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IIT दिल्ली: दलित मां का दर्द ''हमारी तो सब उम्मीदें टूट गईं'' !

दिल्ली IIT में दो महीने के भीतर दो छात्रों के सुसाइड की ख़बर आई, दोनों ही छात्र दलित समुदाय से आते हैं और दोनों एक ही डिपार्टमेंट के थे।
IIT

''हमें बड़ी खुशी हुई थी, बड़ी ख़ुशी, सोचा था इस साल काम कर रही हूं अगले साल काम नहीं करूंगी, मेरा बेटा नौकरी पा जाएगा''

और ये कहते-कहते विद्या देवी बिलख-बिलख कर रोने लगीं। 

विद्या देवी की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, जिस दिन उनके बेटे अनिल कुमार को IIT दिल्ली में एडमिशन मिला था उस दिन उनकी आंखों में ख़ुशी के आंसू थे या नहीं, पता नहीं लेकिन आज बेटा दुनिया में नहीं है तो आंखों में दर्द का सैलाब उमड़ रहा है। 

दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में एडवोकेट महमूद प्राचा के ऑफिस में जैसे ही हम दाखिल हुए सोफे पर चेहरे पर आधा घूंघट रखे, बहुत ही दुबली सी एक महिला दिखीं, उनके साथ ही कुछ और लोग बैठे थे, सभी के उतरे चेहरे साफ बता रहे थे कि ज़िन्दगी ने उन्हें ग़म की सज़ा दी है।  एक बैग और कुछ फाइलों को थामे ये लोग शाम होते-होते लग रहा था थक चुके हैं। लेकिन ये थकावट शरीर से ज़्यादा ज़ेहनी दिख रही थी।   

विद्या देवी को 1 सितंबर को पता चला कि उनके बेटे ने IIT दिल्ली में अपने हॉस्टल में आत्महत्या कर ली, उस दिन से ही उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। बेटे की मौत के क़रीब 20 दिन बाद वो एक बार फिर दिल्ली पहुंची, साथ में बड़ा बेटा अमित और उनका एक रिश्तेदार हैं। अनिल कुमार का परिवार उनकी मौत को आत्महत्या मानने को तैयार नहीं हैं और इस सिलसिले में FIR दर्ज करवाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इनका आरोप है कि पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार कर रही है। अनिल कुमार दलित समाज से आने वाला एक छात्र था। दिल्ली IIT में महज़ दो महीने के भीतर एक ही डिपार्टमेंट के दो दलित छात्रों की मौत कई सवाल खड़े करती है। 

कौन थे अनिल कुमार ? 

21 साल का अनिल कुमार बांदा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था। और वह दिल्ली IIT ( Indian Institute of Technology ) में मैथमेटिक्स और कंप्यूटिंग ( Mathematics and computing ) (सेशन 2019-23 ) में फोर्थ ईयर का छात्र था। अनिल विंध्याचल हॉस्टल में रहता था। 1 सितंबर को मीडिया रिपोर्ट से पता चला कि अनिल ने अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली। साथ ही इन मीडिया रिपोर्ट में पुलिस के हवाले से ही पता चलता है कि अनिल को जून में हॉस्टल का कमरा खाली करना था चूंकि वह कुछ विषयों में पास नहीं हो पाया था इसलिए वह हॉस्टल में और छह महीने रुकना चाहता था, प्रशासन की तरफ से उन्हें इसकी इजाजत दे दी गई थी। साथ ही इन रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस को जांच में किसी तरह की कोई साज़िश नहीं दिखी लेकिन वे सभी पहलुओं की जांच कर रही है।

