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‘Origin’ : कास्ट-सिस्टम का संजीदा चित्रण, दलित स्कॉलर सूरज एंगडे भी आएंगे नज़र!

वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फिल्म Origin ख़ास चर्चा में रही। फिल्म, जातिवाद और भेदभाव को बेहद संजीदगी से बयां करती है। भारत के दलित स्कॉलर डॉ. सूरज एंगडे ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है।
Film Origin

एवा डुवरने (Ava DuVernay) और सूरज एंगडे खड़े थे और चारों तरफ तालियों की आवाज़ गूंज रही थी, क़रीब नौ मिनट तक एवा को स्टैंडिंग ओवेशन मिला। ये मौका था हाल ही में ख़त्म हुए 80वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल के दौरान एवा की फिल्म ओरिजिन (Origin) के वर्ल्ड प्रीमियर का।

ये फिल्म 80वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में कई मायनों में ख़ास रही। ये पहला मौका था जब किसी अफ्रीकन-अमेरिकन महिला डायरेक्टर की फिल्म ऑफिशियल कंपटीशन में शामिल हो रही थी। 

इसके अलावा अगर भारत के नज़रिए ये देखा जाए तो वेनिस फिल्म फेस्टिवल के रेड कारपेट पर फिल्म की डायरेक्टर एवा और पूरी टीम के साथ एक जाना-पहचाना चेहरा भी दिखाई दिया। ये थे दलित स्कॉलर डॉ. सूरज एंगडे। जी हां, एवा की फिल्म ओरिजिन में सूरज एंगडे ने भी काम किया है और इस फिल्म की काफ़ी चर्चा हो रही है। 

कौन हैं सूरज एंगडे? 

डॉ. सूरज एंगडे एक दलित चिंतक और लेखक हैं। महाराष्ट्र के नांदेड़ से हार्वड तक का सफर तय करने वाले सूरज लगातार हाशिए पर खड़े लोगों के बारे में लिखते, बोलते रहे हैं। सूरज एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के साथ ही अंबेडकरवादी सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। सूरज अपने देश के साथ ही कई विदेशी मीडिया हाउस के लिए जाति, नस्ल, दलित जीवन के बारे में लिखते रहते हैं। उनकी चर्चित चर्चित किताब "कॉस्ट मैटर्स" अब हिंदी समेत कई दूसरी भाषाओं में ट्रांसलेट हो रही है। ये किताब जाति प्रथा, छुआछूत और साथ ही दलितों को हर स्तर पर जो सहना पड़ता है उस दर्द को बयां करती है। 

क्या है 'ओरिजिन' की कहानी?

बताया जा रहा है कि ओरिजिन एक पावरफुल बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म है, जो पत्रकार इसाबेल विल्कर्सन (Isabel Wilkerson) की 2020 की बेस्ट सेलर और पुल्तिज़र पुरस्कार विजेता किताब ‘Caste: The Origins of Our Discontents' पर आधारित है। किताब में जातिवादी और भेदभाव के मुद्दों पर बात की गई है। किताब में अमेरिका, भारत और नाज़ी जर्मनी के कास्ट सिस्टम पर लिखा गया है और इसे ही बहुत संजीदा अंदाज़ में फिल्म में भी उतारा गया है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे निम्न जाति के लोगों को इतिहास में शर्मिंदगी सहनी पड़ी और कैसे जाति, नस्ल आधारित भेदभाव समाज में बहुत ही गहराई तक उतरा हुआ है।

बताया जा रहा है कि फिल्म में नाज़ी जर्मनी की तस्वीर एक बार फिर दिखाई गई, साथ ही अमेरिका का जिम क्रो लॉ (जो श्वेत और ब्लैक लोगों को अलग रखने के लिए बनाया गया था ) को दर्शाया गया है और साथ ही भारत में दलितों के संघर्ष को पेश किया गया है। 

फिल्म के शुरू और आख़िर में एवा ने Trayon Martin नाम के एक लड़के की तस्वीर को दिखाया है जिसके बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एवा से जब पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि Caste: The Origins of Our Discontents किताब लिखने वाली इसाबेल से बातचीत के दौरान उन्हें पता चला था कि ये किताब लिखने का ख़्याल उन्हें Trayon Martin की मौत के बाद ही आया था। 17 साल के मार्टिन को 2012 में अमेरिका के फ्लोरिडा में नस्लभेद के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी थी, इस मौत के बाद अमेरिका में हैशटैग ‘black lives Matter’ की शुरुआत हुई थी जिसने George Floyd की मौत के बाद पूरी दुनिया में एक आंदोलन का रूप ले लिया था और एक बहस को जन्म दिया। 

37 दिन में बनी फ़िल्म

महज़ 37 दिनों में बनी ये फिल्म जल्द ही सिनेमा हॉल में रिलीज़ होगी लेकिन इस दौर में जहां अक्सर ये आरोप लगते हैं कि भारत में दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों के साथ भेदभाव बढ़ रहा है, ऐसे में इस तरह की फिल्म का आना बेशक एक नई बहस को जन्म देगा। फिल्म में सूरज एंगडे का होना भी बड़ा संदेश है। पूरी दुनिया में अपनी-अपनी तरह का भेदभाव रहा है, इस ग्लोबल इश्यू पर एक साथ मिलकर आवाज़ बुलंद करना बेशक एक अच्छी सोच है।

पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि भारत में किस तरह से दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों के साथ भेदभाव में इज़ाफा हुई है। एबीपी लाइव की वेबसाइट पर छपी एक ख़बर के मुताबिक नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ने साल 2021 में दलितों के साथ हो रहे अपराध को लेकर एक डेटा जारी किया जिसके मुताबिक अनुसूचित जाति के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा अपराध होने वाले राज्यों की लिस्ट में पहले स्थान पर मध्यप्रदेश है जबकि 2020 में भी मध्य प्रदेश पहले स्थान पर ही था। 

यूं तो देश में आज़ादी का अमृतकाल चल रहा है लेकिन जाति आधारित भेदभाव अब भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। अक्सर आरोप लगते हैं कि देश के उच्च शिक्षण संस्थान में यही जातिगत भेदभाव रोहित वेमुला जैसे होनहार छात्र की जान ले लेता है।

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अमृत काल में दलितों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए अच्छे दिन कब आएंगे ये तो कोई नहीं बताता लेकिन चुनावी साल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत का ये बयान ज़रूर आता है कि "हमारे समाज में भेदभाव मौजूद है और जब तक असमानता बनी रहेगी तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।"

हर दिन देश के किसी न किसी कोने से दलितों के साथ अन्याय की तस्वीर सामने आ ही जाती है। जिस वक़्त हम ये ख़बर लिख रहे हैं, दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक दलित एडहॉक शिक्षक पिछले 15 दिन से धरने पर बैठी हैं। दौलत राम कॉलेज में एडहॉक शिक्षक रहीं ऋतु सिंह ने प्रिंसिपल पर 2020 में जातिगत आधार पर उन्हें हटाने का आरोप लगाया था। तब से डॉ. ऋतु सिंह कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। अब वे प्रिंसिपल की बर्खास्तगी की मांग के लेकर धरने पर बैठी हैं।

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