Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

वर्धा विश्वविद्यालय: दलित शोधार्थी के सत्याग्रह पर ABVP का हमला, दो ज़ख़्मी, कहां है प्रशासन ? 

महाराष्ट्र की वर्धा यूनिवर्सिटी में एक दलित शोध छात्र 27 मार्च से पीएचडी शोध प्रबंध के मूल्यांकन की मांग को लेकर धरने पर बैठा है। आरोप है कि 31 मार्च की रात ABVP के कार्यकर्ताओं ने उन पर और उनका समर्थन कर रहे छात्रों पर हमला कर दिया जिसमें दो छात्र गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।
Rajneesh

वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की एक दीवार पर महात्मा गांधी की तस्वीर के बगल में संविधान की प्रस्तावना लगाई गई थी और साथ ही बाबासाहेब आंबेडकर, ज्योतिबा फुले, भगत सिंह समेत और भी तमाम शख़्सियतों की तस्वीर लगी थी। इन तस्वीरों के सामने वर्धा यूनिवर्सिटी में ABVP के कार्यकर्ता जय श्रीराम का नारा लगाते हुए दाखिल हुए और भद्दी भाषा का इस्तेमाल करते हुए दिखाई दिए। जब हम इन तस्वीरों को धरने पर बैठे शोधार्थी दलित छात्र रजनीश कुमार आंबेडकर के सोशल मीडिया अकाउंट पर देख रहे थे तो यही ज़ेहन में आ रहा था कि गांधी, आंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीर के सामने देश का युवा जिस तरह से विश्वविद्यालय में जय श्रीराम के नारे लगाकर धरने पर बैठे दलित छात्र को धमका और डरा रहे थे क्या ये वही देश है जिसके लिए इन लोगों ने संघर्ष किया था? 

इन सबको देख कर 1954 में रिलीज़ हुई फ़िल्म जागृति का गाना ज़ेहन में घूमने लगा। 

लाए हैं हम तूफ़ान से कश्ती निकाल कर 
इस देश को रखना मेरे बच्चों का संभाल कर 

देखो कहीं बर्बाद न होवे ये बगीचा 
इसको हृदय के ख़ून से बापू ने है सींचा 

रखा है ये चिराग शहीदों ने बाल के 
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

हर दिन देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों से जिस तरह से छात्रों के साथ (ख़ासकर दलित छात्रों के साथ)  नाइंसाफी की ख़बरें आ रही हैं बेशक वे चिंता का सबब हैं। 

इसे भी पढ़ें : सेंट्रल यूनिवर्सिटी-कॉलेजों में दलित आदिवासी छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं पर CJI ने चिंता जताई

पिछले दिनों देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी इसपर अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने कहा था कि, "देश के वरिष्ठ शिक्षाविदों में से एक सुखदेव थोराट ने कहा है कि आत्महत्या से मरने वाले अधिकांश छात्र दलित और आदिवासी हैं और यह एक पैटर्न दिखाता है जिस पर हमें सवाल उठाना चाहिए। 75 वर्षों में हमने प्रतिष्ठित संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे भी अधिक हमें समानुभूति के संस्थान बनाने की जरूरत है। मैं इस पर इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर हमदर्दी की कमी से जुड़ा है।" 

मुख्य न्यायाधीश के सवाल उठाने का क्या कोई असर हुआ? ये एक बड़ा सवाल है। जिस वक़्त हम इस बात का ज़िक्र कर रहे हैं उस समय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा का एक दलित शोधार्थी छात्र धरने पर बैठा है और उसे हटाने के लिए 31 मार्च की रात ABVP के लोगों ने जमकर हंगामा और मारपीट की जिसके बाद दो छात्र अस्पताल में भर्ती हैं। 

Rajneesh
बताया जा रहा है कि एक छात्र अंतस सर्वानंद ( Antas sarvanad )  ICU में है, जबकि दूसरे छात्र विवेक मिश्रा भी गंभीर है। और इन सब के बीच दलित शोधार्थी छात्र अब भी धरने पर बैठा है। 

