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एक का मतलब एकता होना चाहिए एकरूपता नहीं!

‘एक देश एक चुनाव’, ‘एक देश एक पहचान नंबर’, ‘एक देश एक राशन कार्ड’ ये सब बातें सुनने में खूबसूरत ज़रूर लग सकती हैं लेकिन दरअसल इसके पीछे की मंशा को पहचानने की ज़रूरत है। क्या ये ‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान’ के विचार की ही रूपरेखा या शुरुआत है।
Unity
प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो साभार: Citizens Journal

भारत विविधताओं का देश है। ये दुनिया का इकलौता देश है जहाँ इतने मुखतलिफ़ धर्मजातिसंप्रदाय के लोग एक साथ रहते हैं। ख़ुशी-ख़ुशी रहते हैंये कहना अब मुमकिन नहीं है। इस कथन को मुश्किल बनाने में समय समय पर तमाम घटनाओं ने मदद की है।

1857 से शुरू होते हुए 1947, 84, 92, 2002, 2013 और अब पिछले पाँच सालइन सब दौर में ऐसी घटनाएँ हुई हैं और हो रही हैं,जिसने भारत की विविधता पर हमला किया है। भारत के संविधान के पहले पन्ने को धुंधला करने की कोशिश की है या ख़ून से रंगने की साज़िश की है। भारत के संविधान का पहला पन्ना- संविधान की प्रस्तावना है- जो कहती है हमभारत के लोगभारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य [1] बनाने के लिएतथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिकआर्थिक और राजनीतिक न्यायविचारअभिव्यक्तिविश्वासधर्म और उपासना की स्वतंत्रताप्रतिष्ठा और अवसर की समताप्राप्त कराने के लिए
तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता [2] सुनिश्चित कराने वालीबन्धुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमीसंवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृतअधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। 

इस preamble यानी प्रस्तावना को पढ़ें और देश में आज चल रहे हालात को देखेंतो आपको इस विडम्बना पर हँसी आएगी और साथ ही साथ आप चिंतित हो जाएंगेचिंतित हो जाएंगे क्योंकि आज संविधान के पहले पन्ने के अलावा जो भारत का विचार हैजो कहता है कि भारत में विविधता में एकता हैआज उस विचार पर लगातार हमले हो रहे हैं। 
देश की मौजूदा सरकारजो कहने को तो बीजेपी की सरकार है लेकिन वो काम सारे आरएसएस और अन्य हिंदुवादी संगठनों की तरह कर रही है। इस सरकार में बीजेपी के सांसद तो 300 से ज़्यादा हैंलेकिन सारा ध्यान सिर्फ़ एक आदमी पर है।

देश की सरकार आज देश को "अखंड भारत" बनाने की तरफ़ कार्यरत है। इस अखंड भारत का मतलब एक भारत या भारत की एकता नहीं है, बल्कि एकरूप भारत है जो विविधता का विलोम है। इसका सपना पूरा करने के लिए आज़ाद भारत में पहला क़दम हिंदुवादी संगठनों ने 1984 के दौरान उठाया था। 1984, जहाँ सिखों पर हमले का एजेंडा तो कांग्रेस का थालेकिन उसी दौर में कई लोगों को भाजपा का 1992 और गुजरात 2002 नज़र आ गया होगा। 

जनता दल ने जब 1989 में सरकार बनाईउसी दौरान लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में रथ यात्रा निकली गई और राम मंदिर-बाबरी मस्जिद को एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गयाजिसका परिणाम ये हुआ कि दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गयाऔर वो मुद्दा आज तक खींचा जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ एक धारणा थीकि ये देश सिर्फ़ एक धर्म के लोगों का हैऔर इस देश में कोई भी ऐसा नहीं रह सकता जो "बाहरी" हैउनके धार्मिक स्थल नहीं रह सकतेउनकी भाषा नहीं रह सकतीउनका धर्म नहीं रह सकता। और यही धारणा आज भी क़ायम हैक़ायम ही नहीं है ज़ोर-शोर से आगे बढ़ रही है। 

मैं जावेद अख़्तर की एक नज़्म "नया हुक्मनामा" से आपको मिलवाना चाहता हूँ: 

किसी का हुक्म है सारी हवाएँ
हमेशा चलने से पहले बताएं 
कि उनकी सम्त क्या है
हवाओं को बताना ये भी होगा 
चलेंगी जब तो क्या रफ़्तार होगी 
के आँधी की इजाज़त अब नहीं है 
हमारी रेत की सब ये फ़सीलें 
ये काग़ज़ के महल जो बन रहे हैं 
हिफ़ाज़त इनकी करना है ज़रूरी 
और आँधी है पुरानी इनकी दुश्मन 
ये सभी जानते हैं... 
किसी का हुक्म है इस गुलिस्ताँ में 
अब एक रंग के ही फूल होंगे 
कुछ अफ़सर होंगे जो ये तय करेंगे 
गुलिस्ताँ किस तरह बनना है कल का 
यक़ीनन फूल यकरंगी तो होंगे 
मगरे ये रंग होगा कितना गहराकितना हल्का 
ये अफ़सर तय करेंगे...” 