तीन साल पहले अनिल के पिता की मृत्यु हुई थी 

लेकिन अब अनिल कुमार का परिवार दिल्ली में इंसाफ की मांग के साथ भटक रहा है। हमने अनिल कुमार के परिवार से मुलाकात की। तीन साल पहले ही अनिल के पिता इस दुनिया से चले गए, उनकी मां और दो भाई और एक बहन है। अनिल के बड़े भाई अमित कुमार गाड़ी चलाते हैं। वे हमें बताते हैं कि '' महीने का पांच-छह हज़ार मिल जाता है उसी में किसी तरह से अपना गुज़ारा करते हैं और अपने छोटे भाई को पढ़ा रहे थे, किसी तरह आगे बढ़ाया, अपनी मेहनत के बल पर वो यहां तक पहुंचा था, हमने उससे कहा था कि तुम्हें जहां तक पढ़ना है पढ़ो किसी तरह हम व्यवस्था करके तुम्हें आगे बढ़ाएंगे, वे पढ़ रहा था, कोई दिक्कत नहीं थी''। 

अनिल कुमार की मां, बड़ा भाई और रिश्तेदार

''मैं भी काम करती हूं, प्राइवेट स्कूल में सफाई का, तीन हज़ार पर'' 

बेटे की पढ़ाई ठीक से चलती रहे इसलिए अनिल कुमार की मां विद्या देवी भी काम करती थीं। वे बताती हैं '' मैं भी काम करती हूं, प्राइवेट स्कूल में सफाई का, तीन हज़ार पर ''  विद्या देवी रोते हुए बताती हैं '' क्या बताएं कितना होशियार था, हम पढ़ा रहे थे, तीन साल पहले उसके पापा ख़त्म हो गए, तब भी हम किसी तरह से उसे पैसे देते रहे, बहुत मुश्किल से कमा रहे थे'' हमने विद्या देवी से पूछा कितना मुश्किल था आपके लिए अपने बेटे को IIT भेजना तो उनका जवाब था '' अब ये हमारा दिल जानता है''। 

''बड़ी उम्मीदें थीं, अच्छी नौकरी कोई पा जाएगा, लेकिन सब समाप्त कर दिया''

विद्या देवी बताती हैं कि जिस दिन उनके बेटे अनिल का IIT में एडमिशन हुआ था उन्हें बहुत ख़ुशी हुई थी, लगा रहा था उनके दिन भी पलट जाएंगे, वे कहती हैं कि '' सोचा इस साल काम कर रही हूं अगले साल काम नहीं करूंगी मेरा बेटा नौकरी पा जाएगा'' रोती हुई मां को देखकर अनिल के बड़े भाई अमित कहते हैं '' बड़ी उम्मीदें थीं, अच्छी नौकरी कोई पा जाएगा, लेकिन सब समाप्त कर दिया''

क्या जातिसूचक शब्द बोले गए? 

परिवार का आरोप है कि अनिल कुमार को संस्थान में जातिसूचक शब्द बोले गए जब हमने उनसे पूछा कि किसने और कब बोला तो उनकी मां कहती हैं '' मई में आया था तो बताया था, अनुसूचित जाति को लेकर बोला था, लेकिन हमने उससे कहा कि तुम अपना पढ़ो इसमें दिमाग मत लगाओ'' जब हमने अनिल के बड़े भाई अमित से पूछा कि इस तरह के शब्द किसने इस्तेमाल किए थे तो उनका कहना था '' मई में जब छुट्टी में आया था तब बोला था उसने,  टीचर के द्वारा किया गया था , लेकिन किसी का नाम नहीं बताया, मैंने उससे कहा कि तुम इस चीज़ में अपना दिमाग मत लगाओ, अपना पढ़ाई में दिमाग लगाओ, जो कह रहा है कहने दो'' 

 ''हमारा भाई सुसाइड नहीं कर सकता''

अनिल कुमार के दिमाग में क्या चल रहा था ये कोई नहीं जानता, लेकिन 1 सितंबर को अनिल के बड़े भाई को जब घटना की सूचना मिली तो उसके बारे में अमित बताते हैं '' 1 तारीख को साढ़े सात बजे ( शाम को ) सबसे पहले मेरे पास फोन आया फिर बलराम यादव ( सिक्योरिटी ऑफिसर ) का फोन आया, साढ़े दस बजे पुलिस का भी फोन आया मैंने उनसे बात की वे कह रहे थे कि आपके भाई ने सुसाइड कर लिया है, हमने उनसे बोला कि हमारा भाई सुसाइड नहीं कर सकता'' हमने अमित से ऐसा कहने की वजह पूछी तो उनका कहना था '' क्योंकि मेरा भाई सुसाइड नहीं कर सकता, हमें मालूम है'' । 

