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दक्षिण अफ्रीका में सिबन्ये स्टिलवाटर्स की सोने की खदानों में श्रमिक 70 दिनों से अधिक समय से हड़ताल पर हैं 

श्रमिकों की एक प्रमुख मांग उनके बीच में सबसे कम वेतन पाने वालों को R1,000 की मासिक वृद्धि को लेकर बनी हुई है। हालाँकि, कंपनी R800 से अधिक वेतन में वृद्धि करने से इंकार कर रही है। 
South Africa
सिबन्ये स्टिलवाटर के श्रमिक हड़ताल पर। चित्र: माइनिंगएमएक्स 

दक्षिण अफ्रीका में सिबन्ये स्टिलवाटर की सोने की खदानों में हड़ताल अपने तीसरे महीने में जारी है क्योंकि कंपनी और यूनियनों के बीच में चौथे दौर की वार्ता मंगलवार, 17 मई को मजदूरी के मुद्दे पर संघर्ष का कोई समाधान ढूंढ पाने में विफल रही थी।

लगभग 30,000 श्रमिकों ने कंपनी की सोने की खदानों में सबसे न्यूनतम वेतन पाने वाले श्रमिकों के लिए वेतन में R1,000 की वृद्धि की मांग के साथ 9 मार्च को काम बंद कर दिया था। यह मांग पूरी हो जाती है तो उनका वेतन बढ़कर R10,000 हो जायेगा।

श्रमिक यूनियनों की ओर से जोहान्सबर्ग और न्यूयॉर्क के स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध इस बहुराष्ट्रीय बहुमूल्य धातु निर्माता कंपनी में “कुशल श्रमिकों” के तौर पर वर्गीकृत लोगों के लिए 6% की वेतन वृद्धि के साथ ही अधिकारियों के लिए भी R100 बढ़ोत्तरी की मांग की जा रही है। 

एसोसिएशन ऑफ़ माइनवर्कर्स एंड कंस्ट्रक्शन यूनियन (एएमसीयू) के महासचिव, जेफ़ एम्फालेले ने बताया कि सिबन्ये स्टिलवाटर्स की सोने की खदान में खनन का काम पूरी तरह से ठप पड़ा है क्योंकि हड़ताल शुरु होने के बाद से ही श्रमिक रोजाना इसकी सोने की खदानों पर धरना दे रहे हैं। एएमसीयू यूनियन, सिबन्ये स्टिलवाटर्स की सोने की खदानों में कार्यरत तकरीबन आधे श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करता है। बाकी के आधे श्रमिक नेशनल यूनियन ऑफ़ माइनवर्कर्स (एनयूएम) के सदस्य हैं। 

जहाँ एक तरफ कंपनी के सीईओ नील फ्रोनेमैन अपने खुद के लिए R30 करोड़ के पारिश्रमिक पैकेज को सही ठहराते हैं, वहीं दूसरी तरफ कंपनी ने न्यूनतम मजदूरी पाने वाले लोगों के लिए 800आर से अधिक की बढ़ोत्तरी करने से इंकार कर दिया है। श्रमिक संघों ने समझौते से इंकार कर दिया है और हड़ताल जारी है।

पीपल्स डिस्पैच के साथ अपनी बातचीत में एम्फालेले ने कहा, “आपको इस बात को समझना होगा कि यह सिर्फ 200 रैंड का अंतर ही नहीं है जिसके लिए हम संघर्षरत हैं, बल्कि वेतन के साथ एक संरचनात्मक समस्या बनी हुई है।” R10,000 से कम आय वाले लोग बैंकों में उपलब्ध अधिकांश आवास संबंधी ऋण पाने के लिए पात्र नहीं माने जाते हैं। जबकि वहीँ दूसरी तरफ, वे सरकार की आवास कल्याण सहायता के लिए भी पात्र नहीं रह जाते, जो केवल बेरोजगार लोगों के लिए ही उपलब्ध है।

उनके मुताबिक, “इसलिए वेतन में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है। यह बेहद महत्वपूर्ण है। हम उस 200 रैंड को नहीं छोड़ सकते हैं। यह उतना छोटा मामला नहीं है जितना किसी को लग सकता है।” उनका कहना था, “मुझे समझ नहीं आता कि कंपनी के लिए 200 रैंड देने से इंकार करना इतना महत्वपूर्ण क्यों बना हुआ है। सीईओ ने अपने खुद के लिए तो 30 करोड़ रैंड निर्धारित कर रखे हैं। सोचिये सिर्फ एक आदमी के लिए 30 करोड़! और वह 30,000 लोगों को महज 1,000 रैंड देने से इंकार कर रहा है, (जो कुल मिलाकर सिर्फ 3 करोड़ रैंड है)।”

हड़ताल के एक-एक दिन का श्रमिकों को वेतन का नुकसान हो रहा है। न्यूज़ 24 ने बताया है कि “सबसे न्यूनतम मजदूरी पाने वालों को अपने मूल वेतन में R20,000 से अधिक का नुकसान हुआ है, और यदि आप इसमें अन्य लाभ एवं भत्तों को जोड़ दें तो यह R37,000 का नुकसान होता है। यदि कल के दिन प्रस्ताव में कोई सुधार के बगैर ही हड़ताल खत्म कर दी जाती है तो उन्हें अपने नुकसान की भरपाई करने में दो साल से अधिक का वक्त लग जाएगा। यदि वे जीत जाते हैं तो उस सूरत में भी उन्हें ब्रेक इवन तक पहुँचने से पहले 20 महीने लग जाने वाले हैं।”

