ओडिशा ट्रेन हादसा : रेल मंत्रालय ने घटना का 'मूल कारण' लापरवाही और चूक बताया
नई दिल्ली: ओडिशा के बालासोर में 2 जून की भयानक ट्रेन दुर्घटना जिसमें 280 से अधिक लोग मारे गए हैं और करीब 1,175 घायल हुए हैं, यह दुर्घटना घोर लापरवाही, गंभीर प्रणालीगत चूक और अक्षमता के कारण हुई है जो व्यवस्थित विफलता का पर्दाफाश करती है। कई चेतावनियों के बावजूद, सिग्नलिंग सिस्टम की आपराधिक उपेक्षा की गई लगती है।
बालासोर दुर्घटना के संभावित कारण में इंटरलॉकिंग चूक पर संदेह किया जा रहा है। दुर्घटना में शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (दोनों में लगभग 2,000 यात्रि सवार थे) और एक मालगाड़ी शामिल थी। यह दुर्घटना बालासोर के बहनागा बाजार स्टेशन के पास शाम करीब 7 बजे हुई – जो भुवनेश्वर (ओडिशा) से लगभग 170 किमी उत्तर और कोलकाता (पश्चिम बंगाल) से 250 किमी दक्षिण में है।
स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर और विशेष राहत आयुक्त की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, जो न्यूज़क्लिक के पास है, का हवाला देते हुए रेलवे बोर्ड ने 4 जून को कहा कि सिग्नलिंग में कुछ समस्या थी।
रेलवे बोर्ड के ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट के सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने संवाददाताओं को बताया कि, "प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, सिग्नलिंग में कुछ समस्या थी। हम अभी भी रेलवे सुरक्षा आयुक्त की विस्तृत रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं।" भारतीय रेलवे के इतिहास में सिग्नलिंग समस्या सबसे घातक ट्रेन दुर्घटनाओं का कारण रही है।
रिपोर्ट से जो पता चलता, कि कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841) के मुख्य ट्रैक पर आगे बढ़ने के बजाय, वह हरी झंडी के बाद एक लूप लाइन में घुस गई थी। नतीजतन, वह वहां खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई।
रपट कहती है कि, इस बीच, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12864) - डाउन मेन लाइन से गुज़र रही थी, और उसके दो डिब्बे पटरी से उतर गए और पलट गए। कोरोमंडल एक्सप्रेस 128 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी, जबकि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस 116 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी।
ऑपरेशन को आसान बनाने के लिए लूप लाइनें अधिक ट्रेनों को समायोजित करती हैं। कई इंजन वाली पूरी लंबाई वाली मालगाड़ी को समायोजित करने के लिए आमतौर पर इसकी लंबाई 750 मीटर होती है।
रेलवे बोर्ड के प्रधान कार्यकारी निदेशक (सिग्नल आधुनिकीकरण) संदीप माथुर ने मीडिया को बताया कि, "सभी स्टेशनों में दो मुख्य लाइनें और दो लूप लाइनें होती हैं। हम एक बिंदु पर यह तय करते हैं कि ट्रेन सीधी जाएगी या लूप पर जाएगी। सिग्नल इस तरह से इंटरलॉक किए जाते हैं जिससे यह जानने में मदद मिलती है कि लाइन व्यस्त है या नहीं। जब लाइन व्यस्त नहीं है तो सिग्नल हरा होता है।" इंटरलॉकिंग इस तरह की जाती है जिससे यह जानने में मदद मिलती है कि ट्रेन जा सकती है या नहीं। इस स्टेशन में इंटरलॉकिंग इलेक्ट्रॉनिक थी। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की वजह से अधिक जानकारी मिल सकती है। कुछ स्टेशन अभी भी लीवर का इस्तेमाल कर रहे हैं।"
इस बीच, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावा किया है कि त्रासदी के "मूल कारण" की पहचान कर ली गई है और जल्द ही इसका खुलासा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि घातक दुर्घटना "इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव या हेरफेर" के कारण हुई है।
मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार, इलेक्ट्रिकल सिग्नल मेंटेनर (ईएसएम) स्टेशन मास्टर को डिस्कनेक्शन मेमो देता है - जो इसे पहचानता है और फिर किसी भी विफलता को रोकने की अनुमति देता है।
रिले रूम को खोले बिना इंटरलॉकिंग गियर्स के साथ कोई कैसे हस्तक्षेप कर सकता है? जबकि रेलवे बोर्ड के स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि विफलताओं को रोकने के लिए इसे खोला जाना चाहिए? ईएसएम को रिले रूम खोले बिना इंटरलॉकिंग को बदलने की सुविधा कैसे मिल सकती है?
