NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
भारत-बांग्लादेश संबंध का मौजूदा दौर
नई दिल्ली के मौन प्रोत्साहन से प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की घरेलू राजनीति को उनके सत्तावादी शासन के मामले में निर्णायक रूप से फ़ायदा हुआ है।
एम. के. भद्रकुमार
06 Dec 2021
Translated by महेश कुमार
Modi and Sheikh Hasina
प्रधानमंत्री मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना

किसी भी राष्ट्र के जीवन में, शायद, पहले पचास वर्षों को किशोरावस्था से गुजरने के संस्कारों से चिह्नित माना जाना चाहिए। बांग्लादेश को एक कठिन किशोरावस्था के दौर से गुजरने में मदद करने के लिए भारत खुद को बधाई दे सकता है। एक असामयिक पैदा हुए बच्चे का पालन-पोषण आसान नहीं होता है और इस बारे में बांग्लादेश के बारे में सोचा जा सकता है, हालांकि  वह अपना रास्ता खुद खोजने की कोशिश कर रहा है। भारत, बांग्लादेश के प्रति हमेशा एक कृपालु अभिभावक भी नहीं रहा है। यह एक जटिल संबंध रहा है जो इतिहास के बोझ और गहन सांस्कृतिक और जातीय पहचान से लदा हुआ है।

हाल के दशकों में, भारत ने एक नया प्रयोग अपनाया है - बांग्लादेश में सत्तावाद के उदय के प्रति मौन स्वीकृति। मूल रूप से, "मूल्यों" के बारे में दूसरों के प्रति निर्देशात्मक नहीं होना अंतर-देशीय संबंधों को बनाए रखना ही सही मानदंड है। और यह चाल काम कर गई। 

दिल्ली के मौन प्रोत्साहन से प्रधानमंत्री शेख हसीना की घरेलू राजनीति में उनके सत्तावादी शासन को निर्णायक रूप से फायदा हुआ है। हसीना ने भी उन क्षेत्रों में पारस्परिक व्यवहार किया जो भारत के कुछ मुख्य हितों से संबंधित हैं। यह रणनीतिक व्यवस्था दोनों पक्षों के अनुकूल थी। बेशक, यदि हसीना की मदद न मिलती तो भारत के दूर-दराज के पूर्वोत्तर इलाकों में अस्थिरता या अफरा-तफ़री बढ़ जाती। भारत ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए किए गए उदार भूमि सौदे के प्रति उनका आभार प्रकट किया है।

भविष्य को ध्यान में रखते हुए द्विपक्षीय संबंधों में एक अधिरचना के निर्माण के लिए आज एक महत्वपूर्ण स्थान उपलब्ध है। अब, यह एक ऐसी जगह हैं जहां एक बड़ी चुनौती मौजूद है। चीजों को ऐसी बनाए रखने में भारत का स्वार्थ है, लेकिन जीवन तो गतिशील होता है।

शुरुआत के लिए, शांति, क्षेत्रीय स्थिरता और स्थिरता का मैट्रिक्स कनेक्टिविटी के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। अत: बंगलादेश इसमें एक अनिवार्य भागीदार है। इसके सहयोग से, भारत को अशांत पूर्वोत्तर क्षेत्रों को एकीकृत करने के लिए बेहतर कनेक्टिविटी मिलती है।

निश्चित रूप से, भारत का खुद का भविष्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के चलते निकटवर्ती एशियाई देशों के साथ अपनी कनेक्टिविटी बढ़ाने में निहित है। यह संभावित रूप से एक गेम चेंजर हो सकता है यदि भारत अपनी निरंकुश मानसिकता को त्याग दे और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से निकलने वाली नई आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने का फैसला कर लेता है, जो पृथ्वी का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र है। लेकिन भारतीय नीतियों में भू-अर्थशास्त्र की तुलना में भू-राजनीति को प्राथमिकता दी जाती है।

आरसीईपी 1 जनवरी 2022 से लागू हो रहा है और भारत इसका हिस्सा नहीं है। उम्मीद है, यह दृष्टिकोण भविष्य में बदल सकता है, क्योंकि, जैसा कि इतिहास से पता चलता है, आमतौर पर हक़ीक़त यह है की ये सब देश वे हैं जो पैसे के व्यापार, वित्त और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वास्तव में समृद्ध हैं। जबकि, राष्ट्रवाद राष्ट्रों को अंततः गरीब बनाता है क्योंकि इसका सियामी जुड़वां, यानि संरक्षणवाद, आंतरिक बाजार को नष्ट कर देगा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बाधित करेगा।

