Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर

संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में, जहां शवों और घायल लोगों को चिकित्सा सहायता के लिए लाया गया था, वहां लोगों में निराशा के दृश्य थे, क्योंकि परिवार के सदस्य अपने परिजनों के बारे में कुछ जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। परिजनों को कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। उनका रो-रोकर बुरा हाल था।
MUNDIKA

राजधानी में हाल के महीनों में ये सबसे भीषण आग थी, जिसमें अभी तक कम से कम 27 लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। इस भयानक हादसे के बाद शनिवार दोपहर तक भी कई लोग लापता हैं, जिनके परिजन दर-दर भटक रहे हैं और परेशान हो रहे हैं। लापता लोगों के परिजन पूरी तरह से दहशत में हैं।

पश्चिमी दिल्ली के मुंडका में शुक्रवार शाम एक तीन मंजिला व्यावसायिक इमारत में आग लगने से कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। अधिकारियों के अनुसार, इमारत की पहली मंजिल पर कथित तौर पर आग लगी, जिसमें सीसीटीवी कैमरों और वाई-फाई राउटर के निर्माता कंपनी का कार्यालय था।

इसे भी पढ़े:मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?

आँखों में आंसू, दिल में दर्द और होठों पर दुआ लिए अपने प्रियजनों की ख़ोज में लगे पीड़ित परिवार।

शनिवार की सुबह करीब 11 बजे इमारत में लगी आग पर काबू पाने के बाद एनडीआरएफ अधिकारियों की एक टीम ने बचाव अभियान अभी जारी रखा हुआ है।

इस बीच, संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में, जहां शवों और घायल लोगों को चिकित्सा सहायता के लिए लाया गया था, वहां लोगों में निराशा के दृश्य थे, क्योंकि परिवार के सदस्य अपने परिजनों के बारे में कुछ जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। परिजनों को कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। उनका रो-रोकर बुरा हाल था।

लगभग 60 वर्षीय शल्लू देवी का रो-रोकर बुरा हाल था, क्योंकि उनकी 28 वर्षीय बेटी स्वीटी का कोई पता नहीं चल रहा था। स्वीटी भी बाकि अन्य कर्मचारियों के साथ फैक्ट्री में काम करती थी। शल्लू देवी ने बताया कि उनकी बेटी न घायलों में है और न ही वो मुर्दा घर में। शल्लू हर किसी से बस एक ही बात बोल रही थी कि मेरी बेटी को ला दो। वो कहती हैं ना कोई डॉक्टर बता रहा है कि मेरी बेटी कहाँ है न सरकार के नुमाइंदे? जबकि उसके साथ काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि वो खिड़की से कूदी थी, लेकिन उसका अब तक कोई अता-पता नहीं है।


ये किसी एक शल्लू देवी की कहानी नहीं थी, बल्कि वहां ऐसे कई लोग थे जो अपने प्रियजनों की तलाश में इधर उधर भटक रहे थे।

40 वर्षीय कुंदन मिश्रा, जो पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर से यहां अपने परिचत का पता लगाने पहुंची थी। वो बहुत परेशान थीं। उन्होंने कहा, "मुझे कल रात जबसे मुंडका में आग की खबर मिली तब से ही चिंतित हूँ और इधर से उधर भाग रही हूँ। मेरी छोटी बहन सोनी पैकेजिंग इकाई में काम करती थी।"
कुंदन मिश्रा शनिवार दोपहर को तनाव में थीं क्योंकि अभी भी उन्हें अपनी बहन के बारे में उन्हें कोई भी सूचना नहीं मिल पाई थी।

मिश्रा, जिन्हें शनिवार सुबह मोर्चरी में बुलाया गया था, उन्होंने कहा कि वह वहां किसी की पहचान नहीं कर सकीं।
सोनी के पति मनोज ठाकुर भी अस्पताल में मौजूद थे। मनोज ने कहा, "जैसे ही उन्होंने इस दुखद घटना के बारे में सुना वैसे ही भागकर घटनास्थल पर पहुंचे। मैंने कपड़े भी नहीं पहने हाफ पैंट में ही आ गया था।"


मनोज बिहार से दिल्ली नौकरी करने आए थे। वो भी मेहनत मज़दूरी का काम करते हैं। लेकिन इस महंगाई में एक आदमी की कमाई से घर चलना मुश्किल हो गया था। इसलिए उनका हाथ बंटाने के लिए सोनी ने भी नौकरी शुरू कर दी थी। लेकिन इस दुर्घटना ने उनका पूरा जीवन ही बदल दिया। उन्होंने कहा हमें यहां कोई बता नहीं रहा है कि क्या हुआ है? या सोनी कहाँ हैं? या उनके साथ क्या हुआ?

इसी तरह एक ही परिवार की तीन लड़कियां इस फैक्ट्री में काम करती थीं और अब तीनों की ही कोई सूचना नहीं है। तीनो बहनों का नाम प्रीति, पूनम और मधु था। ये सभी 20 से 25 साल के भीतर की थीं। इनके चाचा दिनेश और बाकि परिजन अस्पताल में बार-बार अलग-अलग लोगों से अपनी बेटी के बारे में पूछ रहे थे।

इसे भी पढ़े: फिर हादसा, फिर मौतें : लगातार ख़तरनाक़ होती जा रही हैं दिल्ली की फैक्ट्रियां

इसी तरह, लगभग 30 वर्षीय अमित कुमार सिंह कल शाम से खाना नहीं खा पा रहे हैं, क्योंकि वह अपनी पत्नी मधु देवी के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करने के लिए कई घंटों से एक हेल्प डेस्क से दूसरे हेल्प डेस्क पर दौड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा, "हमने कल दोपहर के भोजन के दौरान आखिरी बार बात की थी। मैं तब ओखला में था, जिसके बाद जब मुझे खबर मिली, तो मैं इस तरफ आया।"
अमित पेशे से ड्राईवर हैं। उन्होंने कहा वो चिंतित हैं, क्योंकि घर में तनाव बढ़ रहा है। उनकी दो बेटियों हैं जिनकी उम्र आठ साल और दो साल है और वो अपनी माँ का इंतज़ार कर रही हैं।

न्यूज़क्लिक ने अस्पताल के मुर्दाघरों का दौरा किया, जहाँ कई जले शव रखे हुए थे जिन्हें पहचाना नहीं जा सकता था। क्योंकि उनकी हालत बहुत ही खराब थी।
अस्पताल के अधिकारियों ने पुष्टि की कि शवों की पहचान के लिए डीएनए परीक्षण किया जाएगा।
मुबारक़पुर में रहने वाली 37 वर्षीय मुर्शुता को उनकी बूढी माँ और बाकी परिजन ढूंढते हुए संजय गाँधी अस्पताल पहुंचे। वहां भी उन्हें निराशा ही मिली, क्योंकि उन्हें मुर्शुता के बारे में वहां भी कोई जानकारी नहीं मिली। मुर्शुता के पति अकबर जो दिल्ली में ही पेंटर का काम करते हैं और वो उड़ीसा के रहने वाले हैं और जब यह घटना हुई तब वो उड़ीसा अपनी बीमार माँ से मिलने गए थे। लेकिन जैसे ही उन्हें इस दुःखद घटना की सूचना मिली वो सीधे अस्पताल पहुंचे।
अकबर ने कहा, "मुझे बताया गया है कि बिल्डिंग में केवल एक ही निकास द्वार था, आग वहीं लग गई जिसके कारण अंदर के कर्मचारियों के लिए बाहर निकलना मुश्किल हो गया।"


