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योगी आदित्यनाथ के यूपी में पोषण संबंधी दावों की पड़ताल

क्या सचमुच उत्तर प्रदेश एनीमिया से उबरने में सफल हो गया है? क्या यूपी शिशु मृत्यु दर में  नेशनल एवरेज़ के आस-पास पहुंच गया है? आइये, योगी आदित्यनाथ के इन दावों की पड़ताल करते हैं।
Yogi Adityanath
Image courtesy : PTI

कल यानी शुक्रवार, 16 सितंबर, 2022 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ लोक भवन में पोषण माह के शुभारंभ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। उन्होंने कार्यक्रम में बोलते हुए उत्तर प्रदेश में पोषण संबंधी कई दावे किये। उन्होंने कहा कि जब नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे होते थे तो उस सर्वे में यूपी, देश की आबादी का सबसे बड़ा राज्य लेकिन सर्वे में यूपी सबसे फिसड्डी राज्यों में होता था। आज मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि विगत पांच वर्ष के अंदर किये गये परिश्रम का परिणाम क्या है? अगर एनीमिया में आप देखेंगे तो उत्तर प्रदेश नेशनल एवरेज़ से भी अच्छा हुआ है। यानी ख़ून की कमी की जो शिकायतें होती थीं, उनसे उबरने में उत्तर प्रदेश सफल हुआ है और काफी तेज़ी के साथ अपनी गति को हमने आगे बढ़ाया है। शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर काफी हद तक नियंत्रित करने और नेशनल एवरेज़ के आस-पास हम लोग पहुंच गये हैं। 

उनके भाषण के इस हिस्से के वीडियो को योगी आदित्यनाथ के धिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट भी किया गया है। शीर्षक दिया गया है कि पिछले पांच वर्षों में हुए परिश्रम से ये आश्चर्यजनक परिणाम आए हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या सचमुच उत्तर प्रदेश ख़ून की कमी की समस्या (एनीमिया) से उबरने में सफल हो गया है? क्या पिछले पांच साल के परिश्रम से ख़ून की कमी के आंकड़ों में कुछ कमी आई है? क्या यूपी शिशु मृत्यु दर में  नेशनल एवरेज़ के आस-पास पहुंच गया है? आइये, योगी आदित्यनाथ के इन दावों की पड़ताल करते हैं।

क्या उत्तर प्रदेश एनीमिया से उबर गया है?

योगी आदित्यनाथ ने नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे का उदाहरण दिया है, तो हम एक बार नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे पर ही नज़र डालते हैं और देखते हैं कि क्या ख़ून की कमी के मामलों में कोई कमी आई है? नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में एक साल से कम आयु वर्ग के बच्चों में कमी नहीं आई है बल्कि 3.2% की वृद्धि हुई है। हालांकि पिछले पांच साल में विभिन्न आयु वर्ग के महिलाओं और पुरुषों में 1.9% से लेकर 5.1% तक की कमी आई है। लेकिन एक साल से कम उम्र के बच्चों में खून की कमी के मामलों में व़द्धि हुई है।

योगी आदित्यनाथ ये तो बताते है कि उत्तर प्रदेश में एनीमिया के मामले नेशनल औसत से कम हैं लेकिन ये नहीं बताते कि उत्तर प्रदेश में ख़ून की कमी के मामलों की वर्तमान स्थिति क्या है? बस कह देते हैं कि यूपी एनीमिया के मामलों से उबरने में सफल हो गया है। जबकि अब भी यूपी की 15 से 49 आयु वर्ग की हर दूसरी महिला ख़ून की कमी की शिकार है। यानी 50.6% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं। 15-19 आयु वर्ग की 52.9% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं। यानी यूपी की हर दूसरी युवती ख़ून की कमी की शिकार हैं।

क्या यूपी शिशु मृत्यु दर में नेशनल एवरेज़ के आस-पास पहुंच गया है?

योगी आदित्यनाथ की ये बात सही है कि नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार यूपी में नवजात, शिशु और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 5% से 18% तक की कमी दर्ज़ की गई है। लेकिन ये दावा गलत है कि यूपी नेशनल औसत के आस-पास पहुंच गया है। नवजात बच्चों की राष्ट्रीय मृत्यु दर 24.9 है जबकि यूपी की 35.7 है। इसी तरह शिशु मृत्यु दर का राष्ट्रीय औसत 35.2 है जबकि यूपी में शिशु मृत्यु दर 50.4 है। इसी तरह पांच साल से कम आयु के बच्चों की राष्ट्रीय मृत्यु दर 41.9  है जबकि यूपी में ये दर 59.8 है।

निष्कर्ष

योगी आदित्यनाथ ने यूपी में बाल-शिशु मृत्यु दर और ख़ून की कमी के मामलों के बारे में जो दावे किये हैं उनमें से कुछ सही हैं और कुछ सही नहीं है। ये सही है कि उत्तर प्रदेश में शिशु-बाल मृत्यु दर में कमी आई है लेकिन ये बात सही नहीं है कि यूपी नेशनल एवरेज़ के आस-पास पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश में ख़ून की कमी के मामलों में कमी का दावा आंशिक तौर पर ग़लत है। ये सही है कि यूपी में ख़ून की कमी के मामलों नेशनल एवरेज़ से कम है। लेकिन ये दावा कि ख़ून की कमी के मामलों से उबरने में यूपी सफल हो गया, सही नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ के दावे आंशिक तौर पर सही नहीं हैं और बढ़ा-चढ़ा कर पेश किये गये हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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