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वर्धा विश्वविद्यालय: छेड़छाड़ के मामले में प्रशासन ने शोध छात्रा से ही मांगे सबूत!

महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में एक शोध छात्रा ने कैंपस में छेड़खानी का आरोप लगाया है। 
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देश की एक यूनिवर्सिटी है जिसके नाम में अंतरराष्ट्रीय जुड़ा है। ये यूनिवर्सिटी है महाराष्ट्र में वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय। वैसे तो इस साल कई ऐसे मौक़े आए जब इस विश्वविद्यालय ने साबित कर दिया कि यहां अंतरराष्ट्रीय छोड़िए लोकल लेवल के नियम-क़ानूनों को भी अनदेखा किया जाता रहा है। पिछले मामलों की चर्चा बाद में, ताज़ा मामला एक शोध छात्रा से जुड़ा है जिसने कैंपस में अपने साथ हुई छेड़छाड़ की शिकायत की थी लेकिन लड़की का आरोप है कि यहां उसकी सुनवाई होने की बजाए उल्टा उसी पर झूठी शिकायत करने का आरोप लगा कर स्पष्टीकरण मांगा गया। 

क्या है पूरा मामला? 

पूरा मामला जानने के लिए हमने आरोप लगाने वाली छात्रा को फोन किया तो रोते हुए उसने अपनी बात शुरुआत की '' मुझे बोला गया कि केस वापस ले लो, वो लड़का अगर तुम पर मानहानि का केस डाल देगा तो क्या होगा? अगर उस लड़के ने ख़ुदकुशी कर ली तो तुम क्या करोगी? तुम्हारी पीएचडी का क्या होगा? मानहानि शब्द मेरे लिए कितना बड़ा था आप सोच भी नहीं सकती इस शब्द ने मुझे हिलाकर रख दिया, मेरी तीन चार महीने से फेलोशिप नहीं आ रही है, मैं ख़ुद उधार पर किसी तरह अपना ख़र्चा चला रही हूं, मैं बस इतना चाहती थी कि उस लड़के को अपनी ग़लती का एहसास हो जाए, मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती कि उसे सज़ा हो जाए, फांसी पर चढ़ा दिया जाए, मैं बस ये चाहती थी कि वे ऐसी हरकत किसी और के साथ न करे, लेकिन उल्टा उन्होंने सब कुछ मेरे ऊपर ही डाल दिया।

मुझ पर क्या गुज़र रही है मैं ही जानती हूं, मैं अपना synopsis जमा नहीं कर पा रही हूं। 10 तारीख़ लास्ट डेट है मैं एक साल लेट हो जाऊंगी, मैं बस चाहती थी कि उसे अपनी ग़लती का एहसास हो जाए लेकिन इन्होंने मुझे ऐसे ट्रीट किया जैसे मैं जाने कितने लड़कों को इसी तरह फंसाती रहती हूं''

और ये कहते-कहते छात्रा सुबक-सुबक कर रोने लगी।

ये पूरा मामला 18 अप्रैल 2023 का है। आरोप लगाने वाली छात्रा ने बताया कि रोज़ की तरह उस दिन भी वह सुबह योगा और वर्कआउट के लिए ग्राउंड में गई थीं। जहां साढ़े सात से आठ बजे के बीच उनके सामने से एक बाइक पर तीन लड़के गुज़रे और बीच में बैठे लड़के ने उसे घूरते हुए फ्लाइंग किस दिया। और अश्लील इशारे किए। जब तक लड़की को कुछ समझ में आता वे लड़के तेज़ बाइक चलाकर हॉस्टल की तरफ चले गए, लड़की ने दौड़कर उनका पीछा किया लेकिन वो बाइक निकल चुकी थी।

लड़की ने सबसे पहले घटना के बारे में अपनी महिला योगा टीचर को बताया तो उन्होंने भी लड़की को तुरंत शिकायत करने की सलाह दी। लड़की ने हॉस्टल आकर अपनी रूममेट को पूरी घटना के बारे में बताया और मदद मांगी लेकिन उसकी रूममेट ने हंसते हुए घटना को भूल जाने की सलाह दी और जैसे ही मामले ने तूल पकड़ा रूममेट ने अपना रूम बदल लिया। 