उन्होंने पूछा "सरकार यह सुनिश्चित क्यों नहीं कर सकती कि मज़दूर जहाँ काम करे वहां वो सुरक्षित रहें?"
हालांकि, जीवित बचे लोगों और लापता लोगों के रिश्तेदारों ने, शनिवार दोपहर को न्यूज़क्लिक से बातचीत में पुष्टि की कि इमारत में विनिर्माण और पैकेजिंग का भी काम होता है।
बिल्डिंग में सिर्फ़ व्यवसायिक ही नहीं, उत्पादन इकाई भी थी !
मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, शुक्रवार शाम को इस घटना वाली इमारत की पहचान एक व्यावसायिक संपत्ति के रूप में की गई थी।
शनिवार को जीवित बचे लोगों में से एक, प्रियंका गुप्ता, जिनकी उम्र लगभग 35 वर्ष है और जो घटना के वक़्त वहां मौजूद थीं, किसी तरह अपनी जान बचा पाई थीं। उनके दोनों हाथ बुरी तरह जल गए थे। इसका ही इलाज कराने के लिए वे संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में आई थीं। जहाँ उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात की और बताया कि आज शाम करीब 4.30 बजे लगी, जब इमारत की दूसरी मंजिल पर एक मीटिंग चल रही थी।

गुप्ता ने कहा, "आग लगने के बाद पूरी बिल्डिंग में ही धुंआ और आग की लपटे फैल गई और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। लगभग सात से आठ लोगों ने खिड़की के शीशे तोड़ दिए, और उसके बाद ही हम रस्सी की मदद से बाहर कूद पाए जिसमें मेरा दोनों हाथ जल गया क्योंकि दीवार और रस्सी बहुत गर्म थी।"

पैकेजिंग यूनिट में काम करने वाली गुप्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया, "पूरी बिल्डिंग में लगभग 300 कर्मचारी काम करते थे - बिल्डिंग में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर पैकेजिंग तक सब कुछ किया जाता था।"

पुलिसिया कार्रवाई

डीसीपी समीर शर्मा (बाहरी जिला) भी शनिवार दोपहर अस्पताल पहुंचे और मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि कम से कम 27 लोगों की जान चली गई है, और हम शवों की पहचान करने और परिवार के सदस्यों को सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा, "अभी तक 29 लापता हैं जिनमें से 25 पुरुष हैं और चार महिलाएं हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि 12 घायल हुए हैं, जिन्हें अब चिकित्सा सहायता देने के बाद छुट्टी दे दी गई है।

शर्मा ने आगे कहा कि कंपनी मालिकों और भवन मालिकों के खिलाफ "उचित धाराओं" के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने उस कंपनी के मालिकों को गिरफ्तार किया है, जिनकी पहचान हरीश गोयल और वरुण गोयल के रूप में हुई है।


उनके अनुसार, इमारत में संचालन के संबंध में लाइसेंस और अन्य दस्तावेजों का "सत्यापन किया जा रहा है"।
इस बीच, इमारत के मालिक की पहचान मनीष लाकड़ा के रूप में हुई, जो शीर्ष मंजिल पर रहता था, अभी फरार हो गया है।
हालाँकि डीसीपी ने ये खुलकर नहीं बताया कि किन धाराओं में केस दर्ज़ किया है। वो बार बार "उचित धाराओं" का ज़िक्र कर रहे थे।

'नो एनओसी... सिर्फ एक एग्जिट गेट'

दिल्ली फायर सर्विसेज के प्रमुख अतुल गर्ग ने भी शुक्रवार रात को कहा कि फैक्ट्री मालिकों ने कभी भी फायर एनओसी के लिए आवेदन नहीं किया था। इंडिया टुडे ने गर्ग के हवाले से लिखा कि इमारत में संचालित अधिकांश कारखानों के पास एनओसी नहीं थी और वे आवश्यक दिशानिर्देशों का पालन किए बिना काम कर रहे थे । मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गर्ग ने कहा कि आग शॉर्ट सर्किट के कारण लगी।


शुक्रवार को, घटनाओं के वीडियो से पता चला कि जैसे ही अग्निशामकों ने ऊपरी मंजिलों पर फंसे लोगों की मदद की, इमारत की खिड़कियों को तोड़कर पहले धुआं निकाला गया। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार, कई लोग रस्सी के सहारे खिड़की से कूदे, जबकि अन्य सहायता के लिए इंतजार कर रहे थे।
हालांकि, जो जीवित नहीं बची है उनमें से एक यशोदा देवी हैं, जिनकी उम्र की पुष्टि नहीं की जा सकती थी। उसकी पड़ोसी 33 वर्षीय पूनम ने कहा, "वह वहां महज 6,000 रुपये प्रति माह पर काम करती थी।"