सिग्नलिंग प्रणाली की आपराधिक उपेक्षा?
9 फरवरी को, दक्षिण पश्चिम रेलवे के मुख्य चीफ ऑपरेटिंग मैनेजर ने होसदुर्गा रोड पर 8 फरवरी को संपर्क क्रांति एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12649) की सिग्नल विफलता पर चिंता व्यक्त की थी – जो मैसूर मंडल में बिरूर-चिक्कजजुर खंड में शिवानी और रामागिरी के बीच डबल लाइन स्टेशन है।
ट्रेन एक मालगाड़ी से टकराने वाली थी, जो ट्रेन डाउन लाइन पर होसदुर्गा स्टेशन की ओर आ रही थी; हालांकि, लोको पायलट की सतर्कता के कारण दुर्घटना टल गई, जिसने इसे गलत लाइन (डाउन लाइन) में प्रवेश करने से पहले ही रोक दिया था।
"यह घटना इशारा करती है कि सिस्टम में गंभीर खामियां हैं, जहां सिग्नल पर ट्रेन के चलने के बाद स्टेशन मास्टर के पैनल में सही दिखाने से मार्ग बदल जाता है। यह इंटरलॉकिंग के सार और बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। यह बात उन्होंने हुबली स्थित मुख्यालय के कार्यालय के संचालन विभाग को संबोधित अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर के कई स्टेशनों पर सिग्नलिंग केबल्स को पहले यार्ड में एक जंक्शन बॉक्स और फिर रिले रूम में लाया जाता है। 8 फरवरी की घटना को "बहुत गंभीरता से" लेने की चेतावनी देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, "यह दखल देने और इंटरलॉकिंग में हेरफेर करने को सक्षम बनाता है।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "सिस्टम की खामियों को दूर करने के लिए तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए जाने की जरूरत है।" यह भी कहा कि, "यह सही समय है कि इस मोर्चे पर कुछ गंभीर काम किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कीमती जीवन और लोगों की सुरक्षा को जोखिम में न डाला जाए।"
सुरक्षा प्रक्रियाओं पर ध्यान नहीं दिया गया
परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 323वीं रिपोर्ट में रेलवे सुरक्षा आयोग (सीआरएस) की सिफारिशों के प्रति "उपेक्षा" के लिए रेलवे बोर्ड की आलोचना की थी।
इसने अपनी सुपरवाईजरी के तहत रेलवे बोर्ड को निर्देशित, सलाह और चेतावनी दी कि वह जांच करे और सुनिश्चित करे कि सभी निर्धारित उपाय किए गए हैं, और मानकों का पालन किया गया है और रेल की ताकत, निर्माण और सुरक्षा के संबंध में उन्हे ट्रेन संचालन में लागू किया गया है।
सीआरएस नागरिक उड्डयन मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है। समिति ने सिफारिश की थी कि दक्षता और कार्रवाई की स्वतंत्रता में सुधार के लिए आयोग को देश के कई अन्य नियामक संस्थानों की तरह एक स्वतंत्र, स्वायत्त निकाय बनाया जाना चाहिए।
सीआरएस में रेलवे बोर्ड की "घोर अवहेलना" की ओर इशारा करते हुए, समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि "सीआरएस द्वारा केवल 8-10 प्रतिशत दुर्घटनाओं की जांच की जाती है, जबकि बाकी की रेलवे द्वारा जांच की जाती है, और ऐसे मामलों में रिपोर्ट को टिप्पणियों के लिए सीआरएस को संदर्भित भी नहीं किया जाता है।"
सीएजी रिपोर्ट गंभीर चिंताएं पैदा करती है
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), जो भारत का शीर्ष ऑडिटिंग निकाय है, ने 2022 में "भारतीय रेलवे में रेल का पटरी से उतरना" पर अपनी रिपोर्ट में भारतीय रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग को अधिकांश पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
अप्रैल 2017 से मार्च 2021 तक, रिपोर्ट में 422 ट्रेन के पटरी से उतरने के लिए विभाग को जिम्मेदार ठहराया गया था। रिपोर्ट ने पटरी से उतरने के महत्वपूर्ण कारणों में खराब ट्रैक रखरखाव, ओवरस्पीडिंग और यांत्रिक विफलता की ओर इशारा किया था।
इसने, सुरक्षा संचालन में अपर्याप्त स्टाफ, ट्रैक नवीनीकरण के वित्तपोषण में गिरावट की प्रवृत्ति, और प्राथमिकता के आधार पर किसी समर्पित रेलवे फंड का इस्तेमाल नहीं करना बताया और दुर्घटनाओं के बाद जांच रिपोर्ट जमा करने या स्वीकार करने में विफलता और जाँचों में गंभीर कमी को गंभीर चिंताओं के रूप में चिन्हित किया था।
