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बाइडेन की चीन के साथ ‘दबंगई’ काम नहीं करेगी

चीन के ‘स्पाई’ बलून के मामले को एक निर्णायक पल माना जा सकता है।
US CHINA

इसमें कोई संदेह नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच "बेलून मामले" के आसपास की परिस्थितियाँ नीरस हैं। क्योंकि बेहूदगी चीन के डिप्लोमैटिक टूलबॉक्स का हिस्सा नहीं है। चीन ने कभी भी अपने विरोधियों को धमकाने के लिए कभी भी बलूनों का इस्तेमाल नहीं किया है।

अप्रत्याशित रूप से, प्रतिष्ठित राय काफी हद तक चीनी कलह के साथ जाती है, जिसका अर्थ है कि बीजिंग को इस तरह के पुराने और मुश्किल-से-नियंत्रण होने वाले साधनों का अमेरिका के सुपर-सीक्रेट परमाणु हथियार स्थलों पर निगरानी करने के लिए सहारा लेने की कोई जरूरत नहीं है, वह भी गैस से भरे गुब्बारे को हवा से 60,000 फीट ऊपर उड़ाने के मध्यम से जबकि ऐसा करने के लिए उसके पास परिष्कृत साधन हैं, वैसे ही जैसे अमेरिका अपने उपग्रहों के माध्यम से अन्य देशों की जासूसी करता है। यह एक विश्वसनीय तर्क लगता है, है ना?

बड़ा सवाल यह है कि क्या बेलून का मामला, वायु का काम हो सकता है जो वायु हिंदू देवता है, जिन्हें भारतीय पौराणिक कथाओं में भी कभी-कभी देवताओं के दिव्य दूत के रूप में कार्य करने के लिए जाना जाता है?

बीजिंग ने बड़ी गंभीरता के साथ कहा कि चीनी कंपनी का मौसम जांच करने वाला एक गुब्बारा जो "सीमित स्व-स्टीयरिंग क्षमता के साथ" काक करता है, वह अपने तय रास्ते से भटक गया और दूर चला गया जो पिछले सप्ताह की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका की हवाओं पाया गया। 

उपलब्ध जानकारी से पता चला है कि, पेंटागन उस स्वच्छंद गुब्बारे पर नज़र रख रहा था और वास्तव में जब राष्ट्रपति बाइडेन को इस बारे में बताया गया तो उन्होने इसे तुरंत उड़ा देने का आदेश दिया, लेकिन फिर भी शनिवार से पहले तक कुछ भी नहीं किया गया था, क्योंकि यह दूर चला गया था और अमेरिका के पूर्वी तट विशाल अटलांटिक महासागर की ओर बढ़ रहा था। तथ्य यह भी है कि इसे मीडिया प्रचार की चकाचौंध में नीचे लाया गया।

हालांकि, एक दिन पहले, शुक्रवार को, व्हाइट हाउस ने ग्रहसचिव सचिव एंटनी ब्लिंकन की बीजिंग दो दिवसीय यात्रा (जिसके दौरान उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की उम्मीद थी) को अचानक स्थगित कर दिया। 

बाइडेन ने, चीन की इस दलील के बावजूद उक्त घोषणा की कि यह घटना "पूरी तरह से एक अप्रत्याशित थी जो अप्रत्याशित घटना के कारण हुई थी और इसके तथ्य बहुत स्पष्ट हैं" जैस्पर बीजिंग ने वास्तव में "खेद" भी व्यक्त किया है। 

इसके अलावा, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के विदेश मामलों के आयोग के कार्यालय निदेशक वांग यी और ब्लिंकन के बीच शुक्रवार को भी बातचीत हुई थी। बीजिंग के रीडआउट में कहा गया है कि दोनों शीर्ष-अधिकारियों ने इसे "शांत और पेशेवर तरीके से आकस्मिक घटना से निपटने के तरीके पर एक दूसरे के साथ संवाद किया था।"

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रारंभिक प्रेस विज्ञप्तियां भी सुलह की भावना को दर्शाती हैं। लेकिन ब्लिंकन ने कुछ बड़ी शरारत की और इसे "एक गैर-जिम्मेदाराना कृत्य और अमेरिकी संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून का स्पष्ट उल्लंघन बताया, जिसने बीजिंग की उसकी आगामी यात्रा के उद्देश्य उलट दिया"।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि "चीन के मानव रहित हवाई पोत पर हमला करके और अमेरिकी बल के इस्तेमाल के प्रति कड़ा असंतोष और विरोध" व्यक्त किया है और कहा है कि "चीन ने अमेरिका से मामले को शांत, पेशेवर और संयमित तरीके से संभालने को कहा था।" 

चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि, “ऐसी परिस्थितियों में, अमेरिकी बल का इस्तेमाल एक स्पष्ट अति-प्रतिक्रिया और अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास का गंभीर उल्लंघन है। चीन दृढ़ता से संबंधित कंपनी के वैध अधिकारों और हितों की रक्षा करेगा, और यदि जरूरी हुआ तो इसके खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया देने का अधिकार सुरक्षित रखेगा। 