आरोप लगाने वाली लड़की ने उसी दिन (18 अप्रैल) इस मामले की एक लिखित शिकायत दी, उसका आरोप है कि जिस वक़्त वे शिकायत देने पहुंची थी तो उनसे मेल स्टॉफ ने पूछताछ की जिसकी वजह से वे बहुत ही असहज महसूस कर रहीं थी। जबकि ये नियमों के खिलाफ़ है। छात्रा ने प्रशासन पर नियमों की अनदेखी कर मामले को जल्द से जल्द रफा दफा करने का भी आरोप लगाया।

वे बताती हैं— ''मुझे 19 तारीख़ को साढ़े बारह बजे बुलाया गया और इस मीटिंग में क़रीब 10 से 12 पुरुष थे और सिर्फ एक महिला रेणु सिंह थीं। उसी दिन अनौपराचिक टाइम पर एक बार फिर मुझे CCTV देखने के लिए बुलाया गया जिसमें प्रॉक्टर डॉ. सूर्य प्रकाश पांडेय और डॉ. रेणु सिंह थीं। मुझे जो CCTV दिखाया उसमें छेड़छाड़ वाला हिस्सा नहीं था बल्कि वे उस टाइम से कुछ आगे या पीछे का था।'' 

लड़की का आरोप है कि जिस दौरान वे CCTV देख रही थी पीछे से लगातार उन पर फब्तियां कसी गईं, उन पर भद्दे कमेंट किए गए और उन्हें डरा-धमका कर जबरदस्ती शिकायत वापस लेने के लिए एक पत्र लिखवा लिया गया। 

आरोप लगाने वाली लड़की ने बताया कि इस सबसे वे इतना सहम चुकी थीं कि 19 तारीख़ को मीटिंग के बाद तुरंत बाद कुलपति से मिलीं। और अपने साथ हुई घटना के बारे में कुलपति को बताया लेकिन उनकी तरफ से भी कोई संतोषजनक मदद नहीं मिली। उल्टा उनसे (लड़की से) ही स्पष्टीकरण मांगा गया कि  ''आप बग़ैर इजाज़त कुलपति से सार्वजनिक स्थल पर क्यों मिलीं जबकि इससे पहले आप अपनी शिकायत वापस ले चुकी थीं''? ( जबकि लड़की का आरोप है कि उनसे ज़बरदस्ती शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया गया था।) 

इस दौरान आरोप लगाने वाली लड़की ने दोबारा CCTV देखने की गुज़ारिश की जिसका जवाब अभी तक नहीं आया, लड़की ने लैंगिक उत्पीड़न के विरुद्ध आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaint Committee ) में मामले को ले जाने की बात कही तो पता चलता है कि इसका गठन 21 अप्रैल 2023 को किया गया (उनकी शिकायत दर्ज करवाने के बाद)। और वहां पहुंचे मामले की भी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। 

इसके अलावा छात्रा ने ICC की इस कमेटी पर भी सवाल खड़े किए हैं। उनके मुताबिक कमेटी में जो सदस्य हैं वे UGC की ICC के नियमों का उल्लंघन करती है। इस कमेटी में रेणु सिंह के साथ ही कुछ और लोगों की मौजूदगी को वे असंवैधानिक बताती हैं। साथ ही छात्रा का कहना है कि कमेटी में छात्रों को पारदर्शी लोकतांत्रिक प्रणाली द्वारा चुनने का नियम है पर ऐसा कुछ नहीं किया गया। 

ICC कमेटी के सदस्यों के नाम

UGC के नियमों के मुताबिक- 

- एक पीठासीन अधिकारी जो एक महिला संकाय सदस्य हो और जो एक वरिष्ठ पद पर ( एक विश्वविद्यालय की स्थिति में प्रोफेसर से निम्न न हो तथा किसी महाविद्यालय की स्थिति में सह-प्रोफेसर अथवा रीडर से निम्न न हो) शैक्षिक संस्थान में नियुक्त हो तथा कार्यकारी प्राधिकारी द्वारा नामित हो। 

-अगर किसी मामले में छात्र शामिल हैं तो उसमें तीन छात्र हों जिन्हें स्नातक पूर्व, स्नातकोत्तर एवं शोध स्तर पर क्रमश भर्ती किया जाएगा। जिन छात्रों को पारदर्शी लोकतांत्रिक प्रणाली द्वारा चुना गया है

