी में देखा जाता है। वैश्विक तकनीकी क्षेत्र सही मायने में ऐसी ही स्थिति के प्रारंभिक चरण का अनुभव कर रहा है।

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