बराक ओबामा का यह विश्वास कि ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामले में कतार में सबसे पीछे जाना होगा, यही बात भारत की दुर्दशा पर भी लागू होती है। प्रतिष्ठित ब्रिटिश अर्थशास्त्री स्वर्गीय एंगस मैडिसन, जोकि मात्रात्मक मैक्रो आर्थिक इतिहास की विशेषज्ञ थे  ने गणना की थी कि पूर्व-औपनिवेशिक देश 18 वीं शताब्दी के दौरान, चीन और भारत ने मिलकर वैश्विक व्यापार का 50 प्रतिशत हिस्सा हथिया लिया था। यह कहना पर्याप्त होगा कि दुनिया के सबसे गतिशील बाजार के लिए एक "पुल" बनने की बांग्लादेश की क्षमता अभी तक भारतीय चेतना पर नहीं पड़ी है, और तब तक इंतजार करना पड़ सकता है जब तक कि भारत की निरंकुश मानसिकता एक आदर्श बदलाव में बदल नहीं जाती है। यह पसंद की बात है या नहीं, लेकिन हक़ीक़त यह है कि दुनिया का भविष्य चीन और भारत दोनों से जुड़ा है – न कि चीन या भारत के बीच।  

भारत को दी गई एक दुर्लभ सलाह के रूप में, ढाका में भारतीय पत्रकारों की एक टीम के साथ बातचीत के दौरान, हसीना ने एक बार कहा था, "भारत को इसके (चीन-बांग्लादेश संबंधों) बारे में चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं (बल्कि) सुझाव दूंगी कि भारत के बांग्लादेश सहित अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध होने चाहिए, ताकि इस क्षेत्र को और विकसित किया जा सके और हम दुनिया को दिखा सकें कि हम सभी मिलकर काम कर सकते हैं।

अप्रत्याशित रूप से, चीन के बेल्ट एंड रोड के खिलाफ भारत का तीखा अभियान और आसन्न "ऋण जाल", आदि की सर्वनाशपूर्ण चेतावनी बांग्लादेश को प्रभावित करने में विफल रही है। वास्तव में, चीन रेलवे मेजर इंजीनियरिंग ग्रुप कंपनी द्वारा निर्मित ड्रीम पद्मा ब्रिज नामक मेगा बहुउद्देश्यीय सड़क-रेल पुल, ढाका को देश के कई दक्षिणी जिलों से जोड़ता है, जो अब पूरा होने वाला है। अगले जून में हसीना इसका उद्घाटन करेंगी, यह बांग्लादेश के इतिहास में सबसे बड़ी और सबसे चुनौतीपूर्ण परियोजना रही है।

चीन ने बांग्लादेश को करीब 30 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता देने का वादा किया है। चीन ने बांग्लादेशी आयात के 97 प्रतिशत पर जीरो-ड्यूटी की भी घोषणा की है। बांग्लादेश को दक्षिण एशिया में चीन के प्रमुख बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भागीदारी करने में कोई दिक्कत नहीं है। बांग्लादेश में सबसे बड़े निवेशक के रूप में चीन का नाम है।

बांग्लादेश की चतुर कूटनीति ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को अधिकतम या बड़ा बना दिया है। इसकी स्वतंत्र विदेश नीति इसे सभी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने "सभी मौसम के मित्रों" - जापान और चीन, रूस और अमेरिका के साथ अपने संबंधों की चरम सीमा को संरक्षित करने में सक्षम बनाती है। परिणाम सामने है और काफी स्पष्ट भी है: कि बांग्लादेश 2024 तक एक मध्यम आय वाला देश बनने के कगार पर है।

बांग्लादेश में बीजिंग के आर्थिक हितों को दिल्ली की जुनूनी भू-रणनीति के साथ जोड़कर, भारत ने मैदान खो दिया है। इसके अलावा, हालांकि उपनिवेशवाद और गुटनिरपेक्षता का इतिहास भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए एक साझा अनुभव हैं, भारत अब एक सैद्धांतिक विश्वदृष्टि के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं, भारत आज "वैश्विक अंतर्विरोधों से उत्पन्न अवसरों की पहचान करके और उनका दोहन करके अपने राष्ट्रीय हितों को बढ़ा रहा है... वह भी अधिक से अधिक संबंधों के ज़रिए अधिक से अधिक हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है"। लेकिन बांग्लादेश का इस तरफ एक विरोधाभासी दृष्टिकोण है, इसके बजाय वह हालात को अनुकूल बनाने के लिए और विकास को रफ़्तार देने के लिए अपने लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित कर रहा ता है, जो कि इसके राष्ट्रीय एजेंडे में सर्वोच्च प्राथमिकता है।