''मोबाइल के लिए पैसे भेजे थे''

अमित बताते हैं कि '' आख़िरी बार 29 तारीख़ ( अगस्त) को साढ़े सात बजे बात हुई थी, मैंने 27 तारीख़ को पैसा भेजा, तो उसने मोबाइल ख़रीदा जिसकी तस्वीर भी उनसे मुझे भेजी कि मोबाइल आ गया है, मैं बढ़िया पढ़ रहा हूं कोई दिक्कत नहीं है। उनसे बात की थी सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था''। 

लेकिन प्रशासन की तरफ से जो बात कही जा रही है उसपर अमित का कहना है कि '' कॉलेज प्रशासन, पुलिस प्रशासन सब कोई कह रहा है कि उसने सुसाइड किया है लेकिन उनकी एक मैम हैं दो साल पहले पढ़ाती थीं उन्होंने हमसे बात किया वे कह रही थीं कि वे पढ़ने में बहुत अच्छा लड़का है, मैंने उसे पढ़ाया है।'' 

अनिल कुमार की मां बताती हैं कि उनका बेटा अनिल पढ़ाई में बहुत होशियार था वे कहती हैं कि '' वो हैदराबाद पढ़कर आया, वो कोटा पढ़कर आया था''। 

घटना के बाद से ये परिवार तीसरी बार दिल्ली आया है, अमित कुमार बताते हैं कि ''स्टेशन पर पड़े रहते हैं, होटल में खाना खाते हैं लेकिन हम इसी प्रयास में लगे हैं कि हमें इंसाफ चाहिए, सीबीआई जांच होनी चाहिए'' 

 ''हमारी तो उम्मीदें सब टूट गईं''

एक मां जिसे अपने दिन पलटने की आस थी आज वो दिल्ली में भटक रही है, अनिल कुमार के बड़े भाई  अमित कुमार कहते हैं '' जहां पर बैठे हैं, क्या बताया जाए, हमें इधर बैठना नहीं चाहिए, जहां आज बैठे हैं'' सुबकते हुए अनिल की मां कहती हैं '' हमारी तो उम्मीदें सब टूट गईं''। 

मीडिया से बात करने के लिए क्यों रोका गया ? 

परिवार अब इंसाफ की आस लिए दिल्ली पहुंचा है उनके एक रिश्तेदार कहते हैं '' दलित समाज से हमारी गुजारिश है कि इंसाफ दिलाने में हमारे साथ आएं, हमारे बच्चे की हत्या हुई है'' अमित कुमार बताते हैं कि '' जब अनिल का पोस्टमार्टम हो रहा था तभी हमें कहा जा रहा था मीडिया से बात ना करना'' । साथ ही वे बताते हैं कि जब उन्होंने खिड़की से अपने भाई का कमरा देखा तो उसमें सारा सामान बिखरा हुआ था, साथ ही कमरे में ख़ून भी था, वे बताते हैं कि उन्होंने हॉस्टल स्टाफ और आस-पास के छात्रों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं, सब ख़ामोश हैं. वे आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं दी है। 

पुलिस ने FIR दर्ज करने से मना किया 

लेकिन अब ये परिवार मामला दर्ज करवाना चाहता है, जांच चाहता है, मौत की वजह जानना चाहता है इस सिलसिले में परिवार किशनगढ़ थाने भी पहुंचा लेकिन इनका आरोप है कि पुलिस ने FIR दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया। लेकिन परिवार का भी कहना है कि जब तक इंसाफ नहीं मिल जाता वो संघर्ष करते रहेंगे''। 

शिकायत पर क्यों नहीं हो रही FIR दर्ज ? 

परिवार सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट महमूद प्राचा के पास पहुंचा। महमूद प्राचा ने अनिल कुमार और क़रीब दो महीने ( 9 जुलाई) पहले आत्महत्या करने वाले दिल्ली IIT के ही एक और दलित छात्र आयुष आशना  के मामले पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने कहा कि '' हाल ही में दो बच्चे जो SC कम्युनिटी से आते थे IIT में जिनकी मृत्यु हुई सबको इसके बारे में पता चला, इन दोनों के परिवार वालों ने पुलिस स्टेशन किशनगढ़ में ये शिकायत दी कि इन दोनों की हत्या जाति की प्रताड़ना की वजह से हुई है, इन लोगों को जाति की वजह से प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन अभी तक दिल्ली पुलिस ने इन दोनों केस में FIR दर्ज नहीं की है, एक की शिकायत जुलाई से पेंडिंग है और एक को एक सप्ताह से ज़्यादा हो गया।  दुख की बात ये है कि मैं ख़ुद किशनगढ़ पुलिस स्टेशन गया था, वहां SHO साहब से और ACP साहब से मिला था जिन्होंने FIR दर्ज करने से इंकार करते हुए साफ कह दिया कि हम सेक्शन 4, SC-ST एक्ट झेलने के लिए तैयार हैं, उसके बाद हम DCP साहब के ऑफिस गए और उनके ऑफिस को भी हमने सारे हालात से अवगत करवाया कि आज तक SC-ST एक्ट के तहत FIR दर्ज नहीं हुई है''। 

दिल्ली IIT देश ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध संस्थान है।  लेकिन दो महीने के भीतर एक ही डिपार्टमेंट के दो दलित छात्रों की इस तरह से मौत बड़ी बात है।  हो सकता है पुलिस को कोई साजिश न लगती हो लेकिन अगर इतने बड़े संस्थान में छात्र आत्महत्या कर रहे हैं तो क्या उसकी वजह नहीं तलाश करनी चाहिए? 

परिवार अपने बच्चों की मौत की सही वजह तलाश करने के लिए बेचैन है, हो सकता है IIT प्रशासन भी अपने लेवल पर जांच कर रहा हो लेकिन ऐसे में इन परिवार से बात क्यों नहीं की जा रही है? 

अनिल की मां एक दलित महिला हैं, एक स्कूल में सफाई का काम कर महज़ तीन हज़ार रुपया कमा रही थीं, उन्हें लग रहा था जो तपस्या उन्होंने की है वो सफल होने वाली है लेकिन एक दिन में ही उनकी सारी उम्मीदें, सारे सपने बेटे के साथ एक रस्सी से लटक गए। 

 कुछ सवाल - 

 -एक ही डिपार्टमेंट के छात्रों ने सुसाइड क्यों किया ?

- सुसाइड करने वाले दोनों छात्र दलित 

- दो महीने पहले जब आयुष ने सुसाइड किया तो क्या जांच हुई ? 

- परिवार के आरोपों पर FIR दर्ज क्यों नहीं की जा रही ? 

- अनिल कुमार की पोस्टमार्टम रिपोर्ट परिवार को अभी तक क्यों नहीं दी गई? 

IIT पहुंचना देश के बच्चों और उनके माता-पिता के लिए कितना बड़ा सपना है ये हम सब जानते हैं और इस सपने को पूरा करने का दबाव झेल रहे बच्चों पर क्या गुज़रती है ये कोटा में अब तक बच्चों की मौत के आंकड़े बयां करते हैं। 

वहीं इस मुश्किल डगर पर अगर कोई दलित छात्र चलता है तो इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि वे वहां तक किन कांटों पर चलकर पहुंचे होंगे। आयुष और अनिल दोनों ही फोर्थ ईयर के छात्र थे, तो ये दलील तो ख़ारिज हो जाती है कि वो पढ़ाई में अच्छे नहीं थे इन दलित छात्रों का वहां तक पहुंचना भी अपने आप में ही सफलता की कहानी कहती है लेकिन मंजिल के इतने क़रीब पहुंच कर इन बच्चों की मौत हमारे समाज के लिए बड़ा धक्का है। 

इस संबंध में कॉलेज प्रशासन से लगातार बात करने की कोशिश की गई लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। अगर कॉलेज प्रशासन का कोई पक्ष प्राप्त होता है तो स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी।

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