आख़िर क्या है पूरा मामला? 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के स्त्री अध्ययन विभाग के शोधार्थी दलित छात्र रजनीश कुमार आंबेडकर 27 मार्च से विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के बाहर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। वे अपनी पीएचडी शोध प्रबंधन के मूल्यांकन की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं। रजनीश कुमार का आरोप है कि उन्हें दलित और कैंपस का एक मुखर छात्र होने की सज़ा दी जा रही है। उनका आरोप है कि जिस तरह से विश्वविद्यालय उनके साथ पेश आ रहा है वो न सिर्फ़ नियम क़ानूनों के ख़िलाफ़ है बल्कि उन्हें मानसिक रूप से भी बहुत परेशान कर रहा है। 

धरना स्थल पर बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर की तस्वीर लिए बैठे रजनीश कुमार आंबेडकर ने अपनी शर्ट पर एक मैसेज लगाया हुआ है जिस पर लिखा है, ''NO MORE ROHITH VEMULA''

Student
रजशीन कुमार आंबेडकर के आरोप

रजनीश कुमार का आरोप है कि उन्होंने 26.05.2022 को पीएचडी शोध प्रबंध मूल्यांकन के लिए स्त्री अध्ययन विभाग में जमा करवा दी थी। जिसके क़रीब 3 महीने बाद उनके शोध निर्देशक को बदल दिया गया, जबकि उनके मुताबिक़ ये असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण है। वे बताते हैं कि उनके धरने पर बैठने के दिन तक उन्हें पीएचडी शोध प्रबंध जमा किए हुए 10 महीने बीत चुके हैं लेकिन प्रशासन उनकी मदद करने की बजाए उन्हें परेशान कर रहा है। प्रशासन के इस रवैए से परेशान होकर उन्होंने 27 मार्च को अनिश्चितकालीन सत्याग्रह पर बैठने का फैसला किया लेकिन जब वे धरना स्थल( प्रशासनिक भवन) पर पहुंचे तो वहां ताला लगा दिया गया था। तो उन्होंने प्रशासनिक भवन के गेट के बाहर ही बैठकर अपना सत्याग्रह शुरू कर दिया। रजनीश कुमार कहते हैं कि उनके इस सत्याग्रह को आइसा समेत कई दूसरे प्रगतिशील छात्र संगठन भी समर्थन दे रहे हैं लेकिन आरोप है कि 31 मार्च की रात धरना स्थल पर पहुंचे ABVP के कार्यकर्ताओं ने मारपीट और गाली-गलौज की। इस हंगामे में दो छात्रों को गंभीर चोट आई है। 

शोधार्थी छात्र रजनीश आंबेडर से फोन पर बात कर हमने पूरा मामला पता करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि '' पीएचडी में रजिस्ट्रेशन करवाने पर मुझे प्रो. शम्भू गुप्त गाइड मिले थे जिनके मार्गदर्शन में मैं शोध कर रहा था। शम्भू सर 31. 08. 2018 को रिटायर हो गए लेकिन उन्हीं के निर्देशन में मेरा सारा काम चलता रहा, 26 मई 2022 को मैंने अपनी पीएचडी जमा करवा दी और मैं अपने घर लखनऊ चला गया। क़रीब तीन महीने बाद मुझे हमारी HOD सुप्रिया पाठक का मैसेज आया कि डिपार्टमेंट आकर मिलें, मैंने सोचा कि थीसिस चेक होकर आ गई होगी, लेकिन फिर भी मैंने उनसे जिज्ञासावश पूछा कि कुछ विशेष तो उन्होंने बताया कि मेरा गाइड बदल दिया गया है। मैंने पूछा कि कोई ऑफिशियल लेटर जारी किया गया है? मुझे कोई जवाब नहीं मिला और उस बात के तीन महीने बाद मुझे लेटर मिला। जबकि पीएचडी से जुड़े नियम के मुताबिक़ पीएचडी में रजिस्ट्रेशन होने के दो साल बाद आप गाइड नहीं बदल सकते, साथ ही एक नियम है कि अगर आपने पीएचडी जमा कर दी है तो 15 दिन के अंदर उसे मूल्यांकन करवाने के लिए भेजा जाना चाहिए लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होता, उल्टा नियमों के विरुद्ध जाकर पीएचडी जमा करने के बाद मेरा गाइड बदला जाता है। 

