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क्या ‘फ़ेयर एंड लवली’ ब्रैंडनेम में बदलाव 'ब्लैक लाइव्स मैटर' मुहिम का असर है?

45 सालों से भारत में बिकने वाली 'फ़ेयर एंड लवली' क्रीम का नाम आने वाले समय में बदल जाएगा। इसके साथ ही विज्ञापन में इसके ‘गोरा या गोरेपन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी नहीं होगा। कंपनी का ये फैसला ऐसे समय में आया है जब दुनियाभर में जॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के बाद रंगभेद आंदोलन के दौरान इस क्रीम को लेकर कंपनी की बहुत आलोचना हुई है।
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"अपने स्किन केयर ब्रैंड्स के ग्लोबल पोर्टफोलियो को लेकर हम पूरी तरह से समर्पित हैं। ये सभी रंगों और तरह के स्किन टोन्स का ख्याल रखेगी। हम ये समझते हैं कि 'फ़ेयर', 'व्हाइट' और 'लाइट' जैसे शब्द ख़ूबसूरती के एकतरफ़ा नज़रिये को बयान करते हैं। हमें नहीं लगता कि ये सही है और हम इस पर ध्यान देना चाहते हैं।"

ये बयान हिंदुस्तान यूनीलिवर लिमिटेड कंपनी के ब्यूटी और पर्सनल केयर डिविज़न के प्रेसीडेंट सन्नी जैन का है। यूनीलिवर ने गुरुवार, 25 जून को एक बयान जारी कर कहा कि वो आने वाले समय में 'फ़ेयर एंड लवली' ब्रैंड का नाम बदल देगी। साथ ही गोरा या गोरेपन जैसे शब्दों का इस्तेमाल अपने उत्पादों और विज्ञापनों में नहीं करेगी।

फ़ेयर एंड लवली से क्यों हटाया जा रहा है फ़ेयर?

अमेरिका में जॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के बाद शुरू हुए 'ब्लैक लाइव्स मैटर' मुहिम के दौरान हाल के हफ़्तों में इन कंपनियों को ऐसे उत्पाद बेचने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है जिससे रंगभेद को बढ़ावा मिलता है।

हालांकि, कंपनी का साफतौर पर कहना है कि उसके इस कदम का अभी पश्चिमी देशों में चल रहे नस्लवाद विरोधी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है और कंपनी दो हजार करोड़ रुपये के अपने ब्रांड को बेहतर बनाने के लिए कई सालों से काम कर रही है।

एचयूएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक संजीव मेहता ने इस संबंध में पीटीआई-भाषा से कहा, 'यह ऐसा निर्णय नहीं है, जो हमने आज लिया हो। इसकी कहानी कई सालों से चल रही है। फेयर एंड लवली में बदलाव के अलावा एचयूएल के त्वचा देखभाल से जुड़े अन्य उत्पादों में भी सकारात्मक खूबसूरती का नया दृष्टिकोण प्रतिबिंबित होगा।'

संजीव मेहता के मुताबिक कंपनी ने पिछले साल ही नाम बदलने का आवेदन दायर किया था और नकली उत्पादों से बचने के लिए अभी तक इसका खुलासा नहीं किया था।

फेयरनेस क्रीम पर बैन लगाने की उठ रही थी मांग

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ब्लैक लाइव्स मैटर का सपोर्ट करने वाले कई सैलब्स से लेकर निटिजन्स तक ने फ़ेयरनेस क्रीम्स पर बैन लगाने की मांग की थी। इसके साथ ही इसके विज्ञापन के प्रचार-प्रचार के खिलाफ़ भी जोरदार आवाज़ें उठी थी।

टीवी प्रेजेंटेटर और राइटर पद्मा लक्ष्मी ने ट्विटर पर लिखा, “फेयर एंड लवली जैसी कंपनीज पर बैन लगना चाहिए। मैं बचपन से उन गोरी लड़कियों के लिए ये सुनकर थक चुकी हूं जिन्हें देखते ही कहा जाता है देखो कितनी ‘फेयर' एंड ‘लवली' है।”

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अभिनेता अभय देओल ने भी 'ब्लैक लाइव्स मैटर' का सपोर्ट करते हुए बॉलीवुड सितारों से फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन बंद करने की अपील की थी।

बता दें कि फेयरनेस क्रीम पर बैन लगाने को लेकर कई बॉलीवुड सितारे पहले ही फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करने से इंकार कर चुके हैं। इनमें कंगना रनौत सहित रणबीर कपूर, स्वरा भास्कर, रणदीप हुड्डा और तापसी पन्नू का नाम शामिल है।

कानून क्या कहता है?

फेयरेनेस क्रीम को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन करने को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) (संशोधन) विधेयक, 2020 के नए मसौदे के तहत अपराध घोषित किया गया है। इस तरह के विज्ञापनों में शामिल लोगों को 20 लाख रुपये तक का जुर्माना और 2 साल तक की जेल की सजा का भी प्रस्ताव है।

इस संबंध में वकील आर्षी जैन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि फेयर एंड लवली जैसी फेयरनेस क्रीम्स को लेकर लंबे समय से बैन लगाने का मांग उठती रही है। इसी महीने चेंजडॉटओआरजी पर दर्जनों याचिकाएं दाख़िल की गईं जिन्हें हज़ारों लोगों ने समर्थन भी किया था।

