...जब कश्मीर चाहिए तो कश्मीरी क्यों नहीं?
देहरादून में एक तरफ शहीदों की अंतिम यात्रा में सैकड़ों की संख्या में लोग शरीक हुए। मेजर चित्रेश बिष्ट और मेजर विभूति ढौंडियाल की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए लोगबाग अपने जरूरी काम छोड़कर पहुंचे। शहीद के परिजन तो बिलख ही रहे थे, जो उन शहीदों के नाम से अब परीचित हुए, उनका भी एक नाता सा जुड़ गया, जैसे कोई अपना बिछुड़ गया, उन्होंने भी आंसुओं से अपने शहीद को श्रद्धांजलि दी। शहर के घंटाघर चौराहे पर कितने ही कैंडिल मार्च निकले। दूसरे छोटे-बड़े चौराहों पर भी सर्द हवाओं से बुझी हुई मोमबत्तियां बता रही थीं, कि ये शहर इस समय शोक में डूबा हुआ है।
इसी शहर के दूसरे छोर पर, जहां वे शैक्षिक संस्थान हैं, जिनमें पढ़ने के लिए बड़ी संख्या में कश्मीरी बच्चे आते हैं, उनके खिलाफ गुस्सा और नफ़रत फैलाने की राजनीति हुई। हिंदुत्ववादी संगठनों के लोग, भीड़ और समाज की आड़ में, कश्मीरी छात्र-छात्राओं को भयभीत करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी का नतीजा था कि मंगलवार आधी रात को दो बसों में कश्मीरी छात्र-छात्राओं को वापस ले जाया गया। पीडीपी के सांसद फैयाज अहमद मीर की अगुवाई में चार सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल मंगलवार शाम देहरादून पहुंचा। कश्मीरी प्रतिनिधि मंडल ने सुद्धोवाला और टर्नर रोड पर हॉस्टल में रहने वाले कश्मीरी छात्र-छात्राओं से मुलाकात की। बीजापुर गेस्ट हाउस से इन बच्चों को कश्मीर के लिए रवाना किया गया।
इस बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि देहरादून में कश्मीरी विद्यार्थियों के साथ गलत व्यवहार को लेकर अफवाह फैलायी जा रही हैं, जो कि गलत हैं। उन्होंने कहा कि जो भी कानून-व्यवस्था को तोड़ने का काम करेगा, उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सोशल मीडिया पर बिना सोचे-समझे की जा रही पोस्ट की वजह से माहौल और ज्यादा भ्रामक और तनाव पूर्ण बन गया है। कल, मंगलवार को रुड़की में क्वांटम विश्वविद्यालय के 7 कश्मीरी छात्र-छात्राओं को निलंबित कर दिया गया। हिंदुत्ववादी संगठनों ने इन पर पाकिस्तान और आतंकवादियों के समर्थन में नारेबाजी का आरोप लगाया था।
देहरादून के दो कॉलेज प्रबंधन (अल्पाइन इंस्टीट्यूट और बीएफआईटी कॉलेज) ने इन्हीं हिंदुत्ववादी बैनर तले इकट्ठा हुए उन्मादी भीड़ के डर से ये लिखकर दिया कि वे अब कश्मीरी बच्चों को अपने कॉलेज में दाखिला नहीं देंगे। हालांकि बाद में प्रबंधन ने स्पष्ट किया कि उस समय मॉब को देखते हुए, ये करना ही उचित लगा। कश्मीरी बच्चों के दाखिले राज्य सरकार के निर्देशानुसार ही होंगे।
मॉब की वजह से ही अल्पाइन इंस्टीट्यूट के प्रबंधन को अपने कश्मीरी मूल के एक डीन आबिद माजिद कुच्चे को निलंबित करना पड़ा। अल्पाइन इंस्टीट्यूट की मैनेजिंग डायरेक्टर भावना सैनी कहती हैं कि 15 फरवरी को कॉलेज के बाहर मॉब आया था। चार सौ- पांच सौ की भीड़ को शांत करने के लिए, उनसे जैसा कहा गया, उन्होंने वही किया। वो कहती हैं कि डीन को अस्थायी तौर पर निलंबित किया गया है। इसके साथ ही एक कश्मीरी छात्र को भी एंटी नेशनल पोस्ट करने पर सस्पेंड किया गया है। अल्पाइन इंस्टीट्यूट इस वजह से भी ज्यादा निशाने पर आया क्योंकि पिछले वर्ष सितंबर में यहां पढ़ने वाला छात्र अचानक गायब हो गया था। कुछ दिनों पहले उसके आतंकी होने और मुठभेड़ में मार गिराने की खबर आई। मैनेजिंग डायरेक्टर भावना कहती हैं कि इस घटना के बाद से सभी कश्मीरी बच्चों का पुलिस वेरिफिकेशन कराया जा रहा है। हालांकि ऐसा पहले भी होता था।