पूनम ने कहा, "हम मांग करते हैं कि इस बात की उचित जांच होनी चाहिए कि आग किस वजह से लगी और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं थे।"


जैसा की अमूमन होता है, ऐसी दर्दनाक घटना के बाद नेता वहां का दौरा करते हैं और कुछ घोषणाएँ भी करते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुंडका की घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए और आग में मारे गए लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये और घायलों के लिए 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की। उन्होंने शनिवार सुबह मुंडका स्थल का दौरा भी किया।

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कई राजनीतिक नेताओं ने घटना में लोगों की जान जाने पर दुख व्यक्त किया।

इस घटना के कारणों का पता लगाने के लिए जांच की मांग करते हुए, माकपा ने दिल्ली की एक इमारत में भीषण आग में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।

मज़दूर संगठनों ने कहा-इस हादसे के लिए दिल्ली सरकार ज़िम्मेदार है !

इस बीच, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार सुबह मुंडका स्थल का दौरा किया। सीटू दिल्ली के महासचिव अनुराग सक्सेना ने दिल्ली सरकार को दोषी ठराहते हुए कहा, "दिल्ली में फैक्ट्री अधिनियम का पालन नहीं हो रहा है, जिसकी वजह से ये हादसे होते हैं।"
उन्होंने कहा कि शीर्ष पर बैठे मंत्रियों को "उनकी लापरवाही" के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हम यह भी मांग करते हैं कि मृतक के परिजनों को कम से कम 50 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएं।

मज़दूर संगठन ऐक्टू भी जॉइन्ट ट्रेड यूनियन के डेलीगेट का हिस्सा था। उनके राज्य सचिव सूर्य प्रकाश ने भी घटना स्थल का दौरा किया। ऐक्टू ने अपने बयान में कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर श्रम कानूनों की अनदेखी और सरकारी संलिप्तता के कारण कई मज़दूरों की दुःखद मौत हो गई।
सूर्य प्रकाश ने कहा कि जिस इमारत में आग लगी, उसमें सीसीटीवी कैमरा, wifi राऊटर इत्यादि का उत्पादन होता था। और घायल मज़दूरों के अनुसार 200 से अधिक मज़दूर कार्यरत थे। फैक्ट्री में अंदर-बाहर जाने के लिए केवल एक ही रास्ता था जो कि कारखाना अधिनियम, 1948 के नियमों के विरुद्ध है। कार्यस्थल से बाहर जाने वाले रास्ते में गत्ते-प्लास्टिक इत्यादि सामान भरा होने के चलते भी मज़दूर बाहर नहीं निकल सके। गर्मी और धुआँ काफी ज्यादा होने के कारण दूसरी मंजिल से कई मज़दूरों ने छलांग लगा दी, जिससे कई लोगों को गहरी चोट लगी।


आगे उन्होंने कहा कि फैक्ट्री के अंदर किसी भी श्रम कानून को नहीं माना जा रहा था। 12 घण्टे के काम के लिए पुरुषों को 9000 व महिलाओं को प्रतिमाह 7500 के रेट से भुगतान किया जा रहा था- जो कि दिल्ली में लागू न्यूनतम मजदूरी की दर से काफी कम है। किसी भी मज़दूर के पास संस्थान का आई-कार्ड नही था। फैक्ट्री के अंदर ईएसआई व पीएफ लागू नहीं था।

घटनास्थल पर पहुंचे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को ट्रेड यूनियनों के विरोध का सामना करना पड़ा।

मज़दूर संगठनों ने आए दिन हो रहे अग्निकांडों के लिए मौजूदा दिल्ली और केंद्र सरकार और श्रम विभाग समेत अन्य सरकारी एजेंसियों को दोषी बताया है। फैक्ट्री मालिकों से मिलनेवाले चंदे के लालच में सरकार ने मालिकों को मज़दूरों की हत्या की छूट दे रखी है।
मज़दूर नेताओं ने कहा कि ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा इस घटना के विरोध में जल्द कार्रवाई की जाएगी।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest