अभी और बढ़ेगी महंगाई!
एक अमेरिकन डॉलर के मुकाबले हमारी भारतीय मुद्रा 80 रुपये के आसपास पहुंच चुकी है। रुपये में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। सरकार के समर्थक कह रहे हैं कि इसके लिए रूस-यूक्रेन युद्ध जिम्मेदार है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली जिम्मेदार है। लेकिन क्या असली हक़ीक़त यही है? क्या इसके अलावा सरकार की आर्थिक नीतियों को दोष नहीं दिया जा सकता है? क्या आयात - निर्यात की नीति ऐसी है कि जिसे भारत के लिए कारगर कहा जा सकता है? अगर डॉलर के मुकाबले येन और यूरो जैसी मुद्राओं में भी गिरावट हो रही है तो रुपये की गिरावट को लेकर चिंतित क्यों हुआ जाए? अगर डॉलर के मुकाबले रुपया गिरेगा तो आम लोगों पर इसका क्या असर पड़ेगा, जिन्होंने कभी डॉलर देखा नहीं? इन्हीं सब मुद्दों पर इस वीडियो में जेएनयू के प्रोफ़ेसर सुरजीत मजूमदार से ख़ास बात की गयी है।
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