न्यूज़क्लिक के पास मौजूद रिपोर्ट में कहा गया है कि, "रेलवे पटरियों की ज्यामितीय और संरचनात्मक स्थितियों का आकलन करने के लिए आवश्यक ट्रैक रिकॉर्डिंग कारों द्वारा निरीक्षण में 30-100 प्रतिशत तक की कमी थी।" इसने ट्रैक प्रबंधन प्रणाली (टीएमएस) में विफलताओं का भी उल्लेख किया, जिसकी व्यापक रूप से ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के बाद चर्चा हुई है।
रिपोर्ट बताते है कि,"टीएमएस ट्रैक रखरखाव गतिविधियों की ऑनलाइन निगरानी के लिए एक वेब-आधारित एप्लिकेशन है। हालांकि, टीएमएस पोर्टल का अंतर्निहित निगरानी तंत्र चालू नहीं पाया गया था।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि, सुस्त ट्रैक मशीनों, काम की गुंजाइश नहीं होने (3 प्रतिशत), कर्मचारियों की अनुपलब्धता (5 प्रतिशत), परिचालन समस्याओं (19 प्रतिशत), मंडलों द्वारा नियोजित ब्लॉकों (30 प्रतिशत), और संचालन विभाग (32 प्रतिशत) इन विफलताओं का कारण है।
16 ज़ोनल रेलवे में 1,129 'इंक्वायरी रिपोर्ट' का विश्लेषण करते हुए, ऑडिट में पाया गया कि "16 ज़ोनल रेलवे में हुए चुनिंदा 1,129 मामलों/दुर्घटनाओं में ट्रेन के पटरी से उतरने के लिए 23 कारक जिम्मेदार हैं"। 23 कारणों में से, पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक "ट्रैक का रखरखाव" (171 मामले), उसके बाद "अनुमेय सीमा से परे ट्रैक मापदंडों का विचलन" (156 मामले) और "खराब ड्राइविंग/ओवरस्पीडिंग" के (154 मामले) थे।
रिपोर्ट में पाया गया कि दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या, विशेष रूप से सिग्नल डेंजर पासिंग (एसपीएडी) मामलों की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण लोको पायलटों के लंबे समय तक काम करना है। 'यांत्रिकी विभाग' के कारण पटरी से उतरने की संख्या 182 थी। पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार कारकों में "पहिया व्यास भिन्नता और डिब्बों/वैगनों में दोष" का प्रमुख योगदान (37 प्रतिशत) था।
कैग के मुताबिक, "ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट" के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या 275 थी। "शंटिंग ऑपरेशन में पॉइंट्स की गलत सेटिंग और अन्य गलतियाँ" 84 प्रतिशत थीं। 63 प्रतिशत मामलों में, "जांच रिपोर्ट" निर्धारित समय के भीतर स्वीकार करने वाले प्राधिकारी को प्रस्तुत नहीं की गई थी। 49 प्रतिशत मामलों में, स्वीकार करने वाले अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट स्वीकार करने में देरी हुई।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मौजूदा मानदंडों का उल्लंघन करते हुए 27,763 कोचों (62 प्रतिशत) में आग बुझाने के यंत्र उपलब्ध नहीं कराए गए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ट्रैक नवीनीकरण के लिए धन का कुल आवंटन घट रहा था, और यहां तक कि आवंटित धन का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया था। यह चिंताजनक है क्योंकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2017-21 के दौरान कुल पटरी से उतरने की 26 प्रतिशत घटना, पटरियों के खराब रखरखाव के कारण हुआ।
ऑडिट रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ट्रैक रखरखाव और उन्नयन कार्यों के लिए धन का आवंटन 2018-19 में 9,607.65 करोड़ रुपये से घटकर 2019-20 में 7,417 करोड़ रुपये हो गया था। इसमें कहा गया है, "ट्रैक के रखरखाव के लिए आवंटित धन का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल (2021-22) 35 दुर्घटनाओं के मुकाबले, 2022-23 में "परिणामी रेल दुर्घटनाओं" (जीवन, संपत्ति आदि के नुकसान के गंभीर परिणामों के साथ हुई दुर्घटनाएं) के 48 मामले सामने आए हैं। एसपीएडी के 35 मामलों सहित 165 "गैर-परिणामी ट्रेन दुर्घटनाएं" भी हुईं। इन हादसों में 32.96 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान/नुकसान हुआ है।
