इंजीनियरिंग शिक्षा पर संकटः डेढ़ लाख शिक्षकों को हटाया जाएगा

देश के विभिन्न राज्यों के अधिकांश स्व-वित्त पोषित तथा निजी शिक्षण संस्थानों के क़रीब डेढ़ लाख शिक्षित तथा अनुभवी शिक्षकों को हटा दिया जाएगा या उन्हें जबरन इस्तीफ़ा देने के लिए कहा जाएगा। ये अनुमान ऑल इंडिया प्राइवेट कॉलेज एम्प्लाई यूनियन (एआईपीसीईयू) का है जो सभी राज्यों के 10,000 इंजीनियरिंग के प्रोफेसर का एक संगठन है। इस अकादमिक वर्ष के अंत में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कई इंजीनियरिंग कॉलेजों ने शिक्षकों को हटाना शुरू कर दिया है।
शैक्षिक वर्ष 2018-19 के लिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा नए स्टूडेंट-फैकल्टी अनुपात (एसएफआर) के कार्यान्वयन का यह परिणाम है। फैक्ल्टी- स्टूडेंट अनुपात अभी 1:20 है। निजी तथा स्व-वित्त पोषित इंजीनियरिंग कॉलेजों में बीई, बीटेक, बी आर्क, एमबीए, एमसीए और होटल प्रबंधन के लिए अनुपात पहले 1:15 था। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में डिप्लोमा के लिए यह 1:20 था। हालांकि, इंजीनियरिंग तथा तकनीक के लिए एसएफआर 1:15 और एमबीए, एमसीए, एचएमसीटी तथा एम फार्मा जैसे अन्य पाठ्यक्रमों के लिए अतार्किक रूप से कम कर 1:20 तक कर दिया गया है। डिप्लोमा के लिए पहले के 1:20 अनुपात को 1:25 तक घटा दिया गया है।
नीचे दिए गए टेबल में शिक्षकों की संख्या दी गई है जो देश भर के विभिन्न तकनीकी संस्थानों से पहले ही हटा दिए गए हैं:
एआईपीसीईयू के संस्थापक केएम कार्तिक ने कहा, "यह छात्रों के दिमाग पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक असर डालेगा जो अभी अपनी छुट्टी मनाने गए थे। जब वे लौटेंगे तो उन्हेंशिक्षकों की कमी का सामना करना पड़ेगा। चूंकि कुछ कॉलेज आवश्यक से अधिक कर्मचारियों को हटा देते हैं और कम अनुभव वाले नए शिक्षकों के साथ प्रतिस्थापित करते हैं या प्रतिस्थापित करने की योजना बनाते हैं जिन्हें कम वेतन का भुगतान किया जा सके। इस तरह छात्रों को कई परस्पर-विरोधी मामलों का सामना करना पड़ेगा और इससे उनकामनोबल टूटेगा।”
कुछ कॉलेज एड-हॉक शिक्षकों को हटाएंगे जबकि कुछ वरिष्ठ शिक्षकों को निशाना बनाएंगे। उन्होंने कहा, "शिक्षक के रूप में सेवा देने के लिए ये सभी शिक्षक (एड-हॉक या वरिष्ठ)अच्छी तरह अनुभवी हैं। वे सभी इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल किए हुए हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि वे अकुशल या कम प्रतिभाशाली हैं।"
शुल्क अपरिवर्तित
यहां उल्लेखनीय है कि वे छात्र जिन्होंने अपने पाठ्यक्रम का पहला वर्ष अभी पास किया है उन्हें अब शिक्षकों की कमी के साथ उसी शुल्क के अनुसार अगले तीन वर्षों तक पढ़ाईकरना होगा। कॉलेजों में शुल्क का निर्धारण प्रत्येक राज्य के उच्च शिक्षा विभाग (या तकनीकी शिक्षा निदेशालय) के तहत एक शुल्क निर्धारण समिति द्वारा तय किया जाता है। कार्तिक नेआरोप लगाया कि "एआईसीटीई के नए एसएफआर अनुपात के अनुसार शिक्षकों की क्षमता कम करने से पहले किसी राज्य सरकार ने छात्रों के लिए इस शुल्क संरचना में संशोधन नहीं किया है। इस अनुपात में बदलाव (1:15 से 1:20 तक) से इन संस्थानों के 25 प्रतिशत कर्मचारियों को हटाया जा रहा है।
एक्रेडिटेशन / एनआईआरएफ रैंकिंग निरर्थक?
नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन (एनबीए), नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएएसी) तथा नेशनल इंस्टिच्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) द्वारा मान्यता नई एसएफआर नीति के कार्यान्वयन के कारण अब कथित रूप से रद्द कर दी गई है। कार्तिक ने आगे कहा, "बहुत कम टॉप-रैंकिंग, स्व-वित्त पोषित संस्थानें अभी भी अपने पुराने शिक्षकों की क्षमता को बरकरार रखे हुए हैं। एआईसीटीई के फैसले के अनुसार अन्य संस्थानों के लिए शिक्षकों की क्षमता को कम करना खुशी मनाने जैसा है। इसलिए, जो एक्रेडिटेशन हुए है वे नए नियम के अनुसार लागू नहीं होते है।"
एआईसीटीई और ट्रस्ट संबंध?
एआईसीटीई कॉलेजों और सीटों की संख्या में कमी या बंद होने को निरंतर दर्शाता है जो जानबूझकर शिक्षा की सकारात्मक धारणा को कम करता है। कार्तिक ने कहा, "दुर्भाग्यवश एआईसीटीई नियामक निकाय होने के बावजूद इस तरह के क़दम का समर्थन करता है।" उन्होंने आगे कहा. जबकि सुधार के बहुत सारे क्षेत्र मौजूद हैं तो एआईसीटीई पिछले महीने सीटों के समापन को केवल प्रस्तुत करता है जो कॉलेज के मालिकों के हाथों में होने का संकेत देता है जो अपने शिक्षा-व्यवसाय को मदद करने के लिए तथ्यों को तोड़-मोड़ सकते हैं।"
लगता है कि एआईसीटीई ने संस्थानों के वित्तीय बोझ की भरपाई में मदद करने के लिए शिक्षकों को कम करने का फैसला किया। यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या एआईसीटीई ने शिक्षकों के वेतन विवरणों के साथ संस्थानों के बैंक विवरणों की जांच किया है या क्रॉस-वेरिफाई किया है। इसाक जवाब नकारात्मक है। कार्तिक ने कहा, "यह साफ है कि नोटबंदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था पहल के बाद भी एआईसीटीई संस्थानों में छात्रों की फीस और कर्मचारियों के वेतन को डिजिटाइज करने को लेकर परेशान नहीं है। एआईसीटीई द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे बहुत कम महत्वपूर्ण वाले हैं जबकि महत्वपूर्ण मुद्दों को सरसरी तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिया जा रहा है।"
याचिकाकर्ता के मुताबिक़ नए फैकल्टी-स्टूडेंट अनुपात को लागू करने में एआईसीटीई ने इन सभी वर्षों में अपनाए गए पारदर्शिता को समाप्त कर दिया है। फैसले से पहले इस मामले को सार्वजनिक नहीं किया गया था। उन्होंने कहा, "एआईसीटीई ने कॉलेजों के प्रबंधन ट्रस्ट के एसोसिएशन की सलाह पर काम किया था। हर एक ट्रस्ट गैर-लाभकारी सेवा संगठन नहीं है, और बड़े पैमाने पर पैसा बनाने वाले, पारिवारिक स्वामित्व वाले संगठन हैं। कुछ एआईसीटीई अधिकारियों ने इन ट्रस्टों के साथ गठजोड़ किया है, एक गुप्त समाज बना दिया है, और नया फैकल्टी- स्टूडेंट अनुपात इन गुप्त समाज की बैठकों का नतीजा है।"
अकादमिक वर्ष 2015-16 के दौरान एआईसीटीई के सभी मान्यता प्राप्त संस्थानों में कर्मचारियों की कुल संख्या क़रीब 7,00,000 थी (एआईसीटीई के रिकॉर्ड के अनुसार)। आगे कहा गया है कि अकेले इंजीनियरिंग और तकनीक कॉलेजों में यह संख्या 5,78,000 है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर ये संख्या क़रीब 5,00,000 ली जाती है तो इन निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में रोज़गार से 5,00,000 परिवारों को लाभ मिलता है।
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