- उच्चतर शैक्षिक संस्थानों में वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर नियुक्त व्यक्ति जैसे कुलपति, पदेन कुलपति, रेक्टर कुलसचिव, डीन, विभागों के अध्यक्ष आदि आंतरिक समिति के सदस्य नहीं होंगे ताकि ऐसे केंद्र के प्रकार्य की स्वायत्तता सुनिश्चित रहे। 

अगर इन नियमों को देखें तो ICC की कमेटी में कुछ तो कमी ज़रूर नज़र आती है। 

वहीं लड़की का आरोप है कि उसे कहा जा रहा है कि उसकी शिकायत झूठी है। इसलिए उसी के खिलाफ़ ही कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा लड़की पर ही सबूत पेश करने का दबाव बनाया जा रहा है जबकि प्रशासन के पास CCTV फुटेज मौजूद है। ऐसे में लड़की का कहना है कि वे बुरी तरह से मानसिक तनाव से गुज़र रही हैं। और इस मामले में आख़िरी अपडेट ये है कि 3 मई को आरोप लगाने वाली लड़की को कुलसचिव ( कादर नवाज़ ख़ान ) की तरफ से एक लंबा स्पष्टीकरण पत्र मिला जिसमें इस पूरे मामले में क्या कुछ हुआ उसके बारे में लड़की को विस्तार से बताया गया है। 

इस जानकारी में घटना वाले दिन 18 अप्रैल से लेकर 27 अप्रैल जिस दिन लैंगिक उत्पीड़न के विरुद्ध आंतरिक शिकायत समिति को मामला सौंपा गया तक की जानकारी दी गई है। 

इस पत्र के मिलने के बाद आरोप लगाने वाली लड़की कुछ सवाल खड़े करती हैं। 

- जिस दिन उसे CCTV फुटेज दिखाया गया उसी दिन आरोपी लड़के की तरफ़ से मानसिक प्रताड़ना की शिकायत भी कैसे दर्ज की गई। 

- जिस मीटिंग को बाद में प्रॉक्टोरियल बोर्ड की बैठक बताया जा रहा है उसका नाम उसी वक़्त उसे क्यों नहीं बताया गया क्या इस बैठक का नाम बाद में तय किया गया? 

- उसने जब भी पूछताछ हुई उसकी वीडियो रिकॉर्ड क्यों नहीं की गई? ( लड़की का आरोप है कि इस बैठक में उन्हें डराया धमकाया गया और उन पर फब्तियां कसी गई थीं ) 

क्या कहता है प्रशासन? 

इस मामले पर हमने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के वाइस चांसलर रजनीश कुमार शुक्ल से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया। 

हमने उस योगा टीचर से भी फोन पर संपर्क करने की कोशिश की जिन्हें सबसे पहले छात्रा ने घटना के बारे में बताया था और जिन्होंने उस वक़्त छात्रा को मामले की शिकायत करने की सलाह दी थी लेकिन बाद में वे ख़ुद पलट गईं और उसी लड़के की वकालत करने लगीं आख़िर उन्होंने ऐसा क्यों किया? 

हमने विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर डॉ. सूर्य प्रकाश पांडेय से भी फोन पर बात की उन्होंने कहा कि '' हां एक बच्ची हमारे यहां शोधार्थी है, जिसने शिकायत की थी कि उसे एक छात्र ने अश्लील इशारा किया था, तो उसकी शिकायत पर हमने कमेटी बुलाई और संज्ञान लिया हमने दोनों को बुला के बयान लिया एक अच्छी बात ये रही कि पूरा घटनाक्रम CCTV में दर्ज है, तो वे फुटेज हमने बच्ची को शाम को बैठा कर दिखाया, तो देखिए वैसे कोई घटना नहीं दिखी तो अगर किसी निर्दोष को अगर ऐसे करेंगे तो ठीक नहीं है, वह लड़का भी कहीं ना कहीं उत्पीड़न महसूस कर रहा था, तो हम देख रहे हैं कि किसी के साथ नाइंसाफी न हो हम भी समझ रहे हैं  बहन है बेटी है अपने परिवार की, किसी के साथ ऐसा होना कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।'' 