रजनीश कुमार आंबेडकर आरोप लगाते हैं कि ये सब उनके साथ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वे अनुसूचित जाति के हैं। रजनीश बताते हैं कि, ''जब मुझे कोई समाधान नहीं मिला तो मैंने UGC, SC आयोग, मानवाधिकार आयोग, PMO और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे, लेकिन 27 मार्च की रात मेरे सत्याग्रह को हटाने के लिए प्रशासन की शह पर ABVP से जुड़े 50-60 छात्रों ने आकर हम लोगों पर जानलेवा हमला कर सत्याग्रह को ख़त्म करवाने की कोशिश की। इस दौरान वहां कई महापुरुषों की तस्वीर लगी थी उनका भी अपमान किया गया और मेरे धरने को समर्थन दे रहे कई छात्रों को चोट आई है। जब हमने घटना का फेसबुक पर लाइव किया तो हमारे फोन तोड़ दिए गए। हमने पुलिस बुलाई तो उन्होंने आकर मामला शांत करवाया और हमसे घटना के बारे में एक लेटर लिखवाया और चली गई।'' 

प्रशासन ने क्या क़दम उठाए? 

रजनीश कुमार कहते हैं कि, '' मैं पीएचडी अवॉर्ड करवाने की बात कर रहा हूं लेकिन ऐसा अजूबा मैंने नहीं कि जब पीएचडी पूरी हो गई और उसे अवॉर्ड करवाने की बात हो रही है तो नया गाइड बनाया जा रहा है। मैंने प्रो. शंभू गुप्त के निर्देशन में अपनी पीएचडी थीसिस पूर कर ली, लेकिन गैर संवैधानिक तरीके से थीसिस जमा करवाने के बाद डॉक्टर सुप्रिया पाठक जो मेरी HOD भी हैं उन्हें गाइड बनाया जाता है, मैंने आपत्ति दर्ज की उसके बाद लंबा पत्राचार चला। जब मैं धरने पर बैठ गया तो धरने के छठे दिन मुझे मेल मिला कि ''आपका गाइड फिर से बदल दिया गया है और प्रोफेसर शंभू गुप्त को को-गाइड बना दिया गया है, जबकि आपके गाइड शैलेश क़दम होंगे'' और जिन्हें गाइड बनाया गया है वे मराठी विभाग से हैं।''

इस पूरे मामले में रजनीश कुमार जिस बात को उठा रहे हैं वे ये कि यहां मुद्दा गाइड बदलने का नहीं है बल्कि पीएचडी थीसिस को जल्द से जल्द मूल्यांकन के लिए भेज कर उनकी पीएचडी को अवार्ड करवाने का है। 

क्या कहना है प्रशासन का? 

रजनीश कुमार आंबेडकर के आरोप को लेकर धरने पर ABVP के कार्यकर्ताओं के हमले पर प्रतिक्रिया जानने के लिए हमने वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल से बात करने की कोशिश की और हमने उन्हें फोन किया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। 

हमने रजनीश कुमार आंबेडकर के विभाग की HOD डॉ. सुप्रिया पाठक से भी संपर्क किया तो उन्होंने इस पूरे मामले पर कहा कि, ''मूल मामला ये है कि रजशीन कुमार आंबेडकर की पीएचडी के संबंध में निर्णय लिया जा चुका है। उन्हें नए गाइड दिए जा चुके हैं और प्रशासन के तरफ से उनके हक में जो फैसला होना है। उसका नोटिफिकेशन रजनीश को दिया जा चुका है, उनके गाइड को लेकर उन्हें आपत्ति थी कि उन्हें वे गाइड नहीं चाहिए तो गाइड उनके बदल दिए गए और को-गाइड के रूप में पूर्व में जो उनके निर्देशक थे (शंभू गुप्त)  वे भी उन्हें दे दिए गए हैं, एक तरह से प्रशासन ने इस समस्या का समाधान अपनी तरफ से निकाल दिया है। 