कुल मिलाकर, यदि बाइबिल का रूपक लिया जाए जो कहता है कि, "समुद्र से उठने वाले एक छोटे से बादल जो एक आदमी के हाथ के बराबर है" वह रास्ते की एक धारा बन जाता है। वहीं असली खतरा है। बाइडेन प्रशासन पहले से ही अमेरिका-चीन संबंधों का "अति-सैन्यकरण" कर रहा है, जैसा कि हाल ही में अटलांटिक काउंसिल के एक प्रसिद्ध लेखक और वरिष्ठ सलाहकार हरलन उल्मैन ने बताया था। (जिसका शीर्षक, क्या अमेरिका अपनी चीन रणनीति का अति-सैन्यकरण कर रहा है? था)

बाइडेन प्रशासन का अनुमान है कि उसने चीन को गलत रास्ते पर लाकर और तनाव बढ़ाकर एक मूल्यवान चिप हासिल कर ली है। जुए की भाषा में, बाइडेन खुद को एक "फायदे का खिलाड़ी" मानते थे, जो कुछ भी नहीं करना चुन सकते हैं या चिप खेल सकते हैं और भाग सकते हैं। 

चीन के साथ टकराव को बढ़ाने में बेलून मामले में कोई क्षमता नहीं है, लेकिन बाइडेन  बीजिंग को डराने और एशिया-प्रशांत इलाके में नाटो को तैनात करने की पृष्ठभूमि बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करना पसंद कर सकते हैं।

गठबंधन के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने जो एशियाई दौरे पर थे, ने मंगलवार को टोक्यो में "पड़ोसियों और ताइवान को धमकाने" के लिए चीन की तीखी आलोचना की थी और कहा था कि "ट्रान्साटलांटिक और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा का गहरा संबंध है।"

इसलिए यह महज एक संयोग नहीं हो सकता है कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी रविवार को एक विशेष रिपोर्ट में, बेलून के मामले से हटते हुए आरोप लगाया कि चीन रूस को "तकनीक प्रदान कर रहा है कि प्रतिबंधों और इसलिए निर्यात नियंत्रणों के एक अंतरराष्ट्रीय घेरे के बावजूद मॉस्को की सेना पर यूक्रेन में क्रेमलिन के युद्ध के खिलाफ मुकदमा चलाने की जरूरत है।"

रिपोर्ट का दावा है कि उपलब्ध "सीमा शुल्क डेटा चीनी राष्ट्र के स्वामित्व वाली रक्षा कंपनियों को नेविगेशन उपकरण, जैमिंग तकनीक और लड़ाकू-जेट भागों को रूसी सरकार के स्वामित्व वाली रक्षा कंपनियों को मंजूरी को दर्शाता है।"

जर्नल ने अपनी रिपोर्ट, पूरी तरह से सी4एडीएस (C4ADS) द्वारा प्रदान किए गए सीमा शुल्क डेटा पर आधारित किया है, जो "वाशिंगटन स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन है जो राष्ट्रीय-सुरक्षा खतरों की पहचान करने में माहिर है", जो निश्चित रूप से अमेरिकी खुफिया के प्रॉक्सी के रूप में काम करता है।

उनके प्रतिद्वंद्वी और सहयोगी 

सीधे शब्दों में कहें तो, बीजिंग को हर तरफ से धमकी दी जा रही है कि बाइडेन के पास अब पूरे "सामूहिक पश्चिम" को अपने पीछे लामबंद करने और चीन के खिलाफ प्रतिबंधों को शुरू करने का परमाणु विकल्प होगा, भले ही शी जिनपिंग ने ताइवान पर आक्रमण न करने के लिए रणनीतिक संयम रखा हो।

स्टोलटेनबर्ग की एशियाई यात्रा पर आधिकारिक समाचार पत्र चाइना डेली में आज एक संपादकीय में कहा गया है कि ट्रान्साटलांटिक और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा की उनकी थीसिस सियामी जुड़वाँ है और यह प्रस्ताव है कि रूस और चीन नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाली एक दुष्ट धुरी हैं। वाशिंगटन में कुछ रणनीतिकार दुनिया भर में पैर जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

इन सभी को समाप्त करने के लिए, स्टोलटेनबर्ग यात्रा, बेलून का मामला और आगामी मीडिया बिल्ड-अप, और, सबसे महत्वपूर्ण, चीन की ब्लिंकन यात्रा (जहां वह कथित तौर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने वाले थे, जिसे बाइडेन प्रशासन ने "संबंध बनाने" बनाने का प्रयास कहा था)  - ये सभी मा झाओक्सू द्वारा शुक्रवार को मास्को में परामर्श के एक महत्वपूर्ण दौर के साथ मेल खाते हैं, जिन्हें हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के दैनिक मामलों की देखरेख के लिए पूर्ण मंत्री पद पर पदोन्नत किया गया था।