वे आगे कहते हैं कि '' जिस छात्र पर आरोप लग रहा है उसके वॉर्डन ने उसे बुला कर कड़ाई से पूछताछ की है लेकिन वह बार-बार यही कह रहा है कि CCTV वहां पर है आप देख लो फिर जो सज़ा देनी हो दे देना, तो आप बताइए हमें तो दोनों पक्षों को सुनना होगा न? उस लड़की की मांग पर लैंगिक उत्पीड़न के विरुद्ध ( ICC ) आंतरिक शिकायत समिति में जांच की मांग की थी तो वो भी हो रही है।''

लेकिन जब हमने सवाल किया कि क्या इस घटना के बाद ICC का गठन किया गया है? तो उन्होंने बात का गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि ''नहीं ये हमारे यहां पहले भी थी लेकिन कार्यकाल खत्म हो गया था तो दोबारा गठन में कुछ वक़्त लगा''। 

इस पूरे मामले पर हमने आरोप लगाने वाली लड़की की हेड ऑफ डिपार्टमेंट से बात की जो इस वक़्त प्रयागराज में हैं उन्होंने कहा कि '' हां, उसने मुझे फोन किया था और सारा मामला बताया था, मैं उसे बहुत अच्छी तरह से जानती हूं, उसे पढ़ा भी चुकी हूं, लेकिन इस वक़्त में क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज में हूं, तो मैंने उसे कहा कि बेटा मैं यहाँ हूं और घटना हिंदी विश्वविद्यालय की है तो वहां पर एक्शन लिया जाएगा उसके बारे में तुम्हें बताया जाएगा।  अगर किसी लड़की के साथ नाइंसाफी हुई है तो उसे इंसाफ मिलना ही चाहिए, मैंने जानकारी ली है एक कमेटी बनी है जिसकी कार्रवाई चल रही है, लेकिन वे उनकी कार्रवाई से खुश नहीं थी और चाहती थी कि उसका मामला ICC  के पास जाए तो वहां भेज दिया गया है। अब जो उचित, अनुचित होगा उस संबंध में कार्रवाई की जाएगी।''

वहीं इस मामले पर हमने छात्रा के एक बैचमेट से भी बात की। उन्होंने बताया कि जिस दिन ये घटना हुई थी उसी दिन से वे छात्रा के साथ खड़े हैं, उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को विश्वविद्यालय प्रशासन जिस तरह से देख रहा है वह बहुत ही ग़लत है। उन्होंने  ये आरोप भी लगाया कि ''ये बहुत ही संवेदनशील मामला है, जो भी मीटिंग हुई इसमें नियम के मुताबिक़ आधे पुरुष और आधी महिलाएं होनी चाहिए लेकिन यहां सिर्फ रेणु सिंह थीं।'' साथ ही उन्होंने कहा कि ''अगर छात्रा को इंसाफ नहीं मिला तो उनके पास सिवाय धरने पर बैठने के कोई चारा नहीं बचेगा''। 

ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में छात्रों को इंसाफ की मांग के लिए धरने पर बैठना पड़ता है। जैसा की हमने पहले भी बताया था कि इस साल शायद ये तीसरा मौक़ा होगा जब विश्वविद्यालय प्रशासन इस तरह से पेश आ रहा है। 

अगर पीछे पलट कर देखे तो इसी साल फरवरी में विश्वविद्यालय ने बीकॉम में प्रवेश लेकर पढ़ाई कर रहे छात्र को बिना उसकी इजाजत के बीबीए पाठ्यक्रम में भेज दिया था, हालांकि बाद में छात्रों के धरना प्रदर्शन के विश्वविद्यालय को उस फैसले को वापस लेना पड़ा था। 

इसे भी पढें: वर्धा विश्वविद्यालय: दलित शोधार्थी के सत्याग्रह पर ABVP का हमला, दो ज़ख़्मी, कहां है प्रशासन ? 

इसी तरह मार्च-अप्रैल में एक दलित शोध छात्र, शोध प्रबंध के मूल्यांकन की मांग को लेकर कई दिनों तक धरने पर बैठा तब जाकर उनकी सुनवाई हुई और उस मामले में भी विश्वविद्यालय को शोध छात्र की मांग माननी पड़ी हालांकि इस मामले में धरने पर बैठे छात्रों पर ABVP के कार्यकर्ताओं द्वारा हमला करने का आरोप लगा था। 

अब देखना होगा कि इस मामले में प्रशासन किस तरह से पेश आता है और क्या कार्रवाई करता है? 

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