एक परिपेक्ष बांग्लादेश चार्टर के रूप में विकसित हो रहा है और विकास के सूचकांक में उल्लेखनीय सुधार के साथ दक्षिण एशिया में सबसे प्रगतिशील क्षेत्रीय देश के रूप में आगे बढ़ने को तैयार है। यह सब देखते हुए, दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य देश भी "बांग्लादेश मॉडल" की ओर अधिकाधिक आकर्षित होने को बाध्य हैं।

यह उस देश के 165 मिलियन लोगों के लिए गर्व का अवसर है। इस राष्ट्र ने अपने संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के 25 मार्च, 1971 की घातक रात को उनकी गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले खुद के अनुयायियों का मार्मिक आह्वान किया था: "मैंने तुम्हें स्वतंत्रता दी है, अब आगे बढ़ो और इसे संरक्षित करो।"

एम॰ के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

India-Bangladesh Ties at Inflection Point

India-Bangladesh Relations
Narendra modi
Bangladesh

Related Stories

बनारस ग्राउंड रिपोर्टः मजबूर खिलौना कारीगरों को रास नहीं आ रहा मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा

फ़सल की वाजिब क़ीमत देने से नहीं बल्कि बाज़ार के लालच की वजह से बढ़ती है महंगाई!

भारत की भयंकर बेरोज़गारी का ही सबूत हैं अग्निपथ के तहत हुए लाखों आवेदन

मुद्दा: नामुमकिन की हद तक मुश्किल बनती संसद में मुस्लिमों की भागीदारी की राह

तीस्ता सेतलवाड़ की रिहाई की मांग को लेकर माकपा ने कोलकाता में निकाला विरोध मार्च

दिल्ली सहित देश भर में तीस्ता की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ नागरिक समाज का साझा विरोध प्रदर्शन

ग्राउंड रिपोर्टः भूतपूर्व सैनिकों के लिए ही रोज़गार नहीं तो अग्निवीरों के लिए मोदी सरकार कैसे खोलेगी नौकरियों का पिटारा ?

रुपये की गिरावट का असर कहां-कहां पड़ रहा है ?

तीस्ता और श्रीकुमार के समर्थन में देश भर में हो रहे हैं प्रदर्शन

इस बुलडोज़रकाल के आगे फीका है वह आपातकाल


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मोहम्मद ज़ुबैर ने पुलिस हिरासत के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का रुख़ किया
    30 Jun 2022
    याचिका में ज़ुबैर को चार दिन की पुलिस हिरासत में भेजने के निचली अदालत के 28 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। उनकी वकील वृंदा ग्रोवर ने न्यायमूर्ति संजीव नरूला के समक्ष इसका उल्लेख किया और वह शुक्रवार…
  • भाषा
    असम में बाढ़ के हालात गंभीर, 31 लाख से अधिक लोग प्रभावित
    30 Jun 2022
    राज्य में इस साल बाढ़ और भूस्खलन के चलते जान गंवाने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 151 हो गयी है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नये मुख्यमंत्री होंगे
    30 Jun 2022
    फडणवीस ने कहा कि शिंदे बृहस्पतिवार को शाम साढ़े सात बजे राजभवन में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
  • बादल सरोज
    बर्बरता की गला काट होड़
    30 Jun 2022
    उदयपुर की घटना पर स्तब्ध और विचलित होना काफी नहीं है - रियाज़ और मोहम्मद को सज़ा देने भर से यह प्रकोप नहीं थमेगा। इसे महामारी बनने से रोकना है तो विषाणुओं और उनके पालनहारों, उनके डिस्ट्रीब्यूटर्स, सबकी…
  • अजय कुमार
    फ़सल की वाजिब क़ीमत देने से नहीं बल्कि बाज़ार के लालच की वजह से बढ़ती है महंगाई!
    30 Jun 2022
    हाल ही में सरकार ने खरीफ़ के फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया, जो महंगाई दर के हिसाब से पहले के मुकाबले कम है। उसके ख़िलाफ़ भी यह बात कही जाने लगी कि जब फ़सलों की क़ीमत बढ़ेगी तब लागत बढ़ेगी,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें