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सेंट्रल यूनिवर्सिटी-कॉलेजों में दलित आदिवासी छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं पर CJI ने चिंता जताई

"संसद में दी गई जानकारी के अनुसार साल 2014 से 2021 के बीच 122 खुदकुशी करने वालों में से 68 छात्र रिजर्व कैटेगरी से आते थे जिसमें 24 छात्र दलित यानी अनुसूचित जाति और 41 छात्र ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से थे, और 3 छात्र एसटी यानी अनुसूचित जनजाति थे। आज भी SC छात्र दर्शन सोलंकी हो या ST छात्रा प्रीति, कथित तौर से अपनी जान लेने की कोशिशों का यह सिलसिला निरंतर जारी है"
CJI

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने साल 2021 में लोकसभा में बताया था कि साल 2014 से लेकर 2021 के बीच IIT, IIM, NIT और देश भर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी समेत देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में करीब 122 से अधिक छात्रों की मौत आत्महत्या से हुई है। इनमें से 68 छात्र रिजर्व कैटेगरी से आते थे। जिसमें 24 छात्र दलित यानी अनुसूचित जाति और 41 छात्र ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से थे, और 3 छात्र एसटी यानी अनुसूचित जनजाति थे। इसके सवा साल बाद आज भी कथित तौर पर अपनी जान लेने की कोशिशों का यह सिलसिला जारी है।

याद करो 17 जनवरी 2016। जगह यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद। खबर थी कि एक पीएचडी छात्र की आत्महत्या से मौत हो गई है। वो छात्र था रोहित वेमुला। जाति से दलित। आरोप लगा कि रोहित की जान यूनिवर्सिटी एडिमिनिस्ट्रेशन के जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना की वजह से गई। उस वक्त देशभर में दलित और पिछड़ी जाति से जुड़े छात्रों के साथ हुए भेदभाव को लेकर आवाज उठी थी। अब करीब 9 साल बाद देश के बड़े यूनिवर्सिटी कॉलेजों में दलित आदिवासी छात्रों की सुसाइड की बढ़ती घटनाएं फिर सुर्खियों में हैं जिसे लेकर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कई अहम सवाल उठाए हैं।

हाल में IIT बॉम्बे में बीटेक फर्स्ट ईयर में पढ़ रहे दलित स्टूडेंट दर्शन सोलंकी की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाशिए पर रहने वाले वर्गों के छात्रों के बीच आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं और शोध से पता चला है कि ऐसे ज्यादातर छात्र दलित और आदिवासी समुदायों से हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा,

"देश के वरिष्ठ शिक्षाविदों में से एक सुखदेव थोराट ने कहा है कि आत्महत्या से मरने वाले अधिकांश छात्र दलित और आदिवासी हैं और यह एक पैटर्न दिखाता है जिस पर हमें सवाल उठाना चाहिए। 75 वर्षों में हमने प्रतिष्ठित संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे भी अधिक हमें समानुभूति के संस्थान बनाने की जरूरत है। मैं इस पर इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर हमदर्दी की कमी से जुड़ा है।" बता दें कि जब CJI द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (NALSAR) में दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। उस वक्त तेलंगाना के हैदराबाद में आदिवासी समाज से आने वाली मेडिकल स्टूडेंट प्रीति (26) अपनी जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही थी और अगले ही दिन उसकी मौत हो गई। दरअसल, रैगिंग से तंग आकर कथित तौर पर अपनी जान लेने की कोशिश की थी।

करीब सवा साल पहले धर्मेंद्र प्रधान ने संसद में जानकारी देते हुए बताया था कि 2014 से 2021 के बीच सैंट्रल यूनिवर्सिटी, IIT और NIT में कु 101 छात्रों ने ख़ुदकुशी कर ली। सिर्फ़ IIT में ही 34 छात्रों ने इस दौरान आत्महत्या की थी। इनमें आधे से ज़्यादा छात्र आदिवासी, दलित या ओबीसी के थे। यह सिलसिला आज भी जारी है।

वर्तमान में देंखे तो इसी फ़रवरी माह में IIT बॉम्बे से एक दलित छात्र की आत्महत्या की दुखद ख़बर आई। इस छात्र के परिवार ने आरोप लगाया कि दर्शन सोलंकी नाम के इस छात्र के साथ संस्थान में जातिगत भेदभाव हो रहा था। इस भेदभाव से परेशान हो कर ही दर्शन ने अपनी जान दे दी थी। इस मसले पर IIT बॉम्बे ने एक समिति बनाई और इस समिति ने संस्थान के प्रबंधन को क्लीन चिट देते हुए कहा कि क्योंकि दर्शन सोलंकी के परीक्षा में लगातार नंबर कम आ रहे थे, इसलिए उसने शर्मिंदा हो कर आत्महत्या कर ली थी।

हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कमेटी की रिपोर्ट और गठन दोनों पर कई बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए हैं। और इस मसले पर एक बहस मीडिया में छपी है…। इस बहस में देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हुए हैं। इसके अलावा IIT या देश के ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े लोग भी अपनी बात इस मुद्दे पर कह रहे हैं। 

5 मार्च को देश के एक बड़े अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया में वी रामगोपाल राव का एक लेख इस मुद्दे पर छपा है। वे IIT दिल्ली के डायरेक्टर रह चुके हैं, और फिलहाल बिट्स पिलानी के ग्रुप वाइस चांसलर हैं। उन्होंने अपने लेख में भारत के कॉलेजों और संस्थानों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। इस मसले पर चिंता जताने के साथ ही उन्होंने उन कारणों की पहचान की है जो आत्महत्याओं के मामलों में बढ़ोत्तरी का कारण हो सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कुछ उपाय भी सुझाए हैं जो आत्महत्याओं को रोक सकते हैं।