आर्षी कहती हैं, “फेयरनेस क्रीम के जरिये फेयरनेस लाने वाली बातें हमारे दिमाग में नकारात्मकता लाती है, इसलिए तमाम संगठन समय-समय पर इसका विरोध करते रहे हैं। सरकार ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 में संशोधन कर 2020 में नए प्रावधान किए हैं। जिसके तहत ऐसी कंपनिया जो किसी व्यक्ति को गोरा बनाने, गंजेपन दूर करने, लंबाई बढ़ाने जैसी चीजों के लिए अपने प्रोडक्ट या दवा का विज्ञापन करती हैं, उन्हें पहली बार अपराध का दोषी पाए जाने पर 10 लाख का जुर्माना और दो साल की जेल की सजा का प्रस्ताव किया गया है। तो वहीं अगर इसके बाद भी कोई इसे जारी रखता है तो सजा बढ़ाकर 5 साल जेल और 50 लाख का जुर्माना भी हो सकता है। जबकि इससे पहले 1954 के अधिनियम में पहली बार दोषी पाए जाने पर छह महीने की सजा का प्रावधान था।”

क्या है फेयर एंड लवली का इतिहास

भारत में यूनिलीवर ने 45 साल पहले 1975 में गोरा बनाने के दावे के साथ फेयर एंड लवली क्रीम लांच की थी। देश के फेयरनेस क्रीम बाजार में इसका 70 फीसदी से अधिक का कब्जा है। एक आकलन के मुताबिक़ पिछले साल यूनिलीवर ने केवल भारतीय बाज़ार में 50 करोड़ डॉलर की फ़ेयर एंड लवली बेची थी।

हालांकि इतने सालों में फेयर एंड लवली को कई बार महिला संगठनों द्वारा आलोचना का शिकार भी होना पड़ा है। संसद में भी इस क्रीम को लेकर विरोध के स्वर सुनाई दिए थे। जिसके बाद कंपनी ने अपने एयरहोस्टेस वाले विज्ञापन को हटा भी लिया था, लेकिन तमाम विरोध के बावजूद प्रॉडक्ट लगातार बाजार में बिकता रहा।

रंगभेद के खिलाफ लंबे समय से चल रहा है संघर्ष

सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार ऋचा सिंह ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “ये सच है कि जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या के बाद एक नया आंदोलन शुरू हो गया है लेकिन हम सदियों से रंगभेद के खिलाफ लंबा संघर्ष कर रहे हैं। हमें ये समझना होगा कि आखिर ये गोरेपन की चाह लोगों के मन और मस्तिष्क में इतनी हावी कैसे हो गई। इसका जवाब हमारा समाज ही है, जहां गोरे रंग के लोगों को ज्यादा तरजीह दी जाती है।

ऋचा आगे बताती हैं कि भारत में रंगभेद के खिलाफ 2009 में डार्क इज ब्यूटीफुल नाम से एक कैंपेन चला। फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास ने इस अभियान के जरिए यह बहस खड़ी करने की शुरुआत की कि गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को किस तरह बॉलीवुड में भेदभाव सहना पड़ता है। उनके अनुसार अगर आप काले या ब्राउन हैं, तो आपको गांव और गरीब परिवार की लड़की दिखाया जाएगा, लेकिन अमीर, शहरी और प्रभावशाली लड़की फिल्म में गोरी ही होनी चाहिए। इसके बाद कई सेलब्स भी इसके सपोर्ट में आए थे।

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शादी डॉटकॉम ने स्किन कलर फिल्टर का ऑप्शन हटाया

मालूम हो कि फेयर एंड लवली के बाद अब मैट्रीमोनियल साइट शादी डॉटकॉम ने भी अपनी वेबसाइट से स्किन कलर फिल्टर का ऑप्शन हटा लिया है। फिछले कुछ समय से साइट अपने एक विवादित फिल्टर की वजह से आलोचनाओं में घिरी हुई थी। इसके खिलाफ चेंज़डॉटओआरजी के माध्यम से ऑनलाइन याचिका दायर हुई थी। जिसे मात्र 14 घंटे में 1500 लोगों ने साइन किया था।

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम कहती हैं, “अगर हम वैवाहिक विज्ञापनों को गौर से देखें तो इसमें स्किन टोन क्या है इसको खास वरीयता दी जाती है क्योंकि हमारी मानसिकता में ही गोरी है तो अच्छी और सुंदर वाली धारणा पैठ जमाए है। लड़कियों को अक्सर इसके लिए अपने घरवालों या ससुराल वालों से ताने भी सुनने पड़ते हैं। क्योंकि समाज में गोरा होना सुंदरता का एक पैमाना हो गया है। ऐसे गोरेपन और भेदवाव को बढ़ावा देने वाले इन सभी उत्पादों पर बैन लगाना चाहिए। क्योंकि किसी को गोरा होना या सुंदर दिखना क्यों जरूरी है। हम ऐसी बातों को बढ़ावा ही क्यों दें, जिसके चलते समाज में कुछ लोग हीन भावना का शिकार हों।”

गौरतलब है कि भारत के अलावा 'फ़ेयर एंड लवली' बांग्लादेश, इंडोनेशिया, थाईलैंड, पाकिस्तान और एशिया के दूसरे देशों में भी बेची जाती है। फेयर एंड लवली ब्रांड का दक्षिण एशिया के बाज़ार में दबदबा रहा है। समाज में गोरेपन को लेकर दीवानगी की वजह से दक्षिण एशिया के बाज़ारों में ऐसे उत्पादों के लिए बड़ी माँग रही है। 

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