सोशल मीडिया पर ही कश्मीरी लड़कियों को हॉस्टल के कमरे में कैद करने की ख़बर से माहौल और भ्रामक हो गया। दिल्ली से जेएनयू की पूर्व छात्रा शहला रशीद ने इसे लेकर एक ट्वीट भी किया। उनके ट्वीट को कई बार रि-ट्वीट किया गया। इसके बाद प्रेमनगर में शहला रशीद के खिलाफ़ एफआईआर भी दर्ज की गई।
देहरादून एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने सुद्धोवाला क्षेत्र में हॉस्टल में रह रही कश्मीरी लड़कियों से मुलाकात की। वे सभी डॉल्फिन इंस्टीट्यूट की छात्राएं हैं। उन्होंने वीडियो जारी कर ये कहा है कि उनके कमरे के बाहर कुछ लोग आए। वे चिल्ला रहे थे कि कश्मीरी लोग बाहर आओ। हम डर गए थे। लेकिन हॉस्टल मैनेजमेंट, पुलिस फोर्स और कॉलेज प्रबंधन ने पूरी सुरक्षा मुहैया करायी। हम ठीक हैं।
These female Kashmiri students locked themselves in a hostel room yesterday in #Dehradun after a Hindu mob surrounded their college campus, demanding they be thrown out into the streets to be set upon.
Straight up Modo inspired Saffron terrorism! pic.twitter.com/PulNleeH2l
— CJ Werleman (@cjwerleman) 18 February 2019
देहरादून की एसएसपी निवेदिता कुकरेती का कहना है कि फील्ड पर सब कुछ ठीक है। सोशल मीडिया की वजह से अफवाहें फैल रही हैं, जिससे मुश्किल हो रही है।
देहरादून में बजरंग दल से जुड़े विकास वर्मा का कहना है कि जब तक कश्मीर में सैनिकों पर पत्थरबाजी बंद नहीं होती, कश्मीरी जनता पाकिस्तान का साथ देना बंद नहीं करती, इसे कोई बर्दाश्त नहीं करेगा। वे दावा करते हैं कि रुड़की के क्वांटम यूनिवर्सिटी में कैंडल मार्च के दौरान कश्मीरी लड़कियों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। विकास कहते हैं कि देहरादून में लोगों ने अपनी स्वेच्छा से घर के बाहर पोस्टर लगाए कि कश्मीरी यहां न आएं। वे सभी गुस्से में हैं। इससे पहले, उन्होंने कश्मीरी छात्र-छात्राओं को अपने बच्चों की तरह रखा था। बजरंग दल के विकास वर्मा का कहना है कि कश्मीरी छात्र-छात्राओं की सिंपैथी पाकिस्तान के साथ है, हमारे साथ नहीं है। विकास कहते हैं कि अगर एक लड़के ने सोशल मीडिया पर देश के खिलाफ बात लिखी, तो उसके साथ रह रहे दूसरे कश्मीरी क्या उसे समझा नहीं सकते थे, इसका मतलब वे भी उसके साथ थे।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद से कश्मीरी लोगों के खिलाफ नफ़रत फैलायी जा रही है। शायद उस आतंकी हमले का यही मकसद था। मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय ने कश्मीर और कश्मीर के लोगों का बहिष्कार करने की अपील कर दी।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि कुछ कश्मीरी बच्चों ने ऐसी बातें पोस्ट कीं, जिससे लोग भड़क गए हैं। वे प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चे तो नहीं हैं। उन्हें भी देखना चाहिए था कि जब पूरा देश गुस्से में है, तो इस तरह की बातें न करें। नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि मॉब बहुत ज्यादा लॉजिक पर नहीं जाता। इसलिए फिलहाल माहौल को देखते हुए, यही सही है कि कश्मीरी छात्र-छात्रा वापस अपने घरों को लौट जाएं।