रिपोर्ट में पाया गयाकि, पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के वार्षिक परिव्यय के साथ 2017-18 में राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आरआरएसके) बनाया गया था। इसके कॉर्पस फंड पांच साल में 1 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना था। लेकिन "रेलवे द्वारा आंतरिक संसाधनों से धन के कम आवंटन" (15,775 करोड़ रुपये) ने इसके निर्माण के प्राथमिक उद्देश्य को विफल कर दिया। रिपोर्ट में 2017-21 में ईस्ट कोस्ट रेलवे में रेल और वेल्ड के शून्य परीक्षण का भी खुलासा हुआ।
मानव संसाधन की कमी
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिए गए एक जवाब से पता चलता है कि भारतीय रेलवे के विभिन्न विभागों में लाखों पद खाली हैं। ग्रुप सी के लिए 14,75,623 पदों में से 3.11 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। इसमें कहा गया है कि संवर्ग के 18,881 स्वीकृत राजपत्रित पदों में से 3,018 पद खाली पड़े हैं। यह आगे कहती है कि 39 रेलवे जोन और उत्पादन इकाइयों में से अधिकांश में आवश्यक मानव संसाधनों की कमी है।
आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि रेलवे के शीर्ष अधिकारियों की नियुक्तियों में कैबिनेट सचिवालय की नियुक्ति समिति ने देरी की है, जो पद महीनों से खाली पड़ी हैं। जवाब में कहा गया कि रेलवे बोर्ड ने हाल ही में लोको पायलटों के मुद्दे को उठाया है, जिन्हें अपने निर्धारित कार्य घंटों से अधिक काम करने पर मजबूर किया जाता है - जिसके परिणामस्वरूप ट्रेन संचालन की सुरक्षा को खतरा होता है।
नियमों के मुताबिक उनकी ड्यूटी के घंटे किसी भी सूरत में 12 घंटे से ज्यादा नहीं हो सकते हैं। लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण, कई जोनल रेलवे ने लोको पायलटों को निर्धारित आरटीआई के जावाब से पता चला कि, ड्यूटी घंटों के बाद भी ड्यूटी पर रहने के लिए कहा। उदाहरण के लिए, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में, इस साल मार्च, अप्रैल और मई की पहली छमाही में लोको पायलटों की 12 घंटे से अधिक की ड्यूटी के घंटे क्रमशः 35.99 प्रतिशत, 34.53 प्रतिशत और 33.26 प्रतिशत थे।
खोखला 'कवच'
2011-12 में अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (RDSO) द्वारा विकसित ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (TCAS) को 'कवच' नाम दिया गया था। रेल मंत्री ने मार्च 2022 में टीसीएएस का प्रदर्शन करते हुए इसकी कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बताया था।
लेकिन सभी दावों के विपरीत, कि रेल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, सभी ट्रेनों को पटरी से उतरने और टक्कर रोधी उपकरणों से लैस किया जाएगा, ओडिशा में दुर्घटनाग्रस्त हुई किसी भी ट्रेन में न तो 'कवच' था और न ही यह राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन द्वारा कवर की गई सुरक्षा प्रणाली या कवचथा।
'चिंतन शिविर' में सुरक्षा पर 'चिंतन' नहीं
मीडिया रिपोर्टों में कई अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि, 2 जून को हुई दुखद घटना से कुछ घंटे पहले रेल मंत्री की अध्यक्षता में एक 'चिंतन शिविर' या विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में शामिल होने वाले अधिकारियों की मानें तो रेलवे सुरक्षा पर विभिन्न क्षेत्रों की प्रस्तुतियों को दरकिनार कर दिया गया था। बड़े पैमाने पर वंदे भारत ट्रेनों और राजस्व जुटाने पर आयोजित किया गया था, केवल एक क्षेत्र को सुरक्षा पर प्रस्तुति देने की अनुमति दी गई थी।"
सत्र का हिस्सा रहे एक रेलवे अधिकारी ने कहा कि, "हाल के महीनों में, मालगाड़ियों के पटरी से उतरने की खतरनाक घटनाएं हुई हैं, जिनमें लोको पायलट मारे गए हैं और वैगन पूरी तरह से नष्ट हो गए। लेकिन ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई चर्चा नहीं की गई।" लेकिन रेलवे बोर्ड के सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया, और आरोप को "आधारहीन" बताया है।
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