जावेद अख़्तर की नज़्म ने ये बता ही दिया है कि देश में "नया हुक़्मनामा" आ गया है। हुक़्मनामा आ गया हैकि ये भारत देश एक हैतो यहाँ एक रंग के लोगएक धर्म के लोगएक जाति के लोग रहेंगेऔर यहाँ एक भाषा बोली जाएगीएक पहचान पत्र होगाएक राशन कार्ड होगासारे देश के लिए एक ही बार चुनाव होंगे। ये सारी नीतियाँ वो हैंजिसके लिए आरएसएस और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों के साथ मिलकर बीजेपी ने पिछले पाँच साल तक काम किया हैऔर अगले पाँच साल तक इसी के लिए काम करने के लिए अग्रसर है। 

आजदेश की विविधता को इस क़दर तोड़ा जा रहा हैकि जिस "Unity in diversity” पर हमें कभी गर्व थाजिसके बारे में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब "भारत की खोज" में लिखा थाजिस बहुलता का हम दंभ भरते थेवो आज ख़त्म होती दिख रही है। बहुलता को आज बहुसंख्यकवाद से दबाया जा रहा है। जिसकी वजह कोई और नहींदेश की सरकार हैजिसे "लोकतांत्रिक तरीक़े" से चुना गया है। 

बीजेपी एक हिंदुवादी पार्टी है। हालांकि वो ख़ुद को देशभक्त पार्टी कह सकती हैलेकिन उसके लिए देशभक्त भी सिर्फ़ वो हैजो एक धर्म विशेष से ताल्लुक रखता हो। उसके अलावा दूसरे धर्मया निचली जाति की जनताकुछ नहीं हैं। या तो वे देशद्रोही हैंया वे दूषित हैं। बीजेपी ने अपने आग़ाज़ से ही सिर्फ़ इसी सोच को लेकर काम किया है। और समय समय पर अलग अलग जगहों पर अलग अलग रूप इख्तेयार करते हुएदेश को आतंकित किया हैऔर लगातार कर रही है।

आज हर चीज़ को "एक" करने की बात कही जा रही हैजो सुनने में काफ़ी आकर्षक लग सकती हैलेकिन दरअसल वो घातक है,और एक सोच के तहत काम कर रहा है। 
आइये हम इनकी तमाम नीतियों के बारे में बात करते हैं:

"एक देशएक भाषा"
देश में बहुसंख्यक कौन हैंहिन्दू! उनकी भाषा कौन सी हैहिन्दी!

 ये "लॉजिक" है हिन्दुवादी संगठनों का। बीजेपी और उसकी सरकार ने इस सोच को सारे देश में फैलाने का काम किया है। भाषाओं को ले कर हिंदुवादी संगठनों का रवैया हमेशा से ये रहा है कि इस देश की भाषा सिर्फ़ हिन्दी हैऔर अंग्रेज़ीउर्दू सब बाहरी भाषाएँ हैं। हालांकि वो ये भूल जाते हैं कि दरअसल हिन्दी किसी की मातृभाषा है ही नहींतथाकथित "हिन्दी बेल्ट" में रहने वाले हिन्दू ब्राह्मणों की भी नहीं। 

हिन्दीजो कि महज़ एक आधिकारिक ज़बान हैउसे सारे देश में मातृभाषा के रूप में प्रचारित और स्थापित करने की कोशिश की जा रही है और अन्य मातृभाषाओं को बेदखल करने की कोशिश की जा रही है। चाहे वो हिन्दी बेल्ट की बात होया फिर दक्षिण भारत की बात हो जहाँ द्रविड़ भाषाएँ बोली जाती हैं। इस नीति के तहत "एक देश एक भाषा" होनी चाहिए 

ये सुनने में अच्छा लग सकता है कि सारे देश में सब एक ही भाषा बोलेंलेकिन कैसेअपनी मातृभाषा को भूल करमैं क्यों भोजपुरी को फूहड़ मान लूँजबकि मैंने बचपन से इसी भाषा में बात की है! 