सुप्रिया पाठक से मैंने पूछा कि पर सवाल गाइड बदलने का नहीं बल्कि पीएचडी मूल्यांकन का है तो उन्होंने अपने जवाब में कहा कि, उनकी पीएचपी जमा ( submit ) नहीं हुई है, उन्होंने अपनी पीएचडी का पहला डॉफ्ट विभाग में जमा किया है और उस पहले डॉफ्ट के आधार पर कुलपति महोदय और पूरे विश्वविद्यालय ने जो निर्णय लिया है उसके आधार पर पीएचडी की थीसिस में कुछ बदलाव अभी किए जाने है तभी उसे submit माना जाएगा। उन्हें दूसरा गाइड जो दिया जा रहा है उसका मतलब यही है कि उन्हें थीसिस में सुधार करना होगा जोकि विश्वविद्यालय का नियम है। देखिए UGC का नियम है कि जब कोई प्रोफेसर रिटायर हो जाता है तो उनके अंडर शोध कर रहा छात्र शोध नहीं कर सकता। उसको रेगुलर फैकल्टी के अंडर ही शोध करना होगा। उन्हें जो नई रेगुलर फैक्टली दी जाएगी वे उसी विभाग के अध्यापक हों यही सामान्य प्रक्रिया है जो किसी भी यूनिवर्सिटी में फॉलो की जाती है और उनके ( रजनीश कुमार) केस में भी यही हुआ है। 

इसके साथ ही सुप्रिया पाठक कहती हैं कि पहले उन्हें ही रजनीश कुमार आंबेडकर का गाइड बनाया गया था जो कि टेक्निकल ग्राउंड पर सही था क्योंकि अगर किसी शोधार्थी का गाइड रिटायर हो जाता है तो HOD ही उनका गाइड होता है। 

रजनीश कुमार आंबेडकर की मांग, प्रशासन का जवाब, धरना और उन पर ABVP का हमला, क्या कहते हैं UGC के नियम और क्या प्रशासन कर रहा है बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब तलाश करना बेहद ज़रूरी हैं। 

कुछ सवाल
-अगर रिटायर गाइड के अंडर शोध नहीं हो सकता तो रजनीश कुमार आंबेडकर के गाइड 2018 में रिटायर हो गए थे उन्हें तभी कोई नया गाइड क्यों नहीं मिला? 
-पहले उनकी गाइड HOD डॉ. सुप्रिया पाठक ख़ुद बनी (टेक्निकल ग्राउंड पर)  और बाद में रजनीश कुमार आंबेडकर के गाइड शैलेश कदम को बनाया गया और साथ ही प्रो.शंभू गुप्त (रिटायर) को को- गाइड बनाया गया तो क्या ये अब ठीक है? 
- रजनीश कुमार आंबेडकर का आरोप है कि माना कि गाइड बना दिया गया लेकिन शैलेश कदम मराठी विभाग के हैं जबकि HOD सुप्रिया पाठक ने ख़ुद ही बताया कि UGC का नियम है कि नया गाइड उसी विभाग का मिलना चाहिए। 
- रजनीश कुमार का आरोप है कि यूनिवर्सिटी में कई ऐसे शोधार्थी हैं जिन्होंने अपने रिटायर गाइड के अंडर की शोध करके पीएचडी जमा करवाई है। 

और इन सबसे अलग बड़ा सवाल ये है कि अगर कोई छात्र अपनी मांगों को लेकर सत्याग्रह कर रहा है तो उस पर ABVP के लोग हमला कैसे कर सकते हैं? इसपर विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक क्या कदम उठाए? रजनीश कुमार आंबेडकर की मांग पर सवाल उठाए जा सकते हैं लेकिन उन पर और उनका साथ दे रहे छात्र संगठन पर हमला कर उन्हें लिंच करना कहां तक सही है?

इस पूरे प्रकरण के दौरान रजनीश कुमार आंबेडकर अगर अपनी शर्ट पर ''NO MORE ROHITH VEMULA'' लिखकर धरने पर बैठते हैं पर क्या किसी का ध्यान इस पर जा रहा है?  वे सही हैं या ग़लत इसका फैसला क्या मारपीट से होगा वो भी विश्वविद्यालय में? 

ख़बर लिखे जाने तक धरने पर ABVP के लोगों के हमले में घायल हुए अंतस सर्वानंद और विवेक मिश्रा अस्पताल में भर्ती हैं। जबकि रजनीश कुमार अंबेडकर धरना स्थल पर बैठे हैं। 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest