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क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?

वैक्सीन सार्वजनिक वैश्विक संपदा होती है। इस पर दुनिया के हर व्यक्ति का अधिकार बनता है। इसलिए वैक्सीन निर्माण में दुनिया की सरकारों ने भी खूब पैसा लगाया है। संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन जीने के अधिकार के तहत यह भी शामिल हो जाता है।
क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?
Image courtesy : Hindustan

कोरोना का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकारी आंकड़ों में कोरोना से हो रही मौतों को बड़े स्तर पर छुपाया जा रहा है। पहले से ही बहुत अधिक चरमराया हुआ भारतीय स्वास्थ्य ढांचा इसे संभाल नहीं पा रहा। सरकारी और निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं हैं। बिस्तर नहीं हैं। ऑक्सीजन नहीं है। दवाइयों की जमकर कालाबाजारी चल रही है। जीवन बचाने से जुड़े सारे साधन या तो कम होते जा रहे हैं या खत्म होते जा रहे हैं। केवल शव हैं जो श्मशान और कब्रिस्तान में कम नहीं हो रहे हैं।

ऐसे में क्या होना चाहिए? लोगों के जरिए भारत की चुनी हुई सरकार को क्या करना चाहिए? कोई भी समझदार इंसान इस सवाल का यही जवाब देगा कि वह उपाय सब को मुहैया करना चाहिए जिस उपाय पर वैज्ञानिकों की मुहर लग रही हो। वैज्ञानिक कह रहे हों कि इसके बिना कोरोना का संक्रमण बहुत तेजी से फैलेगा और हमारे पास इतने संसाधन नहीं है कि हम इसे संभाल पाए। इस उपाय का नाम है कि सबको कोरोना का टीका यानी वैक्सीन लग जाए। ताकि उनका शरीर कोरोना से लड़ने के लिए पहले ही तैयार रहे। नहीं तो हर जगह यही जारी रहेगा कि स्वास्थ्य ढांचा टूट रहा है और लोग मरते जा रहे हैं।

इस बुनियादी बात के बावजूद सरकार की तरफ से नियम बना कि 1 मई के बाद 18 साल से ऊपर सभी टीके लगवा सकते हैं लेकिन यह मुफ्त में नहीं मिलेगा। अभी तक यह नियम था कि केंद्र सरकार सब्सिडी पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक से वैक्सीन खरीद रही थी। मुफ्त में राज्यों को दे रही थी। मुफ्त में नागरिकों को भी मिल रहा था। लेकिन 1 मई के बाद नियम बदल जाएगा जिसके तहत मुफ्त में नागरिकों को वैक्सीन नहीं मिलेगी।

खबर है कि सीरम इंस्टिट्यूट ने कोविशिल्ड वैक्सीन के नए रेट फिक्स कर दिए हैं। सीरम ने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों को कोविशील्ड वैक्सीन 600 रुपये में दी जाएगी। इससे पहले इन अस्पतालों को ये वैक्सीन 250 रुपये में दी जा रही थी। राज्यों के लिए वैक्सीन के दाम 400 रुपये होंगे और केंद्र को पहले की ही तरह ये वैक्सीन 150 रुपये में मिलती रहेगी।

इस खबर पर सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि यह बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार वैक्सीन खरीदें। सभी राज्य सरकारों को बराबरी और पारदर्शी तरीके से वैक्सीन दे। प्रधानमंत्री केयर फंड के तौर पर जो करोड़ों रुपये जमा किए हैं उसका इस्तेमाल करें। पिछले 70 साल से भारत ने हमेशा मुफ्त में यूनिवर्सल वैक्सीनेशन प्रोग्राम लागू किया है।

अगर आप खुद के सिवाय पूरे भारत को ध्यान में रखकर सोचेंगे तो सीताराम येचुरी की बात आपको बहुत जायज लगेगी। लेकिन फिर भी आपके मन में कई तरह के सवाल होंगे तो चलिए इन सारे सवालों के जवाब ढूंढते हैं।

सबसे पहले यह जान लीजिए कि चीन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन जैसे बहुतेरे देश फ्री में अपने नागरिकों को वैक्सीन उपलब्ध करवा रहे हैं। यानी वे सभी देश जिनसे भारत की तुलना की जा सकती है और विश्व बिरादरी में जिनके समकक्ष होने का दावा भारत खुद करता है, वे सभी देश अपने नागरिकों को फ्री में वैक्सीन उपलब्ध करवा रहे हैं। तो यह सतही सवाल भी नहीं पूछा जा सकता कि दूसरे देशों की सरकारों ने ऐसा नहीं किया तो भारत ऐसा क्यों करे?

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर आर रामकुमार ने बड़े ही विस्तृत तरीके से इस पर अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है। प्रोफेसर साहब कहते हैं कि राज्य सरकार को वैक्सीन उत्पादकों से खुद खरीदने के लिए कहा गया है। अब यह राज्य का अधिकार है कि वह इससे कैसे निपट सकते हैं? हो सकता है कि कुछ राज्य सरकारें अपने नागरिकों को फ्री में वैक्सीन उपलब्ध करवाएं। लेकिन यह बहुत महंगा सौदा है। अगर 400 रुपये की दर के आधार पर 100 करोड़ जनता के लिए वैक्सीनेशन के दो डोज का आकलन किया जाए तो यह करीब 80,000 करोड़ रुपये बैठता है। देश भर के साल भर के मनरेगा के बजट से भी अधिक।

देशभर की आर्थिक बदहाली और कई वजहों से राज्यों को मिलने वाले आमदनी में होने वाली कमी के चलते ऐसी भी संभावना बनती है कि बहुत सारे राज्य फ्री में वैक्सीन उपलब्ध न करवाएं।

ऐसे में क्या होगा? अगर एक घर में 3 वयस्क लोग हैं तो दो वैक्सीन डोज को मिला लिया जाए तो इसकी कीमत 2400 रुपये पड़ती है। भारत की बहुत बड़ी आबादी के लिए यह उसके महीने की आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा है। वह कोरोना का टीका लगवाने से खुद को दूर रखेंगे।

वैक्सीन सार्वजनिक वैश्विक संपदा होती है। इस पर दुनिया के हर व्यक्ति का अधिकार बनता है। इसलिए वैक्सीन निर्माण में दुनिया की सरकारों ने भी खूब पैसा लगाया है। संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन जीने के अधिकार के तहत यह भी शामिल हो जाता है।

लेकिन इसके बाद भी कोई सवाल पूछ सकता है कि इतने मेहनत से कम्पनी ने वैक्सीन उत्पादित की है? मुनाफा कमाना उसका अधिकार है। तो वह मुनाफा क्यों न कमाए?

यह सवाल भी जायज है। इस सवाल का जवाब खुद एनडीटीवी के इंटरव्यू में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक आदार पूनावाला देते हैं। वह कहते हैं कि केंद्र सरकार को 150 रुपये प्रति डोज वैक्सीन बेचने के बाद भी उन्हें सामान्य मुनाफा हो रहा है। एक दूसरे इंटरव्यू में वह कहते हैं कि चाहते हैं कि इसकी कीमत 1 हजार रुपये प्रति डोज हो।

यानी अगर वैक्सीन सरकार नहीं खरीदेगी तो आने वाले समय में इसकी भी संभावना है कि वैक्सीन की कीमत धीरे-धीरे बढ़ कर 1000 रुपये प्रति डोज तक पहुंच जाए। यह कंपनी के लिए सुपर प्रॉफिट की स्थिति होगी।

वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार औनिंदो चक्रवर्ती सरकार को सलाह देते हुए अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखते हैं कि सरकार को चाहिए कि वह सभी वैक्सीन कंपनियों का अगले 6 महीने के लिए राष्ट्रीयकरण कर दे। बिना मुनाफे के फ्री में सभी तक वैक्सीन पहुंचे। सरकार पिछले पांच साल में वैक्सीन कंपनियों को हुए औसत मुनाफे को महंगाई के दर से समायोजित कर छह महीने बाद उन्हें उनकी कीमत पर उनका मुनाफा और उनकी कंपनी लौटा दे। जिससे यह भी लांछन न लगे कि उन्हें उनकी मेहनत की कीमत अदा नहीं की गई। लेकिन यह नहीं होना चाहिए की महामारी का फायदा उठाकर कंपनियां खूब पैसा कमाएं।

ऐसी सलाहों के बाद भी कुछ लोग कह सकते हैं कि अगर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को मोटा मुनाफा होगा तभी तो वह रिसर्च पर पैसा खर्च करेंगी? तो इस जगह पर भी वह गलत होंगे कि क्योंकि जहां तक भारत की बात है तो सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपनी वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजनेका के साथ करार करके बनाई है। और भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन भारत सरकार के इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर बनाई है। कोवैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों को सरकार की तरफ से नियमित सैलरी मिलती है। इसलिए वह किसी कंपनी पर निर्भर नहीं है।

इस सुझाव से यह बात समझ में आती है कि अगर सरकार चाहे तो सभी लोगों तक वैक्सीन पहुंचा सकती है।

इसके अलावा भी कई सारे तरीके हैं जिनका इस्तेमाल कर सरकार काम कर सकती है। अगर प्रधानमंत्री बेबस हैं और सच में यह मान रहे हैं कि भारत की बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कमजोर हैं तो वह अमीरों पर वैल्थ टैक्स लगाकर मिले पैसे से भारत की बहुत बड़ी गरीब आबादी तक मुफ्त में वैक्सीन पहुंचा सकते हैं।

फ्री में वैक्सीन न मिलने पर बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। भारत की बहुत बड़ी ग्रामीण आबादी ऐसी है जो अभी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि कोरोना नाम की कोई बीमारी भी है। नेताओं का रवैया इसके लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार है। जब लोग अपने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक को बिना मास्क के लगातार लाखों की रैली और रोड शो करते देखते हैं तो उन्हें लगता है कि कोरोना तो सिर्फ एक बहाना है, एक हौवा है। आम आदमी को डराने का औजार। ऐसे माहौल में यह आबादी 400 से लेकर 1000 रुपये खर्च कर वैक्सीन तो नहीं लगवाने वाली। अगर वैक्सीन इन तक नहीं पहुंचेगा तो जिस तरह का माहौल है, उसमें कोरोना की तीसरी, चौथी, पांचवी लहर आएगी। और उसका क्या परिणाम होगा आप दूसरी लहर से सीख सकते हैं।

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