मई दिवस ज़िंदाबाद : कविताएं मेहनतकशों के नाम
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मई दिवस की इंक़लाबी तारीख़ पर इतवार की कविता में पढ़िए मेहनतकशों के नाम लिखी कविताएं।
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
-केदारनाथ अग्रवाल
हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ
सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ
माता रही विचार अंधेरा हरने वाला और हुआ
दादा रहे निहार सवेरा करने वाला और हुआ
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ
जनता रही पुकार सलामत लाने वाला और हुआ
सुन ले री सरकार! कयामत ढाने वाला और हुआ
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ
-केदारनाथ अग्रवाल
माँ है रेशम के कार-ख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कार-ख़ानों के काम आएगा
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर
भूक सरमाए की बढ़ाएगा
हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चाँदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
ख़ून उस का दिए जलाएगा
ये जो नन्हा है भोला-भाला है
सिर्फ़ सरमाए का निवाला है
पूछती है ये उस की ख़ामोशी
कोई मुझ को बचाने वाला है
- अली सरदार जाफ़री
सदा आ रही है मिरे दिल से पैहम
कि होगा हर इक दुश्मन-ए-जाँ का सर ख़म
नहीं है निज़ाम-ए-हलाकत में कुछ दम
ज़रूरत है इंसान की अम्न-ए-आलम
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम
सदा आ रही है मिरे दिल से पैहम
न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे
न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे
मुसावात के दीप घर घर जलेंगे
सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे
न होगी कभी ज़िंदगी वक़्फ़-ए-मातम
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम
- हबीब जालिब
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