इस सिलसिले में उन्होंने चार मुख्य उपाय करने की सलाह दी है। इसमें पहली सलाह है छात्र और शिक्षक के अनुपात को सुधारना– उन्होंने कहा है कि अब प्रतिष्ठित संस्थानों में लगातार छात्रों की तादाद बढ़ रही है, लेकिन उस अनुपात में शिक्षक या संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं। उनकी नज़र में यह सत्यानाश की जड़ है, यह सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से छात्रों में तनाव बढ़ता है।

उन्होंने दूसरा उपाय बताया है स्ट्रांग कम्युनिटी फ़ीलिंग– उन्होंने दावा किया है कि ना जाने कितने वैज्ञानिक शोध मौजूद हैं जो बताते हैं कि मज़बूत रिश्ते खुश रहने की कुंजी है। उनका कहना है कि ऐसा माहौल होना चाहिए जहां अगर कोई छात्र मुश्किल महसूस करता है तो वह मदद माँग सके। इसके लिए उन्होंने कहा है कि NCC और NSS की गतिविधियाँ मदद कर सकती हैं। कुल मिलाकर वो कहते हैं कि छात्रों और अध्यापकों के बीच संवाद होते रहना चाहिए। अगले दो उपायों में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना सीखना चाहिए…और हमें अपने कैंपसों में मेंटल हेल्थ के लिए पर्याप्त सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।

वे अपनी बात ख़त्म करते हुए एक बेहद ज़रूरी, पर अधूरी बात कहते हैं।वो कहते हैं कि अब वो समय आ गया है जब प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्रों को अपने सीमित और संकुचित दायरों से बाहर निकलना चाहिए। वो कहते हैं …इन संस्थान के छात्रों को वंचित तबकों के लोगों की मदद करना सीखना चाहिए… मसलन इस संस्थान के लोग किसी छोटे दुकानदार को अपना बिज़नेस ऑनलाइन ले जाने में मदद करनी चाहिए… या फिर कुछ दिन उन स्कूलों में पढ़ाना चाहिए जहां पर ग़रीब बच्चे पढ़ते हैं। कुल मिलाकर उनका कहना ये है कि IIT, AIIMS, IIM जैसे संस्थानों के छात्रों को लोगों का कष्ट और दुख समझना चाहिए और अंततः वे कहते हैं कि मानसिक बीमारी का इलाज संभव है। इसमें जागरूकता और मज़बूत संबंध काम आ सकते हैं।

उन्होंने जो बात कही है वह ज़रूरी होते हुए भी अधूरी है… और अधूरी है इसलिए उसका कोई लाभ भी शायद नहीं होगा। बल्कि जो उन्होंने जो कहा है वह काफ़ी हद तक चिंताजनक भी है। क्योंकि उनकी बात में ज़रूरी तथ्यों को छोड़ दिया गया है। वो तथ्य है कि इन संस्थानों में जिन छात्रों ने आत्महत्या की हैं उनमें से 58 प्रतिशत वे आदिवासी, दलित या फिर पिछड़ी जातियों से थे। सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी इसकी गवाह है।

खुदकुशी के आंकड़े महज एक संख्या नहीं: सीजेआई 

IIT Delhi के पूर्व डायरेक्टर हो या फिर इन संस्थानों के प्रबंधन से जुड़े लोग, सभी की चिंता, इन संस्थानों की प्रतिष्ठा से ज़्यादा जुड़ी है लेकिन इस मामले में CJI चंद्रचूड़ ने जरूर कुछ अहम बिंदुओं को छुआ है। उन्होंने कहा कि वे इस बात से काफ़ी परेशान हैं कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में वंचित तबकों के छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन संस्थानों में जुड़े आंकड़ों को सिर्फ़ एक संख्या नहीं समझा जा सकता है, बल्कि ये कई बार सदियों के संघर्ष की कहानी कहते हैं। 

CJI ने कहा कि अगर हम इस मसले का हल चाहते हैं तो सबसे पहली ज़रूरत है कि इस समस्या को समझा जाए। उन्होंने जाने माने शिक्षाविद सुखदेव थोराट को उद्धृत करते हुए कहा, “सुखदेव थोराट ने कहा कि जब प्रतिष्ठित संस्थानों में आत्महत्या करने वाले लोगों में से लगभग सभी छात्र दलित या आदिवासी हैं तो फिर यह एक पैटर्न है जिसको समझने और सुलझाने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे संस्थानों में समानुभूति (empathy) की कमी है और संस्थानों में भेदभाव से यह सीधा सीधा जुड़ा है। यानि इन संस्थानों में वंचित या कमज़ोर तबकों से आए छात्रों को समझने की कोशिश नहीं की जाती है। मोटे तौर पर मुख्य न्यायधीश ने जो बात कही है, वह इस मुद्दे पर एक गंभीर टिप्पणी है। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि उनकी इस टिप्पणी के बाद भी इन संस्थानों या उनसे जुड़े लोगों की जो प्रतिक्रिया है वो बहुत सतही है जिसे ज़्यादा से ज़्यादा प्रबंधकीय यानि खानापूर्ती ही ज्यादा कहा जा सकता है। कुल मिलाकर इस गंभीर मसले पर गहन चिंतन मनन, हमदर्दी और मिलकर कदम उठाने की आवश्यकता है।

साभार : सबरंग 

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