मास्को में मा के परामर्श पर विदेश मंत्रालय ने मास्को में (रूसी में) रीडआउट में कहा कि दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र में अपने द्विपक्षीय सहयोग पर "सावधानीपूर्वक विचार" किया है - मा संयुक्त राष्ट्र के पूर्व दूत भी हैं - और आगे कहा कि वे और उनके रूसी समकक्ष उप विदेश मंत्री सर्गेई वर्शिनिन का मानना है कि "कुछ देशों के प्रतिनिधियों ने संप्रभु राज्यों पर दबाव डालने के लिए मंच का इस्तेमाल किया है, साथ ही साथ संगठन के ढांचे के बाहर वैकल्पिक और समावेशी तंत्र बनाने के लिए 'नियम-आधारित विश्व व्यवस्था' की अवधारणा के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र के अधिकार को कमजोर करने के लगातार प्रयासों पर विशेष ध्यान दिया है।

रूसी उप-विदेश मंत्री एंड्री रुडेंको के साथ राजदूत मा की एक अन्य बैठक में चीन-रूस संबंधों का "अत्यधिक मूल्यांकन" किया गया, "उनके क्रमिक विकास के लिए आपसी प्रतिबद्धता" की पुष्टि की गई और "2023 में द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार की संभावनाओं" पर चर्चा की गई। 

विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी मा झाओक्सू की अगवानी की। विशेष रूप से, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि "उन्होंने टकराव की नीतियों को अस्वीकार करने के साथ-साथ अलग-अलग देशों द्वारा अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने, या प्रतिबंधों और अन्य नाजायज तरीकों को लागू करने के उनके प्रयासों को नोट किया है। अधिकारियों ने दोनों देशों की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की मज़बूती से रक्षा करने और एक अधिक न्यायसंगत और लोकतांत्रिक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण करने के अपने इरादे की पुष्टि की है।

स्पष्ट रूप से, बाइडेन प्रशासन ने महसूस किया है कि ब्लिंकन की बीजिंग यात्रा का एक मुख्य उद्देश्य - यानी, चीन-रूसी धुरी को कमजोर करना है – जिसकी शुरुवात ही होना कठिन है। चीन-रूस संबंधों को नष्ट करने के एक उपकरण के रूप में यूक्रेन युद्ध को जारी रखने के अमेरिका के निरंतर प्रयास शानदार ढंग से विफल रहे हैं। इससे बीजिंग और मास्को के बीच आर्थिक और सैन्य संबंध केवल मजबूत हो रहे हैं। वसंत ऋतु में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूस की अपेक्षित यात्रा जिसका शीर्षक साझेदारी की “कोई सीमा नहीं" होगी, होनी तय है। 

लावरोव ने शुक्रवार को एक टीवी साक्षात्कार में कहा कि "हालांकि हम एक सैन्य गठबंधन नहीं बना रहे हैं, हमारे संबंध अपने क्लासिक अर्थों में सैन्य गठबंधनों की तुलना में उच्च गुणवत्ता वाले हैं, और उनकी कोई सीमा नहीं है।" और कोई वर्जित विषय भी नहीं हैं। वे वास्तव में सोवियत संघ और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और रूसी संघ दोनों के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ हैं।

वास्तव में, रूस और चीन अपने राष्ट्रीय हितों के लिए बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं। इस प्रकार, रूस अमेरिका को एक "दुश्मन" के रूप में देखता है जो (मूर्खतापूर्ण ढंग से) अपने विनाश और विघटन की तरफ बढ़ रहा है, जबकि अमेरिका, चीन के लिए, एक प्रतिद्वंद्वी और संभावित प्रतिद्वंद्वी है। मास्को के एक पंडित दमित्री ट्रैनिन ने उन सूक्ष्म बारीकियों को हाल ही में तब पकड़ा जब उन्होंने लिखा कि,

"मास्को और बीजिंग के बीच एक सैन्य गठबंधन बनाने का मामला अभी कोई मसला नहीं है और न ही इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। क्योंकि, चीन स्वाभाविक रूप से अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में अपने आर्थिक हितों को महत्व देता है, और बीजिंग एक सैन्य गठबंधन के पक्ष में अपना मन तभी बदल सकता है जब वाशिंगटन उसका पक्का दुश्मन बन जाए। अकेले रूस की खातिर चीन यह कदम उठाने को तैयार नहीं है। 

बेलून के मामले को एक निर्णायक पल माना जा सकता है। इससे पता चलता है कि जब चीन ब्लिंकन की यात्रा का इस्तेमाल अच्छे विश्वास के साथ रचनात्मक तरीके खोजने के उद्देश्य से करने जा रहा था, अत्ब वाशिंगटन ने चीजों को उस तरह नहीं देखा। यह जताता है कि, बीजिंग भी किसी भ्रम में नहीं है। शुक्रवार को सीजीटीएन वीडियो क्लिपिंग सामने आई जिसका शीर्षक ब्लिंकन की चीन यात्रा: एक सरल वार्ता या राजनीतिक रणनीति थी? था।

एम॰के॰ भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Biden Bullies China. But it Won’t Work

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