एम्फालेले के मुताबिक, नतीजे की परवाह किये बगैर हड़ताल को श्रमिकों के लिए नुकसान के तौर पर देखना इस धारणा पर आधारित है कि जो लोग हड़ताल में शामिल नहीं हैं उनको अपनी आय का नुकसान नहीं हो रहा है। इस पर उनका तर्क था, “लेकिन जो श्रमिक हड़ताल पर नहीं हैं, वे भी अपनी तनख्वाह से अपने महीने भर की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।” उनके अनुसार, चाहे आप हड़ताल में शामिल हो या नहीं हो, श्रमिकों को आय में नुकसान हो रहा है क्योंकि कीमतें स्थिर मजदूरी के मुकाबले लगातार बढ़ रही हैं। 

प्लैटिनम क्षेत्र में, जहाँ पर 10 साल पहले मारीकाना में R12,500 प्रतिमाह की मांग करने वाले हड़ताली श्रमिकों का नरसंहार कर दिया गया था, वहां पर अब सबसे न्यूनतम कमाई करने वाले का मासिक वेतन R13,000 है, जो कि गोल्ड सेक्टर में मिलने वाली सबसे न्यूनतम मजदूरी से R4,000 अधिक है। 

एम्फालेले ने आगे कहा, “क्योंकि प्लैटिनम सेक्टर में, जहाँ पर एएमसीयू बहुमत में है, हमने कंपनियों के साथ सौदेबाजी के दौरान कोई समझौता नहीं किया; और जब तक हमारी मांगें नहीं मान ली गईं, तब तक हम अड़े रहे।”

जल्द ही सिबन्ये स्टिलवाटर्स की प्लैटिनम खदानों में भी वेतन संबंधी वार्ता शुरू होने वाली है। उन्होंने कहा, “हमारी मांगें कमोबेश गोल्ड सेक्टर जैसी ही हैं। यदि कंपनी यहाँ पर मांगों को पूरा करने में विफल रहती है तो उन्हें प्लैटिनम खदानों में भी हड़ताल की कार्यवाही की उम्मीद कर लेनी चाहिए।”

एएमसीयू और एनयूएम के साथ एकजुटता का इजहार करते हुए, देश के भीतर सबसे बड़े ट्रेड यूनियन, नेशनल यूनियन ऑफ़ मेटलवर्कर्स ऑफ़ साउथ अफ्रीका (एनयूएमएसए) के महासचिव, इरविन जिम ने कहा, “खनन सदन और उसके शेयरधारकों को इस बारे में निष्पक्ष रूप से सामने आना होगा और पूरे देश को बताना होगा कि श्रमिकों के द्वारा वेतन में R1,000 की वृद्धि की उनकी न्यायोचित मांग को नकारने का आधार क्या है? खासकर, यह देखते हुए कि पिछले वर्ष इसी क्षेत्र में, मौजूदा वस्तुओं की मांग में उछाल के कारण, हार्मोनी गोल्ड में यूनियनों के रूप में नुम्सा ने सबसे न्यूनतम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों के लिए अगले तीन वर्षों तक प्रति वर्ष R1,000 की बढ़ोत्तरी किये जाने पर समझौता किया था। हमने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप सबसे न्यूनतम मजदूरी पाने वाले श्रमिक को, (जिसे वर्तमान में R10,478 की कमाई हो रही है), ऐसे श्रमिकों की समझौते के तीसरे साल तक औसतन R13,478 की कमाई होगी।”

एनयूएमएसए खुद देश के सबसे बड़े इस्पात उत्पादक, आर्सेलर मित्तल साउथ अफ्रीका (एएमएसए) में हड़ताल पर है, जिसे पिछले सप्ताह एक अदालत के द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। 

खनन क्षेत्र के बाहर, दक्षिण अफ्रीका के संगठित श्रमशक्ति का एक बड़ा हिस्सा सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ पर अधिकांश यूनियनें सत्तारूढ़ एएनसी की श्रमिक सहयोगी, कांग्रेस ऑफ़ साउथ अफ्रीकन ट्रेड यूनियन (सीओएसएटीयू) से संबद्ध हैं।

सीओएसएटीयू ने इस माह की शुरुआत में पब्लिक सर्विस कोआर्डिनेटिंग बारगेनिंग काउंसिल (पीएससीबीसी) में शुरू हुई वार्ता में 10% वेतन में वृद्धि की मांग को प्रस्तावित किया है। हालाँकि, वित्तीय पूंजी के दबाव के तहत वशीभूत होकर, दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिकों के वेतन में कटौती करने का वादा कर, खुद को सभी क्षेत्रों की यूनियनों के साथ भिड़ंत में ला खड़ा कर दिया है। ऐसे में, इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले महीनों में कई और श्रमिक कार्यवाईयां देखने को मिलें। 

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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