दिल्ली के बल्लीमारान में ग़ालिब की हवेली के पास एक चाय का खोखा हैचाय बनाने वाले शख़्स का नाम है "जमील"। जमील की उम्र कुछ 50 बरस की है। और उसकी शक्लो-सूरत कश्मीरी हैउसकी भाषा कश्मीरीअवधी और किसी और भाषा का मिश्रण है। जब मैंने जमील से पूछा कि ये तीसरी भाषा कौन सी हैवो बोले कि ये तुर्क की ज़बान है! जमील का खानदान तुर्की से भारत आया थावहाँ कश्मीर में रहा फिर लखनऊ में रहा। जमील का जन्म लखनऊ में हुआ फिर व काफ़ी बरस पहले दिल्ली आ गए। 
ऐसे देश मेंजहाँ इतनी अलग-अलग ज़बानें बोलने वाले लोग हैंइतनी सारी खूबसूरत ज़बानें हैंवहाँ एक भाषा? ये कैसी नीति या सोच है। 

हमारा देश वो है जहाँ हर कोस पर पानी और बानी बदल जाती थी, वहां वहाँ सिर्फ़ एक भाषा क्यों रहे

एक देशएक धर्म 

अखंड भारत में कौन होगाहिन्दू! क्या सारे हिन्दूसिर्फ़ ब्राह्मण हिन्दू! बाक़ी सब धर्मवो सब बाहरी हैंदेशद्रोही हैं। 

मैं क्या कहूँ कि ये बातें अब कितनी आम हो चुकी हैं। आप ख़ुद देखिये कि पिछले पाँच साल मेंऔर अब तक कितने क़त्ल धर्म के नाम पर हुए हैंदेखिये कि कितने मुस्लिमोंदलितों को मारा गया हैदेखिये कि कितने हत्यारोपी बीजेपी के नेताओं की रैलियों में नज़र आते हैंदेखिये की अखलाकपहलू ख़ानजुनैदऔर ऐसे तमाम अल्पसंख्यकों और दलितों के मारे जाने पर हमारे प्रधानमंत्री क्या बयान देते हैंकुछ कहते भी हैं या नहींआजलगातार ये घटनाएँ बढ़ रही हैंऔर आरोपियों पर कार्रवाई होने के बजाय वो बीजेपी की रैलियों में नज़र आते हैं।

धर्म के नाम पर हो रही हिंसा से बचा कौन हैआम नागरिकपत्रकारबुद्धिजीवी सब इसका शिकार हुए हैं। "जय श्री राम" के नाम पर लोगों को मारा जा रहा हैऔर आम जनता जिसने कभी अपने दोस्तों की दाढ़ी-टोपी के बारे में कुछ सोचा ही नहीं थावो लोग भी आज किसी टोपी लगाए आदमी को देख कर उसे आतंकवादी कहने से बाज़ नहीं आते।
एक देशजहाँ इतने धर्मइतनी जातियों के लोग रह रहे हैंसंविधान में जो शामिल हैंउस देश को तोड़ने के लिए "एक देश एक धर्म" जैसी नीतियाँ घातक हैंडरावनी हैं। 
इसके अलावा देश के नाम पर सब कुछ "एक" करने की चाल से कोई अनभिज्ञ नहीं है। एक चुनावएक राशन कार्डएक पहचानये सब नीतियाँ सुनने में खूबसूरत लग सकती हैंलेकिन दरअसल ये बीजेपी के अधिनायकवादी रवैये को दर्शाती हैं। ये दर्शाता है कि इस सरकार को सिर्फ़ एक जैसे लोग चाहिए। इसी कड़ी में ये सरकार देश में सिर्फ़ एक सरकार चाहती हैऔर प्रधानमंत्री के रूप में सिर्फ़ एक चेहरा चाहती हैवही एक आदमी जो बक़ौल इनके देश का नायक हो सकता है। 

हमें समझने की ज़रूरत है कि ये घातक क्यों हैहमें ये समझने होगा कि दिक़्क़त राष्ट्रवादी या आस्तिक होने में नहीं हैदिक़्क़त है किसी एक धर्म कोकिसी एक संप्रदाय कोकिसी एक समुदाय को ही देश का इकलौता नागरिक बताने में है। भारतजिसकी सभ्यता और संस्कृति पर हमें हमेशा से गर्व रहा हैजिसकी विविधता में एकता के स्वरूप का हम बखान करने नहीं थकते थेवहाँ एक का मतलब क्या है। हमें धर्मजातिभाषा से अलग हट कर एक नागरिक के तौर पर सोचने की ज़रूरत है कि हम अपने संविधान को मानते हैं या एक ऐसे विचार को जो संविधान कोदेश को ध्वस्त करने का विचार हो।

यह लेखक के निजी विचार हैं।

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