शिक्षाविद हम्माद फारुख़ी कहते हैं कि जब चंडीगढ़ में खालसा एड इंटरनेशल ने देहरादून से गए सौ कश्मीरी बच्चों को घर लौटने के लिए ट्रांसपोर्ट मुहैया कराया, तो ये बात उम्मीद देती है। लेकिन फिर शहला राशिद के खिलाफ मुकदमा कर दिया गया। मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय ने कश्मीरियों के बहिष्कार की अपील की है। इस तरह स्थिति अलार्मिंग हो गई है। पुलवामा में शहीद लोगों के साथ सबकी संवेदनाएं हैं। लेकिन ट्रेजेडी के दौरान स्पान्टेनियस आक्रोश को औचित्य देने की कोशिश की जाती है। इस तरह हममें और उग्रवादियों में क्या फर्क रह जाता है।
कश्मीरी छात्रों के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर देहरादून में वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णा खुराना कहती हैं कि हम जिस समस्या का समाधान ढूंढ़ रहे हैं, समाधान न करके, हम तो समस्या को बढ़ा रहे हैं। ये किसी भी दृष्टि से सही नहीं हो रहा है। जो गलत कर रहा है, उस व्यक्ति विशेष के खिलाफ कार्रवाई कीजिए, पूरी कम्यूनिटी को टारगेट न करें।
कश्मीरी बच्चों को वापस भेजने के मुद्दे पर साहित्यकार जितेंद्र ठाकुर कहते हैं कि अगर इस तरह धागे टूटने लगें, तो समस्या बढ़ती चली जाएगी। हमें संवेदनशील तरीके से इस मसले को हल करने की जरूरत है। वो कहते हैं कि हम ऐसा न करें कि जो आज तक हमारे पाले में खड़े हैं, वे कल दूसरे के पाले में खड़े नज़र आएं। मॉब साइकोलॉजी बहुत खतरनाक साइकोलॉजी होती है। सफदर हाशमी इसी मॉब साइकोलॉजी का शिकार हुए थे। दून के दो कॉलेजों के कश्मीरी बच्चों को एडमिशन न देने के मजबूरी वश लिए गए लिखित बयान पर जीतेंद्र ठाकुर कहते हैं कि भीड़ को शांत करने के लिए, कभी-कभी हमें ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं। वो उम्मीद जताते हैं कि बाद में सब सामान्य हो जाएगा।
देवभूमि उत्तराखंड के द्वार इन दिनों कश्मीरी लोगों के लिए बंद हो रहे हैं। कुछ कश्मीरी छात्रों की सोशल मीडिया पर आईं आपत्तिजनक पोस्ट के बाद हालात कश्मीरी विरोधी से दिखने लगे। हालांकि उत्तराखंड पुलिस कश्मीरी छात्र-छात्राओं को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पूरे प्रयास कर रही है। अपने कश्मीरी दोस्तों को बचाने के लिए बहुत से हिंदू दोस्त भी सामने आए। लेकिन गुस्सायी-उन्मादी भीड़, मॉब या हिंदुत्ववादी संगठन के लोगों के आगे राजधानी के शैक्षिक संस्थानों को घुटने टेकने पड़े। देहरादून से अपने घरों को लौटे कश्मीरी छात्र-छात्रा फिर किस तरह अपने देश को प्यार करेंगे। और ये सवाल भी सोशल मीडिया पर ही पूछा गया कि जब कश्मीर चाहिए, तो कश्मीरी क्यों नहीं।
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